शुक्रवार, 29 जून 2012

पटियाला जाते समय एक बात खास नज़र आई--
जैसे ही पंजाब की सीमा शुरू होती है..लिखा  मिलता है...कि पंजाब से सस्ता पैट्रोल, व ठेके के आगे लिखा है कि पंजाब से सस्ती दारू यहां से लें............
कमाल तब हुआ......जब आते समय देखा कि------पंजाब सीमा में लिखा मिला-----हरियाणा से सस्ता पैट्रोल व दारू यहां से लेते जायें।।
देखो शराब व पैट्रोल बेचने वालों को मार्किटिंग के फण्डे कितने सहीह आते हैं

पटियाला यात्रा और खजूर के पेड

आज 29 जून 2012 को सुबह 5 बजे मोटरसाइकिल द्वारा पटियाला( रोडेवाला साहिब) के लिये रवाना हुआ। जिसमें जाते समय मोटरसाइकिल में पंक्चर हो गया था उसके बाद का सफर ठीक रहा। 9 बजे रोडेवाला साहिब पहुंच गया वहां पर आज साध संगत का मेला लगा था,हालांकि मेरा वहां जाने का उद्देश्य ग्वार का बीज लाना था। मैंने जिन ढिल्लों साहिब से बीज लेना था वो लिया,और उसके बाद बाबा जी के अनुरोध पर मत्था टेकने गया और प्रसाद चखा। यहां पर जनता का बहुत ही मनोरम दृश्य देखने को मिला। जिसको देखने को मेरा मन करने लगा।सब पुरूष व महिलायें यहां पर बहुत शांत व व्यवहार कुशल दिखाई दे रहे थे। मालूम नहीं हमारे देश में लोग धरों में या अपने धंधे पर व सडकों पर चलते हुये इतने शांत क्यों नहीं हो पाते।
                                                                                                                                                                                       वहां पर सभी स्त्री-पुरूष आपस में धक्का-मुक्की होते हुये भी शांत रहते हैं हालांकि असल जिंदगी में ऐसा नहीं करते यही लोग, खैर इसके बाद मैंने वापसी की यात्रा शुरू की। जिसमें पटियाला शहर का हल्का सा,चलते-चलते मुआयना किया। जिला मुख्यालय बहुत शांत व सुंदर दिखाई दिया। मुख्यालय के सामने की सडक एकदम चकाचक थी बाकी सडकें ठीक-ठाक ती मगर कुछ गावों की तरफ निकलने वाली सडकें खराब हालत में थी। मुझे सबसे अच्छा यह लगा कि पटियाला शहर में जगह-जगह खजूर के पेड खडे थे जो मेरे दिल को छू गये। ये लम्बो-लम्बे पेड मुझे याद दिला रहे थे,कि- पंछी को छाया नहीं,फल लगे अति दूर,,की , लेकिन आजकल ये पेड शहर तो छोडिये गांवों में नहीं देखने को नसीब होते। ऐसे हालात में इन्हें देखकर मन को बडा सुकून हुआ। इनकी सुन्दरता देखते ही बनती है। इसके बाद मेरी इस लधु यात्रा में कुछ खास नहीं है और इस तेज धूप वाली चिलचिलाती गर्मी में ही मैंने वापसी की, पूरे 200 कि.मी. तय करते हुये दोपहर एक बजे कुरूक्षेत्र पहुंच गया।www.facebook.com/sujankavi

बुधवार, 13 जून 2012

ग़ज़ल- सोचिये हम हो गये आबाद क्या…

सोचिये हम हो गये आबाद क्या  

अपने ख्यालों से हुये आजाद क्या..

आज के हालात पर क्या कुछ कहें,

हो रहे आबाद क्या, बर्बाद क्या….

पेश करते हैं बदल कर शक्ल को, 

आइने भी हो गये उस्ताद क्या….   

कितना उम्मीदें गरीबी कर रही, 

काम आयेगी कोई फरियाद क्या..

आपका अब फोन भी आता नहीं, 

क्या हुआ आती नहीं है याद क्या..

जिस ग़ज़ल में आँसुओं की बात हो,

उस ग़ज़ल पर वाह क्या इरशाद क्या…

                          सूबे सिहं सुजान

            13-06-2012

         फोन..09416334841

           कुरूक्षेत्र

जय शंकर प्रसाद जी..

छूने में हिचक,देखने में पलकें आँखों पर झुकती हैं,
कलरव परिहास भरी गूँजें,
अधरों तक सहसा रूकती हैं।
                     - जय शंकर प्रसाद

मंगलवार, 12 जून 2012

मांगना छोड दो………..

मांगना छोड दो मिलेगा सब,     

बोलना छोड दो सुनेगा सब……………

अपनी मर्जी से देने दे उसको,    

जिसने पैदा किया वो देगा सब……………

……………………सुजान………………………….

रविवार, 10 जून 2012

मेरे आज के मित्र

आज मुझे ऐसा एहसास हो रहा है कि जैसे इस भरी दुनिया में कोई मेरा मित्र ही नहीं है। कारण यह है कि एक मित्र ने परसों मुझ किसी ट्रिप के लिये इनवाइट किया था लेकिन आज अन्य मित्रों के साथ मौज मस्ती करने चला गया मुझे खबर भी नहीं किया । जब मैंने फोन किया तो पता चला मुझे अफसोस हुआ। वैसे तो लोग अच्छे मित्रों की बहुत मिसाल देते हैं लेकिन आज के हालात में ऐसा लगता है उन मित्रों का अब अभाव हो चला है क्या अब मित्रता की बातें कहानियों में ही मिलेंगीं  हकीकत में ऐसा नहीं दिखाई देगा जैसे आजकल के बच्चे पाँच पैसे को देख नहीं पाते और उन्हें लगता है कि पाँच पैसे का इस दुनिया में अस्तित्व ही नहीं हुआ।

                                                                                                         क्या मुमकिन नहीं है कि ऐसा ही नये बच्चे मित्र के बारे में भी सोचें। यह कम से कम वर्तामन मानस के लिये तो सोचनीय है ही, अगर ऐसे हालात चलते रहे तो अगलों को तो सुदामा पर यकीन ही नहीं होगा। हमें तो फिलवक्त सुदामा पर यकीन है।                                                सुजान

बुधवार, 6 जून 2012

गीत- मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई….

मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई….

 

मेरे साँई तेरे ऊपर हमें अभिमान रहता है

तेरे होने से हर इंसान में इंसान रहता है

मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई….

 

कभी दुख है कभी सुख है यही जीवन की धारा है

हमें जो कुछ मिला तुमसे, वही सच में तुम्हारा है

कली को फूल को ,सबको तुम्हारा  ही सहारा है

तुम्हें पाना जगत के जीव का अरमान रहता है…………

मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई……………………..

मेरे साँई तेरे ऊपर हमें अभिमान रहता है

तेरे होने से हर इंसान में इंसान रहता है

मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई….

 

हरिक रिश्ते से न्यारा आपका अहसास कैसा है

बिना देखे तुम्हें जाना है ये विश्वास कैसा है

कहीं रोना कहीं हंसना तेरा उल्लास कैसा है

मेरे साँई तेरे ऊपर हमें अभिमान रहता है

तेरे होने से हर इंसान में इंसान रहता है

मेरे साँई मेरे साँई, मेरे साँई मेरे साँई….

                                                गीतकार—सूबे सिंह सुजान

 

गाँव- सुनेहडी खालसा

डाक. सलारपुर-पिन-136119

जिला कुरूक्षेत्र,

मों 09416334841

9017609226

मंगलवार, 5 जून 2012

कविता कैसे मर सकती है

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कविता हर जगह,हर वक्त रहती है

जब हम नहीं कह रहे होते तब भी,

हमारा हंसना रोना से लेकर,

जब हम मर रहे होते हैं

तब तक कविता होती रहती है

फूल के खिलने से मुरझाने तक ही नहीं कविता,

फूल के फिर से खिलने,फिर से खिलने और इसी चक्र को कविता चलाती है

यही जीवन है, यही कविता है

फिर बताओ कविता कैसे मर सकती है

                                             सुजान