सोमवार, 29 अक्तूबर 2012

ईशाकपुर का जंगल

एक ईशाकपुर नामक गाँव   की ज़मीन में अभी एक साल पहले तक एक पुराने समय जैसा जंगल था। यह लगभग सौ एकड का जंगल था।उस जंगल की खासियत यह थी कि वहां वही पुराने पेड,झाडियाँ,करोंदे के पेड,बेर की झाडियाँ व अन्य सब तरह के पेड मौजूद थे। अभी एक साल पहले की ही तो बात है वहाँ हर तरह के पक्षी मज़े से रहते थे। अनेकों रंगों  की चिडियाँ भी थी। काफी सालों से गाँव की पंचायत चाह रही थी कि जंगल की ज़मीन को खेतों में तबदील कर लिया जाये तो इस ज़मीन को ठेके पर देकर पंचायत को अच्छा लाभ प्राप्त हो सकता है।किसान लोग खेती करेंगे और पंचायत को प्रतिवर्ष ठेके के रूपये प्राप्त होते रहेंगे जिससे गाँव की गलियों व अन्य काम आसानी से हो सकेंगे। लेकिन दूसरी तरफ कुछ गाँव के ही लोग थे जो चाह रहे थे कि यह काम न होने पाये। इन लोगों में कोई भी ऐसा आदमी नहीं था जो यह चाहता हो कि जंगल की निशानी को बचाया रखा जा सके और इसलिये जंगल के काटे जाने का विरोध करता हो, बल्कि इसलिये विरोध करते थे कि कंही सरपंच और उसका खेमा यह काम करके वाहवाही न लूट ले। और फिर से अगले चुनाव में कंहीं उनको जनता दुबारा न चुन दे।

    इस तरह दोनों खेमों में कईं बार तनातनी भी हुई  लेकिन सरपंच की पक्ष का खेमा बहुत ठंडे स्वभाव का था जिस कारण हर बार टकराव  टलता रहा। यह गाँव के लिये व गाँव के लोगों के लिये बहुत अच्छी बात रही कि कभी कोई ख़ास झगडा आपस में नहीं हो सका।  कुछ समझदार लोगों के बीच में आने से यह टकराव टलता ही रहा।लेकिन इस गाँव का दुर्भाग्य यह है कि इन लोगों ने अपनी राजनीति की जंग में गाँव के सार्वजनिक काम नहीं होने दिये। जितनी भी सरकारी ग्रांट आई सब कामों पर झट से स्टे लगया जाता रहा। और गाँव की जनता के सारे काम अधूरे ही पडे रहे। और फिर एक दिन पंचायत कोर्ट केस जीत गई और  पुलिस की मदद से बी.डी.ओ. व तहसीलदार की उपस्थिति में जंगल के पेडों को कटवा कर उसके खेत बनाये गये। बहुत से ठेकेदारों को लकडी काटने का काम मिला जिसमें से तहसीलदार व बी.डी.ओ. का हिस्सा भी था। बेचारे गाँव के गरीब ठेकेदारों को यह काम नहीं मिल सका क्योंकि जब बोली की गई तो वह यह बोली नहीं दे सके। जबकि बाद में पता चला कि जो बोली मौके पर दिखाई गई थी वह तो झूठी थी असल बोली तो बहुत कम थी। हो भी क्यों न क्योंकि उऩ मोटे ठेकेदारों ने उसमें से मोटा हिस्सा बी.डी.ओ. व तहसीलदार को देना था।

                                      भारत की आज़ादी के बाद इसकी तरक्की में भारत के लोगों का ही बाधा के रूप में सबसे आगे आना ही एक मुख्य कारण रहा है  इसकी आज़ादी को अंग्रजों की अपेक्षा इन स्वदेशी अंग्रजों से ज्यादा खतरा आज तक रहा है। जो बदस्तूर ज़ारी है। जो अपनी राजनीति के चक्कर में हर ग़लत काम को अंज़ाम देते रहे हैं। इसी तरह उपर की राजनीति में है। यह तो एक गांव की राजनीति है। राज्य व राष्ट्रीय राजनीति में तो बहुत बडे गडबड घोटाले होते हैं आजकल जो उजागर होने के बाद भी जनता पर कुछ खास असर नहीं डाल पा रहे हैं। जनता को कुछ समझ नहीं आ रहा है कि कौन भला कौन बुरा है। जनता अच्छे आदमी की पहचान भी भूल गई है शायद, उसके सामने अच्छा आदमी हो तो वह उसको समझ नहीं पाती और फिर से ग़लत आदमी को चुन लेती है और हर बार पछताने के सिवा उसके पास कुछ नहीं रह जाता है।

  आज जब आठ साल का आरूष और मैं उस जंगल वाले खेतों के पास सटे एक डेरे में एक हड्डियों के डाक्टर के पास अपने पिता जी की टूटी हुई हड्डी को दिखाने गये तो आरूष ने इन चिडियों को देखा तो वह कह उठा कि डाक्टर बाबा आपके पास तो बहुत रंग-बिरंगी चिडियां हैं एक हमें भी दे दो। इस बात पर डा. पाल ने बताया कि बेटे अब इन चिडियों का घर ही लुट गया है इनको कौन और कब तक पाले रख सकेगा। वह बोले मैंने पिछले एक साल से चावल की कंई बोरियाँ इनके लिये कुटवायी हैं और प्रतिदिन सुबह इन्हें डालता हूँ जिसे खाने के लिये यह आती हैं और मेरे घर के आसपास इन्होने अपने घोंसले बना लिये हैं। वह आगे बोले कि जितना मुझसे हो सकेगा उतना मैं इन्हें खिलाता-पिलाता रहूँगा। यह हमारी लालची दिनचर्या का नतीज़ा है कि हम कुदरत की इन उडती हुई परियों के सौन्दर्य को भूल रहे हैं। इनमें असीम आन्नद है। ये चिडियाँ हमारे मन को शान्ति प्रदान करती हैं यह सोच  ही मानव की भावनाओं को मानव के करीब रखती है और हमें मानवता का पाठ पढाती है। मेरे बच्चे हमें इन चिडियों से प्यार करते रहना चाहिये यह हम मानवों की तरह इसी प्रकृति का हिस्सा हैं हमें कोई अधिकार नहीं कि हम इनके घोंसलों को तोडें। ये चिडियाँ तो जीवन का सबसे आन्नदायक गीत हैं जिसे गुनगुनाते हुये किसी वाध यन्त्र की आवश्यकता नहीं होती बल्कि प्रकृति स्वयं संगीत को बजाती है।

 

                                                                                                                                                                                                     सूबे सिहं सुजान

                                                                                                                                                                                                      29-10-2012

                                                                                                                                                                                                      करूक्षेत्र (09416334841)

शनिवार, 6 अक्तूबर 2012