मंगलवार, 30 जुलाई 2013

बुधवार, 10 जुलाई 2013

ghazal..vaqt thahra huaa dikhai de……..

GHAZAL--AAJ DIL KE EHSAS MEN JO AAYA....BAS VAHI PESH HAI..
वक़्त ठहरा हु्आ दिखाई दे...
कोई अन्धा हुआ दिखाई दे.....
कैसा जलवा फ़िज़ाओं में देखा,
मुझको देखा हुआ दिखाई दे....
उसके जाने से वक़्त जाता है,
चाँद घटता हुआ दिखाई दे.....
जिसको पर्वत सभी कहा करते,
आज दरिया हुआ दिखाई दे....
किसको मज़हब कहूँ?नहीं समझा,
ख़ून बहता हुआ दिखाई दे....
आरज़ू रखना ज़ुर्म ही है सुजान ,
दर्द बढता हुआ दिखाई दे......सूबे सिंह "सुजान"