गुरुवार, 23 मई 2013

तरही ग़ज़ल--आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

आपसे मिल कर ये जाना दोस्ती क्या चीज़ है

अब मुझे महसूस होता है,खुशी क्या चीज़ है।।

ख़ून  बेमक़सद  बहाये, आदमी क्या चीज़ है,

आज तक समझा नहीं वो,जिन्दगी क्या चीज़ है।

धूप आई,  बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।

कैसे सूरज एक पल में जादू सा कर जाता है,

रात मुझसे पूछती है रोशनी क्या चीज़ है।

अपने-आपे में नहीं रहता है अब मेरा ये दिल,

सोचता हूँ आज मैं, ये आशिकी़ क्या चीज़ है।

खुश थे बचपन में,जवानी तो नशे में ही कटी,

ये बताता है बुढापा, वापिसी क्या  चीज़ है।

खूबसूरत - खूबसूरत  सारी  दुनिया है मगर, 

मैं तो हैंराँ हूँ, मुहब्बत आपकी क्या चीज़ है। 

किस तरह पैदा किया माँ ने, समझना है यही,

तेल सरसों का निकलता है, फली क्या चीज़ है।

शब्दों का इक बाण,होठों की हंसी को छानता,

गुस्सा भी क्या चीज़ है,नाराजग़ी क्या चीज़ है।

सारी दुनियां  देखकर, फिर बैठना लिखने "सुजान"

शांत मन से सोचकर कहना, खुदी क्या चीज़ है।

2 टिप्‍पणियां:

  1. धूप आई, बर्फ पिघली, पानी बनकर बह गई,

    ये हिमालय जानता है, बेबसी क्या चीज़ है।------
    सच्ची और सार्थक रचना

    आग्रह है मेरे ब्लॉग का अनुसरण करें
    ओ मेरी सुबह--

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  2. आपकी टिप्पणी प्राप्त हुई। आपका ह़दय की तलहटियों से धन्यवाद करता हूँ।
    आपके ब्लाग पर अभी पहुंचने का प्रयास करता हूँ...

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