शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

है फूल की किस्मत तो दो दिन में बिखर जाना…(ग़ज़ल)

है फूल की किस्मत तो दो दिन में बिखर जाना।

लेकिन  उसे  आता  है  हंसते  हुऐ  मर  जाना….

 

हर रोज़ अंधेरा  है  हर  रोज़  उजाला  है,

डरना न कभी, मुश्किल राहों से गुजर जाना….

 

आदत  ये  सियासतदानों   की, हद  करती है,

चूहों की तरह अपना ही देश कुतर जाना…..

 

बादल को मुहब्बत से धरती यूँ बुलाती है,

छम-छम से बरसना और, सीने में उतर जाना…..

 

दीवाने  हमेशा  सीना  ठोंक के  कहते  हैं,

रोने से तो अच्छा है हंसते हुऐ मर जाना…..

……………………………………………………………सूबे सिंह “सुजान”

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