बुधवार, 31 अगस्त 2011

गजल-9-

गजल-9-
आपका ये साल गुजरे पहले से अच्छी तरह

जिन्दगी की सोच निखरे पहले से अच्छी तरह

दे रहा हूँ मैं तुम्हें शुभकामना नव वर्ष की,

मुस्कुराहट लब पे ठहरे पहले से अच्छी तरह

आबरू लुटती है अपनी अब सरे बाजार जबकि

शहर में हैं आज पहरे पहले से अच्छी तरह

आज बच्चों को बिठाने की जगह कम पड गई

जबकि स्कूलों में हैं कमरे पहले से अच्छी तरह

रोशनी की जीत हो भागे अंधेरा दूर - दूर

आसमाँ से धूप उतरे पले से अच्छी तरह

वो किसी के प्यार की बारिश में भीगे हैं सुजान,

दिख रहे हैं उनके चेहरे पहले से अच्छी तरह

सूबे सिहं सुजान

09416334841

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

गीत

गीत->

आज मन मेघ सा हुआ जाये

दिल में आया कि कुछ कहा जाये.....

जब हवायें कहीं उछलती हैं

पेड की टहनियाँ टहलती हैं

बूंद का मन तडफ कर कहता है

आज मुझसे न कुछ सहा जाये....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये....

जब कोई मन की बात सुनता है

दिल का अहसास फूल बनता है

कोई बादल-बदल नहीं सकता

मिल हवा से उडा-उडा जाये....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये..

बूंद बरसे बहार बहती है

हर नदी इन्तजार सहती है

फूल, फल देने को अब आतुर हैं

हर किसी को बहार भा जाये.....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये......

सूबे सिहं सुजान

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ghazal 23/8/11

आँख में अपनी लाज रखता हूँ
पास अपने समाज रखता हूँ
कल कहाँ पर बसेरा है मेरा,
खूब ताजा मिजाज रखता हूँ
हर घडी मौत लेकर घुमो यार,
जेब में अपनी आज रखता हँ

सूबे सिहं सुजान

गजल-8

तुमसे मिलकर लगता है मौसम सुहाना हो गया
देख तुमको दिल ये बोला मैं दिवाना हो गया
जिनसे मिलने की कभी उम्मीद भी हमको न थी
प्यार करके उनसे भी मिलना मिलाना हो गया
दूसरों को आजमाते- आजमाते यूँ हुआ,
जिन्दगी में आज खुद को आजमाना हो गया
दोस्तो आओ हँसे मिल बैठ कर फिर एक साथ
आजकल मुश्किल बहुत ही मुस्कुराना हो गया
बातें बेमकसद की ही करते रहोगे क्या सुजान,
काम भी कर लो बहुत हँसना हँसाना हो गया
सूबे सिहं सुजान

सोमवार, 22 अगस्त 2011

गजल

जब गरीबी सताने लगी
भीड पत्थर उठाने लगी
भूख रोटी से मिटती नहीं
भूख पत्थर भी खाने लगी
बात जितनी छुपाने लगा
सामने उतनी आने लगी
दिल में क्या-क्या छुपा सकता था
आँखें सब कुछ बताने लगी
जब उसे प्यार मुझसे हुआ
देखकर मुस्कुराने लगी
हाय कैसी जुदाई की रात
चाँदनी कहर ढाने लगी
मौत आई है नजदीक तो
साँस रूक-रूक के आने लगी
आपका प्यार पाकर सुजान
जिंदगी रास आने लगी

     सूबे सिहं सुजान

बुधवार, 17 अगस्त 2011

अन्ना की लहर

क्या खबर थी दिल्ली को,दौडेगी अन्ना की लहर
देश को इक बार फिर जोडेगी अन्ना की लहर
अन्त करना है जरूरी,आज भ्रष्टाचार का
तोडना है अहम मिलकर इस सरकार का
वोट देना छोड दो भ्रष्टाचारी नेताओं को अब
...आज ऐसा करके ही छोडेगी अन्ना की लहर......

अपना दामन ठीक करलो जनता तुम्हारी बारी है

रोगी भी तुम हो चिकत्सक भी ,तुम्ही उपचारी है
देश के हर कोने से आवाज ये उठने लगी,

देश को इकसूत्र में जोडेगी अन्ना की लहर

सोमवार, 15 अगस्त 2011

15 august

समय फिर कह रहा है देखिये कोई नया सपना
गलत है यह किसी से पूछ कर फिर देखना सपना
कदम पहला बढाया जिसने हम सब साथ हैं उसके,
चलो आगे बढो, पूरा करेंगे आपका सपना
हजारों साल लगते हैं जमाने को बदलने में,
मेरे यारो किसी का भूल कर मत तोडना सपना
सूबे सिहं सुजान

aadharshila:

aadharshila:

रविवार, 14 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस

समय फिर कह रहा है देखिये कोई नया सपना
गलत है यह किसी से पूछ कर फिर देखना सपना
कदम पहला बढाया जिसने हम सब साथ हैं उसके,
चलो आगे बढो, पूरा करेंगे आपका सपना
हजारों साल लगते हैं जमाने को बदलने में,
मेरे यारो किसी का भूल कर मत तोडना सपना
सूबे सिहं सुजान

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

गजल-5सीने में आग-गजल संग्रह से

सुजान कवि
गजल-5-(सीने में आग) गजल संग्रह से

कितनी गर्मी बढ गई बरसात होनी चाहिये
थक गया सूरज बहुत अब रात होनी चाहिये
...बीते दिन जब याद आये दिल ने मुझसे फिर कहा
आज अपनी प्रेमिका से बात होनी चाहिये
हम न हिन्दू,हम न मुस्लिम,ये हमारी भूल है
आदमी की आदमी ही जात होनी चाहिये

शांति की वार्ता का कुछ परिणाम निकला ही नहीं
चाल अब ऐसी चलें शहमात होनी चाहिये
आजकल यही सोच कर गीत गाता है सुजान

दुश्मनों से दोस्ती की बात होनी चाहिये

सूबे सिहं सुजान

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

गजल-4 सीने में आग-गजल संग्रह से

गजल-4 (सीने में आग)
चेहरे से साफ झलकता है इरादा क्या है
सच छुपाने के लिये देखिये कहता क्या है
जैसे इन्सान में अहसास नहीं बाकी आज
किस घडी कौन बदल जाये भरोसा क्या है
फूलों से खुशबू महकती नहीं पहले जैसी
सोचिये अपनी मशीनों से निकलता क्या है

प्यार की चाह की ओर चैन गंवाया हमने
दिल लगाने का बताईये नतीजा क्या है
सामने पाके मुझे आप ठहर जाते हो

सच बताओ कि मेरा आपसे रिश्ता क्या है

सूबे सिहं सुजान

गजल-3 सीने में आग-गजल संग्रह से

तुम्हारा होके जब कोई तुम्हारा दिल दुखायेगा
तुम्हें उस पल हमारा प्यार फिर से याद आयेगा
किसी से प्यार कर लो और उसके साथी बन जाओ
यही दौलत है जीवन की इसी से चैन आयेगा
कोई इन्सान तन्हाई में खुश रहता नहीं लेकिन
मुहब्बत में अकेला बैठ कर भी मुस्कुरायेगा
बहुत खुश है लगाकर आग अब तू दूसरों के घर
तेरा भी घर जलेगा जब,तो फिर कैसे बुझायेगा
मुझे चाहे भुला देना मगर ये याद रखना तुम
मैं जितना चाहता हूँ तुमको,इतना कौन चाहेगा

                            सूबे सिहं सुजान

विशेष- मेरे गजल संग्रह से यह गजल मेरे दिल के बहुत नजदीक है
और बहुत ही गेय है मैं इसको जगजीत सिंह जी की धुन पर गाता हूँ
आप भी इसी धुन पर गा कर देखिये...........

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

गजल-सफल

जो बुरे हों सफल नहीं होते
लोग अच्छे विफल नहीं होते
जिनका सुख हम भुला नहीं पाते
काम ऐसे सरल नहीं होते
ईंट पत्थर लगाने पडते हैं
कागजों में महल नहीं होते
वो इरादे अधूरे रहते हैं
जो इरादे अटल नहीं होते
प्यार उनको कभी नहीं होता
जो हृदय से विकल नहीं होते

                   सूबे सिहं सुजान

सोमवार, 8 अगस्त 2011

रूबाई

1.दृढ पत्थर जलधार बदल देते हैं
मेहनतकश संसार बदल देते हैं
जो लोग कठिन कार्य को करते हैं
वह जीवन आधर बदल देते हैं
2.-
पल प्रतिपल यह देश बदलता जाये
हैं रंग नये वेश बदलता जाये
नवजागृति का काल उदित हो आया
अब भारत परिवेश बदलता जाये
        सूबे सिहं सुजान

रविवार, 7 अगस्त 2011

मेंढक बोलते हैं

मेंढक क्यों बोलते हैं
जब वर्षा होती है
साल के ओर दिनों में
क्या वो बहरे हो जाते हैं
अगर नहीं तो ....
कैसे बिन बोले वो रह पाते हैं
कैसे सहन करते हैं
अपने आपको...................
अपनी खामोशी को.........
क्या आदमी को सिखाते हैं
कैसे सहनशील बन सकते हो,
तुम भी.........
बरसात के इन्तजार में
जमीन के अन्दर
ज्यादा दिन काटना
मुझे आता है क्या
आपको आता है...............

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

गजल


गजल-
मैंने स्वीकारा उसका गुलदस्ता
फूल नकली था कैसे मुरझाता
उसको अपनी ही बात अच्छी लगे
मैं भला उसको कैसे समझाता
...जबसे मंहगाई गीत गाने लगी
तबसे हर आदमी है घबराता
घोंसले ने ही लूटा चिडिया को
जुर्म हर डाल-डाल इतराता
धर्म को जानते नहीं हम सब
वरना हमको कोई न बहकाता

जुर्म को देखता रहा चुपचाप
इससे अच्छा सुजान मर जाता

सूबे सिहं सुजान

नासमझ समझता है

नासमझ कुछ समझता है कभी-कभी
बादल क्यूँ बरसता है कहीं-कहीं
चाँद क्यूँ निकलता है कभी-कभी
ये बात मेरी समझ में तो आ जाएगी
वो क्यूँ नही समझता है कभी-कभी
रात मस्त हो क्यूँ चांदनी को बुलाती है
...दिन क्यों बदगुमाँ हो जाता है कभी-कभी
मैं समझाता ही नहीं उसको कुछ भी,
उस वक्त वो कुछ समझता है कभी-कभी
चाँद, चाँदनी की जगह पर बैठा है सदियों से,
सूरज ना चल कर भी, चलता है सदियों से

सूबे सिहं सुजान

गजल-कुत्ते

कुत्ते ज्यादा नजर आते हैं गाय कम
जैसे अन्याय ज्यादा हुआ न्याय कम
छोडिये अब बडी बातें छोटी भी कर,
काम करके दिखा और दे राय कम
पैसे ना देख सेहत को भी देखिये ,
पीजिये दूध ज्यादा मगर चाय कम
ये तरक्की में कैसा मजा आ रहा,
बढ गये खर्चे और हो गई आय कम
हमने अन्याय का सामना कब किया?
चाहते हम तो हो जाते अन्याय कम
                         सूबे सिहं सुजान

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

किशोर की याद में गीत

कितनी बातें दबा रक्खी हैं दिल में
जिनके कारण हूँ आज मुश्किल में

तुमको जब भी मैंने सोचा
फिर अपने दिल को खोजा
...तुम थी, दिल गुम था.
ये क्या रोडा अटका मेरी मंजिल में.........तुमको..

धरती पर हूँ चाँद को देखने के लिये

बता चाँद पर जाऊं मैं किसलिये
धरती भी है चाँद भी है तुम भी हो
ताकि तुम रहो हर पल साहिल में......तुमको...........

सूबे सिहं सुजान

किशोर जी की याद में उनकी तर्ज में ये गीत भी गुनगुनओ.....

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

गजल

उसकी आँखों ने मेरी आँखों को धोखा दे दिया
मुझसे लेकर प्यार सच्चा, मुझको झूठ दे दिया
दिल के रिश्ते तोडता है, जोड जो सकता नहीं
कम नहीं होता कभी, क्यूं दर्द ऐसा दे दिया
उसकी मीठी मुस्कुराहट पर फिदा हो मैंने तो,
इस जवानी का निगौडा प्यार पहला दे दिया

                                        सूबे सिहं सुजान

मेघ

मेघ तुम जिद छोडो
गरमी का दिल तोडो
तडफाना छोडो
बरस जोओ-बरस जाओ..

खेत में धान है सूखा
घर में परिवार भूखा
हवाओं का रूख मोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ...

सावन क्यूं है तन्हा
बादल क्यूं है बेवफा
घोटालों की सरकार तोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ

मेरे दिल में आस भरी है
सदियों की प्यास भरी है
लोगो मेघ से दिल को जोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ.....
सुजान.................