शुक्रवार, 12 मार्च 2021

सच झूठ के ऊपर टिका है

 सारे सच , झूठ के ऊपर टिके हुए हैं।

अगर मैं सच के नीचे से,

झूठ को निकाल दूं,

तो सच गिर कर टूट जाएगा।

गुस्से में लिखी गई कविताएं

 गुस्से में लिखी गई कविताएं

अपनी नाराज़गी ज़ाहिर तो करती हैं लेकिन यह कोई जरूरी नहीं है कि वह झूठ हो और यह भी कोई जरुरी नहीं कि उसमें सब सत्य ही हो।

अगर कवि अपनी प्रेमिका की बेवफ़ाई पर गुस्से में कविता लिख गया है तो इसका यह मतलब नहीं है कि वह बिल्कुल सही लिख गया है हां वह केवल अपने भाव सही लिख गया है

उसकी प्रेमिका यदि उसको समझ नहीं पायी या उससे प्रेम नहीं कर पायी तो उसमें प्रेमिका का दोष भी नहीं है बल्कि प्रेमिका ने तो कवि से नई रचना करवा दी है कईं कविताओं को जन्म दिलवाया है

जैसे प्रेमिका अपने आप में पुरूषत्व का अभिनय कर रही है और कवि स्त्रीत्व का निर्वहन कर रहा है एक नई रचना के लिए।

गुस्से में लिखी बहुत कविताओं पर कवि को समय गुजरने के पश्चात, पश्चाताप भी हो सकता है लेकिन रचना हो चुकी है।

जीवन में बहुत कुछ हम चाहते हुए भी नहीं कर पाते हैं और इसका ही हम अफ़सोस करते हुए दुःखी होते रहते हैं

मनुष्य ने चाहे तकनीकी तरक्की बहुत कर ली है लेकिन आज भी मनुष्य मन दुःखी होने के कारण व स्थान वही हैं दुःखी होने के भौतिक साधन जरूर बदले हैं लेकिन हृदय वही है, भावनाएं वही हैं ।

बहुत ज्यादा इतिहास बदले की भावना से लिखा जाता रहा है और बहुत इतिहास राजाओं, सरकारों द्वारा लिखवाया जाता रहा है इसी प्रकार बहुत साहित्य भी इसी भावना के आधार पर लिखा जाता है इसके इतर बहुत कवि, लेखक अपनी मन स्थितियों के वशीभूत भी होते हैं वह इनसे अलग सोच नहीं पाते,

और वर्तमान समय में कुछ साहित्यकार सुख,साधनों के वशीभूत ही अपनी सोच, विचारों को निर्मित कर लेते हैं और उनको केवल वही सच लगता है और यदि उससे अलग व्यवस्था बनने लगे तो वह आहत हो जाते हैं और पुरस्कार लौटने लगते हैं या मात्र नाटक करने लगते हैं क्योंकि वह साधनों के वशीभूत हो जाते हैं यदि ऐसा होता है तो ऐसे लेखकों से ज्यादा अच्छा तो सामान्य नागरिक है जो अपनी भावनाओं को मजबूत रखता है और ज़रा सी बात या बदलाव पर आहत नहीं होता, और बदलाव तो प्रकृति का पहला नियम है जिसे सब पसंद भी करते हैं और नापसंद भी करते हैं

पसंद तो इसलिए करते हैं कि हम हर एक जगह लगातार बैठ नहीं पाते,एक तरह का खाना लगातार नहीं खा सकते, एक तरह के मौसम में नहीं रहना चाहते, जिसका अर्थ है हम बदलाव चाहते हैं और नापसंद इस तरह करते हैं जब कोई बदलाव शुरू होता है या कोई व्यवस्था बदलने लगता है तो हम आहत हो जाते हैं, आक्रोशित हो जाते हैं सर्दी आने पर, सर्दी से छुटकारा चाहते हैं और गर्मी आने पर गर्मी से छुटकारा चाहते हैं

जब तक प्रेम नहीं होता तो प्रेम पाने की चाहत, प्रेम मिला तो उससे दूर जाने की इच्छा।

इसलिए ऋषियों-मुनियों ने कहा है मानव मन चंचल है प्रकृति का स्वभाव ही चंचल, परिवर्तनशील है इस स्वभाव को संतुलित करने का नाम ही योग है

योग ही वह साधना है जो किसी एक बिंदु पर आपको संयमित, नियमित, नियंत्रित करके,इस परिवर्तनशील प्रकृति से परे अध्यात्मिक, आत्मविकास की प्रक्रिया के दर्शन करवाता है।

योग साधना किसी एक विचार पर नियंत्रण करना है।

आदि योगी शिव, महात्मा बुद्ध ने यही योग साधना करके ज्ञान प्राप्त किया था और समाज को ज्ञान की दिशा दी है।