साल आया भी था ग़मों के साथ।
साल जाने लगा ग़मों के साथ।।
मां सतायी, पिता को छीन लिया,
सब निभाना पडा ग़मों के साथ।।
साल आया भी था ग़मों के साथ।
साल जाने लगा ग़मों के साथ।।
मां सतायी, पिता को छीन लिया,
सब निभाना पडा ग़मों के साथ।।
साल दो हजार तेरह ने 15 मार्च को मेरे पिता को इस दुनिया से विदा कर दिया। और आज मेरी माता को पैरालाइसिस ( अधरंग) रोग से पीडित कर दिया है जिसका इलाज दो दिन से जारी है। मेरे परिवार के लिये इस शुभ कैसे कहूँ। क्या यह 13 के अंक को अशुभ मानने का जो जमाने में चलन है वह सही है। मन को भ्रमित कर दिया है। खैर वेसे तो प्रकृति जो करती है उसको किस समय करना उसे ही मालूम होगा। लेकिन वास्तविकता में मानव को बहुत गहरा आघात लगता है।
साल 1014 आ रहा है इस नव वर्ष को प्रणआम करता हूँ कि मेरे परिवार पर इस 13 के पडे ग़म को कम करना कुछ नया काम करके। ऐ 2014 मैं आपके आगमन के लिये प्रणाम करता हूँ आपका स्वागत करता हूँ।
..........................
खूबसूरत किसे कहा जाये।
सोचकर कोई फैसला लिया जाये।।
सोचिये खूबसूरती क्या है,
देखकर अब उसे हंसा जाये।।-----सुजान
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सुनो। अब आदमी बेखौफ होकर बात करते हैं।
यहाँ मन्दिर व मस्जिद,और पत्थर बात करते हैं।।
ज़माना ढूँढता है जिस खुदा को वो नहीं मिलता,
खुदा से तुम नहीं वो आपके डर बात करते हैं।।
आजकल इस देश में हर बात ही विपरीत है।
चोर पर आरोप तो, आरोपी भी अभिनीत है।।
भौंकते हैं हर तरफ शालीन कुत्ते बेवज़ह,
दोस्तो अपने लिये यह शौक़ का ही गीत है।। ..सुजान
तरहा ग़ज़ल
................................
नहीं छोडते तुम सताने की आदत
बडी खूब यादों में आने की आदत।
महब्बत को बदनाम करता रहा है,
सदा से यही है ज़माने की आदत।
ये पहली महब्बत बडी जानलेवा,
जवानी को है भाग जाने की आदत।
ये आदत कोई रोग गहरा नहीं है,
हमें है बहाने बनाने की आदत।
तुम्हें याद रखता हूँ,आदत है आदत,
तुम्हें है मुझे भूल जाने की आदत...........सुजान
........................................#sujankavi
मेरे सब दोस्त मतलब देखते हैं
मुहब्बत मेरी वो कब देखते हैं।
मेरी इनसानियत पहचानता कौन है,
सभी के सब तो मज़हब देखते हैं।
वो लडकी भूखी रस्सी पे चले है,
जमाने वाले करतब देखते हैं।।।। -सुजान
कैसी भागादौडी है कैसा ये ज़मघट हो गया।
कैसे दुर्घटना घटी सब कुछ ही झटपट हो गया।।
लूटने में सब लगे,आपस में अपने देश को,
कुछ नहीं छोडा कंही भी,देश चौपट हो गया।। - सुजान
दूध देती गाय
हम पीते चाय।
रोज स्कूल जाते,
मम्मी को करते बॅाय-बॅाय।।
………………………………………….सुजान
अच्छे बच्चे बात नहीं भूलते
गेट पर नहीं झूलते ।
अपना काम खुद करते हैं
पढाई से कभी नहीं डरते हैं।।
…………………………………………….. सुजान
GHAZAL--AAJ DIL KE EHSAS MEN JO AAYA....BAS VAHI PESH HAI..
वक़्त ठहरा हु्आ दिखाई दे...
कोई अन्धा हुआ दिखाई दे.....
कैसा जलवा फ़िज़ाओं में देखा,
मुझको देखा हुआ दिखाई दे....
उसके जाने से वक़्त जाता है,
चाँद घटता हुआ दिखाई दे.....
जिसको पर्वत सभी कहा करते,
आज दरिया हुआ दिखाई दे....
किसको मज़हब कहूँ?नहीं समझा,
ख़ून बहता हुआ दिखाई दे....
आरज़ू रखना ज़ुर्म ही है सुजान ,
दर्द बढता हुआ दिखाई दे......सूबे सिंह "सुजान"
अदबी संगम कुरूक्षेत्र की जून माह की मासिक गोष्ठी का आयोजन डा.बलवान की अध्यक्षता में हुई। जिसका सारा कार्यभार व संचालन श्री विकास शर्मा ने किया। आयोजन स्थल- सैक्टर-7, के राजकीय प्राथमिक पाठशाला में हुआ। गोष्ठी के प्रारम्भ में डा. संजीव कुमार ने अपनी ग़ज़ल के साथ आग़ाज़ किया। श्री मेहर चंद धीमान ने बच्चों पर कविता पढी- आई परीक्षा प्यारी-प्यारी। आओ मिलकर करें तैय्यारी।। आज के आयोजन में डा. सत्य प्रकाश तफ़्ता, श्री बी.एल.अरोडा, डा. बलवान,आर.के.शर्मा, श्रेणिक लुण्कड बिम्बसार, डा. उषा अग्रवाल, कविता रोहिला, सूबे सिंह सुजान, श्याम लाल बागडी, विकास शर्मा, शकुन्तला शर्मा, डा. केवल कृष्ण रिषी आदि। सदस्यों ने अपने कलाम पेश किये । दोस्त भारद्वाज को सभी सदस्यों ने आज फिर से याद किया। उनके बिना अदबी संगम का माहौल रूखा-रूखा सा रहता है। ये बात मौसम भी कहता है।
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पानी ही पानी देखते हैं हम ख़वाब में
ये ज़िन्दगी तो फंस गई है अज़ाब में।।
जिसके लिये तरसते थे,उससे ही डरते हैं,
ये ज़िन्दगी गुजारते हैं हम नक़ाब में।।
इस बात का ज़वाब नहीं है किसी के पास,
हर रोज़ कौन भरता है खुश्बू गुलाब में।।
आपस में भाई जब कोई भी काम करते हैं,
दोनो कहेंगे उसने की गडबड हिसाब में।।
हम आज उनको याद नहीं करते ठीक से,
जो जिन्दगी गुजार गये इन्कलाब में।।
……………………………………………………….सूबे सिंह सुजान
दोस्त, दोस्त होता है । दोस्त कभी बेवफ़ा नहीं होता।
करूक्षेत्र- (9जून2013) अदबी संगम करूक्षेत्र, की उसके संस्थापक श्री चन्द्र प्रकाश भारद्वाज ‘दोस्त’ को विशेष श्रृदांजलि गोष्ठी का आयोजन किया गया।ज्ञातव्य है कि श्री दोस्त जी का इंतकाल 4 जून की शाम को हो गया है। जिसकी याद में अदबी संगम ने एक विशेष गोष्ठी का आयोजन किया। सर्वप्रथम उनके चित्र के सामने प्रो.सत्य प्रकाश ‘तफ़्ता’ ज़ारी,डा. के.के. ऋषि,व उनके पोत्र अर्पित पंडित ने पुष्प अर्पित किये। उसके बाद अदबी संगम के सभी 27 सदस्यों ने पुष्प भेंट किये।
आज की विशेष गोष्ठी का संचालन डा. बलवान ने किया। जिसमें सर्वप्रथम ओम प्रकाश राही जी ने दोस्त को सबका दोस्त कहा साथ ही कहा कि वह कंई बार गुस्सा हम पर किया करते थे जो कि नियमों का पालन के रूप में वे करते थे।श्री रत्न चंद सरदाना ने उनकी लिखी पुरानी ग़ज़ल का शेर सुनाया- दोस्त नौकरी से रिटायर्ड हो गया है। सुना है वो शायर हो गया है।। यह शेर उन्होने रिटायर्ड होने पर कहा था।, संगम के वर्तमान प्रधान कस्तूरी लाल शाद ने कहा कि- वे सुख-दुख में कभी विचलित नहीं हुये और उन्होने गीता सार को सार्थक जिया है।, सार्थक साहित्य मंच के संरक्षक प्रो. वी.डी.शर्मा ने कहा कि- इस अवसर पर हमें दोस्त को याद करते हुये उनकी ही तरह साहित्य के श्रेत्र में नये पौधे लगाने चाहिये।, चन्द्रमोहन सिंगला ने कहा- कि उनके परिवार जनों का सौभाग्य है कि उनको उन जैसा साफ दिल का इंसान व शायर मिला। हमें व उनके परिवार को उनके लिखे हुये साहित्य को प्रकाशित करवाना चाहिये। जनाब बाल कृष्ण ‘बेज़ार’ ने कहाृदोस्त जिंदादिल थे जिंदा हैं तथा जिंदा रहेंगे।, दोस्त के स्कूल के हमशायर,हमक़लम डा.के.के. रिषि ने कहा- दोस्त ने अदब का जो पौध लगाया था वो केवल लगा कर छोडा ही नहीं, बल्कि उसकी जिन्दगी भर देखभाल भी की है। इससे बढकर कौन सा रिश्ता है। जो उन्होने निभाया है।, प्रो. सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी ने कहा कि दोस्त अदब को समर्पित थे और जो भी कहते थे बहुत ही सोच-समझकर कहते थे।, स्वामी लोकेश गम्भीर ने श्री कृष्ण के गीता संदेश को याद करते हुये कहा कि हर आदमी एक दिन अपने पुराने कपडे उतार कर नये वस्त्र धारण करता है उसी प्रकार दोस्त जी भी अपने नव जीवन के लिये हमसे विधा हो चुके हैं।, विनोद धवन ने कविता के माध्यम से कहा—वो ऊँगली से शेर कहने की अदा,वो चश्मे के इशारों से बात करना।अदबी संगम नाम का थैला इतना भारी था,ये हमने आज जाना, जिसे तुम हमेशा अपने कंधों पर उठाये रहते थे।।सूबे सिंह सुजान ने एक शेर पढा- आदमी नेक सब नहीं होते। दोस्त जैसे क्यूं अब नहीं होते।। इस अवसर पर उनके परिवार से उनके पौत्र अर्पित पंडित मौजूद रहे। इसके अलावा अन्य सदस्यों में श्री राकेश भास्कर,डा. श्रेणिक लुण्कड,गुलशन ग्रोवर,दीदार सिंह किरती,डा. शकुन्तला, डा. उषा अग्रवाल,कविता रोहिला, श्याम लाल बागडी, सुधीर ढाण्ढा , रमेश शर्मा,मुनिन्द्र मौद्गिल आदि सदस्यों ने अपने विचार व्यक्त किये।
एक चिन्ता नहीं गई मन से
कब मिटेंगे ये कष्ट जीवन से।।
मैं समय ने बदल दिया कितना,
पूछता हूँ ये प्रश्न दर्पण से....।
वार्तालाप बस नयन करते,
प्रेम होता नहीं कभी तन से ।
आज मानव की रूचियाँ बदलीं,
प्रेम करने लगे हैं सम्पन से ।
तार्किक तथ्य है यही जग में,
प्रेम मिलता नहीं कभी धन से।
प्रेम बन्धन नही,सभी कहते,
प्रेम मिलता है,किन्तु बन्धन से।
ऐसे प्रेमी, "सुजान" होते हैं
जो जिधर देखें कर दें पावन से।
सूबे सिंह "सुजान"
आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है
अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।
ख़ून बेमक़सद बहाये, आदमी क्या चीज़ है,
आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।
धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,
ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।
कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,
रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।
अपने-आपे में नहीं रहता है अब मेरा ये दिल,
सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।
खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,
ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या चीज़ है।
खूबसूरत - खूबसूरत सारी दुनिया है मगर,
मैं तो हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है।
किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,
तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।
शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,
गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।
सारी दुनियां देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"
शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।
वो लडकियों से नफ़रत तो नहीं करते
लेकिन बेटे से प्यार ते करते हैं
वो ऐसे माँ-बाप हैं, जो
अपनी शादी के लिये
तो सुन्दर लडकी की तलाश में निकलते हैं
लेकिन अपने घर में लडकी नहीं देख सकते
बेटे की चाह में वे….
तांत्रिकों तक जा पहुंचते हैं
और अपनी बुद्दि को ठेके पर दे देते हैं
और फिर शुरू करते हैं
दूसरों के बेटों का क़त्लेआम
और फिर भी बेटा नहीं पाते
लेकिन जब कोई दिखने में बेवकूफ
और सच में सही तांत्रिक मिलता है
जो उनकी रग को पहचान कर
करता है डाक्टरी इलाज……..,…………
और उस पुरूष को पहचान कर
उसकी स्त्री से करता है सम्बन्ध
और कर देता है उसे गर्भवती
मलता है उनको पुत्ररत्न
वे खुश हो जाते हैं
तांत्रिक की विधा पर
न्योछवर करते हैं और भी बहुत कुछ
लेकिन वो स्त्री जानती है
कि कैसे प्राप्त हुआ है पुत्र
और पहचानती है पुरूष की मानसिकता को
नहीं बोलती कभी भी बडा सच
कैसा उबड-खाबड और समुद्र सा है
उसका सीना…..
कौन जाने क्या –क्या होता है
उसके सीने के पार भी…………….
hamare ganv men chhote badon se pyar karte hn.... | hamare ganv men chhote badon se pyar karte hn.... |
वो शख़्स चुपचाप जा रहा था
न जाने क्या सोचता रहा था।।
वो यूँ मुहब्बत जता रहा था,
कि मेरा घुँघट उठा रहा था।
जो आज मुझको मिटा रहा था,
कभी वो मेरा ख़ुदा रहा था।
वो काग़जों में कमा रहा था,
“नरेगा” के नाम पा रहा था।
जहाँ से गुजरें,वहीं पे खन्जर,
कि वक़्त हमको डरा रहा था।
वो बेवफ़ा है तो क्या हुआ है,
कभी मैं भी बेवफ़ा रहा था।
ये बीच में चाँद कैसे आया,
मैं उसकी सूरत बना रहा था।
मैं हडबडा के उठा तो सोचा,
वो कौन था जो जगा रहा था।
मैं जन्मदिन पर मिठाई खाता,
वो मेरी उम्र घटा रहा था।
फ़सल में नुकसान करते हैं पेड,
किसान उनको कटा रहा था।
कंई दिनों बाद पास आया,
वो नीचे-नज़रें झुका रहा था।
ख़ुदा भी उसके ही हक़ में होगा,
जो बस्तियों को जला रहा था।
था उनका मज़हब तो एक लेकिन,
ख़यालों में फासला रहा था।
सूबे सिंह “सुजान”
kani dino bad pass aaya,
vo neeche nazren juka rha tha!
tha unka mazhab toa ek lekin,
khyalon men fasla rha tha!
jo aaj mujko mita rha tha,
kabi vo mera khuda rha tha!
khuda bi uske hi haq men hoga,
jo bastiyon ko jala rha tha!
jhan se gujren vhin pe khanzr,
ke vaqt humko dara rha tha!
दिल में तुम्हारे जो घुमाँ ,है वो इधर भी है
दीवार फाँद तो लूँ,मगर इसमें डर भी है।।
तुम कनखियों से देख कर जब मुस्कुराती हो,
क्या हाल मेरा होता है तुमको खबर भी है।।
उलझा के जुल्फ़ तेरी, मज़े ले गई हवा,
ये खूबसूरती का नज़ारा नज़र भी है।।
मिलते ही आँख, आँख से सब कुछ बता गई,
जो कशमकश इधर है, कुछेसी उधर भी है।।
मटता नहीं मिटाने से, ऐसा ख़ुमार है,
जो नाम दिल में नक़्श हैं उनमें जफ़र भी है।।
वो शहर मेरे ख़्याल में सबसे हसीन है,
जिस शहर की सडक के किनारे शजर भी है।।
...............................................सूबे सिंह सुजान
है फूल की किस्मत तो दो दिन में बिखर जाना।
लेकिन उसे आता है हंसते हुऐ मर जाना….
हर रोज़ अंधेरा है हर रोज़ उजाला है,
डरना न कभी, मुश्किल राहों से गुजर जाना….
आदत ये सियासतदानों की, हद करती है,
चूहों की तरह अपना ही देश कुतर जाना…..
बादल को मुहब्बत से धरती यूँ बुलाती है,
छम-छम से बरसना और, सीने में उतर जाना…..
दीवाने हमेशा सीना ठोंक के कहते हैं,
रोने से तो अच्छा है हंसते हुऐ मर जाना…..
……………………………………………………………सूबे सिंह “सुजान”
मुक्तक—1
सबके परमात्मा हे ज्योतिर्मान ।
रूप तेरा मनुष्य का विज्ञान।।
सत्य जीवन के प्ररेणादायक,
हम सभी करते आपका गुणगान।।
2.
आदमी की प्रकृति अहिंसक है।
जो कि जीवन में लाभदायक है।।
हो निडर उच्च स्थान पाओ,
ईश्वर ही हमारा सेवक है।।
3.
सिर्फ देखने में ही जटिल में हो।
सत्य जीवन के खेल स्थल में हो।।
जिन्दगी वायु-अग्नि जल से है,
क्यों न जीवन उथल-पुथल में हो।।
4.
शाखे रस,बल हमें प्रधान करो।
वो ग्रहण हम करें जो दान करो।।
फूल फल प्राप्ति को यज्ञ करते,
सब समस्याओं का निदान करो।।
……………………………………….अथप्रथमाः इति।
5.
हे पवित्र भूमि कामनाओं की।
सृष्टि तुम हो संभावनाओं की।।
तुम इसी चक्रव्यूह में चलना,
तुम स्थली हो उपासनाओं की।।
आज आदमी जब भी आदमी से मिलता है
दिल्लगी छुपाता है बेबसी से मिलता है।।
वो सुकूँ मुझे दुनिया में कंही नहीं मिलता,
जो सुकूँ मुझे तेरी दोस्ती से मिलता है।।
खुद नहीं कभी हिलता, जैसे पेड ग़म का है,
जब मिलता है मुझसे ख़ामशी से मिलता है।
क्या बताऊँ मैं कुछ भी तो बता नहीं सकता,
बेवफ़ाई से या वो दोस्ती से मिलता है।।
बेवकूफ़ हूँ मैं, जो उसपे शक किया मैंने,
वो तो रस भरा है जो हर किसी से मिलता है।
………..सूबे सिंह सुजान……………….
गज़ल विधा बहुत ही संगीतात्मक व लयात्मक है। इसमें बहर का खास तौर पर ध्यान खा जाता है और यह बहुर ही संगीत की पहली सीढी होती है। हम नवलेखकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये।. आजाद लिखने,आजाद विचार प्रकट करने आदि विधि या तरीके हमें ग़लत करने को प्रेरित करते हैं। ताजा घटनाक्रम से भी आप यह समझ सकते हैं कि रेप के मामले उतने ही ज्याद इसलिये बढे हैं क्योंकि हमारे बंद वातावरण में अचानक टी.वी. व फिल्मस आदि का बेतहाशा गालियाँ बकना जैसा माहौल पैदा करना रहा है।। ाप इस बात को सही ऐसे समझ सते हैं कि- वा का मंद बहना सबको आन्नद प्रदान करता है। अगर हवा तूफान बन जाये तो नुकसानदायक होगी। उसी प्रकार काव्य में छन्द हैं अगर हम बेबहर,बिना छन्द लिखेंगे तो वह बेरोकटोक आँधी का रूप धारण कर लेती हैं। और फलस्वरूप समाज को नुकसान पहुँचाती हैं।
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दोस्तो आप जो ऊपर देख रहे हैं वह इस ग़ज़ल का छन्द है। अर्थात बहर....मित्रों ग़जल केवल बहर में ही लिकी जाती रही है। और लिखी जानी चाहिये। क्योंकि बहर या छन्द भाषा को लयात्मक बनाते हुये। मात्राओं का एक समान, या एक नाप है। जो संगीत को संगठित करते हुये सुशोभित करता है। आप कह सकते हैं कि छन्द एक तरह की संगीत की धुन को पहले से ही तैयार करता है।
अब आप ऊपर की मात्राओं को देख कर लघु, गुरू का द्यान रखते हुये पढिये। एक खास ध्यान इस बात का भी रखिये कि किसी भी शब्द की आखिरी को लघु पढा जा सकता है। यह कवि के लिये छूट दी गई है। जानकार इन बातों को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन नये लोग बहुत हैं जो फेसबुक पर ग़ज़ल लिखने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन वह ग़ज़ल छन्द से बिल्कुल अनजान हैं । मेरा प्रयास है उन सब नवलेखकों को थोडा बहुत छन्द का ज्ञान कराया जाये। ताकि वे भविष्य में किसी गुरू की तलाश कर उनसे भलि-भांति सीख सकें।।
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जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।
मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।
सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।
खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।
एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।
प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।
…………………………………सूबे सिंह सुजान
इस ग़ज़ल में मेरा प्रयास रहा ही कि कम से कम मात्रायें गिरायी गई हैं।
मात्रा गिराना---किसी भी शब्द के अन्त में आई दी्र्घ मात्रा को लघु मानना। कहलाता है।
जिंदगी हम भी समर तक आ गये।
गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।
मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,
रास्ते के पेड घर तक आ गये।
सामने आते ही उनके यूँ हुआ,
ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।
खूबसूरत सी बला लगती है वो,
बाल जब सर के कमर तक आ गये।
एक जंगल में पुराना पेड हूँ,
काटने को वो इधर तक आ गये।
प्यार एहसासों से निकला इस तरह,
दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।
…………………………………सूबे सिंह सुजान