बुधवार, 28 दिसंबर 2022

हमीं ने हमीं को परेशान करके

 हमीं ने, हमीं को परेशान करके

ज़माने को छोड़ा है हैरान करके।


हमीं को समस्या का हल चाहिए था,

हमीं चल पड़े उसको अनजान करके।


उन्हें अपनी कीमत को समझाया ऐसे,

दिखाना पड़ा हमको बलिदान करके।


महब्बत समझ में नहीं आई मुझको,

बहुत दुःख हुआ तेरा अरमान करके।


मेरे दर्द सारे हवा हो गए हैं,

खुशी जो मिली, आपका ध्यान करके।  


सूबे सिंह सुजान 




सोमवार, 19 दिसंबर 2022

स्वतंत्रता की सारी कोशिशों के बावजूद

 स्वतंत्रता की सारी कोशिशों के बावजूद हर कोई किसी न किसी के अधीन होता है। जब मनुष्य अपने आप को बिल्कुल आजाद करने में सफल कर पाता है तो वह फिर लौटकर आता है और किसी न किसी के आश्रय में जाकर ज़्यादा संतुष्टि पाता है। 


सूबे सिंह सुजान

मंगलवार, 15 नवंबर 2022

सृजनात्मकता और ग्रहणशीलता अलग अलग हैं।

 जब एक चित्रकार अपनी कूची से किसी नये चित्र, नयी शक्ल या भाव भंगिमा को जन्म देता है तो यह एक तरह का माँ की तरह नयी कृति का जन्म होता है इसी को सर्जनात्मकता, बुद्धिमत्ता कहा जाता है।


और यदि एक अच्छा गणित या भाषा शिक्षक अच्छा पढ़ाता है तो वह अच्छा ग्रहणकर्ता है परन्तु बुद्धिजीवी नहीं है क्योंकि उसने प्रखरता के साथ ग्रहण किया है सृजन नहीं किया है।

लेकिन आज के दौर में इस ग्रहणकर्ता को बुद्धिजीवी मान कर इसकी ज्यादा सुनी व मानी जाती है और यह इस सहारे अच्छा व्यापार करता है।

सूबे सिंह सुजान 

शनिवार, 12 नवंबर 2022

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 https://youtu.be/v6OOKWoCgDc

इस शेर पे ताली तो बनती है।👌👍🙏

😃🤭😃 डॉ के के ऋषि साहब से रुबाई, ग़ज़ल के साथ साथ मुशायरों पर कुछ चुनिंदा बातें सुनिये।

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धन्यवाद

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

हमें खेत जंगल बनाने पड़ेंगे। सूबे सिंह सुजान

 धुआं जम गया है, हवा की कमी से।

कोई जैसे नाराज़ है ज़िन्दगी से।।


न अब धूप अच्छी न मौसम खुला है,

गगन को,धरा को, ढका है नमी से।।


हवा,आग, पानी खफा हो गए हैं,

शिकायत है आकाश को आदमी से।


हमीं ने बनाये, उदासी भरे दिन,

कि मौसम मिले आज बेमौसमी से।


हमें खेत जंगल बनाने पड़ेंगे,

हमारी हवा ठीक होगी उसी से।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

मनुष्य का क़िरदार कम से कम मौसम की तरह तो होना चाहिए।

 मनुष्य का किरदार,

    हर व्यक्ति हर स्थिति में स्वयं को परिभाषित करता है वह जहां जब जैसे विचार प्रकट करता है समाज के बारे अन्य व्यक्तियों के बारे में उस समय में वह अपने विचारों को ही परिभाषित करता है वह चाहता है कि ऐसा हो वैसा हो उन सब बातों में उसके अपने विचार होते हैं वह अपनी बात को लागू करवाना चाहता है मनुष्य का किरदार इस प्रकार का है लेकिन हम अपनी सुविधानुसार बदलते रहते हैं यह कई मायनों में ठीक हो सकता है परंतु मनुष्य का किरदार इतना तो रहना चाहिए जैसे एक फल है आम का फल जब तक उसे ठीक प्रकार से पकने का अवसर मौसम स्थिति चाहिए वह उसके लिए आवश्यक है अति आवश्यक है यदि हम फल पकने के समय से पहले ही उसको तोड़ दे या मौसम को बदल दें तो वह फल अपनी मिठास अपने प्राकृतिक रूप में नहीं पक सकता अर्थात हमें इतना समय यथा स्थिति में अवश्य बिताना होगा की एक कार्य पूर्ण हो सके उस कार्य के जो लक्ष्य हैं उनको प्राप्त किया जा सके।

मनुष्य को कम से कम मौसम की तरह तो रहना चाहिए, जितना समय मौसम अपने परिवर्तन में समय लेता है वह यथा योग्य है वह अचानक नहीं बदलता,वह वातावरण को साथ लेकर शैन शैन बदलता है।

 मनुष्य को गिरगिट की तरह नहीं बदलना चाहिए यह कहावत इसीलिए कहीं गई है कि एक कार्य को पूर्ण होने दिया जाना जरूरी है हमें अपने किरदार में अपने जमीर को इतना तो यथास्थिति बनाए रखना होगा वही हमारा सत्य होगा एक मौसम के अनुसार हमें फल के पकने का इंतजार तो करना होगा इसी प्रकार मनुष्य को अपनी आदतों में सामाजिक ढांचे में तब तक अपना किरदार वस्तुस्थिति में रखना चाहिए जब तक वह कार्य संपन्न हो जाए जब तक वह वादा पूरा हो जाए जब तक वफा निभा दी जाए ।


©सूबे सिंह सुजान

सोमवार, 31 अक्तूबर 2022

वायु प्रदूषण और दिल्ली के लोग

 दिल्ली में प्रदूषण बढ़ रहा है सोशल मीडिया पर लोगों को चिंता हो रही है ।


यह वास्तव में बढ़िया मजाक है ।


हम कितने भोले बनते हैं कमाल है ।

प्रकृति का नियम है कि जैसा करोगे वैसा ही परिणाम मिलेगा 

क्या हमने अब तक यह भी नहीं सीखा?


डिग्रियाँ तो बहुत हैं हमारे पास??


व्यवहार बिल्कुल नहीं है?


दिल्ली जैसे बड़े शहर के लोगों का प्रकृति से कोई वास्ता ही नहीं है तो उन्हें कैसे पर्यावरण की जरूरत महसूस हो गई जब पूरा दिन रात आप सब लोग मशीनों में रहते हैं आपको गाँवों से बदबू आती है आपको जंगल अच्छे नहीं लगते आपको खेतों में काम करने वाले किसानों से दिक्कत है आप किसानों को मूर्ख मानते हैं तो आपको मुफ्त में मिलने वाली हवा ही क्यों चाहिए?

जब आप कार,ए सी, गैसा सब कुछ पैसे से ले सकते हैं तो हवा भी लीजिए न????


प्रकृति के साथ रहने वाले लोग आपको गंवार लगते हैं तो आप शुद्ध वायु किससे माँगते हैं?

जब आप रहते ही ऐसी जगह पर हैं जहाँ आप केवल कार्बनडाई आक्साइड पैदा करते हैं आपका लेश मात्र भी सहयोग नहीं है ऑक्सीजन के लिए तो आप किस हक से माँगते हैं?

आप जब केवल प्रकृति को नष्ट करने के कार्य करते हैं तो आप किस हक से शुद्ध वायु माँगते हैं और दोष किसान को देते हैं जो आपके पेट भरने के लिए अनाज पैदा करता है और वो भी आप उसको उसकी मेहनत का पूरा दाम नहीं देते जबकि कंपनियों को आप हर चीज का पूरा दाम देते हैं ??

और वह कंपनी आपको खाद्य पदार्थों में मिलावट करके भी दे तो आपको उस कंपनी पर भरोसा है लेकिन किसान पर नहीं होता ??


हमें अपने व्यवहार में बदलाव की जरूरत है न कि दूसरों से शिकायत की ।

घूमती रहती है अपने इश्क में वो हर घड़ी

ग़ज़ल 

वो तो कहते हैं,ये दरवाजा कभी खुलता नहीं।

और सच ये है, कि उसने खोल कर देखा नहीं।।


घूमती रहती है अपने इश्क में,वो हर घड़ी

इस ज़मीं की आदतें सूरज कभी समझा नहीं।


आँख से आँसू का बहना है जरूरी दोस्तों,

जो कभी बहता नहीं,कहते उसे दरिया नहीं ।


हर ग़ज़ल कविता में उसकी बात गहरी होती है,

उसको ये लगता है, मैं उसको कभी लिखता नहीं।


बोलता तो है वो अब, मैं इसलिए ख़ामोश हूं,

जब तलक मैं बोलता हूं,वो मेरी सुनता नहीं।


ज़िन्दगी भर जैसा चलता है,सफर चलता रहे,

सब मुसाफिर मारे जाते हैं,सफर मरता नहीं।



©®सूबे सिंह सुजान, कुरूक्षेत्र हरियाणा


सोमवार, 24 अक्तूबर 2022

राम रोज़ जन्म नहीं लेते, हां रावण रोज़ जन्म ले लेता है।

 पतन तो सहज है।उत्थान सहज नहीं है।

रावण रोज़ जन्म लेता है,राम रोज़ जन्म नहीं लेता।

राम के लिए हमें क्षण क्षण परिश्रम करना करना होगा। लेकिन हम तत्परता से,तत्लीनता से, निरंतर परिश्रम नहीं कर सकते, ध्यान से, भक्ति से, इसलिए राम जन्म नहीं ले पाते,रावण हमारे आराम, सुविधा से जन्म लेता है और हम हर रोज़ सुविधा बढ़ाने में लगे हैं अर्थात रावण को जन्म लगातार दे रहे हैं । ध्यान से, भक्ति से , चिंतन से, ज्ञान व सहजता आती है।


पतन के लिए हम कोई विशेष अभ्यास नहीं करते, कोर्स नहीं करते लेकिन वह फिर भी हमें आता है।


जैसे रोशनी हर तरफ बिखरती है वैसे जिन्दगी हर तरफ बिखरती है। जिन्दगी को जितना बिखराओ उतना बिखर जाती है। और उतना ही मजा जिन्दगी देती है। लेकिन ये उस मजा लेने वाले को ही पता है। हर किसी को नहीं।  और लोग यही सोचते रहते हैं कि हम समझदार हैं जबकि दुनिया में जितना देखा जाये दुनिया को उतना ही मजा है। जिसने दरवाजे के भीतर ही दुनिया देखी है उसे बाहर की दुनिया का क्या पता है।


सूबे सिंह सुजान 

मंगलवार, 18 अक्तूबर 2022

मेरे बचपन मे पिता ने एक थप्पड़ मारा था।

 ग़ज़ल 

ज़िन्दगी के मोड़ पर,ग़म की महक आती रही,

थी कहीं कच्ची, कहीं पक्की सड़क आती रही।


रेलगाड़ी उनकी धीरे धीरे गुजरी थी मगर,

पटरियां सब ठीक थी, फिर भी धमक आती रही।


लोग मेरी टहनियों पर पाँव रखकर चढ़ गये,

और ज्यादा मेरे चेहरे पर चमक आती रही।


टूटी फूटी सड़कें थी, और खूबसूरत पेड़ थे,

उस सफर की याद मुझको अब तलक आती रही।


मैं सफर को कार में या रेलगाड़ी में करूँ,

मुझको उसकी चूडियोँ की ही खनक आती रही।


मेरे बचपन में पिता ने एक थप्पड़ मारा था,

आज तक कानों में आवाज़ें कड़क आती रही।


सूबे सिंह सुजान 

गुरुवार, 13 अक्तूबर 2022

नज़र नज़र से मिला रहे हो

 नज़र नज़र से मिला रहे हो।

के दिल में क्या है बता रहे हो।


हथेलियों को सजा रहे हो 

जनाब किसको लुभा रहे हो।


बहुत चढ़ावा चढ़ा रहे हो?

 ख़ुदा को रिश्वत खिला रहे हो।


नज़र हटा लीजिए ज़रा सी, 

क्यों मेरी धड़कन बढ़ा रहे हो।


 अदा तुम्हारी है खूबसूरत,

 तुम आँखों से मुस्कुरा रहे हो।


 ये गीत तो वक्त ने लिखा है,

 कि तुम जिसे गुनगुना रहे हो।


ये वक्त कैसे गुजर रहा है,

तुम आज चल कर दिखा रहे हो।


वही तो खड्ड़े हैं जिंदगी में, 

जिसे तरक्की बता रहे हो।


सूबे सिंह सुजान

शुक्रवार, 30 सितंबर 2022

ज़िन्दगी को संवारने के लिए, मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।

 खुश्बुओं को बिखरना पड़ता है।

और फूलों को मरना पड़ता है।


ज़िन्दगी क्या है जानने के लिए



,

ज़िन्दगी में उतरना पड़ता है।


कोई आवाज़ दे अगर दिल से,

हमको दिल से ठहरना पड़ता है


उनसे मिलने के हैं सबब इतने,

हमको सजना, संवरना पड़ता है।


जिनको ऊंचाई ज़िन्दगी में मिली,

उनको झर झर के झरना पड़ता है।


ज़िन्दगी को संवारने के लिए,

मुश्किलों से गुजरना पड़ता है।


मौत कैसी है जानने के लिए,

एक दिन सबको मरना पड़ता है।


पेट की आग को मिटाने को,

रोज़ कुछ काम करना पड़ता है।


है बना ऐसा, आदतन पानी,

उसको ख़ुद ही निखरना पड़ता है।


ख़ुद ब ख़ुद मुंह में फल नहीं आते,

तोते को फल कुतरना पड़ता है।


गलतियां ही सिखाती हैं जीना,

आदमी को सुधरना पड़ता है।


डर किसी चीज़ का नहीं होता,

अपनी इज़्ज़त से डरना पड़ता है 


झूठ जब काम अपने आए "सुजान",

हमको सच से मुकरना पड़ता है।


सूबे सिंह सुजान


कुरूक्षेत्र हरियाणा

9416334841


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सोमवार, 12 सितंबर 2022

हिन्दी दिवस 14 सितम्बर 2022

 हिन्दी भाषा कितनी विकसित है यह तो किसी से छिपा नहीं है यदि कोई कहता है कि ऐसा नहीं है तो सच में वह हिन्दी भाषा को जानता नहीं है और अपनी अज्ञानता के कारण ऐसा कहते हैं।

हिन्दी भाषा संस्कृत से विकसित है और वर्तमान समय तक सब भाषाओं में वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित और सटीक है इतनी सटीकता अन्य भाषाओं में नहीं है लेकिन अंग्रेजी भाषा का व्यवहार इसलिए विश्व में प्रसारित व प्रचारित है क्योंकि वह धनाढ्य वर्ग की भाषा रही है और यह वर्ग धन के बल पर ऐसा करता आया है।


आज के समय में हिन्दी भाषा को हिन्दी ग़ज़लकार ज्यादा समृद कर रहे हैं वे उर्दू भाषा के लोगों में हिन्दी का प्रयोग व प्रचार प्रसार ज्यादा कर रहे हैं जिससे धीरे धीरे उर्दू की जगह हिन्दी ने ले लिया है और इसमें हिन्दी ग़ज़लकारों का ज्यादा योगदान है लेकिन दुखद यह है हिन्दी साहित्य अकादमी ग़ज़लकार को हेय दृष्टि से देखती है और उतना सम्मान नहीं देती। यह वर्तमान समय में विचारणीय है। अकादमी को इस विषय को उठाना चाहिए। 

हिन्दी भाषा के शिक्षण में अध्यापकों, शिक्षकों का महत्वपूर्ण योगदान होता है समय समय पर शिक्षकों का योगदान भी रहा है लेकिन पिछले दो तीन दशकों में हिन्दी शिक्षण में बहुत कमियां रही हैं जिससे स्तरीय हिन्दी शिक्षण नहीं हो सका है सोशल मीडिया के समय के साथ हिन्दी अध्यापकों ने अपनी कोई प्रयौगिक भूमिका नहीं निभाई, बल्कि उससे अपने आप को दूर कर लिया । जिस कारण आज सोशल मीडिया पर बच्चों ने स्वयं अपने आप को स्थापित करने के लिए प्रयास किए और हिन्दी भाषा में त्रुटियां अधिक बढ़ गई हैं। सबसे अधिक भूमिका विश्विधालयों व प्रोफेसर की होनी चाहिए थी और उन्होंने यह नहीं निभाई है जब ऐसे ऐसे अपराधों की सज़ा हमारे नियम नहीं दे पाते तो समय स्वयं इन अपराधों की सज़ा देता है।


सकारात्मक यह है कि स्वयं हिन्दी अपना प्रचार कर रही है वह अपनी वैज्ञानिकता के आधार पर वैश्विक स्तर पर आ रही है और आ जाएगी क्योंकि अंधी होते संसार को संस्कारित हिन्दी कर रही है यह समय के हाथ में है।


सूबे सिंह सुजान

कुरूक्षेत्र हरियाणा

9416334841


रविवार, 11 सितंबर 2022

हंसना

 हमें जिस बात पर हँसना नहीं था 

उसी पर बेवजह हँसने लगे हैं ?

#सुजान

ज़िन्दगी रह गई उमस होकर

 ज़िन्दगी रह गई उमस होकर

आप मिलना मुझे सरस होकर।


एक।  तेरे   बग़ैर।  गुजरा  है,

एक दिन भी कईं बरस होकर ।

प्यार में दर्द, हर जगह पाया,

रह गया मैं तहस-नहस होकर ।


सारी दुनिया की ठोकरें खायी,

आ गया तेरे दर विवश होकर ।


आदमी खोखला है अन्दर से,

आप भी देखना सहस होकर ।


ये है हासिल,तनुक मिज़ाजी का

बोलना बंद है बहस होकर ।


सूबे सिंह सुजान

शुक्रवार, 19 अगस्त 2022

दुख में पुरुष ख़ामोश और स्त्री ज़ोर से रो पड़ती है।

 दुख: में पुरुष ख़ामोश हो जाता है और स्त्री ज़ोर से रो पड़ती है।


दुख को कम करने के लिए रोना जरुरी है इसलिए स्त्री रोती है और यह समझदारी है।


पुरुष की प्रकृति कठोर होती है उसे सहने के लिए बनाया गया है इसलिए वह ख़ुद पर सहता है वह दुख को अपने पर झेलता है यही उसकी प्रकृति है हृदय तो पुरुष का भी बहुत कोमल होता है लेकिन वह समझता देर से है। बहुत बार पुरुष भी बहुत रोना चाहता है लेकिन अपनी प्राकृतिक, सामाजिक व्यवस्था के कारण रो नहीं सकता।


प्रकृति ने स्त्री को बहुत अधिक नर्म,कोमल,हृदय से और भी कोमल बनाया है वह पल में प्रलय है

वह जन्मदात्री है और बीज कोमल मिट्टी,नमी, समुचित आकाश, वायु, प्रकाश के संतुलन में पौधा बनता है।


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 17 अगस्त 2022

स्वयं को हर जगह देख सकते हैं

 किसी भी रूप में स्वयं को देखा जा सकता है।

यदि आप अपने बीते दिनोंं को देखना चाहते हैं तो बहुत आराम से दिखाई देगा, यदि आप देखेंगे तो।

आपको जो कुछ भी दिखाई दे रहा है कहीं भी नज़र घुमाओ, जो कुछ भी दिखाई दे रहा है वह तुम्हारी तरह ही है या था या होगा।


पृथ्वी पर उपस्थित हर कण बिल्कुल सटीक आप की तरह है

आप किसी मनुष्य,जानवर या वनस्पति किसी में भी देख सकते हैं वह सब आपकी तरह हू ब हू है। लेकिन देखने के लिए आपको स्वयं को एक ध्यान में रखना होगा एक प्रकृतिवादी बनकर, क्योंकि जैसी प्रकृति है वैसा बनना होगा वास्तव में आप ऐसे ही हैं लेकिन मनुष्य की निर्मित भौतिक वस्तुओं पर हमें गर्व की अनुभूति होती है जिसे हम छोड़ नहीं पाते, जबकि हम यह भूल जाते हैं हम भी उसी प्रक्रिया में है जिसमें सब उपस्थित वस्तुएं हैं।

शनिवार, 13 अगस्त 2022

क्या हम जरूरतमंद की मदद करते हैं?

 अपने कपड़े, रोज नए पहनने जरूरी हैं बनिस्बत किसी के साथ इन्सानियत निभाना।

हम लोग प्रतिदिन अपनी ऐश्वर्या के अनेक कार्य, अनेक बिना जरूरत के काम करते हैं जैसे-: हर रोज़ नए नए कपड़े बदलना, सौंदर्य प्रसाधन, गाड़ी होते हुए भी अन्य गाड़ियां लेना, बेवजह सड़क पर गाड़ियों को चलाना, बच्चों को फिजूलखर्ची के लिए पैसे देना आदि हम बहुत खर्च करते हैं जिनके किए बगैर भी ज़िन्दगी जी जा सकती है।

लेकिन हम किसी जरूरतमंद को ज़रुरत के समय यदि वह कोई मदद मांगे तो मदद करने से जवाब दे देते हैं।

हम ऐसा करते समय ज़रा सा भी नहीं सोचते?

गुरुवार, 11 अगस्त 2022

भावना

 बिना भावना कोई रिश्ता नहीं है

मगर भावना का दिखावा नहीं है।

जमे बर्फ अच्छी,तो पिघले भी अच्छी,

नदी क्या बनेगी,जो झरना नहीं है।


सूबे सिंह सुजान

मंगलवार, 2 अगस्त 2022

शिक्षक का सम्मान ही विभाग व अधिकारियों का सम्मान है

 शिक्षक के सम्मान में ही विभाग व अधिकारी का सम्मान है। सारा शिक्षा विभाग आखिर बच्चों और शिक्षक पर आधारित है शिक्षक को स्कूल में ही रहने दिया जाए और उसका सम्मान करना ही शिक्षा विभाग के अधिकारियों का सम्मान है 

यदि शिक्षक अधिकारियों का होटलों में अपने खर्चे पर बड़े स्तर पर पार्टी देकर सम्मान करते हैं तो यह ठीक नहीं है बल्कि यह समाज को, शिक्षा व्यवस्था को चौपट करने जैसा है। 


शिक्षक को सम्मानित करने में ही अधिकारियों का बड़प्पन है एक सुसंस्कृत, सुशिक्षित संस्कारवान अधिकारी कभी शिक्षकों से निवेदन करके सम्मानित होना पसंद नहीं करेंगे और इसी तरह कोई भी सुसंस्कृत सुशिक्षित संस्कारवान शिक्षक भी अपने स्कूल में बच्चों को छोड़कर अधिकारियों की चापलूसी नहीं कर सकता यदि करते हैं तो वह अपने कर्तव्य से विमुख हो चुका है।

सोमवार, 4 जुलाई 2022

कुप्रथा (लघुकथा)

 कॉलेज की दो छात्राएं आपस में घनिष्ठ सहेली थी कोमल और सुल्ताना। दोनों अपनी सभी निजी बातें शेयर करती थी सुल्ताना,कोमल से अक्सर कहती कि तुम्हारे बहुत मज़े हैं तुम पूरी स्वतंत्रता से रह सकती हो।  हर तरह के कपड़े पहन सकती हो, कहीं जा सकती हो, लेकिन हमें तो बुर्के में रहना पड़ता है और हमें सामाजिक रूप से आज़ादी नहीं दी जाती है। यह वामपंथी विचारधारा मीडिया में हिन्दू धर्म में बहुत कमियां बताती है लेकिन हमारे समाज की कुरीतियों को समर्थन करती है पता नहीं हमारे समाज की कुरीतियों को उजागर क्यों नहीं करती वरना कुछ तो सुधार हमारे समाज में भी होता ।

कोमल कहने लगी लेकिन तुम अपने परिवार में कहती क्यों नहीं  कि मुझे मेरी मर्ज़ी का पहनावा पहने दो,इस पर सुल्ताना बोली चुप रहो बहन इतनी बात कहने पर हमारे साथ, हमारे घर के पुरुष न जाने कैसे कैसे उत्पीड़न करते हैं और तुम्हें यह कहते सुन लिया कि मुझे यह सलाह दे रही है तो तुम्हें भी परेशान करेंगे। इसलिए चुपचाप ज़ुल्म सहना ही हमारा भाग्य है।


रविवार, 3 जुलाई 2022

बिल गेट्स सभी को नहीं बनना चाहिए

सब लोग बिल गेट्स बनना सोचते हैं जबकि यह ठीक नहीं है। यदि मान लिया जाए, सब गिल बिल गेट्स बन जाएं तो दावा है ! किसी को भी खाना नहीं मिल पाएगा । लोग भोजन को तरस जाएंगे जब अमीरों की संख्या ज्यादा हो जाती है तो समाज में अशांति, असंतोष, भूखमरी फैल जाएगी। इसलिए प्रकृति ने हर चीज़ का संतुलन बनाया है और यही मानव बुद्धि के साथ भी है संतुलन हर जगह जीवन के लिए जरूरी है।

मंगलवार, 7 जून 2022

ग़ज़ल - जिसने दुनिया को समझा है।

जिसने दुनिया को समझा है, उसको सब कहते पगला है। उसने दुनिया को समझा है, जो ख़ुद,ख़ुद से खूब लड़ा है। वैसे तो वो अच्छा लगता है, पर चेहरे पर चार बजा है। मेरे मात पिता लड़ते हैं, वैसे उनमें प्यार बड़ा है। सच में दुनिया यूँ लगती है, जैसे शंकर नाच रहा है। चिल्लाने से क्रोध बढ़ेगा, "चुप रहने में और मज़ा है।" वायु हमेशा ऊपर उठती, पानी नीचे को बहता है। पूछो तो सारे सच्चे हैं, परख़ो, हर कोई झूठा है। सूबे सिंह "सुजान" कुरूक्षेत्र हरियाणा

शनिवार, 4 जून 2022

मनुष्य विज्ञान का भरपूर प्रयोग कर रहा है लेकिन जीवन को नष्ट कर रहा है।

लोग असली दूध पीना ही नहीं चाहते, दरअसल लोग नकली दूध को पसंद करते हैं। नकली दूध कम कीमत में बाजार में उपलब्ध होता है। असली दूध यदि चाहिए तो वह ₹200 तक प्रति लीटर ही असली दूध मिल सकता है। आज बहुत तेजी से हमारे गांवों में पशु पालन करने वाले लोग पशुपालन धंधे को बंद कर रहे हैं। यह बहुत तेजी से हो रहा है और वास्तविकता यह है हालात ऐसे बन गए हैं कि पशुपालकों को यह धंधा बंद कर ही देना चाहिए ताकि हमारे समाज को अक्ल आए कि असली दूध की कीमत कैसे मिलती है असली दूध कैसे प्राप्त होता है क्योंकि जो पशुपालक आज असली दूध पशुओं से तैयार करते हैं वह प्रतिवर्ष आर्थिक रूप से कमजोर होते जा रहे हैं, कर्जे में डूब रहे हैं। दरअसल लोग पैसा उगाना पसंद करते हैं खाना,भोजन के लिए फसलें उगाना पसंद ही नहीं करते, आज समय ऐसा आ गया है कि हम फलों के पौधे लगाना पसंद नहीं करते लेकिन अच्छा फल पसंद करते हैं। इसी प्रकार पशुपालन बंद हो रहा है और दूध अच्छा सब चाहते हैं पूरे समाज में पैसा उगाने की दौड़ जारी है लोग पैसा पैसा उगा रहे हैं और भोजन खत्म हो रहा है वास्तविक जो भोजन मिट्टी से पैदा होता है वह खत्म हो रहा है धीरे-धीरे समय ऐसा आने वाला है कि लोग पैसे पैसे लेकर घूमेंगे और भोजन नहीं मिलेगा। इस तरह से भुखमरी आएगी और पृथ्वी पर मनुष्य बहुत कम रह जाएगा और वास्तविकता में यह होना प्राकृतिक है। निश्चित है। यह होना भी चाहिए क्योंकि मनुष्य पृथ्वी की अनदेखी कर रहा है मिट्टी को जहरीला बना रहा है मृदा मिट्टी खत्म हो चुकी है भोजन के लिए फसलें अब मिट्टी नहीं दे पाएगी, हमने अंधाधुंध जंगलों को नष्ट कर दिया, मिट्टी से सूक्ष्म जीवों को नष्ट कर दिया है। मनुष्य विज्ञान का भरपूर प्रयोग कर रहा है लेकिन जीवन को नष्ट कर रहा है।

सोमवार, 23 मई 2022

परिवर्तन की गति में तीव्रता,विनाश की आहट है।

मनुष्य ने अपने जीवन और पृथ्वी के धरातल से आकाश तक परिवर्तन की गति इतनी तीव्र कर दी है कि जीवन में और पृथ्वी पर कभी भी दुर्घटनाएं घट सकती हैं इसके लिए मनुष्य को अपनी पुरानी पीढ़ियों से सीखते रहना होगा अपने जीवन की धरोहरों को जितना हो सके सुरक्षित रखें। आज जो पुराने लोग बचे हैं उनसे सीखना जरूरी है उनके काम करने के तरीकों को, खानपान की आदतों को, पर्यावरण को सुरक्षित करने,मृदा संरक्षण,भोजन, पेड़ पौधों,व मनुष्य में संस्कारों को सुरक्षित रखने के तौर तरीकों को सीखते रहना चाहिए वरना मनुष्य को अन्य प्राणियों की अपेक्षा ज्यादा नुक्सान झेलना पड़ सकता है।

रविवार, 22 मई 2022

ग़ज़ल - अपने बचपन में लौटते रहिये

अपने बचपन में लौटते रहिये, बच्चों के साथ खेलते रहिये। अपने माता पिता और रिश्तों को, बैठकर थोड़ा सोचते रहिये। बेवजह भी खुशी मिलेगी बहुत, उंगलियों को मरोड़ते रहिये। हां! बहुत भागदौड़ रहती है, ज़िन्दगी है, तो दौड़ते रहिये। आपको, जब नहीं कोई सुनता, आप ही आप बोलते रहिये। अपने बचपन में लौटने के लिए, कुछ खिलौनों से खेलते रहिये। जन्म से मौत तक सफ़र अपना, ज़िन्दगी क्या है सोचते रहिये। दृष्टि परमात्मा की पाओगे, निर्बलों को उभारते रहिये।

जो अपने आप उगता है हम सब वो घास हैं।

जो अपने आप उगता है हम सब वो घास हैं। इसीलिए हम एक दूसरे के पास हैं। जीवन नियमित है जीवन का नियम है एक दूसरे की समीपता प्रकृति के हर कण में जीवन के गुण मौजूद रहते हैं। जीवन उत्पन्न होना और जीवन नष्ट होना यही प्रकृति की प्रक्रिया है। जिसमें मनुष्य भी है हम एक दूसरे के पास रहते हैं एक दूसरे के पास रहने का गुण प्रकृति में निहित है। एक दूसरे के पास रहना प्रकृति से प्राप्त गुण है। यह हर प्राणियों में मिलेगा। पेड़-पौधे, जीव जंतु और मनुष्य में, पक्षी, पक्षियों के पास रहेंगे। पेड़- पौधे, पेड़ - पौधों के पास रहेंगे। पशु ,पशुओं के साथ रहेंगे यह प्रकृति में निहित है यह जीवन है मनुष्य के अंदर या अन्य प्राणियों के अंदर दया, क्षमा भाव होना, मनुष्य के पास रहना यह प्राकृतिक गुण है। इसी गुण में जीवन निहित है। इसी गुण में से प्रेम उत्पन्न होता है इसी गुण से दया, क्षमा उत्पन्न होती है जो मनुष्य में वन्य प्राणियों में सभी में निहित है। इसका अंश अलग-अलग मात्रा में हो सकता है परंतु दयालुता, क्षमा भाव, प्रेम भाव सभी प्राणियों में मौजूद है। यह प्रकृति निहित है इसी से जीवन का निर्माण और जीवन का चलना संभव होता है। जीवन अपने आप उगता है और अपने आप निरंतरता के भाव में रहता है। इसी प्रकार जीवन का निर्माण होता है मनुष्य स्वयं की दिनचर्या में व्यस्त होने के कारण, अपने अल्प ज्ञान के कारण यह भाव रखता है कि जीवन हमसे चलता है परंतु ऐसा नहीं है जीवन का पैदा होना प्रकृति निहित था और है एवं रहेगा। जीवन की निरंतरता प्रकृति निहित है हमें जीवन को सूक्ष्मता से देखना होगा जीवन का निर्माण किस प्रकार हो रहा है यह सूक्ष्मताओं का भाव प्रकृति में निहित है। जिसकी पहचान ऋषि-मुनियों ने समय-समय पर की है अनेक विद्वानों साहित्यिक, दार्शनिक, वैज्ञानिक लोगों ने जीवन की सूक्ष्मता के गुणों की पहचान करने के प्रयास किए हैं। जिससे जीवन को महसूस किया जाता है और उसकी प्रकृति का पता चलता है। एक जीव की उसी जीव के प्रति समीपता, निकटता, सूक्ष्मता जीवन में उल्लास, प्रेम, आनंद को भरती है और जीवन की निरंतरता में सहयोग करती है यह प्रकृति ने सभी जीवों में गुण पैदा करने की क्षमता प्रदान की है और उसका प्रयोग करने की विशिष्टता प्रदान की है।

प्लास्टिक और मोनिका भारद्वाज के बच्चे

शिक्षकों के धरना प्रदर्शन में कुछ बच्चे अपनी माताओं के साथ बैठे थे कुछ शिक्षक कोल्डड्रिंक सब शिक्षकों को दे रहे थे तो जब सब कोल्डड्रिंक ले रहे थे तभी दो बच्चों ने कोल्डड्रिंक लेने से मना कर दिया सब शिक्षक अनुरोध करने लगे कि बच्चे ले लो लेकिन वह मना करते रहे पहले सोचा कि कोल्डड्रिंक नहीं पीते होंगे लेकिन मैं पास ही बैठा था मैंने पूछा कि बच्चे क्या बात कोल्डड्रिंक नहीं पीते? बच्चे ने जवाब दिया नहीं अंकल, हम प्लास्टिक का कोई भी समान प्रयोग नहीं करते इसलिए नहीं पीते। अब हैरान होने को और क्या चाहिए जब 5-6 साल का बच्चा यह बात कहे। लेकिन दूसरी तरफ़ शिक्षक थे जो प्लास्टिक के गिलासों में कोल्डड्रिंक पी रहे थे और ज़रा सा भी अहसास नहीं था कि हम क्या कर रहे हैं? इन बच्चों का लालन पालन मोनिका भारद्वाज और उनके पर्यावरणविद् पिता ने किया है जो पर्यावरण को समर्पित हैं यदि इस तरह सब लोग अपने बच्चों को शिक्षित करें तो अपनी पृथ्वी को,भोजन पैदा करने वाली मिट्टी को बचाया जा सकता है और जीवन को, पर्यावरण, पृथ्वी को ज्यादा सनय के लिए सुरक्षित रखा जा सकता है। हमें इस परिवार, बच्चों से प्ररेणा लेनी चाहिए।

बुधवार, 27 अप्रैल 2022

सार्वजनिक क्षेत्रों को बचाने के लिए सरकार को काम करना सबसे पहले चाहिए।

सुबह सुबह एक प्राइवेट स्कूल की वैन गांव के बीचोबीच तंग रास्ते पर एक बच्चे के बिल्कुल घर के सामने रुकी,बच्चा बिठाया, बच्चे की माता खुश कि उसका बच्चा सुरक्षित। दस कदम के बाद दूसरे घर के आगे रुकी और फिर तीसरे घर... और वैन की पीछे दस बारह मोटरसाइकिल,एक कार, टैक्टर ट्राली आगे निकलने के इंतजार में परेशान थे। अब इस दृश्य का आंकलन कीजिए अनेकों वाहनों से वायु प्रदूषण, ध्वनि प्रदूषण लगातार हो रहा है। जीवन में यदि एक मिनट के लिए आक्सीजन न मिले तो जीवन समाप्त हो सकता है अर्थात सबसे ज़रूरी आक्सीजन है भोजन से भी पहले। लेकिन हमारी अव्यवस्था ने, सुविधाओं के ढोंग ने पर्यावरण,व बच्चों का जीवन नर्क कर दिया है। जो बच्चा जितना ज्यादा सुविधा में बचपन जीएगा वह उतना कम सीख पाएगा। जबकि दूसरी तरफ प्रत्येक गांव में सरकार ने सरकारी स्कूली शिक्षा का प्रबंध किया है । परंतु हम दोगुना पर्यावरण नष्ट कर रहे हैं हम समय का सदुपयोग नहीं कर पा रहे शिक्षा का सदुपयोग नहीं कर पा रहे ।व्यवस्था को दुरह बना दिया गया है। सार्वजनिक शिक्षा ही सामाजिक समरसता, सांस्कृतिक, पर्यावरण की हितैषी हो सकती है। अलग अलग सुविधा देना एक तरह से अलग अलग वर्ग तैयार करना है जो सामाजिक समरसता,देश की एकता को खंडित करती है। देश भर में एक पाठ्यक्रम, एक जैसी सुविधाएं, एक जैसी सरकारी स्कूली शिक्षा का पैटर्न होना अति आवश्यक है।

रविवार, 24 अप्रैल 2022

गतिमय ही जीवन है।

सब कुछ गतिमय होना चाहता है भावनाएँ भी स्थिर नहीं रहती पृथ्वी से लेकर,पृथ्वी पर सभी वस्तुएँ गतिमय कम या ज्यादा होती हैं गति जीवन है । गति में निरंतरता भी चाहिए परंतु तीव्रता हमेशा नहीं चाहिए हमेशा की तीव्रता शीघ्र विनाशकारी होती है परंतु स्थिरता भी जड़ता है । सूर्य गतिमय नहीं है परंतु सूर्य अपनी स्थिरता से भी प्रकाश के माध्यम से ,अपनी उष्मा से आकाश में हर जगह उपस्थित है सृष्टि नियमों पर आधारित है सम्पूर्ण आकाश व पृथ्वी के हर कण में नियम व्याप्त हैं नियमों का आवश्यकता अनुसार परिवर्तन दृष्टव्य है नियमों का खेल स्वयं संचालित है व यही जीवन आधार भी है । मनुष्य द्वारा,राज्यों द्वारा संविधान भी सृष्टि से संग्रहीत है जिससे स्पष्ट होता है जीवन को सुविधाओं सहित व अधिक आयु तक जीना नियमों में रहकर ही संभावित है । प्रेम होना भी नियमित है ।

रविवार, 10 अप्रैल 2022

उसने कहा कि फूलों,बहारों को देखना

उसने कहा कि फूलों,बहारों को देखना फिर पेड़ और नदी के किनारों को देखना मैंने कहा कि फूल, कभी आते तो करीब हम सीख जाते,खूब नजारों को देखना । तेरे करीब आ रही बहती हुई नदी बहकर "सुजान" उसके इशारों को देखना । वो चाँद है मगर मैं तो सूखा सा खेत हूँ उसके नसीब में है हजारों को देखना । दिल में कभी कभी ये भी आ जाता है "सुजान " ग़ज़लें न सुनना,चाँद सितारों को देखना । सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 7 अप्रैल 2022

पेड़ और खंभों में जंग

सड़क किनारे लगे पेड़, जिनके ऊपर से बिजली की तारें गुजरती हैं। पहले उनकी ऊपर से झंगाई की गई फिर कईं बार बिजली ने करंट मारा, फिर कुछ सूख गए फिर कुछ काट दिए गए। धीरे धीरे सड़क किनारे अब बिजली के खंभे दिखाई देते हैं।

कहानी और कविता

अब कहानी और कविता हो रही हैं छोटी, दर्द, तन्हाई, ज़ियादा से ज़ियादा लम्बी। वनस्पति घटने लगी, रास्ते कितने खुश हैं, वक्त, हमने भी तुम्हारी नई दुनिया देखी।

मंगलवार, 5 अप्रैल 2022

ग़ज़ल, मैं नये हौंसले बनाऊंगा

मैं नये, हौंसले बनाऊंगा और कुछ रास्ते बनाऊंगा। तुम नहीं, दर्द को समझते हो, आदमी,दूसरे बनाऊंगा। ताकि हम दर्द अपने खुजलायें, इसलिए खरखरे बनाऊंगा कुछ दिनों से उदास बैठा हूं, मंज़िलों के पते बनाऊंगा। अपने हाथों को पीटना तुम सब, मैं नहीं झुनझुने बनाऊंगा। सूबे सिंह "सुजान"

रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सच के हिमायती को तिरस्कार का घूंट पिलाया जाता है, पुरस्कार का नहीं।

जब कंई बार दोस्तों के साथ कार में सफर कर रहा होता हूँ तो बातचीत बंद होने पर मुझे अचानक नींद आ जाती है । इस पर दोस्त मजाक भी कर लेते हैं यह उनका नजरिया व सोच को या केवल मजाक को ध्यान में रखकर कहते होंगे । लेकिन जब मैं अपना जवाब दाखिल करता हूँ (रात भर माता को हर एक घंटे बाद देखना फिर सोने की कोशिश करना,फिर माँ की बार बार कराहट की आवाजें फिर करवट देना,तो नींद तो बहुत आती होगी न मुझे) तो वे मेरे जवाब को शायद अनसुना करते हैं या वे हकीकत जानना नहीं चाहते या ऐसी दुरूह हकीकत को अनसुना करते हैं और पलटकर एक भी जवाब नहीं होता मजाक के सिवाए और उनके पास के सारे संवेदना के शब्द भी मर जाते हैं जैसे वे संवेदना रहित हों । दूसरा हिस्सा मेरा दिन भर ऐसे काम करने का रहा होता है जिसमें कार्यस्थल पर भी दूसरों के हिस्से का काम अनुरोध पर मना न कर सकना, यूनियन के वे काम जो मुफ्त में उन लोगों के लिए करना जो लोग धन संपदा से संपन्न होते हैं संगठन के वे काम जिनको करने में केवल अपना समय,धन व शक्ति लगानी होती है प्रत्युतर में उन्हीं लोगों से उपहास पाना होता है जिनके लिए वे सारे काम कर लेते हैं यह उन लोगों की तुच्छ मानसिकता का पैमाना होता है लेकिन यह पैमाना जानते कितने लोग हैं ? सच के हिमायती,समाज के हिमायतियों को तिरस्कार का घूंट पिलाया जाता है न कि पुरस्कार का । https://youtu.be/ob2jtAXCGaE Mehar Chand Dhiman and virender rathor YouTube channel live

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल- हर बात तुम्हारी मुझको याद रही बरसों

ग़ज़ल हर बात तुम्हारी,मुझको याद रही बरसों। चुपचाप बही,इस दिल में ग़म की नदी बरसों।। मैं याद तुम्हें करने में,भूल गया ख़ुद को, जीवन की खुशी मेरी, गुमनाम हुई बरसों। इस मोड़ खड़ा होकर,हर रोज़ निहारा है, इस गांव के स्टेशन पर, गाड़ी न रुकी बरसों। इक आह! महब्बत ने,बारूद बनाया है, अब युद्ध बनी तन्हाई,आग दबी बरसों। हर शब्द में, अपने दिल को, खोलने की सोची, दिल खोल नहीं पाया, ग़ज़लें तो लिखी बरसों। मैंने ये उदासी, तन्हाई में पकाई है, अब फूल खिलेंगे,दी आंसू ने नमी बरसों। सूबे सिंह "सुजान" कुरूक्षेत्र

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

यह मनुष्य का जीवन

 

हमारे मन में कुछ जगह,शहर, गांव पक जाते हैं।

वैसे जगह तो सब वैसी ही होती हैं..

ऐसे ही कुछ लोग हमारे मन में पक जाते हैं और हमें लगता है कि अब ये हमारे किसी काम के नहीं, इसलिए उनसे संपर्क तोड़ दिया जाता है।यह जीवन मनुष्य का है।

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

गहरे लोग

 ह्रदय की गहराई कौन नाप सकता है? यह तो कोई कोई समझ सकता है उसके जैसा या उससे भी ज्यादा गहरा कोई समझ सकता है।

हर जीव जंतु, पेड़ पौधे को आख़िर पकना होता है और उसके बाद बीज बनना होता है।

लेकिन ऐसे भी हैं कि बहुत कुछ पेड़ पौधों,जीव जंतुओं को फल नहीं आ पाते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको फल आ गए हैं तो फिर बीज नहीं बनते।

यह सबका अलग अलग भाग्य है बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह हम सबकी शक्लें अलग अलग हैं व गुण भी अलग-अलग हैं। इसी तरह मनुष्यों में शारीरिक तौर पर कुछ लोग पतले, कुछ मोटे, कुछ बौने, लम्बे,ढील ढौल से अलग अलग दिखाई देते हैं तो कुछ लोग बुद्धि स्तर पर भी अलग अलग विचारों के होते हैं तो कुछ लोग मानसिक स्तर पर भी अलग-अलग स्तरों व भावनाओं से अद्वितीय होते हैं।


गहराई के भी अपने अपने प्रकार होते हैं कटोरी या गिलास या घड़ा इनकी अपनी अपनी व अलग अलग काम आने वाली गहराई होती है जो कि अपने स्तर पर पूर्ण रूप से सफल है,काम आने वाली है अर्थात सार्थक है।

वहीं आप जोहड़, तालाब, सरोवर, दरिया,नहर, नदी और समुद्र की गहराईयों को भी अपने अपने स्तर पर अद्भुत व सफल काम आने वाली पाओगे।

इन्हीं सब गहराइयों का आप दूसरे सिरे से देखें तो यह गहराइयां अपने आप में पूर्ण हैं परन्तु सब व्यक्तियों के लिए एक जैसी काम नहीं आती,न हर पशु या पक्षी के लिए समानता से एक जैसी काम आ सकती हैं। परंतु किसी भी गहराई में लेश मात्र भी कमी नहीं है।

क्या आप ऐसा ही व्यक्तियों के बारे में सोच सकते हैं? बिल्कुल ऐसे ही प्रकार व चरित्र व्यक्तियों में देखने को मिलेंगे।इस सब के बावजूद प्रकृति ने कहीं भी कोई अपराध नहीं किया है इस भाव के समीप आने के लिए मनुष्य को बहुत गहरा होना होता है जो जितना गहरा हो जाता है वह उतना इस भाव को समझ पाता है। प्रकृति ने किसी भी जीव जंतु पेड़ पौधे में कहीं भी पक्ष या विपक्ष नहीं किया है।

अपितु यह सब जीवन को संचालित करने के स्तर निर्माण किए गए हैं और इन्ही स्तरों से जीवन सार्थक संचालित हो सकता है और हुआ है वरना इनके बदलाव से यह जीवन संभव नहीं है। इसलिए एक भजन में कहा गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है अच्छा ही करता है।यह प्रकृति का नियम है, निस्वार्थ भाव का निर्णय है।

जीवन हमारे द्वारा संचालित हो रहा है लेकिन हमसे ही संचालित नहीं होता है जीवन स्वयं संचालित है जीवन के संचालन में अनेक शक्तियों का प्रयोग हो रहा है जो हमसे संबंधित दिखाई न देकर भी हमें संचालित कर रही हैं सूर्य, चंद्र,पवन,आकाश, पृथ्वी आदि तो समक्ष हैं परंतु असीमित ज्ञात,अज्ञात असंख्य शक्तियां जीवन को गतिमान बनाए हुए हैं। इन्हीं असीमित ज्ञात अज्ञात शक्तियों को जानने में मनुष्य लगा है और इनको जानने से हमें ज्ञान होता है। यही शक्तियां जानना, पहचानना ही ज्ञान है।

इसी प्रकार प्रेम है। प्रेम के अंदर इसी प्रकार संपूर्ण सृष्टि का श्रृंगार, वैभव,कष्ट,सुख, अपरिचित,परिचित, अपरिमित, असीमित आनंद का अनुभव होता है। यही प्रेम, मनुष्य की गहराई की मापन प्रणाली है।

प्रेम के माध्यम से जीवन को असीमित किया जा सकता है।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल- अब कहानी ख़बर सी लगती है।

 अब कहानी, ख़बर सी लगती है

बच्चों को एक डर सी लगती है।

यूँ खुशी भी मिली है हमको ,मगर,

दर्द की भी नहर सी लगती है।

काम दर काम गर, करेंगे हम,

ज़िन्दगी फिर सफ़र सी लगती है।

क्या नया दौर आ गया यारो,

बस्ती बस्ती नगर सी लगती है।

उनमें भी भावनाएं बाक़ी हैं,

झोंपड़ी जिसको घर सी लगती है।

जिसका दीवाना मैं रहा बरसों,

वो मुझे बेख़बर सी लगती है।

बद्दुआ,जितनी उसको देता हूँ,

उसको मेरी उमर सी लगती है।


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

शहर के लोग

 नगर में संभ्रांत लोगों की जगह सेक्टर कहलाते हैं। सुबह-सुबह उन्हीं सड़कों से गुज़र रहा था लगभग हर सड़क पर घरों से बाहर सफाई करने के बाद पानी को सड़क पर फ़ैला दिया था और कुछ जगह तो लगातार बहाया गया था।


आने जाने वाली हर गाड़ी से पानी के छींटें पैदल यात्रियों, आसपास के साधनों और घरों पर पड़ते थे।

ऐसी स्थिति में हर सड़क भी बहुत जल्दी टूट जाती है। नगर के ऐसे इलाके में हर व्यक्ति स्वयं को पढ़ा लिखा तो समझता है लेकिन समझ कितनी है यह व्यवहार से स्पष्ट होता है व्यवहार केवल वही नहीं होता जो हम आपस में बातचीत या लेन देन को करते हैं, वरन् व्यवहार हर पेड़ पौधों से,पशु पक्षी,सड़कों, गलियों और देश, राष्ट्र की सम्पत्ति, सुन्दरता से भी सरोकार रखता है।


सूबे सिंह सुजान कुरूक्षेत्र हरियाणा

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मानव इतिहास यादाश्त का गठजोड़ है।

 यादाश्त एक युद्ध की तैयारी होती है।


मनुष्य हर तरह की यादों को याद रखने से ही हर काम में आगे बढ़ता है।

मानव इतिहास या किसी भी विषय का इतिहास यादाश्त का गठजोड़ मात्र है और यह यादों का गठजोड़ ही हमें जीवन की निरंतरता देता है, जीवन ही नहीं बल्कि भौतिक विज्ञान, सुविधाएं, साहित्य, कलाओं, संस्कृति सब तरह की निरंतरता यादें ही देती हैं।

जो कठोर यादें होती हैं वह याद रखना और भी ज्यादा ज़रूरी होती हैं लेकिन मानव स्वभाव इस बारे उलट काम करता है वह बुरी या कठोर यादों को जल्दी भूलने की कोशिश करता है लेकिन कभी भूला भी नहीं पाता और भूलने की बेवजह कोशिशों में समय बर्बाद करता रहता है।

जबकि बुरी व कठोर यादें हमारे ज्यादा काम आती हैं वह हमें नया सीखने को तैयार करती हैं वह हमें किसी भी काम के होने से पहले आगाह करती हैं कि आने वाले समय में पुनः ऐसी कठोरता आने से पहले आप उसको समय पर सटीक जवाब दे सकते हैं या आप उससे सामना करने को तैयार रह सकते हैं और अपने लिए सहायक अवसर तलाश कर सकते हैं।


युद्ध श्रेत्र में सैनिक इसी प्रकार काम करते हैं वह अपनी की हुई गलतियों को याद रखते हैं और अपनी क्षमताओं को विकसित करते हैं।

हर क्षेत्र में इसी प्रकार उन्नति होती आई है।

जीवन को प्रेरणा कटु यादों से मिलती है जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को जितना ज्यादा कठोरता से जीया है वह उतना ज्यादा कठिनाइयों का सामना कर पाया है और अन्य मानवों के लिए एक रास्ता तैयार करके गया है जिससे मनुष्य को सीखने का अवसर मिला है।

लेकिन अपने जीवन में हर मनुष्य को हर काम या व्यवहार स्वयं सीखना व करना पड़ता है परन्तु आसानी यही होती है कि पहले से मनुष्यों द्वारा किए गए कार्यों का लिखित, विकसित कार्य मौजूद होता है जिससे वह जल्दी सीख पाता है और उस पहले किए गए कार्यों में और अपने द्वारा किए गए कार्यों को जोड़ देता है।

यही मानवता का इतिहास है।

यादाश्त मनुष्य का मनौवैज्ञानिक विषय है और इस विषय पर मनुष्य कम काम करता है जबकि अन्य विज्ञानों पर ज्यादा काम करता रहा है

और सच्चाई यह है कि हर काम व विज्ञान को सुविधाजनक बनाने के लिए या बेहतर करने के लिए मनौवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील होना जरूरी है यही मनौवैज्ञानिक विषय हर विज्ञान या कार्य के पीछे काम करता है।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

चोर (कहानी)

कहानी का शीर्षक है। - चोर। 

 एक बार एक चोर खेत से आलू चोरी करने गया। जब वह खेत से आलू चुरा रहा था।

 तो उसे मन में बार-बार किसी के आ जाने या पकड़े जाने का डर सता रहा था। वह अपनी मानसिकता को स्थिर नहीं कर पा रहा था। उसे हर पल भय था। उसे यह अहसास हो रहा था कि यह भयातुर भावना है जिसमें वह जो काम ठीक से कर सकता था वह काम भी हड़बड़ी में गलत कर रहा है।


दूसरी बार वह चोर एक नहर से सरकारी लकड़ी चुराने गया ।जहां उसको डर का एहसास कम हो रहा था और जिस समय वह लकड़ी चुरा रहा था। उस समय उसके पास दो चार आदमी भी आए लेकिन वह उतना नहीं डरा, उन लोगों से उसने ठीक से बात की और उन्होंने भी उसे कोई ज्यादा नहीं डराया, न अपराधी माना ।क्योंकि इस बार चोरी सरकारी संपत्ति की थी। उस सरकारी संपत्ति की चोरी को वो लोग भी जायज समझते थे । कि क्या फर्क पड़ता है यह हमारी संपत्ति थोड़ी है यह तो सरकारी है यह मानसिकता का अंतर था। 

इन दोनों चोरी करने के बाद जब वह चोर दोनों चोरियों के समय की मानसिकता पर घोर करने लगा तो उसे अहसास हुआ कि यह सामाजिक मानसिकता है जो केवल मेरे अन्दर नहीं है बल्कि सारे समाज के अंदर व्याप्त है और इससे हम देश की संपत्ति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं जबकि इसी संपत्ति से हमारे समाज के सार्वजनिक कार्य ठीक होते हैं और इसके प्रति सारा समाज लूटने की भावना रखता है इस प्रकार ही तो हमारे काम अधूरे हैं और लोग आपस में स्वयं को ही लूट रहे हैं।

मंगलवार, 25 जनवरी 2022

ग़ज़ल- ज़मीं पे चाँद कभी भी उतर नहीं सकता

 ज़मीं पे चाँद कभी भी उतर नहीं सकता

निज़ाम ए आसमां कभी भी बिखर नहीं सकता।


वो मेरे दिल को दुखाने की बात करते हैं,

तो क्या मैं थोड़ा सा गुस्सा भी कर नहीं सकता?


मैं ही ज़मीं, मैं ही सूरज और आसमां भी मैं,

मुझे ही मुझसे अलग कोई कर नहीं सकता।


हरेक कण में , हर आवाज में भी मैं ही मैं,

मैं अपने आप से तो यार डर नहीं सकता।


मुझे सुखा लो, भिगो दो,जला के भी देखो,

मरा मराया हूँ,तो फिर और मर नहीं सकता।


सूबे सिंह सुजान कुरूक्षेत्र हरियाणा

ग़ज़ल Ghazal

 एक बग़ैर मतले की ग़ज़ल हुई है। आप हर एक शेर पर ग़ौर कीजिएगा।


वक्त से जो कभी न मांगा था,

वक्त ने,सब वही दिया हमको।


कोशिशें तो जवान रहती हैं,

देती रहती हैं रास्ता हमको।


बेवफा, वक़्त ही तो होता है,

जो बनाता है बेवफा हमको।


मेरे ख्वाबों में वो नहीं था मगर,

आज रस्ते में मिल गया हमको।


हम गरीबों के ज़ख्म ऐसे हैं,

जिंदा रखता है, हादसा हमको।


हार, हमने कुबूल कर ली थी,

था मुकद्दर में जीतना हमको।


प्यार में तो परख़, लिया तुमने,

दुश्मनी से भी सोचना हमको।


शक्लें ही तो अलग अलग अपनी,

पर, बनाया है एक सा हमको।


सूबे सिंह सुजान