है फूल की किस्मत तो दो दिन में बिखर जाना।
लेकिन उसे आता है हंसते हुऐ मर जाना….
हर रोज़ अंधेरा है हर रोज़ उजाला है,
डरना न कभी, मुश्किल राहों से गुजर जाना….
आदत ये सियासतदानों की, हद करती है,
चूहों की तरह अपना ही देश कुतर जाना…..
बादल को मुहब्बत से धरती यूँ बुलाती है,
छम-छम से बरसना और, सीने में उतर जाना…..
दीवाने हमेशा सीना ठोंक के कहते हैं,
रोने से तो अच्छा है हंसते हुऐ मर जाना…..
……………………………………………………………सूबे सिंह “सुजान”
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