आज आदमी जब भी आदमी से मिलता है
दिल्लगी छुपाता है बेबसी से मिलता है।।
वो सुकूँ मुझे दुनिया में कंही नहीं मिलता,
जो सुकूँ मुझे तेरी दोस्ती से मिलता है।।
खुद नहीं कभी हिलता, जैसे पेड ग़म का है,
जब मिलता है मुझसे ख़ामशी से मिलता है।
क्या बताऊँ मैं कुछ भी तो बता नहीं सकता,
बेवफ़ाई से या वो दोस्ती से मिलता है।।
बेवकूफ़ हूँ मैं, जो उसपे शक किया मैंने,
वो तो रस भरा है जो हर किसी से मिलता है।
………..सूबे सिंह सुजान……………….
आपने बड़े ख़ूबसूरत ख़यालों से सजा कर एक निहायत उम्दा ग़ज़ल लिखी है।
जवाब देंहटाएंआज आदमी जब भी आदमी से मिलता है
जवाब देंहटाएंदिल्लगी छुपाता है बेबसी से मिलता है।।----bahut khub