मंगलवार, 20 मार्च 2018

अपनी नादानी पर

अपनी नादानी पे नादान अड़ा रहता है
सिर्फ़ अपनी ही नज़र में वो बड़ा रहता है ।

क्या इरादा है समझ खुद नहीं पाता अक्सर,
इसलिए दूर, अकेला ही खड़ा रहता है ।
   सूबे सिंह सुजान

रविवार, 18 मार्च 2018

ग़ज़ल,कविता को मुकाबला करना होगा बच्चों में बढ़ती नशे,व्यसनों के बढ़ते दुराचारों के साथ । अदबी संगम कुरूक्षेत्र की काव्य गोष्ठी में उपस्थित शायर कवि ।

आज दिनांक 18 मार्च 2018को नवसवंत्सर वर्ष के शुभ अवसर पर अदबी संगम कुरूक्षेत्र की मासिक काव्य गोष्ठी डॉ बृजेश कठिल जी की मेजबानी में और प्रो महेन्द्र पाल माथुर जी की अध्यक्षता में हुई ।

काव्य गोष्ठी में कवियों ने नव वर्ष पर व सामयिक मुद्दों पर रचनाओं का पाठ किया ।
जिनमें सर्वप्रथम करनैल खेड़ी ने कहा ये ग़ज़लें,ये नज़्में मेरा तजुर्बा हैं,ये मैंने कोई सपनों में नहीं देखी ।

डॉ शकुंतला शर्मा ने हरियाणवी गीत में हरियाणवी संस्कृति का कुछ यूँ बयान किया  ध्यान लगा कै सुणियो रै, सै बात या ध्यान लगाणे की ।
देसी खाणा,देसी बाणा  , मैं छोरी सूँ हरियाणे की ।

रत्न चंद सरदाना जी ने वर्तमान व्यस्त व मशीनी जीवन पर तंज कसते हुए एक पिता के दर्द को बयान करते हुए कहा - ख़प गई जवानियाँ बच्चों के नाम पर ।
अँधेरे में चल रहे लाठियों को थाम कर ।।

पंजाबी कवि दीदार सिंह कीरती ने वर्तमान संदर्भों पर अपनी कविता में करारा व्यंग्य कसते हुए कहा - डंगर बहुत आवारा फिरदे,जिधर देखो गाँ ही गाँ,  और सरकारी लोग गाँ नहीं कहते,कहते भाषण विच माँ ही माँ ।

कस्तूरी लाल शाद जी ने कहा -अपनों का ही भरोसा देता रहा है धोखा, सीमा का हर प्रहरी लगता ठगा ठगा है ।

ओम प्रकाश राही जी ने देश भक्ति पर रचना पढ़ते हुए गीत गाया - राही कफ़न तिरंगे वाला,चूम चूम कर गाती माँ ।
अगर और इक बेटा होता वतन पे उसे लुटाती माँ ।

संजय कुमार मित्तल ने कविता में कहा -

हे भारत माँ नमस्ते,नमस्ते नमस्ते
और मैं तुमको क्या दूँ,देने को है ही क्या मेरे पास
स्वीकार करो मेरी नमस्ते नमस्ते नमस्ते ।

उर्दू शायर जनाब शमीम हयात ने ग़ज़ल के खूबसूरत शेर पढ़ते हुए कहा - एक दिन उसको देखा संवरते हुए
जितने चेहरे थे सब आइने हो गए ।

डॉ संजीव अंजुम ने जिंदगी की सादगी और हकीकत पर शेर पढ़ते हुए कहा -

दिल से होकर ज़ीस्त की जागीर में शामिल हुआ
क़िस्सा ए ग़म यूँ मेरी तक़दीर में शामिल हुआ ।

डॉ बृजेश कठिल जी ने अपनी वस्तुस्थिति कविता में एक कर्मचारी के रिटायर्ड होने पर घर बनाने की व्यथा पर ,उसके बुढ़ापे के संघर्ष की कहानी को कविता में पिरोते हुए कहा -

साठ बरस की उम्र में घर बनाना,
दुस्साहस तो है , मगर उसने बनाया ।

अपनी नई ग़ज़ल में सूबे सिंह सुजान ने कहा -

उनके कहने से जो हर बात सही होती है
तो मैं ये समझूँ के सब उनकी कही होती है

हम जिसे जाँच परख़ देख रहे होते हैं
बाद उसके भी परख़ बाक़ी रही होती है ।

इसके अलावा अन्य शायर,कवियों में डॉ श्रेणिक लुंकड़ बिम्बसार, गंगा मलिक ने भी काव्य पाठ किया ।




शुक्रवार, 16 मार्च 2018

आओ बदलें मुशायरों से माहौल व समाज को दें सही दिशा

हमारे अभी कुछ पुराने समय में , ज्यादा दिनों की बात नहीं है हमारे शहरों कुरूक्षेत्र,अम्बाला,पानीपत हिसार और उधर पंजाब के साथ साथ पूरे देश में भी बहुत ऐसे शहर रहे हैं जहाँ साहित्य क्षेत्र में बहुत नामी काम होता रहा था
इन शहरों की  जमीन ने बहुत अच्छे शायर,लेखक,कलाकार,गायक दिये हैं ।
क्या हमें नहीं लगता कि इन शहरों ,देश में पुनः साहित्यिक गतिविधियों का परचम लहराये व समाज को विचारक बनाया जाए न कि वाजिब बात पर भी मखौल किया जाए ।

वरना आजकल के दौर में कवि सम्मेलन में बाज़ लोग चुटकले सुनाकर शायर कहलाते हैं और मोटी रकम ले उड़ते हैं वे गिरोह के रूप में काम करते हैं जबकि हमारे शुद्ध साहित्यिक लोग पाई पाई को तरसते रहते हैं ।

तो आइये आगे बढ़कर बनाइये अच्छा माहौल ।
बच्चों को नशे के बढ़ते कारोबार से बचाकर कविता,ग़ज़ल,कहानियों की तरफ ले चलें ।

इधर कुरूक्षेत्र में अदबी संगम कुरूक्षेत्र पिछले 40 बरसों से साहित्यिक गतिविधियों में काम करता आ रहा है अनेकों शायर,कवि लेखक,कलाकार इस माहौल ने पैदा किए अदबी संगम समाज की चहल पहल से,चकाचौंध से दूर रहकर अपनी हाथी की मदमस्त चाल से चलता रहा न किसी सरकारी मदद का मोहताज रहा न कभी किसी सरकारी अधिकारी, अकादमी ने वाजिब मदद दी बस कवि लोग स्वयं का खर्च करते रहे और साहित्य को रचते रहे,लगातार संगोष्ठी करते रहे ।
 इस संस्था की जड़ों को रोपने व वृक्ष बनाकर फलों तक लाने की फेहरिस्त में कुछ चुनिंदा नाम ध्यान में आते हैं जैसे कृष्ण चंद्र पागल, दोस्त भारद्वाज,डॉ एस पी शर्मा "तफ़्ता " "ज़ारी " डॉ हिम्मत सिंह सिन्हा "नाज़िम " डॉ के के ऋषि, डॉ दिनेश दधीचि, बाल कृष्ण बेज़ार, कस्तूरी लाल शाद,डॉ बृजेश कठिल , डॉ लुंकड़,आदि अनेकों नाम हैं

शुक्रवार, 2 मार्च 2018

होली में हुडदंग किसी को करे तंग, किसी को करें रंग रंगीन।

होली खेलने के सबके अपने अपने मज़े हैं  यह मौसम परिवर्तन का र्योंहार है हम मौसम के परिवर्तन को प्रकट करने, आत्मसात करने के लिये हर अवसर पर त्योंहार के रूप में मनाते आये हैं यही संस्कृति का निर्माण करते हैं हमारी भारतीय संस्कृति इन्हीं त्योंहारों की परिपाटी रही है ।

                                                                                   लेकिन वर्तमान समय में होली खेतने से बहुत लोगों को डर भी लगने लगा है ऐसा क्यों हो रहा है यह हमें सोचने को विवश करता है और यदि हम मनुष्य हैं तो हमें सोचना भी चाहिये, वर्तमान समय में परेशानी का सबब यह होता जा रहा है कि हमने सोचना ही बंद कर दिया है यह सबसे खतरनाक़ है ।

                                              ताजा घटना दिल्ली में लड़कियों पर होली के बहाने वीर्य के गुब्बारे फेंकना किस सोच को दर्शाता है औकर क्या ये लड़के हमारे उन्हीं घरों के नहीं हैं , जिन घरों की वे लड़कियां हैं क्या इन लड़कों की बहनें नहीं हैं, क्या इन लड़कों के माता पिता नहीं हैं क्या ये लड़कियां जो शिकायत कर रहीं हैं ये अपने भाइयों को टोकती हैं ऐसी वारदातों के समय,  बहुत से और भी प्रश्न हैं जिनके जवाब हमें स्वयं से पूछने हैं और बार बार पूछने चाहियें ।

दूसरी बात मैं यह कहना चाहता हूँ कि हमारे समाज की सोच में लड़कियों में हो या पुरूषों में अमीर की सोच अलग व गरीब की सोच अलग हो जाती है दिल्ली की बहुतायत लड़कियों को मैट्रो में देखता हूँ कि वे सामाजिक मुद्दों पर विरोध करने वाली लड़कियों का बहुत कम साथ देती हैं  क्योंकि वे सोचती हैं की यह विरोध करना,सामाजिक मुद्दों पर बात करना मिडिल क्लास का काम है। उनकी जिंदगी में ऐसे मुद्दों को सहजता से अपना लिया जाता है और विरोध करने वालों को मिडिल क्लास का दर्जा देकर उन्हें ही नीचा दिखाया जाता है अमीरों द्वारा जिस कारण जिन मुद्दों पर सार्थक बातचीत होनी चाहिये वह हो नहीं पाती ।हमें समाज को एक सोच का बनाना होगा। सबसे पहले शिक्षा को एक करना होगा हर वर्ग के बच्चों हर प्रकार के स्कूलों में प्रवेश देना होगा महंगी शिक्षा का समूल निपटान जरूरी है।
                                                                                      सूबे सिंह सुजान