गुरुवार, 2 नवंबर 2017

लोग सारे जमा हो गये
इसलिये हादसा हो गये
सच यहाँ बोलते बोलते
लोग मुझसे खफ़ा हो गये  

SUBE SINGH SUJAN

मंगलवार, 12 सितंबर 2017

जबसे रहता हूँ मैं सयानों में ग़ज़ल



ग़ज़ल
जबसे रहता हूँ मैं सयानों में
दर्द होने लगा है कानों में

आँख वालों ने देखना था ये
अंधे राजा हुए हैं कानों में

सारे शब्दों ने अर्थ बदले हैं
क्या भरें आज रिक्त स्थानों में

अब तो दिन रात गर्मी लगती है
आ गये हम नये मक़ानों में

सारी सड़कें भरी भरी रहती
कौन रहता है आशियानों में

आइये आँख खोल लेते हैं
हुस्न देखा कंई जमानों में

खूब क़ानून की समझ आयी
लोग हर रोज जाएं थानों में

वक्त रहते नहीं समझ पाते
ऐसी बीमारी है जवानों में

बेवफ़ा से वफ़ा की है उम्मीद
रहते हो आप किन जमानों में

दर्द सारा उड़ेल देता हूँ
आपके सामने,तरानों में

चल चलें, अब यहाँ से चलते हैं
दम घुटा जाए कारखानों में ।

ऐ परिन्दों जरा तुम्हीं झुकना
आदमी भी है आसमानों में ।

सूबे सिंह सुजान

बेज़ार साहब का शेर

जानता हूँ मैं तैरना,फिर भी ,
तेरी आँखों में डूब जाता हूँ ।
बाल कृष्ण बेज़ार

कुरूक्षेत्र के मशहूर उर्दू शायर श्री बाल कृष्ण बेज़ार साहब 9सितम्बर को दुनिया छोड़ गये


कुरूक्षेत्र :- कुरूक्षेत्र में उर्दू अदब की पैंतीस साल पुरानी संस्था के संस्थापक सदस्यों में से एक व वर्तमान में अदबी संगम कुरूक्षेत्र के प्रधान श्री बाल कृष्ण बेज़ार साहब हमारे बीच नहीं रहे ।
बाल कृष्ण बेज़ार साहब पिछले कुछ दिनों से कैंसर से पीड़ित थे लेकिन उन्होंने कभी साहित्य के प्रति अपनी इच्छाशक्ति कम नहीं होने दी उनको आठ मार्च को ही कैंसर का पता चला तो उसके बाद भी पी जी आई चंडीगढ़ में इलाज करवाते वक्त भी वे अप्रैल में पंचकूला हरियाणा साहित्य अकादमी के कार्यक्रम में पहुँचे और उसके बाद जब हालत बेहद नाजुक हो गई तो हमसे कहने लगे कि मेरा वक्त आ गया है मेरे लिए आखिरी कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाए जिसे अदबी संगम कुरूक्षेत्र ने "जश्ने बेज़ार " के नाम से मई में पंचायत भवन कुरूक्षेत्र में आयोजित किया गया जिसमें दूर दराज के शायरों ने भी भाग लिया वे ताउम्र साहित्य सेवा में तत्लीन रहे बेलौस,बेलाग ज़हनीयत के मालिक व शायरी में हाजिर जवाबी , भारत ही नहीं पाकिस्तान तक के शायरों के  हज़ारों शेरों को याद रखने वाले व मंच संचालन में माहिर तथा बेखौफ व्यक्तित्व के धनी आदरणीय बाल कृष्ण बेज़ार साहब का जन्म 20.04.1941को अमीन गाँव में हुआ था और वे 76 वर्ष की आयु में कल हमारे बीच से विदा हो गये ।
उनका शेर है - "ठोकरें उसने ही खाई हैं जमाने भर की,
एक वो शख़्स जो दुनिया का भला करता था "

अदबी संगम कुरूक्षेत्र की कार्यकारिणी उनके परिवार को श्रद्धांजलि भेंट करता है और उनकी आत्मा की शांति के लिए परमपिता परमात्मा से प्रार्थना करता है ।

अदबी संगम कुरूक्षेत्र 
: कुरूक्षेत्र की सबसे पुरानी साहित्य संस्था अदबी संगम कुरूक्षेत्र के प्रधान श्री बाल कृष्ण बेज़ार हमारे बीच नहीं रहे ।
कुरूक्षेत्र :- कुरूक्षेत्र में उर्दू अदब की पैंतीस साल पुरानी संस्था के
संस्थापक सदस्यों में से एक व वर्तमान में अदबी संगम कुरूक्षेत्र के प्रधान
श्री बाल कृष्ण बेज़ार साहब हमारे बीच नहीं रहे ।
बाल कृष्ण बेज़ार साहब पिछले कुछ दिनों से कैंसर से पीड़ित थे लेकिन उन्होंने
कभी साहित्य के प्रति अपनी इच्छाशक्ति कम नहीं होने दी उनको आठ मार्च को ही
कैंसर का पता चला तो उसके बाद भी पी जी आई चंडीगढ़ में इलाज करवाते वक्त भी वे
अप्रैल में पंचकूला हरियाणा साहित्य अकादमी के कार्यक्रम में पहुँचे और उसके
बाद जब हालत बेहद नाजुक हो गई तो हमसे कहने लगे कि मेरा वक्त आ गया है मेरे
लिए आखिरी कवि सम्मेलन का आयोजन किया जाए जिसे अदबी संगम कुरूक्षेत्र ने
"जश्ने बेज़ार " के नाम से मई में पंचायत भवन कुरूक्षेत्र में आयोजित किया गया
जिसमें दूर दराज के शायरों ने भी भाग लिया वे ताउम्र साहित्य सेवा में तत्लीन
रहे बेलौस,बेलाग ज़हनीयत के मालिक व शायरी में हाजिर जवाबी , भारत ही नहीं
पाकिस्तान तक के शायरों के  हज़ारों शेरों को याद रखने वाले व मंच संचालन में
माहिर तथा बेखौफ व्यक्तित्व के धनी आदरणीय बाल कृष्ण बेज़ार साहब का जन्म
20.04.1941को अमीन गाँव में हुआ था और वे 76 वर्ष की आयु में कल हमारे बीच से
विदा हो गये ।
उनका

शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

आलेख - नाम की भूख

नाम की भूख
   यूँ तो हर व्यक्ति में नाम की भूख होती है लेकिन कुछ अपरिपक्व साहित्यकारों में यह भूख चरम सीमा पर मिलती है पिछले दिनों का किस्सा यूँ घटित हुआ कि कवि सम्मेलन में शामिल कवि जब देश भक्ति पर अपनी वही पुरानी घिसीपिटी या कहिए किसी किसी की पंक्तियों को जोड़कर देश भक्ति कविता कहने लगे तो सुनने वालों को आयोजन तो बहुत अच्छा लगा लेकिन कविताएँ ज़ज्बा नहीं जगा पा रही थी श्रोताओं को मज़ा नहीं आ रहा था तो कवि चिल्ला चिल्ला कर तालियाँ माँग रहे थे और श्रोता कंजूसी करते जा रहे थे ।

खैर इसी कवियों और श्रोताओं की कमकस में कवि सम्मेलन पूर्ण हुआ तो एक पागल कवि ने जिम्मेदारी न होते हुए जब कोई जिम्मेदार अपना काम नहीं कर पा रहा था काफी समय से तो उसने कवि सम्मेलन की रिपोर्ट समाचार पत्र में जारी करने के लिए लिखने लगा
एक तो कवि सम्मेलन निर्धारित समय से देर से समाप्त हो रहा था दूसरा समाचार पत्रों में समाचार लिखने का समय लगभग जा रहा था तो उस पागल ने कवियों के नाम लिखते लिखते एक महान कवि का नाम न लिखने की भूल करते हुए विज्ञप्ति लिख डाली और अपने नाम का क्लेश कर डाला । जब समाचार पत्रों में समाचार आया तो महान कवि को बहुत गुस्सा आया और गुस्से का इजहार बहुत नाटकीय ढंग से जाहिर किया जो क़ाबिले गौर है उन्होंने सभी को कहा कि समाचार बनाने वाले ने साहित्य की बेइज्जती की है अर्थात उनका नाम न आने से साहित्य की बेइज्जती हो गई यदि उनका नाम आ गया होता तो वे फिर कुछ न देखते हुए पागल कवि को महान कहते हुए साहित्य का पुरोधा की उपाधि दे देते ।
साहित्यकारों में नाम की भूख चरम सीमा पर मिलती है इस वाक्या से पता चलता है कि सब भूखों में सबसे बड़ी भूख नाम की भूख है । 

शेर - जो पीछे से वार करता है

जो भी पीछे से वार करता है।
दुश्मनी बेशुमार करता है।।।

जिसकी अपनी नहीं कोई इज्जत,
औरों की तार-तार करता है।।  सुजान

बुधवार, 2 अगस्त 2017

एक शेर

वो मुझे पागल कहेंगें और खुश हो जाएंगें
और हम पागल बनेंगें और खुश हो जाएंगें

कोशिशें मैं भी करूँगा खुद बदलने की मगर
लोग कम से कम हंसेंगें और खुश हो जाएंगें

उनके खातिर मसख़रा बनकर गली में जाउंगा
फिर मुझे बच्चे पढ़ेंगें और खुश हो जाएंगें



सुजान

शेर

हम समझ जायें जहाँ को, ये जरूरी तो नहीं
आज तक हम पास बैठों को समझ पाये नहीं ।

सुजान

रविवार, 30 जुलाई 2017

कविता -बेटे की चाह

वो लडकियों से नफ़रत तो नहीं करते

लेकिन बेटे से प्यार तो करते हैं

वो ऐसे माँ-बाप हैं, जो

अपनी शादी के लिये

तो सुन्दर लडकी की तलाश में निकलते हैं

लेकिन अपने घर में लडकी नहीं देख सकते

बेटे की चाह में वे….

तांत्रिकों तक जा पहुंचते हैं

और अपनी बुद्दि को ठेके पर दे देते हैं

और फिर शुरू करते हैं

दूसरों के बेटों का क़त्लेआम

और फिर भी बेटा नहीं पाते

लेकिन जब कोई दिखने में बेवकूफ

और सच में सही तांत्रिक मिलता है

जो उनकी रग को पहचान कर

करता है डाक्टरी इलाज……..,…………

और उस पुरूष को पहचान कर

उसकी स्त्री से करता है सम्बन्ध

और कर देता है उसे गर्भवती

मिलता है उनको पुत्ररत्न

वे खुश हो जाते हैं

तांत्रिक की विधा पर

न्योछवर करते हैं और भी बहुत कुछ

लेकिन वो स्त्री जानती है

कि कैसे प्राप्त हुआ है पुत्र

और पहचानती है पुरूष की मानसिकता को

नहीं बोलती कभी भी बडा सच

कैसा उबड-खाबड और समुद्र सा है

उसका सीना…..

कौन जाने क्या –क्या होता है

उसके सीने के पार भी…………….

…….सूबे सिंह सुजान…..

एक शेर

क्या खूब ये अँधेरे उजालों से कह गये
हम बिन तुम्हारी बोलिए इज्जत कहाँ कहाँ?


सुजान

मंगलवार, 10 जनवरी 2017

ग़ज़ल

क्या आपके दिल में है,बता क्यों नहीं देते ?
पर्दे को निगाहों से उठा क्यों नहीं देते ?

यह  किसलिये अहसान के नीचे है दबाया?
मुझको मेरी कमियों की सज़ा क्यों नहीं देते ?

कुछ गलतियाँ करवाती हैं मज़बूरियाँ सबसे
तुम तो  हो बड़े गलती भुला क्यों नहीं देते?

हालाँकि सराबोर मुहब्बत से हूँ लेकिन
मौसम ये बहारों के मज़ा क्यों नहीं देते?
यह कौन भला  शख्स मेरे पीछे पड़ा है
सब पूछते हैं मुझसे,बता क्यों नहीं देते ?

जिस शख़्स को आँखों में मुहब्बत से छुपाया
उस शख्स को दुनिया से मिला क्यों नहीं देते ?

यह  दर्द महब्बत का मुहब्बत के लिए है
इस दर्द को तुम और बढ़ा क्यों नहीं देते ?

ए सुजान कभी सामने रोना न किसी के
सीने में हुआ जख़्म दिखा क्यों नहीं देते ?

    सूबे सिंह "सुजान",कुरूक्षेत्र   हरियाणा