रविवार, 27 नवंबर 2011

गजल-जल से संसार है

जल से संसार है,जल से संसार है
दोस्तो जल ही जीवन का आधार है
जल ही जीवन है यह सबको मालूम है,
फिर भी हमको समझने की दरकार है..

... जल बचाना तो जीवन बचाना हुआ,
इस तरह जल हमारा ही परिवार है..
जल बचाना लहू दान करना हुआ,

जल बचाना भी जीवन का विस्तार है..
अपनी संतानों से प्यार करते रहो,
जल बचाना तो बच्चों पर उपकार है..
पशु,पक्षी,आदमी सबमें ही जल के प्रति,

आदमी का ही चिंतनीय व्यवहार है

....................सूबे सिहं सुजान.............

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

तेरी निगाह अगर मेहरबान हो जाये
जमाना मेरे लिये बागबान हो जाये..
बताओ कैसा लगेगा तुम्हें जमाना फिर,
जमीं के जैसा अगर आसमान हो जाये

बुधवार, 16 नवंबर 2011

गजल

. गण हुये तन्त्र के हाथ कठपुतलियाँ
 अब सुने कौन गणतन्त्र की सिसकियाँ
. इसलिये आज दुर्दिन पडा देखना
 हम रहे करते बस गल्तियाँ-गल्तियाँ
 चील चिडियाँ सभी खत्म होने लगीं
 बस रहीं हर जगह बस्तियाँ-बस्तियाँ
 पशु-पक्षी जितने थे उतने वाहन हुये
 भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
. कम दिनों के लिये होते हैं वलवले
 शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
 प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
                                       सूबे सिहं सुजान