शुक्रवार, 26 अप्रैल 2013

VO SHAKHS CHUP-CHAP JA RHA THA..वो शख़्स चुपचाप जा रहा था।

वो शख़्स चुपचाप जा रहा था

न जाने क्या सोचता रहा था।।

वो यूँ मुहब्बत जता रहा था,

कि मेरा घुँघट उठा रहा था।

जो आज मुझको मिटा रहा था,

कभी वो मेरा ख़ुदा रहा था।

वो काग़जों में कमा रहा था,

“नरेगा” के नाम पा रहा था।

जहाँ से गुजरें,वहीं पे खन्जर,

कि वक़्त हमको डरा रहा था।

वो बेवफ़ा है तो क्या हुआ है,

कभी मैं भी बेवफ़ा रहा था।

ये बीच में चाँद कैसे आया,

मैं उसकी सूरत बना रहा था।

मैं हडबडा के उठा तो सोचा,

वो कौन था जो जगा रहा था।

मैं जन्मदिन पर मिठाई खाता,

वो मेरी उम्र घटा रहा था।

फ़सल में नुकसान करते हैं पेड,

किसान उनको कटा रहा था।

कंई दिनों बाद पास आया,

वो नीचे-नज़रें झुका रहा था।

ख़ुदा भी उसके ही हक़ में होगा,

जो बस्तियों को जला रहा था।

था उनका मज़हब तो एक लेकिन,

ख़यालों में फासला रहा था।

                                                सूबे सिंह “सुजान”

kani dino bad pass aaya,
vo neeche nazren juka rha tha!
tha unka mazhab toa ek lekin,
khyalon men fasla rha tha!
jo aaj mujko mita rha tha,
kabi vo mera khuda rha tha!
khuda bi uske hi haq men hoga,
jo bastiyon ko jala rha tha!
jhan se gujren vhin pe khanzr,
ke vaqt humko dara rha tha!

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें