शनिवार, 28 दिसंबर 2019

भारतीय संस्कृति के गुण

<इस देश में मानव के हर प्रकार के व्यवहार को संस्कृति, त्योहार में ढाला गया है इसका अर्थ यह है कि मानव का यह व्यवहार प्रारंभ से ऐसा ही है और ऐसा ही रहेगा , हाँ केवल वस्तुएँ,तकनीक बदलती हैं । रावण,राम, सब हमारे चरित्र हैं यह त्योहार हमें प्रतिबिंबित करते हैं हम स्वयं को विद्वान प्रदर्शित करते हुए हर पुरातन कथा, ग्रंथ आदि में कमियाँ निकालते हैं न कि हम विद्वान ही होते हैं दरअसल हम कंई बार वास्तविकता को पूर्णतः समझ पाने में असमर्थ होते हैं सबकी बुद्धिलब्धि अलग अलग स्तर पर रहती है यह प्राकृतिक ही है हम कोई इंजेक्शन देकर किसी का बुद्धि स्तर नहीं बढ़ा सकते केवल शिक्षा ही एक जरिया है और यह बौद्धिक है न कि तकनीकी । मनुष्य प्रकृति से ही हर ज्ञान प्राप्त करता रहा है और करता रहेगा वास्तव में मनुष्य का अपना निर्माण कुछ नहीं है सब कुछ प्रकृति से ग्रहण करता है । सूबे सिंह सुजान dir="ltr" style="text-align: left;" trbidi="on">

शनिवार, 21 दिसंबर 2019

मौत डरती है ।

माँ मौत को बुलाती है सारे देवी व देवताओं को पुकारती है कहती है मुझे मारो मुझे ले जाओ लेकिन माँ के देवी व देवता पत्थर में रहते थे उनके टुकड़े करके लोग एक दूसरों को मार रहे थे मानवता को चोट लग रही थी मानवता मर रही थी मानवता को मौत आ गई लेकिन माँ के हर रोज बुलाने पर भी मौत नहीं आती माँ अपने जीवन की पिछली सब घटनाओं को याद करती है कभी रोती है कभी सख्त तेवर में देवताओं को कोसती है । दर्द जिंदा है दवाइयाँ बेअसर हैं दर्द के हर प्रकार माँ देख चुकी है माँ के दर्द के अनुभवों को कोई लेना नहीं चाहता लेकिन जब दर्द आएगा तो सबको लेना ही पड़ता है । जीवन में कोई कितना भी सख्त, मजबूत रहा हो लेकिन सब किसी न किसी समय बहुत डरते हैं कोई भी सबके साथ एक सा व्यवहार नहीं कर पाता मौत सबसे क्रूर होने के बावजूद भी डरती है मैंने देखा है माँ से,मौत डरती है माँ से,मौत डरती है ।। सूबे सिंह सुजान

मंगलवार, 17 दिसंबर 2019

डॉ सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी साहब का लघु जीवन व साहित्यिक चरित्र चित्रण

डॉ सत्य प्रकाश तफ़्ता ज़ारी साहब जी दिनांक 15/12/2019 को सुबह 7:30 इंतकाल हो गया है उनका जन्म 4 नवम्बर 1933 को रादौर, जिला यमुनानगर में हुआ था उन्होंने वे एम एस सी, पी एच डी थे प्राणी विज्ञान विभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र में प्रोफेसर,विभागाध्यक्ष एवं डीन साइंस फैक्लटि के पद से ग़ नवम्बर 1993 को सेवानिवृत्त हुए । विज्ञान के क्षेत्र में 180 से अधिक शोध पत्र, विश्व की शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित व उनके मार्गदर्शन में 14 छात्र व छात्राओं ने पी एच डी की । वे तीन वर्ष तक न्यूरो साइंस विभाग यरकीज़ रीजनल रिसर्च सेंटर, एमरी विश्वविद्यालय, अटलांटा अमेरिका में शोध करके आये हैं साहित्यिक क्षेत्र में उर्दू में पुस्तकें नुक़ूशे नातमाम, हिना की तहरीर, हिन्दी में एहसास, दर्द का रिश्ता अनुवाद NATURE AND INTELLIGENCE अंग्रेजी से हिन्दी अनुवाद व चीन की विचारक पुस्तक TOA TEH KING पर वैचारिक निबंध लिखे । उन्होंने उर्दू भाषा में मुख्यतः ग़ज़लें, क़ितआत, ऱूबाईयात, तज़ामीन, एवं तशातीर व माहिया लिखे तथा उपरोक्त पुस्तकों के अलावा उनका लगभग दस पुस्तकों के योग्य लेखन अप्रकाशित है । वे उर्दू अ़रूज के माहिरे उस्ताद रहे हैं वे उर्वेउर्दू अ़रूज के महान उस्ताद डॉ ओमप्रकाश ज़ार अल्लामी साहब के जानशीन रहे हैं । उर्दू,फ़ारसी,अरबी के उस्ताद रहे साथ ही जियोलॉजी के प्रोफेसर व कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरूक्षेत्र में जियोलॉजी विभाग को स्थापित करने वाले व डीन रहे हैं और दो वर्षों के लिए अमेरिका के विश्वविद्यालय में भी अध्यापन किया है अंग्रेजी,हिन्दी,संस्कृत के भी विद्वान व भाषाओं पर पूर्ण अधिकार रखते थे । वहीं वे मनुष्य जीवन में सरल साधा इनसान रहे हैं कभी ईमान नहीं बेचा ज़िन्दगी फ़ाक़ाकशी में गुजारी है बिना पेंशन बुढ़ापे में और बेटियों से कभी कुछ न लेने की जिद रखी लेकिन बेटियों के अलावा कुछ था भी नहीं उम्र के बीमार पड़ाव में बेटियों ने वो सेवा की । उनका साहित्य दर्शन का साहित्य है जिसमें प्रकृति,मनुष्य,पशु पक्षी,समाज,आसमान व जीव प्रक्रिया पर गहन चिंतन है । उनकी कुछ ग़ज़लें व शेर प्रस्तुत कर रहा हूँ । एक खुशबू हूँ ज़माने में बिखर जाऊँगा सबको फरहत से नवाजूँगा जिधर जाऊँगा । मुझे तक़्दीर का शिकवा नहीं है कि मन चाहा कभी होता नहीं है ये दुनिया है तिरी दानिश से बाला (ऊपर) इसे तूने अभी समझा नहीं है न हो मग़रूर तू खुद पर, कि तूने जिसे जाना है पहचाना नहीं है यही सबसे बड़ा है मेरा दावा कि मेरा एक भी दावा नहीं है अनोखे काम कर जाती है च्यूंटी कोई संसार में छोटा नहीं है बशर की शान है पैसे के दम से बशर क्या है अगर पैसा नहीं है सुहाने होते हैं बस दूर के ढ़ोल नज़र आता है जो, वैसा नहीं है हमेशा ग़ैर के कन्धों पे चढ़कर कोई ऊँचा कभी होता नहीं है बहुत दुश्वार है खुद को समझना कि खुद को "तफ़्ता" भी समझा नहीं है । डॉ एस पी तफ़्ता ज़ारी (जानशीन डॉ "ज़ार " अ़ल्लामी)