सोमवार, 20 अक्तूबर 2014

अपने शोलों ने जलाया हमको,

………तरही ग़ज़ल…………..

बूढा ही कहता है बेटा हमको

बेटी ही कहती है पापा हमको

मत उछलने दो बडों की इज्जत 

ठीक समझाती है बुढिया हमको

वक़्त ने आज बताया हमको

बेवफ़ाओं ने सताया हमको

जिसने भी प्यार से देखा हमको 

एक दिन उसने ही लूटा हमको

एक उम्मीद हमारी भी थी 

आई लव यू कोई कहता हमको

हम समन्दर में चले जायेंगे

मिल गया है कोई दरिया हमको

आपको हमने महब्बत समझा 

आपने बेवफ़ा समझा हमको 

आग अन्दर की भडकती जाये

“अपने शोलों ने जलाया हमको”

………..सूबे सिंह सुजान…………..

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