शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

ज़िन्दगी को संवारने के लिए, मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।

 खुश्बुओं को बिखरना पड़ता है।

और फूलों को मरना पड़ता है।


ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए



,

ज़िन्दगी में उतरना पड़ता है।


कोई आवाज़ दे अगर दिल से,

हमको दिल से ठहरना पड़ता है


उनसे मिलने के हैं सबब इतने,

हमको सजना, संवरना पड़ता है।


जिनको ऊंचाई ज़िन्दगी में मिली,

उनको झर झर के झरना पड़ता है।


ज़िन्दगी को संवारने के लिए,

मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।


मौत कैसी है जानने के लिए,

एक दिन सबको मरना पड़ता है।


पेट की आग को मिटाने को,

रोज़ कुछ काम करना पड़ता है।


है बना ऐसा, आदतन पानी,

उसको ख़ुद ही निखरना पड़ता है।


ख़ुद ब ख़ुद मुंह में फल नहीं आते,

तोते को फल कुतरना पड़ता है।


गलतियां ही सिखाती हैं जीना,

आदमी को सुधरना पड़ता है।


डर किसी चीज़ का नहीं होता,

अपनी इज़्ज़त से डरना पड़ता है 


झूठ जब काम अपने आए "सुजान",

हमको सच से मुकरना पड़ता है।


सूबे सिंह सुजान


कुरूक्षेत्र हरियाणा

9416334841


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सोमवार, 12 सितंबर 2022

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर 2022

 हिन्दी भाषा कितनी विकसित है यह तो किसी से छिपा नहीं है यदि कोई कहता है कि ऐसा नहीं है तो सच में वह हिन्दी भाषा को जानता नहीं है और अपनी अज्ञानता के कारण ऐसा कहते हैं।

हिन्दी भाषा संस्कृत से विकसित है और वर्तमान समय तक सब भाषाओं में वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित और सटीक है इतनी सटीकता अन्य भाषाओं में नहीं है लेकिन अंग्रेजी भाषा का व्यवहार इसलिए विश्व में प्रसारित व प्रचारित है क्योंकि वह धनाढ्य वर्ग की भाषा रही है और यह वर्ग धन के बल पर ऐसा करता आया है।


आज के समय में हिन्दी भाषा को हिन्दी ग़ज़लकार ज्यादा समृद कर रहे हैं वे उर्दू भाषा के लोगों में हिन्दी का प्रयोग व प्रचार प्रसार ज्यादा कर रहे हैं जिससे धीरे धीरे उर्दू की जगह हिन्दी ने ले लिया है और इसमें हिन्दी ग़ज़लकारों का ज्यादा योगदान है लेकिन दुखद यह है हिन्दी साहित्य अकादमी ग़ज़लकार को हेय दृष्टि से देखती है और उतना सम्मान नहीं देती। यह वर्तमान समय में विचारणीय है। अकादमी को इस विषय को उठाना चाहिए। 

हिन्दी भाषा के शिक्षण में अध्यापकों, शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है समय समय पर शिक्षकों का योगदान भी रहा है लेकिन पिछले दो तीन दशकों में हिन्दी शिक्षण में बहुत कमियां रही हैं जिससे स्तरीय हिन्दी शिक्षण नहीं हो सका है सोशल मीडिया के समय के साथ हिन्दी अध्यापकों ने अपनी कोई प्रयौगिक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि उससे अपने आप को दूर कर लिया । जिस कारण आज सोशल मीडिया पर बच्चों ने स्वयं अपने आप को स्थापित करने के लिए प्रयास किए और हिन्दी भाषा में त्रुटियां अधिक बढ़ गई हैं। सबसे अधिक भूमिका विश्विधालयों व प्रोफेसर की होनी चाहिए थी और उन्होंने यह नहीं निभाई है जब ऐसे ऐसे अपराधों की सज़ा हमारे नियम नहीं दे पाते तो समय स्वयं इन अपराधों की सज़ा देता है।


सकारात्मक यह है कि स्वयं हिन्दी अपना प्रचार कर रही है वह अपनी वैज्ञानिकता के आधार पर वैश्विक स्तर पर आ रही है और आ जाएगी क्योंकि अंधी होते संसार को संस्कारित हिन्दी कर रही है यह समय के हाथ में है।


सूबे सिंह सुजान

कुरूक्षेत्र हरियाणा

9416334841


रविवार, 11 सितंबर 2022

हंसना

 हमें जिस बात पर हँसना नहीं था 

उसी पर बेवजह हँसने लगे हैं ?

#सुजान

ज़िन्दगी रह गई उमस होकर

 ज़िन्दगी रह गई उमस होकर

आप मिलना मुझे सरस होकर।


एक।  तेरे   बग़ैर।  गुजरा  है,

एक दिन भी कईं बरस होकर ।

प्यार में दर्द, हर जगह पाया,

रह गया मैं तहस-नहस होकर ।


सारी दुनिया की ठोकरें खायी,

आ गया तेरे दर विवश होकर ।


आदमी खोखला है अन्दर से,

आप भी देखना सहस होकर ।


ये है हासिल,तनुक मिज़ाजी का

बोलना बंद है बहस होकर ।


सूबे सिंह सुजान