शुक्रवार, 28 मार्च 2014

ऊर्दू अ़रूज के शायर प्रोफेसर- सत्य प्रकाश “तफ़्ता” ज़ारी

19-07-11-tafta  प्रोफेसर  सत्य प्रकाश “तफ़्ता” ज़ारी  ऊर्दू अ़रूज़ के, ऊर्दू अदब में जाने माने (हस्ताक्षर) शाइर हैं। वे स्वर्गीय क़िब्ला डा.ओम प्रकाश अग्रवाल (“ज़ार” अल्लामी) की ज़ानशीनी है । उम्र अब जाने लगी है। वे अकेले बिन पुत्र के व बिना पेंशन के जीवन यापन कर रहे हैं जो आज के मंहगाई के युग में बहुत ही कठिन काम है।वे कुरूक्षेत्र विश्वविधालय कुरूक्षेत्र में प्राणी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर,विभागाध्यक्ष एंव डीन सांईस फ़ैकल्टी के पद से 30 नवम्बर 1993 को सेवानिवृत  हुये हैं सरकार ने ऐसे वरिष्ठ  साहित्यकारों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है। मुझे उनसे थोडा बहुत सीखने का मौका मिला है।    वे जीवन भर ऊर्दू अदब की सेवा करते रहे। ऊर्दू के कद्रदाँ लोगों नें भी इस महान आत्मा की ओर एक हल्की सी नज़र उठा कर देखने की ज़हमत नहीं उठाई । आज तक हरियाणा की ऊर्दू  अकादमी ने ऊर्दू के लोगों को जो हरियाणा के निवासी भी हैं,और जिन्होने वास्तव में ऊर्दू के लिये काम किया है  उनको अकादमी के महत्वपूर्ण पद पर स्थान नहीं दिया। जो सही मायनों में ऊर्दू का प्रचार- प्रसार कर सकते थे। जो ऊर्दू को भलि-भांति जानते भी हैं जिन्होंने ऊर्दू को जीया भी है।लेकिन सियासत की अंधी गलियों में अदब की जगह भी अंधेरा है। यहाँ भी खूब सियासत होती है।

            तफ़्ता साहब ने कभी किसी चीज की मांग ही नहीं की, वे तंगहाल को पसंद  करने वाले लोगों में से एक हैं उनकी शख़्शियत किसी के आगे हाथ फैलाने वालों में से नहीं है। वे जिन्दगी भर अपने ऊसूलों को निभाते रहे हैं। आजकल बीमारी व गरीबी में जी रहे हैं लेकिन किसी से कोई सहायता मांगने तक नहीं जाते। यहाँ तक  कि जब अदबी संगम कुरूक्षेत्र की निश्शत होती है तो जब मैंने कंई बार कहा कि गुरू जी मेहर चंद धीमान जो कि उनके पास में ही रहते हैं जब  वे आते हैं तो आप उनके साथ ही  आ जाया करो। लेकिन कभी उनसे इतना कहना नहीं चाहते कि आप मुझे लेते चलना। अगर किसी को लगता है कि मुझे ले जाएंगे या स्वंय ले जाने की हिम्मत है तो ठीक वरना वे किसी को नहीं कहते यह खुद्दारी वे कभी नहीं छोड पाये।          

                             ऊर्दू में प्रकाशित पुस्तकें-1.नुकूशे-नातमाम ( ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 2. हिना की तहरीर-  (    ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 3. एहसास- (देवनागरी)-  (ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह) तथा “फ़ैज़” अहमद “फ़ैज़” की नज़्मों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है।   वे डा. आर.पी.शर्मा “महर्षि” के गुरू भाई हैं। डा. आर.पी. शर्मा “महर्षि” स्व. डा. हरिवंश राय बच्चन के समकालीन कवियों,शायरों में से हैं जो कि आजकल भी ए-1, वरदा,कीर्ति काँलेज के निकट,वीर सावरकर मार्ग,दादर (प.) मुम्बई ( महाराष्ट्र ) में साहित्य की सेवा कर रहे हैं।

                                                                                                आप सब साहित्यअनुरागियों से निवेदन व अपील मैं अपने बूते से कर रहा हूँ कि आप उनके 12- से 15   ऊर्दू  की ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर को, जो कि अप्रकाशित हैं आर्थिक अभाव के कारण, को प्रकाशन के लिये आर्थिक दान करके प्रकाशित करवाने में भूमिका निभा कर साहित्य व समाज की सेवा कर सकते हैं। तथा ईशवरीय,मानवीय तथा समाजिक रूप से दुआऐं  प्राप्त कर सकते हैं।  डा. “तफ़्ता” जी का मोबाइल न.09896850699 है तथा मेरा 09416334841 है। आप सब जागरूक समाजिक लोगों की प्रतीक्षा में।।।।  नाचीज़---                   सूबे सिंह “सुजान”

हरियाणा की राजनीति देश से अलग तरह का अपना अक्खड अंदाज रखती है।

भारत संघ के केन्द्रीय चुनावों की घोषणा हो चुकी है। सभी दलों ने पूरजोर कोशिशें शुरू कर दी हैं। लेकिन हरियाणा की राजनीति की अपनी ही पहचान होती है। यहां के लोग जिस अक्खड व मौजी स्वभाव के होते हैं वैसी ही स्वभाव की इनकी राजनीति भी होती है। हालांकि इस बार चुनाव आयोग की सक्रियता काफी उत्साहजनक यहां भी नज़र आ रही है। सभी दलों के नेताओं को अपने अन्धाधुंध खर्चों से मरहूम रहना पड रहा है, साथ ही वे सोच सकते हैं कि यह उनके लिये भी अच्छा है और देश व जनता के लिये भी बहुत मददगार होगा। यह तथ्य नेताओं को समझना ही चाहिये।

            इधर  हरियाणा में कांग्रेस को बहुत कम लोग पसंद करते आये हैं लेकिन कांग्रेस फिर भी अपना शासन 10 साल से चला पाई है क्योंकि कांग्रेस बहुत चालबाजी करने व जनता को बाँटने में अंग्रेजों के समय से माहिर है। वास्तविकता में कांग्रेस का बहुमत नही है। यंहा पर इनेलो को ही देशी दल के रूप में देखा जाता रहा है। यह देशी दल अपनी पैठ गाँवों के घरों में बनाये रखता है और बहुत ही उबली हल्दी का पक्का रंग चढाये रखता है। लेकिन इस बार यहाँ भी मोदी की लहर है राष्ट्रीयता के लिये, क्योंकि हरियाणा के लोग हमेशा देशहित में भाजपा को ही प्रमुखता से रखते हैं और इसका भी कारण इनेलो ही है। क्योंकि इनेलो अधिकतर भजपा के साथ गठबंधन के साथ आती रही है और दूसरा पक्ष देखें तो कह सकते हैं कि इनेलो , भाजपा से अपना फायदा उठाने में हमेशा सक्षम भी रही है इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये इस बार भाजपा की शीर्ष टीम ने हरियाणा के भाजपा के क्षेत्रीय कार्यकर्ता की सुनी और इनेलो से हमेशा आशातीत समझौता वास्तविकता का रूप नहीं ले सका।

                                  आजकल हर गाँव के नुक्कड,गली,घर में चुनावों की चर्चा जोरों पर है। कि ये टिकट सही है,ये गलत,ये उम्मीदवार जायज,ये नाजायज, ये बाहरी, ये घोटालेबाज,ये साफ छवि का आदि-आदि। इसके साथ ही अंत में एक बात सभी कहते हैं कि इस बार एक मौका तो मोदी को ही देना चाहिये। और इस तरह भजपा का पलडा बिन वोट मांगे ही भारी हो जाता है ।दूसरा पक्ष इस बार के चुनावों में साफ तौर पर सोशल मीडिया का भी साफ झलकता है। नये वोटर सोशल मीडिया के प्रभाव में ही वोट करेंगे। मेरे अनुमान में ये नये वोटर अपने विवेक से ही वोट देंगे और राष्ट्रीयता को प्रमुखता से देखेंगे। यह लेख भी अनुमानों के आधार पर समीक्षा परख है लेकिन जो चर्चायें होती हैं वही वास्तविकता का रूप लेकर सामने आती हैं वही भविष्यवाणियों का आधार बनती है।  

                      सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 27 मार्च 2014

chhod ke pooja khuda ki, poojne tumko lagi…


छोड के पूजा खुदा की,पूजने तुमको लगी....
मैं खुदा की शक्ल में अब देखने तुमको लगी.....सुजान

शनिवार, 15 मार्च 2014

होली पर रसिया- गीत

रसिया      

आज होली मनाओ रे रसिया

रंग में भीग जाओ रे रसिया  

दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया 

दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.

आज होली मनाओ रे रसिया........

मस्तों की रंग - भंग है टोली 

नैनों से मारे रंगों की गोली 

छोड शर्मो हया मेरे हमजोली 

आओ खेलेंगे मिल के हम होली...

दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..

प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..

आज होली मनाओ रे रसिया..

रंग में भीग जाओ रे रसिया.......

डांस करके दिखाओ रे रसिया

लटके-झटके दिखाओ रे रसिया

नैंनों के तीरों से जो पकडा है, 

दूर हटके दिखाओ रे रसिया....

आज होली मनाओ रे रसिया..

रंग में भीग जाओ रे रसिया....

एक पल साथ आओ रे रसिया 

दूरियों को मिटाओ रे रसिया 

दुनियां को भूल जाओ रे रसिया 

रंग ऐसा उडाओ रे रसिया  

आज होली मनाओ रे रसिया  

रंग में भीग जाओ रे रसिया.....

कोई छोटा - बडा नहीं होता

हम सही होते कोई न रोता

हमसफ़र मुफ़्लिसों के बन जाओ,

सबसे पहले खुद को समझाओ 

मुफ़्लिसों को उठाओ रे रसिया..

आ गले से लगाओ रे रसिया...

आज होली मनाओ रे रसिया....

होली पर मुक्तक

रंग से अंग जो बनाये हैं।

आज सब लोग देखने आये हैं।।

पाँव में घुँघरू बजाये हैं,

लोग पागल बडे बनाये हैं।

रंग, पिचकारी, कोरडा मारे,

आज गलियों में हम भगाये हैं।।

विदाई एक जीवन प्रक्रिया

जीवन एक प्रक्रिया है जिस प्रकार सौर परिवार अपनी निश्चित प्रक्रिया में चलता है और उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया मानव जीवन पर प्रभाव डालती है। उसी प्रकार मानव जीवन, परिवार, समाज, रिश्ते-नाते,मधुर सम्बन्ध,क्रोध, प्रसन्नता आदि भाव मानव के आस-पास आते व जाते रहते हैं। जो सम्बन्ध एक समय में अपरिचित होते हैं वही गूढ बन जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता कि कब हम किसी के भाव,विचार,या प्रेम में समाहित हो जाते हैं।

                                                                           मानव का जीवन सदैव सुख व दुख को महसूस करने में ही बीतता है वह सुख के पीछे ही दौडता रहता है और जिस समय उसे दुख मिलता है तो वह उसी समय ठीक से अपने सुख को पहचानता है। जब हम अपने जीवन के अभिन्न अंग से जरा सा भी दूर होते हैं तो पता चलता है कि हम उन लोगों या रिश्तों को कितने हल्के से ले रहे थे फिर हमें असलीयत का पता चलता है।  जिस प्रकार आदमी संसार में आता है।  उसी प्रकार विभाग में आता है। जिस विभाग में हम जिस समय काम करने आये थे, उसी समय यह भी निश्चित हो गया था कि हमें निश्चित समय पर चले भी जाना है। इस जाने की तिथि का हमें उसी समय पता चल जाता है। और हम धीरे-धीरे जीवन यापन करते हुये सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हुये समझ ही नहीं पाते कि कब इतना लम्बा समय गुजर गया। और एकदम से ये एहसास होता है हमें अरे हमने तो अभी कुछ भी नहीं किया है। अभी तो हमें और भी जीना है। मनुष्य की यही लालसा रहती है जीते दम तक। और कंही न कंही यही जीने की लालसा रहनी भी चाहिये। क्योंकि जीने की लालसा हमें जीवन में ठहराव महसूस नहीं होने देती। और हम अबाध गति से जीवन को जीते हुये चले जाते हैं । बस हमें जीवन रूपी गाडी में चलते समय हर स्टेशन पर रूकना जरूर चाहिये, कि कंही कोई यात्री छूट न जाये।  किसी का सामान छूट न जाये। हमारी वजह से कोई दुखी न रह जाये। नौकरी और जीवन एक दूसरे के परस्पर बराबर हैं जैसे व्यक्ति जीवन जीता है उसमें सब कुछ सुख व दुख को महसूस करते हुये जीता है, ठीक उसी प्रकार नौकरी भी है व्यक्ति को नौकरी में वही सारी परेशानियाँ,खुशियाँ, दोस्तों का साथ व दुशमनों का सामना करना पडता है। और पुरूष की अपेक्षा एक महिला को भारतीय समाज में और भी ज्यादा परेशानियों का सामना करके निडरता के साथ नौकरी करनी पडती है।

 

 

      ( विदाई गीत ) ( संगीत धुन व बहर--- तुम्हीं मेरी पूजा तुम्हीं देवता हो……)

1   2    2   1    2    2    1   2    2   1   2    2   

विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो

हमारे लिये तुम सजृा हो रहे हो……..

 

नियम जिन्दगी के अनोखे बडे हैं

वफ़ा भी बहुत और धोखे बडे हैं 

वफ़ा करके तुम बेवफ़ा हो रहे हो

विदा हो रहे हो,विदा हो रहे हो………..

 

बहुत सीख पाये, बहुत लालसा है

मगर क्या करें जिन्दगी हादसा है

हमारे लिये आइना हो रहे हो

विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो………

 

ये जीवन की रस्में निभानी पडेंगी

ये तकलीफ़ें हमको उठनी पडेंगी

खुशी से चलो हम जुदा हो रहे हैं 

विदा हो रहे हैं, विदा हो रहे हो………..

………………………………………………सूबे सिंह सुजान…………………….

सोमवार, 3 मार्च 2014

सम्बन्ध—एक मुक्तक

सम्बन्ध आपके थे मधुरता लिये हुये ।
जीवन में आये आप सरलता लिये हुये।।
जीवन के साथ आँख मिचौली न कीजिये,
जीवन सफल बनाओ निकटता लिये हुये।।   सूबे सिंह सुजान

विदाई के समय

जीवन एक प्रक्रिया है जिस प्रकार सौर परिवार अपनी निश्चित प्रक्रिया में चलता है और उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया मानव जीवन पर प्रभाव डालती है। उसी प्रकार मानव जीवन, परिवार, समाज, रिश्ते-नाते,मधुर सम्बन्ध,क्रोध, प्रसन्नता आदि भाव मानव के आस-पास आते व जाते रहते हैं।