गुरुवार, 23 मई 2013

एक चिन्ता नहीं गई मन से……

एक चिन्ता नहीं गई मन से 
कब मिटेंगे ये कष्ट जीवन से।।

मैं समय ने बदल दिया कितना,
पूछता हूँ ये प्रश्न दर्पण से....।

वार्तालाप   बस  नयन  करते,  
प्रेम होता नहीं कभी तन से ।

आज मानव की रूचियाँ बदलीं,
प्रेम करने लगे हैं सम्पन से ।

तार्किक तथ्य है यही जग में,
प्रेम मिलता नहीं कभी धन से।

प्रेम बन्धन नही,सभी कहते,
प्रेम मिलता है,किन्तु बन्धन से।
ऐसे  प्रेमी,  "सुजान"  होते  हैं 
जो जिधर देखें कर दें पावन से।
                                       सूबे सिंह "सुजान"

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