गुरुवार, 19 मार्च 2020

भारतीय संस्कृति के तत्व व मानव कल्याण की उपयोगिता

भारतीय संस्कृति के मूल तत्वों में कुछ तत्व बहुत गहन चिंतन का विषय आजकल बन रहे हैं यह नयी महामारी करोना वॉयरस के संदर्भ में देखा जा सकता है । 1 झूठा न खाना व पीना -- हमारी संस्कृति में बुजुर्गों को कहते व करते देखा गया है कि कभी किसी दूसरे का झूठा न खायें व पीयें । इसके तात्पर्य यही रहे थे कि हमें दूसरे व्यक्ति से संक्रमण न फैले । यही बात विज्ञान कहता है । 2 नमस्ते व आदर सत्कार का तरीका -- भारतीय समाज व संस्कृति में अतिथि व आगंतुक का स्वागत दोनों हाथ जोड़कर नमस्ते करते हुए किया जाता रहा है । जिसका तात्पर्य यह रहा है कि सामने वाले का पूर्ण आदर किया जा रहा है अपने शरीर के दोनों हाथों को जोड़कर व अमुक व्यक्ति से संक्रमण न फैले इस तथ्य को ध्यान में रखकर हाथ भी न मिलाना पड़े । 3 राम राम कह कर बोलना प्रारंभ करना -- अपरिचित व्यक्ति से राम राम कह कर बोलना प्रारंभ करते थे जिससे सामने वाले अपरिचित व्यक्ति का प्रत्युतर मिलता था व उसके बोलने से ही उसकी भाषा,शैक्षणिक स्तर एवं हावभाव का आभास हो जाता था जिसे परमात्मा से जोड़ दिया था । निष्कर्ष -:- भारतीय संस्कृति के आचार व्यवहार के सिद्धांत मनुष्य की भलाई पर आधारित हैं वे मनुष्य जीवन की पद्धति को विज्ञान की कसौटी पर खरा उतारते हुए जीवन में प्रयुक्त करने को बल देती है एवं प्रत्येक पक्ष विज्ञान पर निर्भर है व उच्च मनुष्यता के गुणों को ग्रहण करके संप्रेषित करती है ।

मंगलवार, 17 मार्च 2020

करोना नई बात नहीं है यह मनुष्य के अप्राकृतिक होने का उदाहरण है ।

मनुष्य प्रकृति का अभिन्न अंग है आप ऐसे समझें कि जैसे कोई भी जीव,पेड़ -पौधा या तिनका मात्र यहाँ पृथ्वी पर उपस्थित है वैसे ही मनुष्य भी उपस्थित है । मनुष्य की कठिनाई यहाँ से शुरू होती है जब मनुष्य स्वयं को पृथ्वी पर उपस्थित अन्य वस्तुओं से भिन्न व विशेष समझने लगता है यही वह स्थिति है जिसे अहंकार भी कहा गया है मनुष्य जीवन के प्रारब्ध से बहुत विशाल शरीर का मालिक रहा है और शरीर को स्वस्थ रखने के लिए वैसे ही इसका प्रयोग करता रहा है जैसे कोई भी पशु या पक्षी अपने शरीर का इस्तेमाल करते हुए आप देखते होंगे । लेकिन आजकल जबसे मनुष्य ने पशुओं का अपने बाजारीकरण के लिए प्रयोग करना शुरू किया है तबसे मनुष्य के कब्जे में पशुओं की दशा भी मनुष्यों जैसी हो गई है । परंतु वर्तमान समय में मनुष्य शरीर का प्रयोग करना बंद कर चुका है और इसकी अपेक्षा बीमारियों से बचने के लिए दवाईयों का बेतहाशा प्रयोग मजबूरी वश करता है मनुष्य अपने प्राकृतिक कार्यों को न करके अप्राकृतिक, अमानवीय कार्यों को कर रहा है जिसके परिणामस्वरूप मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिए प्रकृति से सहयोग कम मिल रहा है क्योंकि मनुष्य प्रकृति से बाहर जा रहा है अलग थलग हो रहा है प्रकृति से आत्मसात ही जीवन है वह पृथ्वी से घुल मिल कर ही सजग रह सकता है वरना खंडित हो जाएगा । मनुष्य की आयु, आकार, मन मस्तिष्क, स्मरण शक्ति, व खान पान सब कम हो रहा है । यह सब मनुष्य की प्रकृति में बदलाव के कारण ही संभव हो रहा है । करोना जैसी महामारी मनुष्य की अप्राकृतिक छेड़छाड़ का परिणाम ही तो है ।मनुष्य को करोना पर जीत पाने के लिए सजग होकर प्रकृति से सहजता बनाकर उसका अंग बनकर ही रहना होगा ।