रविवार, 27 फ़रवरी 2022

सच के हिमायती को तिरस्कार का घूंट पिलाया जाता है, पुरस्कार का नहीं।

जब कंई बार दोस्तों के साथ कार में सफर कर रहा होता हूँ तो बातचीत बंद होने पर मुझे अचानक नींद आ जाती है । इस पर दोस्त मजाक भी कर लेते हैं यह उनका नजरिया व सोच को या केवल मजाक को ध्यान में रखकर कहते होंगे । लेकिन जब मैं अपना जवाब दाखिल करता हूँ (रात भर माता को हर एक घंटे बाद देखना फिर सोने की कोशिश करना,फिर माँ की बार बार कराहट की आवाजें फिर करवट देना,तो नींद तो बहुत आती होगी न मुझे) तो वे मेरे जवाब को शायद अनसुना करते हैं या वे हकीकत जानना नहीं चाहते या ऐसी दुरूह हकीकत को अनसुना करते हैं और पलटकर एक भी जवाब नहीं होता मजाक के सिवाए और उनके पास के सारे संवेदना के शब्द भी मर जाते हैं जैसे वे संवेदना रहित हों । दूसरा हिस्सा मेरा दिन भर ऐसे काम करने का रहा होता है जिसमें कार्यस्थल पर भी दूसरों के हिस्से का काम अनुरोध पर मना न कर सकना, यूनियन के वे काम जो मुफ्त में उन लोगों के लिए करना जो लोग धन संपदा से संपन्न होते हैं संगठन के वे काम जिनको करने में केवल अपना समय,धन व शक्ति लगानी होती है प्रत्युतर में उन्हीं लोगों से उपहास पाना होता है जिनके लिए वे सारे काम कर लेते हैं यह उन लोगों की तुच्छ मानसिकता का पैमाना होता है लेकिन यह पैमाना जानते कितने लोग हैं ? सच के हिमायती,समाज के हिमायतियों को तिरस्कार का घूंट पिलाया जाता है न कि पुरस्कार का । https://youtu.be/ob2jtAXCGaE Mehar Chand Dhiman and virender rathor YouTube channel live

शुक्रवार, 25 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल- हर बात तुम्हारी मुझको याद रही बरसों

ग़ज़ल हर बात तुम्हारी,मुझको याद रही बरसों। चुपचाप बही,इस दिल में ग़म की नदी बरसों।। मैं याद तुम्हें करने में,भूल गया ख़ुद को, जीवन की खुशी मेरी, गुमनाम हुई बरसों। इस मोड़ खड़ा होकर,हर रोज़ निहारा है, इस गांव के स्टेशन पर, गाड़ी न रुकी बरसों। इक आह! महब्बत ने,बारूद बनाया है, अब युद्ध बनी तन्हाई,आग दबी बरसों। हर शब्द में, अपने दिल को, खोलने की सोची, दिल खोल नहीं पाया, ग़ज़लें तो लिखी बरसों। मैंने ये उदासी, तन्हाई में पकाई है, अब फूल खिलेंगे,दी आंसू ने नमी बरसों। सूबे सिंह "सुजान" कुरूक्षेत्र

शुक्रवार, 18 फ़रवरी 2022

यह मनुष्य का जीवन

 

हमारे मन में कुछ जगह,शहर, गांव पक जाते हैं।

वैसे जगह तो सब वैसी ही होती हैं..

ऐसे ही कुछ लोग हमारे मन में पक जाते हैं और हमें लगता है कि अब ये हमारे किसी काम के नहीं, इसलिए उनसे संपर्क तोड़ दिया जाता है।यह जीवन मनुष्य का है।

मंगलवार, 15 फ़रवरी 2022

गहरे लोग

 ह्रदय की गहराई कौन नाप सकता है? यह तो कोई कोई समझ सकता है उसके जैसा या उससे भी ज्यादा गहरा कोई समझ सकता है।

हर जीव जंतु, पेड़ पौधे को आख़िर पकना होता है और उसके बाद बीज बनना होता है।

लेकिन ऐसे भी हैं कि बहुत कुछ पेड़ पौधों,जीव जंतुओं को फल नहीं आ पाते हैं और कुछ ऐसे भी होते हैं जिनको फल आ गए हैं तो फिर बीज नहीं बनते।

यह सबका अलग अलग भाग्य है बिल्कुल उसी प्रकार जिस तरह हम सबकी शक्लें अलग अलग हैं व गुण भी अलग-अलग हैं। इसी तरह मनुष्यों में शारीरिक तौर पर कुछ लोग पतले, कुछ मोटे, कुछ बौने, लम्बे,ढील ढौल से अलग अलग दिखाई देते हैं तो कुछ लोग बुद्धि स्तर पर भी अलग अलग विचारों के होते हैं तो कुछ लोग मानसिक स्तर पर भी अलग-अलग स्तरों व भावनाओं से अद्वितीय होते हैं।


गहराई के भी अपने अपने प्रकार होते हैं कटोरी या गिलास या घड़ा इनकी अपनी अपनी व अलग अलग काम आने वाली गहराई होती है जो कि अपने स्तर पर पूर्ण रूप से सफल है,काम आने वाली है अर्थात सार्थक है।

वहीं आप जोहड़, तालाब, सरोवर, दरिया,नहर, नदी और समुद्र की गहराईयों को भी अपने अपने स्तर पर अद्भुत व सफल काम आने वाली पाओगे।

इन्हीं सब गहराइयों का आप दूसरे सिरे से देखें तो यह गहराइयां अपने आप में पूर्ण हैं परन्तु सब व्यक्तियों के लिए एक जैसी काम नहीं आती,न हर पशु या पक्षी के लिए समानता से एक जैसी काम आ सकती हैं। परंतु किसी भी गहराई में लेश मात्र भी कमी नहीं है।

क्या आप ऐसा ही व्यक्तियों के बारे में सोच सकते हैं? बिल्कुल ऐसे ही प्रकार व चरित्र व्यक्तियों में देखने को मिलेंगे।इस सब के बावजूद प्रकृति ने कहीं भी कोई अपराध नहीं किया है इस भाव के समीप आने के लिए मनुष्य को बहुत गहरा होना होता है जो जितना गहरा हो जाता है वह उतना इस भाव को समझ पाता है। प्रकृति ने किसी भी जीव जंतु पेड़ पौधे में कहीं भी पक्ष या विपक्ष नहीं किया है।

अपितु यह सब जीवन को संचालित करने के स्तर निर्माण किए गए हैं और इन्ही स्तरों से जीवन सार्थक संचालित हो सकता है और हुआ है वरना इनके बदलाव से यह जीवन संभव नहीं है। इसलिए एक भजन में कहा गया है कि ईश्वर जो कुछ भी करता है अच्छा ही करता है।यह प्रकृति का नियम है, निस्वार्थ भाव का निर्णय है।

जीवन हमारे द्वारा संचालित हो रहा है लेकिन हमसे ही संचालित नहीं होता है जीवन स्वयं संचालित है जीवन के संचालन में अनेक शक्तियों का प्रयोग हो रहा है जो हमसे संबंधित दिखाई न देकर भी हमें संचालित कर रही हैं सूर्य, चंद्र,पवन,आकाश, पृथ्वी आदि तो समक्ष हैं परंतु असीमित ज्ञात,अज्ञात असंख्य शक्तियां जीवन को गतिमान बनाए हुए हैं। इन्हीं असीमित ज्ञात अज्ञात शक्तियों को जानने में मनुष्य लगा है और इनको जानने से हमें ज्ञान होता है। यही शक्तियां जानना, पहचानना ही ज्ञान है।

इसी प्रकार प्रेम है। प्रेम के अंदर इसी प्रकार संपूर्ण सृष्टि का श्रृंगार, वैभव,कष्ट,सुख, अपरिचित,परिचित, अपरिमित, असीमित आनंद का अनुभव होता है। यही प्रेम, मनुष्य की गहराई की मापन प्रणाली है।

प्रेम के माध्यम से जीवन को असीमित किया जा सकता है।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 10 फ़रवरी 2022

ग़ज़ल- अब कहानी ख़बर सी लगती है।

 अब कहानी, ख़बर सी लगती है

बच्चों को एक डर सी लगती है।

यूँ खुशी भी मिली है हमको ,मगर,

दर्द की भी नहर सी लगती है।

काम दर काम गर, करेंगे हम,

ज़िन्दगी फिर सफ़र सी लगती है।

क्या नया दौर आ गया यारो,

बस्ती बस्ती नगर सी लगती है।

उनमें भी भावनाएं बाक़ी हैं,

झोंपड़ी जिसको घर सी लगती है।

जिसका दीवाना मैं रहा बरसों,

वो मुझे बेख़बर सी लगती है।

बद्दुआ,जितनी उसको देता हूँ,

उसको मेरी उमर सी लगती है।


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 9 फ़रवरी 2022

शहर के लोग

 नगर में संभ्रांत लोगों की जगह सेक्टर कहलाते हैं। सुबह-सुबह उन्हीं सड़कों से गुज़र रहा था लगभग हर सड़क पर घरों से बाहर सफाई करने के बाद पानी को सड़क पर फ़ैला दिया था और कुछ जगह तो लगातार बहाया गया था।


आने जाने वाली हर गाड़ी से पानी के छींटें पैदल यात्रियों, आसपास के साधनों और घरों पर पड़ते थे।

ऐसी स्थिति में हर सड़क भी बहुत जल्दी टूट जाती है। नगर के ऐसे इलाके में हर व्यक्ति स्वयं को पढ़ा लिखा तो समझता है लेकिन समझ कितनी है यह व्यवहार से स्पष्ट होता है व्यवहार केवल वही नहीं होता जो हम आपस में बातचीत या लेन देन को करते हैं, वरन् व्यवहार हर पेड़ पौधों से,पशु पक्षी,सड़कों, गलियों और देश, राष्ट्र की सम्पत्ति, सुन्दरता से भी सरोकार रखता है।


सूबे सिंह सुजान कुरूक्षेत्र हरियाणा

शनिवार, 5 फ़रवरी 2022

मानव इतिहास यादाश्त का गठजोड़ है।

 यादाश्त एक युद्ध की तैयारी होती है।


मनुष्य हर तरह की यादों को याद रखने से ही हर काम में आगे बढ़ता है।

मानव इतिहास या किसी भी विषय का इतिहास यादाश्त का गठजोड़ मात्र है और यह यादों का गठजोड़ ही हमें जीवन की निरंतरता देता है, जीवन ही नहीं बल्कि भौतिक विज्ञान, सुविधाएं, साहित्य, कलाओं, संस्कृति सब तरह की निरंतरता यादें ही देती हैं।

जो कठोर यादें होती हैं वह याद रखना और भी ज्यादा ज़रूरी होती हैं लेकिन मानव स्वभाव इस बारे उलट काम करता है वह बुरी या कठोर यादों को जल्दी भूलने की कोशिश करता है लेकिन कभी भूला भी नहीं पाता और भूलने की बेवजह कोशिशों में समय बर्बाद करता रहता है।

जबकि बुरी व कठोर यादें हमारे ज्यादा काम आती हैं वह हमें नया सीखने को तैयार करती हैं वह हमें किसी भी काम के होने से पहले आगाह करती हैं कि आने वाले समय में पुनः ऐसी कठोरता आने से पहले आप उसको समय पर सटीक जवाब दे सकते हैं या आप उससे सामना करने को तैयार रह सकते हैं और अपने लिए सहायक अवसर तलाश कर सकते हैं।


युद्ध श्रेत्र में सैनिक इसी प्रकार काम करते हैं वह अपनी की हुई गलतियों को याद रखते हैं और अपनी क्षमताओं को विकसित करते हैं।

हर क्षेत्र में इसी प्रकार उन्नति होती आई है।

जीवन को प्रेरणा कटु यादों से मिलती है जिस व्यक्ति ने अपने जीवन को जितना ज्यादा कठोरता से जीया है वह उतना ज्यादा कठिनाइयों का सामना कर पाया है और अन्य मानवों के लिए एक रास्ता तैयार करके गया है जिससे मनुष्य को सीखने का अवसर मिला है।

लेकिन अपने जीवन में हर मनुष्य को हर काम या व्यवहार स्वयं सीखना व करना पड़ता है परन्तु आसानी यही होती है कि पहले से मनुष्यों द्वारा किए गए कार्यों का लिखित, विकसित कार्य मौजूद होता है जिससे वह जल्दी सीख पाता है और उस पहले किए गए कार्यों में और अपने द्वारा किए गए कार्यों को जोड़ देता है।

यही मानवता का इतिहास है।

यादाश्त मनुष्य का मनौवैज्ञानिक विषय है और इस विषय पर मनुष्य कम काम करता है जबकि अन्य विज्ञानों पर ज्यादा काम करता रहा है

और सच्चाई यह है कि हर काम व विज्ञान को सुविधाजनक बनाने के लिए या बेहतर करने के लिए मनौवैज्ञानिक रूप से संवेदनशील होना जरूरी है यही मनौवैज्ञानिक विषय हर विज्ञान या कार्य के पीछे काम करता है।

मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

चोर (कहानी)

कहानी का शीर्षक है। - चोर। 

 एक बार एक चोर खेत से आलू चोरी करने गया। जब वह खेत से आलू चुरा रहा था।

 तो उसे मन में बार-बार किसी के आ जाने या पकड़े जाने का डर सता रहा था। वह अपनी मानसिकता को स्थिर नहीं कर पा रहा था। उसे हर पल भय था। उसे यह अहसास हो रहा था कि यह भयातुर भावना है जिसमें वह जो काम ठीक से कर सकता था वह काम भी हड़बड़ी में गलत कर रहा है।


दूसरी बार वह चोर एक नहर से सरकारी लकड़ी चुराने गया ।जहां उसको डर का एहसास कम हो रहा था और जिस समय वह लकड़ी चुरा रहा था। उस समय उसके पास दो चार आदमी भी आए लेकिन वह उतना नहीं डरा, उन लोगों से उसने ठीक से बात की और उन्होंने भी उसे कोई ज्यादा नहीं डराया, न अपराधी माना ।क्योंकि इस बार चोरी सरकारी संपत्ति की थी। उस सरकारी संपत्ति की चोरी को वो लोग भी जायज समझते थे । कि क्या फर्क पड़ता है यह हमारी संपत्ति थोड़ी है यह तो सरकारी है यह मानसिकता का अंतर था। 

इन दोनों चोरी करने के बाद जब वह चोर दोनों चोरियों के समय की मानसिकता पर घोर करने लगा तो उसे अहसास हुआ कि यह सामाजिक मानसिकता है जो केवल मेरे अन्दर नहीं है बल्कि सारे समाज के अंदर व्याप्त है और इससे हम देश की संपत्ति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं जबकि इसी संपत्ति से हमारे समाज के सार्वजनिक कार्य ठीक होते हैं और इसके प्रति सारा समाज लूटने की भावना रखता है इस प्रकार ही तो हमारे काम अधूरे हैं और लोग आपस में स्वयं को ही लूट रहे हैं।