सोमवार, 27 अगस्त 2012

सावन का देर से आना।

आज हम सावन के आने पर भी खुश नहीं हैं क्योंकि वह देर से आया है लेकिन इसमें सावन का क्या दोष है। वह तो हमें फोलो कर रहा है। देर से आने का तो हमारा लम्बा इतिहास है। जो हमारे नेताओं की देन है। हमें इस मामले में नेताओं का शुक्रगुज़ार होना चाहिये। जिन्हें हमें यह सुदृढ परम्परा दी है। हमें नेताओं की कुर्बानियों को यूँ ही नहीं भुलाना चाहिये।  अब हम थोडा सा इस परम्मरा के इतिहास के बैकग्राऊंड पर नज़र डालते हैं। अक्सर नेता लोग ही लेट आते थे फिर धीरे-धीरे पता चला कि हमारे देश के कर्मचारियों को भी नेताओं की रीस हो गई और वो भी नेता के पदचिन्हों पर चलने लगे। नेताओं का देखिये आज कहां तक असर हुआ। अब इस देश में हर आदमी लेट आने को बडा हुनर मानने लगा है। सबमें होड लगी है लेट आने की। नेता से लेकर हर कर्मचारी अब लेट आने की तैयारी करता है। वह पूरी प्लान के साथ लेट होने के फायदे ढूंढता है। नेता का लेट होना तो ठीक था। और सबकी आसानी से समझ में भी आता था कि जब तक लोग अधिक से अधिक इक्कठ्ठे नहीं हो जाते तो नेता का सभा में आने का क्या फायदा । क्योंकि नेता को तो हमेशा जनता की फिक्र रहती है ना भला। उसे जनता के सिवा कुछ सूझता ही नहीं। जनता ही उसकी अन्दाता है,जनता ही उसकी विधाता है। अब गरीब बेचारे भगवान को पूजते रहते हैं। और नेता गरीब को पूजता है। है न चमत्कारी देश। नेता का पेट फूलता है,गरीब का पेट पतला होता है।

 

नेता ने सबको सिखाया कि देर से आना बहुत फायदेमंद है। और लगभग हर विभाग के कर्मचारियों ने इस तथ्य को परखा और फोलो करना शुरू कर दिया। फिर इन्हें देखा-देखी स्कूल में अध्यापक लेट आते, तो बच्चों ने भी लेट आना शुरू किया। बच्चों को खूब मज़ा आने लगा। और हालात मज़े के अब यह हैं कि बच्चों ने लेट आना सीखने के बाद बताया कि जो पढा-पढाया ही खरीद ले वो ज्यादा समझदार कहलाता है तो हर तरफ यही फिकरा हवा में गूंजने लगा। कि पढने वाला बेवकूफ और जो पढा-पढाया प्रमाणपत्र ले आये वह ही असली समझदार होता है। क्योंकि काम तो आदमी की योग्यता ने करना है। तो जो योग्य होगा भला उसे पढने की क्या जरूरत, पढने की जरूरत तो उसे है जो योग्य नहीं। और सिलसिला यूँ चला कि हर स्कूल के विद्धयार्थी पढना छोड कर जुगाड तकनीक का प्रयोग करने लगे। और नये-नये कीर्तिमानों की झडी लगा दी। खिलाडियों ने भी नेताओं की राह पर चल कर खेलों में नशीली दवाओं का प्रयोग करके खूब नाम और पैसा दोनों कमाये।

इस तरह मौसम ने भी आदमी से ही सीखा कि देर से आने के अपने फायदे हैं। अब देखिये ना कि पिछले कईं सालों से किसानों ने बेहद अनाज पैदा किया जिसे रखने के लिये सरकार के पास जगह नहीं रही और उसे समुद्र में फेंकना पडा। अब अगर जगह नहीं है तो समुद्र में ही फेंकेंगे ना। और कहां रखेंगे भला। जब अनाज ज्यादा होगा तो अब उसे कम करने के लिये आदमी तो सोचता नहीं तो मौसम को ही सोचना पडेगा। और मौसम ने सोचा। और इस बार देर से आया ताकि जो फ़सल किसान ने मर-मर कर खडी कर ली है। वह तो बम्पर होने वाली है। तो नेताओं ने सोचा कि इस बार हम इतने सारे अनाज को कहां रखेंगे। और मौसम विभाग को कहा देखो अगर आप लोगों को तन्ख्वाह लेनी है तो सावन को लेट कर दो। ताकि जो फ़सल किसानों ने उगा ली है। उसे बिना किसी लाग-लपेट के नष्ट किया जा सके।सांप  भी मरे और लाठी भी न टूटे। मौसम विभाग ने सावन से कहा देखो भई सावन अगर हमारे देश में हमारी इजाजत के बैगर आये तो आपकी खैर नहीं । इसलिये जब हम कहें तभी आना । और सावन आदमी से डर गया। सावन ने सुन रखा था कि आजकल आदमी खुद ही कृत्रिम बरसात कर लेता है। तो कंही कल मेरे ऊपर ही बैन ना लगा दे और वह चुपचाप मौसम विभाग की बात मान गया । और देर से आया और खूब आया ताकि सरकार को खूब मज़ा आये और कल हो सकता है सरकार मुझे ‘भारत रत्न’ से ही पुरस्कृत कर दे।

                                     सूबे सिंह सुजान

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बुधवार, 15 अगस्त 2012

स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर कुरूक्षेत्र में मुशायरा।

अमीन साहित्य सभा की तरफ से स्वतंत्रता दिवस की पूर्व संध्या पर 14 अगस्त 2012 को सांय 7 बजे मुशायरे का आयोजन किया गया। जिसमें  जिला कांग्रेस के अध्यक्ष जय भगवान शर्मा (डी.डी.) मुख्य अतिथि रहे। व अध्यक्षता की करनाल से आये डा. महावीर शास्त्री ने। मंच के साहित्य अतिथि के रूप में डा. सत्य प्रकाश तफ्ता ने शिरकत की। मुशायरे में भाग लेने वाले मुख्य शायरों में चण्डीगढ से सत्यपाल सरूर, अम्बाला से रमेश तन्हा, करनाल से डा. सरिता आर्य,डा. ज्ञानी देवी, कैथल से गुलशन मदान, कमलेश शर्मा, पेहवा से डी.पी. दस्तूर, श्याम लाल बागडी, तथा कुरूक्षेत्र से स्थानीय शायरों में सत्य प्रकाश तफ्ता,डा. कुमार विनोद,डा. बलवान सिंह, सूबे सिंह सुजान,डा. सलोनी,डा. दिनेश दधीचि,दीदीर सिंह कीरती, दीवाना,कस्तूरी लाल शर्मा शाद,ओम प्रकाश राही,डा. सुधीर कुमार रामेशवर दास गुप्ता आदि शाइर, कवियों ने जम कर ग़ज़लें व कवितायें पढी।

कवियों ने भारत माता को याद किया व शहीदों के बलिदानों का गुणगान किया। सुजान ने अपने हाइकु में कहा-अमर रहे। बलिदान शहीदों का, अमर रहे। और ग़ज़ल के तीखी संवेदना को झकझोरते हुय़े शेर देखिये- बम फटा था निशान बाकी है, पूछ ले कोई जान बाकी है।डा. सरिता आर्य का बदलाव का नया रंग--- रिवायतों के सहारे कब तक कटेगी ये उम्र,आओ कुछ तोड-फोड करें सुधार के लिये। सत्यपाल कौशिक  ने कहा—वफ़ा के शहर में मक़बूल थी सदा अपनी,मगर न पहुंची ये उन तक भी ना रसा-कितनी। रमेश तन्हा ने कहा—बेलौस रही सदा मुहब्बत तेरी,तू न ले कभी किसी से नफ़रत । गुलशन मदान ने कहा—कुछ मत पूछो अपना हाल, कुदरत ने किया कमाल।।

डा. महावीर प्रसाद शास्त्री की कविता बहुत ही गहनता लिये हुये थी। जो स्त्री की मार्मिक अनुभूति को बयान करती है। देखें—पुरूष हमें तब चूमते हैं,जब हम सोये हुये होते हैं आराम से,और हम उनहें तब चूमती हैं, जब वे रो रहे होते हैं। और देश के हालात पर देखिये कितनी सार्थक कविता –ये चाँदी का टुकडा तेरा,ये चाँदी का टुकडा मेरा, अपने-2 टुकडों में से काट कर कुत्तों को भी तो देना है,जो रात बिरात पैहरा देते हैं।

इस तरह कुल मिला कर यह मुशायरा सफल रहा।जिसके पुरोधा बेधडक शायर बाल कृष्ण बेज़ार रहे।

सोमवार, 13 अगस्त 2012

Akesios - Blog

Akesios - Blogसोमवार, 13 अगस्त 2012बम फटा था निशान बाकी है।
बम फटा था निशान बाकी है

पूछ ले कोई जान बाकी है।।

जितना सामान ता वो लूट लिया,

मेरे दिल की दुकान बाकी है।।

देश का हाल इस तरह का है,

टूटी तलवार,म्यान बाकी है।।

मैं मरूँगा नहीं किसी हालात,

मुंह में जब तक जबान बाकी है।

हमने लूटा जमीं,हवा,पानी,

लूटना आसमान बाकी है।।

दोनों के बीच में मरा मज़हब,

हिन्दू और मुस्लमान बाकी है।।

अपना अनशन भी बेनतीज़ रहा,

क्या अभी इत्मिनान बाकी है।।

मारने में कोई क़सर तो नहीं,

फिर भी कैसे सुजान बाकी है।।

सूबे सिंह सुजान

13.08.2012

बम फटा था निशान बाकी है।

बम फटा था निशान बाकी है 

पूछ ले कोई जान बाकी है।।

जितना सामान ता वो लूट लिया,

मेरे दिल की दुकान बाकी है।।

देश का हाल इस तरह का है, 

टूटी तलवार,म्यान बाकी है।।

मैं मरूँगा नहीं किसी हालात, 

मुंह में जब तक जबान बाकी है।

हमने लूटा जमीं,हवा,पानी, 

लूटना   आसमान   बाकी   है।।

दोनों के बीच में मरा मज़हब,

हिन्दू और मुस्लमान बाकी है।।

अपना अनशन भी बेनतीज़ रहा, 

क्या अभी इत्मिनान बाकी है।।

मारने में कोई क़सर तो नहीं, 

फिर भी कैसे सुजान बाकी है।।

                        सूबे सिंह सुजान

                       13.08.2012

रविवार, 12 अगस्त 2012

ग़ज़ल के दो शेर

बम फटा था निशान बाकी है

पूछ ले कोई  जान  बाकी है।।

जितना सामान था वो लूट लिया,

मेरे दिल की दुकान बाकी है।।

सूबे सिंह सुजान

मंगलवार, 7 अगस्त 2012

कहानी---कैटी-एक बिल्ली का बच्चा

स्कूल में बच्चों ने एक बिल्ली का बच्चा पकड कर मुझे दिया। और कहने लगे कि आप इस बच्चे को पाल लें। बच्चा बहुत प्यारा था मैं भी मोहित हो गया। और उसे घर ले आया। घर पर बच्चों ने उससे पहले दिन तो दूरी बना कर रखी उन्हें उससे थोडा डर लग रहा था। लेकिन दो-चार  दिन बाद उससे इतने घुल-मिल गये कि उसके बिना खाना तक नहीं खाते थे। बच्चों को अपना प्यारा मित्र मिल चुका था। नीति फिर भी उससे दूरी बनाये रखती थी लेकिन आरूष हर पल उसके साथ ही रहता था। वह खाना भी उसके साथ ही खाता था। अगर उसकी माता उसे कहती कि खाना तो अलग बैठ कर ख लिया कर तो वह खाना खाने से ही मना कर देता था। इस पर उसकी मम्मी के लिये और आफ़त खडी हो जाती फिर वह बेटे को गले लगा कर,प्यार से मनाती और कुछ देर बाद उसका गुस्सा ठंडा होता और फिर वह खाना बिल्ली के साथ ही खाता। बच्चों में बिल्ली के प्रति प्यार को देखकर  मेरा मन खुश हो जाता था। मुझे अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती थी। हालांकि मैं अपने बचपन में पालतु जानवरों के साथ खेलने को तो आतुर रहता था लेकिन खेल नहीं पाता था।क्योंकि पिता जी का इतना दबाव हमारे ऊपर रहता था कि हमें कभी खेलने का ठीक से अवसर ही नहीं मिल पाता था। हमारा बचपन का दौर केवल काम करने के लिये था। माता-पिता की आज्ञा मानना हमारे लिये ऐसा था जैसे कि भगवान की आज्ञा है कि जिसके आगे कोई चारा नहीं होता आदमी का,हमें जीवन के संघर्ष को अपने बचपन में ही सीख लिया होता था। आज हमारे बच्चों का बचपन ऐसा नहीं है। यह कितनी सुखदायक बात है हमारे लिये कि हम अपने बचपन को कष्टदायक जीते रहे और अपने बच्चों को वह कठिन बचपन नहीं दे रहे हैं। यही सोच, यही बात हमारे लिये मानवता का संदेश दे रही है।

 

आज बिल्ली का बच्चा  बडा हो गया है। आरूष के खेल का वह अभिन्न अंग है। उसकी दिनचर्या कैटी के साथ शुरू होती है और रात को सोने तक वह उसको बार-बार देखता है खिलाता है और तो और रात को सोते समय सपने में भी बिल्ली के बच्चे से बात करता पाता है। मैं बच्चों की मानसिकता को पढने का प्रयास कर रहा हूँ कि क्या अब बच्चे अपनी पढाई पर ठीक से ध्यान दे पायेंगे। कंही बच्चों की पढाई पर बुरा असर तो नहीं पडेगा। आज के माता-पिता की चिंता अलग प्रकार की है। वह बच्चे पर विभिन्न कोर्सों के पढने पर दबाव के प्रयास में रहता है।और यह प्रयास ही नहीं उनके स्टेटस सिंबल का बहुत बडा हिस्सा है। जो बच्चों के मन पर गहरा सदमा डालता है।जिस कारण बच्चे कईं बार आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं।जीवन को जीना ज्यादा जरूरी है। क्योंकि जीवन जीने के लिये ही मिला है उस जीवन में वो क्या करेगा क्या नहीं यह भविष्य का प्रश्न है। इस बारे में कोई ठीक से नहीं कह सकता कि हमारे दबाव से ही बच्चा सही पढाई कर पाएगा।यह बात समय के गर्भ में ही रहती है। हालांकि प्रयास जरूरी तो होते हैं लेकिन डोर इतनी कभी न खींचो कि टूट जाये। इसी बात का ध्यान रखते हुये आरूष आज अपनी मित्र कैटी के साथ प्रसन्न है और पढाई भी ठीक कर रहा है।

                                                                                                                           लेखक- सूबे सिंह सुजान