मंगलवार, 15 नवंबर 2022

सृजनात्मकता और ग्रहणशीलता अलग अलग हैं।

 जब एक चित्रकार अपनी कूची से किसी नये चित्र, नयी शक्ल या भाव भंगिमा को जन्म देता है तो यह एक तरह का माँ की तरह नयी कृति का जन्म होता है इसी को सर्जनात्मकता, बुद्धिमत्ता कहा जाता है।


और यदि एक अच्छा गणित या भाषा शिक्षक अच्छा पढ़ाता है तो वह अच्छा ग्रहणकर्ता है परन्तु बुद्धिजीवी नहीं है क्योंकि उसने प्रखरता के साथ ग्रहण किया है सृजन नहीं किया है।

लेकिन आज के दौर में इस ग्रहणकर्ता को बुद्धिजीवी मान कर इसकी ज्यादा सुनी व मानी जाती है और यह इस सहारे अच्छा व्यापार करता है।

सूबे सिंह सुजान 

शनिवार, 12 नवंबर 2022

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 https://youtu.be/v6OOKWoCgDc

इस शेर पे ताली तो बनती है।👌👍🙏

😃🤭😃 डॉ के के ऋषि साहब से रुबाई, ग़ज़ल के साथ साथ मुशायरों पर कुछ चुनिंदा बातें सुनिये।

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धन्यवाद

गुरुवार, 10 नवंबर 2022

हमें खेत जंगल बनाने पड़ेंगे। सूबे सिंह सुजान

 धुआं जम गया है, हवा की कमी से।

कोई जैसे नाराज़ है ज़िन्दगी से।।


न अब धूप अच्छी न मौसम खुला है,

गगन को,धरा को, ढका है नमी से।।


हवा,आग, पानी खफा हो गए हैं,

शिकायत है आकाश को आदमी से।


हमीं ने बनाये, उदासी भरे दिन,

कि मौसम मिले आज बेमौसमी से।


हमें खेत जंगल बनाने पड़ेंगे,

हमारी हवा ठीक होगी उसी से।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 3 नवंबर 2022

मनुष्य का क़िरदार कम से कम मौसम की तरह तो होना चाहिए।

 मनुष्य का किरदार,

    हर व्यक्ति हर स्थिति में स्वयं को परिभाषित करता है वह जहां जब जैसे विचार प्रकट करता है समाज के बारे अन्य व्यक्तियों के बारे में उस समय में वह अपने विचारों को ही परिभाषित करता है वह चाहता है कि ऐसा हो वैसा हो उन सब बातों में उसके अपने विचार होते हैं वह अपनी बात को लागू करवाना चाहता है मनुष्य का किरदार इस प्रकार का है लेकिन हम अपनी सुविधानुसार बदलते रहते हैं यह कई मायनों में ठीक हो सकता है परंतु मनुष्य का किरदार इतना तो रहना चाहिए जैसे एक फल है आम का फल जब तक उसे ठीक प्रकार से पकने का अवसर मौसम स्थिति चाहिए वह उसके लिए आवश्यक है अति आवश्यक है यदि हम फल पकने के समय से पहले ही उसको तोड़ दे या मौसम को बदल दें तो वह फल अपनी मिठास अपने प्राकृतिक रूप में नहीं पक सकता अर्थात हमें इतना समय यथा स्थिति में अवश्य बिताना होगा की एक कार्य पूर्ण हो सके उस कार्य के जो लक्ष्य हैं उनको प्राप्त किया जा सके।

मनुष्य को कम से कम मौसम की तरह तो रहना चाहिए, जितना समय मौसम अपने परिवर्तन में समय लेता है वह यथा योग्य है वह अचानक नहीं बदलता,वह वातावरण को साथ लेकर शैन शैन बदलता है।

 मनुष्य को गिरगिट की तरह नहीं बदलना चाहिए यह कहावत इसीलिए कहीं गई है कि एक कार्य को पूर्ण होने दिया जाना जरूरी है हमें अपने किरदार में अपने जमीर को इतना तो यथास्थिति बनाए रखना होगा वही हमारा सत्य होगा एक मौसम के अनुसार हमें फल के पकने का इंतजार तो करना होगा इसी प्रकार मनुष्य को अपनी आदतों में सामाजिक ढांचे में तब तक अपना किरदार वस्तुस्थिति में रखना चाहिए जब तक वह कार्य संपन्न हो जाए जब तक वह वादा पूरा हो जाए जब तक वफा निभा दी जाए ।


©सूबे सिंह सुजान