डोर रेशम की नहीं, भाई बहन का प्यार है
सत्य पथ का साथ दो,कहता यही त्योहार है।
स्वार्थों को छोड़कर, भाई बहन ये सोच लो,
आपसे जुड़कर बनेगा,देश का विस्तार है।
धर्म ही कर्तव्य है,इस अर्थ को पहचान लो,
यह सनातन संस्कृति, संस्कार का आधार है।
सूबे सिंह सुजान
डोर रेशम की नहीं, भाई बहन का प्यार है
सत्य पथ का साथ दो,कहता यही त्योहार है।
स्वार्थों को छोड़कर, भाई बहन ये सोच लो,
आपसे जुड़कर बनेगा,देश का विस्तार है।
धर्म ही कर्तव्य है,इस अर्थ को पहचान लो,
यह सनातन संस्कृति, संस्कार का आधार है।
सूबे सिंह सुजान
एक बार का क़िस्सा बना कि एक पहले से जाने वाले शागिर्द की किसी ग़ज़ल में कुछ कमियां थी, जो कि लगभग हर शायर की ग़ज़ल में किसी न किसी सूरत अरूज़ के नियमानुसार आ ही जाती हैं दूसरे और तीसरे शागिर्द जब भी उस्ताद के पास जाते तो अपना तो कुछ ख़ास लिखा हुआ न होता तो उस्ताद के दिमाग़ को डाइवर्ट करते हुए उनके पहले शागिर्द पर नुक़ता उठाते हुए कहते यह क्या ग़ज़ल हुई जनाब इसमें रदीफ दोष है और फलां फलां कमियां गिनाते और चले जाते।
अपना लिखा कुछ ख़ास होता नहीं था।
जब पहले शागिर्द साहब अपनी धुन में मगन रहते तो उनको फिर तकलीफ़ होती और फिर से कोई नुक्ताचीनी निकालते और अपनी आदतों का विकास कर लेते।
जब उनकी इस आदत के सब्र का बांध टूट गया तो वो दोनों उस्ताद से बोले जनाब उनकी ग़ज़लों में बेइंतहा नुक़्स हैं आप उनको अपनी उस्तादी से खारिज़ करें, हमसे देखा नहीं जाता। उस्ताद बहुत बोले थे कम बोलते थे और उनकी बातों में आ जाते थे लेकिन उसके बाद भी उस्ताद ने अपने शागिर्द को कुछ नहीं कहा तो वे दोनों पहले शागिर्द से मिलकर अपनी साज़िशों की पड़ताल करने लगे बोले - पता चला है कि आपको उस्ताद ने आपको अपनी उस्तादी लिखने से मना कर दिया? यह सुनकर उसको अचंभा हुआ वह भी अपने उस्ताद की तरह भोला भाला था और दांव पेंच समझता नहीं था और सीधा यही सवाल उस्ताद से किया, उस्ताद बोले वह लोग यह ज़िक्र कईं बार कर चुके हैं अब आप देखो क्या करें?
उसने कहा जो हुक्म आपका आदरणीय मेरे सर माथे।
उस्ताद साहब एकदम विचलित से हुए बोले नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है यह उनकी बात है। शागिर्द बोले आदरणीय आज एक बात मैं भी कहने की गुस्ताख़ी कर सकता हूं?
बोले - कहिए कहिए -वह जो फलां क़िताब है जिसमें एक हम शागिर्द ने आपकी हू ब हू कुछ ग़ज़लें उठा कर प्रकाशित कर रखी हैं और दूसरे ने पाकिस्तान के शायरों के मिसरे उठा कर आपको ग़ज़ल सुना रखी हैं तो मेरी अपने ख्याल की ग़ज़ल में कुछ कमियां आई हैं जो सीखने के सही मापदंड हैं तो क्या मुझे सज़ा जायज़ है तो जरूर दीजियेगा।
यह सुनकर उस्ताद सदमे में आए बोले उनकी पुस्तक में मेरी ग़ज़ल?
उसने कहा जी हजूर कुछ में आपके मिसरे हूबहू दर्ज हैं तो कुछ तो पूरी की पूरी ग़ज़ल कॉपी पेस्ट है वह बोले ऐसा कैसे हो सकता है? उसने कहा अभी देखें और उन्होंने पुस्तक उठाई और शागिर्द ने दिखाया तो उस्ताद सदमे में आए!!!
हद है ऐसा भी हो सकता है!!!
ओह ओह!
और बोले आपसे मुआफ़ी चाहता हूं कि उनके कहने में आकर आपके बारे में मैंने ऐसा सोचा।
सूबे सिंह सुजान
कुरूक्षेत्र हरियाणा
हास्य-व्यंग्य बहुत सकारात्मक और सटीक विधा है आप हास्य व्यंग को कबीरदास,दुष्यंत कुमार,धूमिल और न जाने कितने असंख्य शायरों की शायरी में देख सकते हैं लेकिन उनमें कहीं भी फुहड़ता,नंगापन नहीं है लेकिन अत्यधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि हम वही लोग वहां बैठकर कैसे हंस लेते हैं जो हमारे ऊपर, हमारी संस्कृति, संस्कार, विश्वसनीयता पर हमला होता है हमें उसको सहन ही नहीं करना था लेकिन हम हंस रहे हैं?
कवि वह होता है जो काव्य के माध्यम से आपकी बुद्धि का योग करवाता है जो आपकी बुद्धिमत्ता को प्रखर करता है आपकी बुद्धि को खेल खिलाता है ताकि वह स्वस्थ रहे
और इसके लिए नये विचार या पुनः विचारों को अभ्यास में लाना या बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना होता है सामाजिक,देशकाल, व्यवहार, प्रेम, मनोरंजन, श्रृंगार,सदाचार, भक्ति,जीवनशैली,जीवन तत्वों के बारे सटीक बौद्धिकता को जागरूक करता है।
यदि हम कुछ समय के लिए उच्च विचार विमर्श को सुनना शुरू करेंगे तो हमें उसमें आनंद भी आएगा और ज्ञान अर्जित भी होगा। उच्चता, श्रेष्ठता को समझने में आनंद है जो उच्च बुद्धिजीवी होते हैं वह गहरी अर्थपूर्ण कविता, ग़ज़ल, कहानी को सुनना व कहना पसंद करते हैं जो लोग केवल गंदे चुटकले पर हंसते हैं या सुनाते हैं वह दोनों प्रवृति के लोग निम्न चरित्र को अपनाना और प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।
सूबे सिंह सुजान