शनिवार, 29 सितंबर 2012

दूसरे को तुच्छ कहने के पीछे क्या सोच होती है।

एक मुशायरे में भारत के दिग्गज सायर अपनी ग़ज़लें पढ रहे थे। कार्यक्रम के अंत में लोग अपनी-अपनी प्रतिक्रिया प्रकट कर रहे थे। एक महाश्य अच्छे शायर थे लेकिन उनको अच्छे-अच्छे शायरों में कोई भी अच्छा नहीं लगा । हां लेकिन उन्होने एक सुंदर शायरा की जरूर तारीफ की। और कहा कि मुन्नवर राणा व राहत इन्दौरी  की कुछ ख़ास शायरी नहीं हैं। इनसे अच्छी तो ये कल की शायरा है। इस वाक्य को सुन-देख मुझे बडी हैरानी हुई। क्या सोच होती है आदमी की एक नामवर शायर को भी तुच्छ कैसे कहा गया है। उस महाश्य के मन में क्या रहा है। इसमें कोई शक नहीं है। उस महाश्य को पहले तो यह लगता है कि मैं ही अच्छा शायर हूँ और कोई हो ही नहीं सकता। वह किसी की तारीफ़ कर ही नहीं सकते जो ख़ुद की तारीफ सुनना पसंद करते हैं। दूसरा सोने पे सुहागा ये हुआ कि वहां उनकी सोच के मुताबिक सुन्दरता की देवी मौजूद थी तो वह और किसी को अच्छा कैसे कहे भला। 

इस प्रकरण में यह भी तथ्य है कि उस आदमी को ऐसी बातें करने से मिलता क्या है क्या सामने वाले पर कोई असर पडता है। ऐसा नहीं है उसको तो मालूम भी नहीं कि उसने उसके बारे में क्या सोचा है। वह अपना काम तत्लीनता से कर रहा है और जब तक आदमी को पता ही नहीं कि उसके बारे में किसी ने क्या कहा है उस पर किसी प्रकार का असर भी नहीं पडता यह भी प्राकृतिक है। मानवीय स्वभाव हैं दोनों तरफ़- यह हर स्तर के व्यक्ति के साथ होता रहता है। यह मानवीय स्तरों के हर स्तर पर होता है मानव अपने आप से बहुत संतुष्ट होता है वह दूसरों की आलोचना करने में भी संतुष्टि प्राप्त करता है। लेकिन आलोचना तो होना व करना अच्छी बात है। लेकिन जब आलोचना ही बेहुदी तरीके की हो। जिसमें  से घृणा ही साफ़ झलकती हो तो वह स्वस्थ प्रकार की आलोचना न होकर ईर्ष्या से प्रेरित आलोचना है।

                                                                                 सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

लोक कथा में मानव के लिये अदभुत सीख ।

एक तेली प्रतिदिन तेल बेचने जाता था। एक दिन वह बहुत दूर निकल गया और घने जंगल में रास्ता भटक गया था । शाम होने को थी और वह आज के दिन कुछ भी तेल नहीं बेच पाया था । अचानक उसे एक साँप दिखाई दिया पहले वह घबराया किन्तु साँप को वापिस जाता देख वह ठहर गया और साँप की ओर देखने लगा। कुछ ही देर में साँप बिल में गया और तुरन्त एक सोने की मोहर लेकर वापिस आया। जिसे वह वहीं छोड कर वापिस बिल में चला गया। तेली के मन में आया कि आज तो अच्छी दिहाडी निकल गई और मोहर को उठाने ही वाला था कि साँप दुबारा फिर बाहर आ गया साँप को देखकर तेली दौड कर पीछे हटा। लेकिन इस बार फिर साँप ने एक ओर सोने की मोहर वहीं छोड दी इस तरह साँप का यही क्रम चलता रहा और वहाँ पर सोने की मोहरों का ढेर लग गया। जब साँप का निकलना बंद हो गया तो तेली ने सारी सोने की मोहरों को उठाना चाहा लेकिन वह उन्हें किस वस्तु में डाले यही सोच रहा था कि उसे ध्यान आया कि जिस डोलची में तेल लिये है क्यों न उसी में डाल ले, ओर उसने वह तेल वहीं मिट्टी पर गिरा कर सोने की मोहरें उस में डाल ली। और आगे की ओर चलने लगा लेकिन शाम हो रही थी  तो उसने रात को ठहरने के लिये किसी जगह की तलाश शुरू कर दी। कुछ देर चलने के बाद उसे एक गाँव नज़र आया। वह गाँव में गया सामने वाले घर में जाकर कहा कि मुझे रात को ठहरने के लिये जगह दे देंवे।

 

घर का मालिक जो कि जाति से बनिया था बोला कि आप कौन हैं,कहाँ से आये हैं और क्या काम करते हैं। तेली ने जवाब दिया कि वह तेली है और हर रोज़ तेल बेचता है लेकिन आज उसका तेल भी नहीं बिका और वह जंगल में भटक गया इसलिये घर नहीं जा सका। बनिये ने उसकी परेशानी को समझते हुये उस पर विशवास करके उसे घर में पनाह दे दी। रात को तेली को खाना खिला कर सुला दिया गया। जब आधी रात हुई थी कि बनिये के घर में बहु को बच्चा हुआ और दाई ने तेल माँगा। लेकिन बनिये के घर में तेल नहीं था बनिये को तभी याद आया कि तेली के पास तो तेल जरूर होगा उसने जाकर तेली की डोलची में तेल देखा तो हैरान रह गया कि उसमें तेल नहीं सोने की मोहरें थी। उसने सोचा तेली ने झूठ बोला है तो क्यों न मोहरें चुरा लें और बनिये ने सारी मोहरें चुरा ली और मोहरों की जगह गाँव से तेल लाकर डाल दिया क्योंकि तेली ने कहा था कि उसका डोलची में तेल है।

सुबह जब तेली उठा तो उसे नाश्ता करवा कर बनिया गाँव से दूर तक छोडने गया तेली बार-बार कह रहा था कि धन्यवाद आप वापिस जायें। लेकिन बनिया उसे दूर तक छोडने गया। जब  बनिया वापिस गाँव की तरफ जाने लगा तो कुछ दूर जाकर तेली ने उत्सुकता पूर्वक डोलची को खोला तो उसमें सोना न पाकर व तेल देखकर उसके होश गुम हो गये।उसे गहरा सदमा लगा। वह इसी सदमें में सोच ही रहा था कि उसके पास एक आदमी आया। उसने पूछा कि आप इतने घबराये से क्यों लग रहे हैं। तेली ने सारी घटना बताई तो उस महर्षि ने बताया कि भाई इस घटना पर इतना दुखी मत हो क्योंकि वो सोने की मोहरें तेरे भाग्य की नहीं थी। वह तो बनिये के भाग्य की थी जो तेरे माध्यम से वहाँ पहुँचाई गई हैं। वह तेरी नहीं थी तेरे भाग्य में रोज तेल बेचना ही है यही तेरा काम है। जो कल तेरा तेल नहीं बिक सका था उसके एवज़ में तुझे कल का खाना मिल चुका है और आज का तेल तेरे पास है। यही भगवान की मरजी थी जो भगवान चाहते हैं वही होता है उसके बिन चाहे कुछ नहीं होता। प्रकृति ने सबके हिस्से के काम बाँट रखे हैं जो आपका काम है वह आपके पास है इसका मतलब आपका कुछ खोया नहीं गया है। 

                                                                    sube singh sujan

                                                                  9416334841

शुक्रवार, 14 सितंबर 2012

धूप का बोझ……..

धूप का बोझ सर पर उठा कर चला………..

देखिये वो बडा हौंसला कर चला…………….

मैं वफा की इबादत करूँ कब तलक,   

बेवफा तू मुझे बेवफ़ा कर चला……….सुजान