गुरुवार, 29 दिसंबर 2011

गजल हालाते जायजा

अब देखता हूँ कौन है देता दुआ मुझे
सच बोलने की कैसी मिलेगी सजा मुझे-
पहचानते नहीं मेरे अपने भी वक्त पर,
अब इस जमाने से ही उठा ले खुदा मुझे
मैंने खरीदी कार जो मन्दिर के पैसों से,
सारा जमाना कहने लगा देवता मुझे
जनलोकपाल तेरी पिटाई से डरते हैं,
नेताओं का तो झूठा लगा वायदा मुझे
सुजानwww.facebook.com/sujankavi

मंगलवार, 27 दिसंबर 2011

गजल-तरही मिसरे पर


खामोश ना रहें कुछ तो बात हम करें
चल एक  दूसरे  से  बात  हम  करें
कल जो हमारे बीच था अब वो नहीं रहा,
आओ कि उसकी याद में कुछ बात हम करें
वो जुल्म जुल्म हैं जो किये जानबूझकर,
अपने किये पे आँसू की बरसात हम करें
टकराव भी जरूरी हैं बदलाव के लिये,
लेकिन जरा सा प्यार से उत्पात हम करें
 sujan

रविवार, 27 नवंबर 2011

गजल-जल से संसार है

जल से संसार है,जल से संसार है
दोस्तो जल ही जीवन का आधार है
जल ही जीवन है यह सबको मालूम है,
फिर भी हमको समझने की दरकार है..

... जल बचाना तो जीवन बचाना हुआ,
इस तरह जल हमारा ही परिवार है..
जल बचाना लहू दान करना हुआ,

जल बचाना भी जीवन का विस्तार है..
अपनी संतानों से प्यार करते रहो,
जल बचाना तो बच्चों पर उपकार है..
पशु,पक्षी,आदमी सबमें ही जल के प्रति,

आदमी का ही चिंतनीय व्यवहार है

....................सूबे सिहं सुजान.............

शुक्रवार, 25 नवंबर 2011

तेरी निगाह अगर मेहरबान हो जाये
जमाना मेरे लिये बागबान हो जाये..
बताओ कैसा लगेगा तुम्हें जमाना फिर,
जमीं के जैसा अगर आसमान हो जाये

बुधवार, 16 नवंबर 2011

गजल

. गण हुये तन्त्र के हाथ कठपुतलियाँ
 अब सुने कौन गणतन्त्र की सिसकियाँ
. इसलिये आज दुर्दिन पडा देखना
 हम रहे करते बस गल्तियाँ-गल्तियाँ
 चील चिडियाँ सभी खत्म होने लगीं
 बस रहीं हर जगह बस्तियाँ-बस्तियाँ
 पशु-पक्षी जितने थे उतने वाहन हुये
 भावना खत्म करती हैं तकनीकियाँ
. कम दिनों के लिये होते हैं वलवले
 शांत हो जाएंगी कल यही आँधियाँ
 प्रश्न यह पूछना आसमाँ से सुजानॅ,
निर्धनों पर ही क्यों गिरती हैं बिजलियाँ
                                       सूबे सिहं सुजान

शुक्रवार, 30 सितंबर 2011

पानी से सभी बात करते हैं लेकिन पानी पर कोई भी विश्वास नहीं करता.उससे डरते है मन ही मन भय बना रहता है पानी से प्रेम करना हमारी मजबूरी है वह जीवन का आधार जो है वैसे प्रेम भी जीवन का आधार है.
क्या हम प्रेम से भी डरते हैं.

शनिवार, 24 सितंबर 2011

गजल--आज की

हमारे दौर में रहती है भागमभाग जीवन में
कहीं मिलता नहीं है शांतमय अनुराग जीवन में
बिना मतलब अनेकों काम पैदा कर लिये हमने,
जिधर देखो उधर मिसती है जलती आग जीवन में
                                             सूबे सिहं सुजान

रविवार, 18 सितंबर 2011

गजल-17-9-11

हम उनसे पहली दफा मिलके खिलखिलाये बहुत
पर उसके बाद मेरे नैन डबडबाये बहुत
हमारी चाह हमें मौत तक ले जाती है,
समेट लेने की चाहत ने लूट खाये बहुत
नजर तो लौटती है बिन कहे तआकुब में,
जिसे न देखा हकीकत में वो दिखाये बहुत
मुझे मिला है जमाने से खोखलापन सिर्फ,
कदम-कदम पर जो मुझे नीचा दिखाये बहुत
                             सूबे सिहं सुजान

शुक्रवार, 9 सितंबर 2011

ताजा गजल

पेड की मोटी  जडें  जैसे  नमी  को  ढूंढती
चल पडी मिलकर मकानों में किसी को ढूंढती
टूटती हैं सारी दीवारें तुम्हारे प्यार में,
और तुम तो रह गई मुझमें कमी को ढूंढती
दायरे में मेरे दिल की आग के जो कैद है,
वो भटकती याद है जो प्रेयसी को ढूंढती
जिंदगी को गुनगुनाना देखिये आसां नहीं,
आ गई कोने में बिल्ली छिपकली को ढूंढती
आसमाँ में धूल का बादल दिखाई देता है,
धूप पागल हो गई अपनी जमीं को ढूंढती
खत्म हो सकती नहीं शायद खुशी की जुस्तजू,
कल मिली थी जिंदगी पागल खुशी को ढूंढती
                                 सूबे सिहं सुजान

गुरुवार, 8 सितंबर 2011

दादी की कहानी

दादी की कहानी मुझे सपनों में मिलती है
कुछ अपनी निशानी मुझे सपनों में मिलती है
माँ-बाप को मैं भूल गया जब बडा हुआ,
अब अपनी जवानी मुझे सपनों में मिलती है
तूफान उठाती है पसीना ले आती है,
इक याद पुरानी मुझे सपनों में मिलती है
            सूबे सिहं सुजान

गजल-12-

गजल-12-( सीने में आग ) गजल संग्रह से----
जुर्म कोई भी छुपाया नहीं जाता मुझसे

झूठ का बोझ उठाया नहीं जाता मुझसे

खून के आंसू जब आयें हों मेरे होठों पर,

मुस्कुराहट को सजाया नहीं जाता मुझसे

याद आती है तेरी सादगी,तेरी मुस्कान,

तेरी बातों को भुलाया नहीं जाता मुझसे

जिन चिरागों ने मुझे जलना सिखाया यारो,

उन चिरागों को बुझाया नहीं जाता मुझसे

मैं बहुत रोया हूँ दुनिया के सितम सह-सहकर,

दिल किसी का भी दुखाया नहीं जाता मुझसे

सूबे सिहं सुजान

शनिवार, 3 सितंबर 2011

गजल-11

क्या हुआ देख भावनाओं का
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरण बने मंदिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
गर्म लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नव सृजनशील योजनाओं का
     सूबे सिहं सुजान
   09416334841
  कुरूक्षेत्र
e- mail-subesujan21@gmail.com

बुधवार, 31 अगस्त 2011

गजल-9-

गजल-9-
आपका ये साल गुजरे पहले से अच्छी तरह

जिन्दगी की सोच निखरे पहले से अच्छी तरह

दे रहा हूँ मैं तुम्हें शुभकामना नव वर्ष की,

मुस्कुराहट लब पे ठहरे पहले से अच्छी तरह

आबरू लुटती है अपनी अब सरे बाजार जबकि

शहर में हैं आज पहरे पहले से अच्छी तरह

आज बच्चों को बिठाने की जगह कम पड गई

जबकि स्कूलों में हैं कमरे पहले से अच्छी तरह

रोशनी की जीत हो भागे अंधेरा दूर - दूर

आसमाँ से धूप उतरे पले से अच्छी तरह

वो किसी के प्यार की बारिश में भीगे हैं सुजान,

दिख रहे हैं उनके चेहरे पहले से अच्छी तरह

सूबे सिहं सुजान

09416334841

गुरुवार, 25 अगस्त 2011

गीत

गीत->

आज मन मेघ सा हुआ जाये

दिल में आया कि कुछ कहा जाये.....

जब हवायें कहीं उछलती हैं

पेड की टहनियाँ टहलती हैं

बूंद का मन तडफ कर कहता है

आज मुझसे न कुछ सहा जाये....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये....

जब कोई मन की बात सुनता है

दिल का अहसास फूल बनता है

कोई बादल-बदल नहीं सकता

मिल हवा से उडा-उडा जाये....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये..

बूंद बरसे बहार बहती है

हर नदी इन्तजार सहती है

फूल, फल देने को अब आतुर हैं

हर किसी को बहार भा जाये.....

दिल में आया कि कुछ कहा जाये......

सूबे सिहं सुजान

मंगलवार, 23 अगस्त 2011

ghazal 23/8/11

आँख में अपनी लाज रखता हूँ
पास अपने समाज रखता हूँ
कल कहाँ पर बसेरा है मेरा,
खूब ताजा मिजाज रखता हूँ
हर घडी मौत लेकर घुमो यार,
जेब में अपनी आज रखता हँ

सूबे सिहं सुजान

गजल-8

तुमसे मिलकर लगता है मौसम सुहाना हो गया
देख तुमको दिल ये बोला मैं दिवाना हो गया
जिनसे मिलने की कभी उम्मीद भी हमको न थी
प्यार करके उनसे भी मिलना मिलाना हो गया
दूसरों को आजमाते- आजमाते यूँ हुआ,
जिन्दगी में आज खुद को आजमाना हो गया
दोस्तो आओ हँसे मिल बैठ कर फिर एक साथ
आजकल मुश्किल बहुत ही मुस्कुराना हो गया
बातें बेमकसद की ही करते रहोगे क्या सुजान,
काम भी कर लो बहुत हँसना हँसाना हो गया
सूबे सिहं सुजान

सोमवार, 22 अगस्त 2011

गजल

जब गरीबी सताने लगी
भीड पत्थर उठाने लगी
भूख रोटी से मिटती नहीं
भूख पत्थर भी खाने लगी
बात जितनी छुपाने लगा
सामने उतनी आने लगी
दिल में क्या-क्या छुपा सकता था
आँखें सब कुछ बताने लगी
जब उसे प्यार मुझसे हुआ
देखकर मुस्कुराने लगी
हाय कैसी जुदाई की रात
चाँदनी कहर ढाने लगी
मौत आई है नजदीक तो
साँस रूक-रूक के आने लगी
आपका प्यार पाकर सुजान
जिंदगी रास आने लगी

     सूबे सिहं सुजान

बुधवार, 17 अगस्त 2011

अन्ना की लहर

क्या खबर थी दिल्ली को,दौडेगी अन्ना की लहर
देश को इक बार फिर जोडेगी अन्ना की लहर
अन्त करना है जरूरी,आज भ्रष्टाचार का
तोडना है अहम मिलकर इस सरकार का
वोट देना छोड दो भ्रष्टाचारी नेताओं को अब
...आज ऐसा करके ही छोडेगी अन्ना की लहर......

अपना दामन ठीक करलो जनता तुम्हारी बारी है

रोगी भी तुम हो चिकत्सक भी ,तुम्ही उपचारी है
देश के हर कोने से आवाज ये उठने लगी,

देश को इकसूत्र में जोडेगी अन्ना की लहर

सोमवार, 15 अगस्त 2011

15 august

समय फिर कह रहा है देखिये कोई नया सपना
गलत है यह किसी से पूछ कर फिर देखना सपना
कदम पहला बढाया जिसने हम सब साथ हैं उसके,
चलो आगे बढो, पूरा करेंगे आपका सपना
हजारों साल लगते हैं जमाने को बदलने में,
मेरे यारो किसी का भूल कर मत तोडना सपना
सूबे सिहं सुजान

aadharshila:

aadharshila:

रविवार, 14 अगस्त 2011

स्वतंत्रता दिवस

समय फिर कह रहा है देखिये कोई नया सपना
गलत है यह किसी से पूछ कर फिर देखना सपना
कदम पहला बढाया जिसने हम सब साथ हैं उसके,
चलो आगे बढो, पूरा करेंगे आपका सपना
हजारों साल लगते हैं जमाने को बदलने में,
मेरे यारो किसी का भूल कर मत तोडना सपना
सूबे सिहं सुजान

शुक्रवार, 12 अगस्त 2011

गजल-5सीने में आग-गजल संग्रह से

सुजान कवि
गजल-5-(सीने में आग) गजल संग्रह से

कितनी गर्मी बढ गई बरसात होनी चाहिये
थक गया सूरज बहुत अब रात होनी चाहिये
...बीते दिन जब याद आये दिल ने मुझसे फिर कहा
आज अपनी प्रेमिका से बात होनी चाहिये
हम न हिन्दू,हम न मुस्लिम,ये हमारी भूल है
आदमी की आदमी ही जात होनी चाहिये

शांति की वार्ता का कुछ परिणाम निकला ही नहीं
चाल अब ऐसी चलें शहमात होनी चाहिये
आजकल यही सोच कर गीत गाता है सुजान

दुश्मनों से दोस्ती की बात होनी चाहिये

सूबे सिहं सुजान

गुरुवार, 11 अगस्त 2011

गजल-4 सीने में आग-गजल संग्रह से

गजल-4 (सीने में आग)
चेहरे से साफ झलकता है इरादा क्या है
सच छुपाने के लिये देखिये कहता क्या है
जैसे इन्सान में अहसास नहीं बाकी आज
किस घडी कौन बदल जाये भरोसा क्या है
फूलों से खुशबू महकती नहीं पहले जैसी
सोचिये अपनी मशीनों से निकलता क्या है

प्यार की चाह की ओर चैन गंवाया हमने
दिल लगाने का बताईये नतीजा क्या है
सामने पाके मुझे आप ठहर जाते हो

सच बताओ कि मेरा आपसे रिश्ता क्या है

सूबे सिहं सुजान

गजल-3 सीने में आग-गजल संग्रह से

तुम्हारा होके जब कोई तुम्हारा दिल दुखायेगा
तुम्हें उस पल हमारा प्यार फिर से याद आयेगा
किसी से प्यार कर लो और उसके साथी बन जाओ
यही दौलत है जीवन की इसी से चैन आयेगा
कोई इन्सान तन्हाई में खुश रहता नहीं लेकिन
मुहब्बत में अकेला बैठ कर भी मुस्कुरायेगा
बहुत खुश है लगाकर आग अब तू दूसरों के घर
तेरा भी घर जलेगा जब,तो फिर कैसे बुझायेगा
मुझे चाहे भुला देना मगर ये याद रखना तुम
मैं जितना चाहता हूँ तुमको,इतना कौन चाहेगा

                            सूबे सिहं सुजान

विशेष- मेरे गजल संग्रह से यह गजल मेरे दिल के बहुत नजदीक है
और बहुत ही गेय है मैं इसको जगजीत सिंह जी की धुन पर गाता हूँ
आप भी इसी धुन पर गा कर देखिये...........

मंगलवार, 9 अगस्त 2011

गजल-सफल

जो बुरे हों सफल नहीं होते
लोग अच्छे विफल नहीं होते
जिनका सुख हम भुला नहीं पाते
काम ऐसे सरल नहीं होते
ईंट पत्थर लगाने पडते हैं
कागजों में महल नहीं होते
वो इरादे अधूरे रहते हैं
जो इरादे अटल नहीं होते
प्यार उनको कभी नहीं होता
जो हृदय से विकल नहीं होते

                   सूबे सिहं सुजान

सोमवार, 8 अगस्त 2011

रूबाई

1.दृढ पत्थर जलधार बदल देते हैं
मेहनतकश संसार बदल देते हैं
जो लोग कठिन कार्य को करते हैं
वह जीवन आधर बदल देते हैं
2.-
पल प्रतिपल यह देश बदलता जाये
हैं रंग नये वेश बदलता जाये
नवजागृति का काल उदित हो आया
अब भारत परिवेश बदलता जाये
        सूबे सिहं सुजान

रविवार, 7 अगस्त 2011

मेंढक बोलते हैं

मेंढक क्यों बोलते हैं
जब वर्षा होती है
साल के ओर दिनों में
क्या वो बहरे हो जाते हैं
अगर नहीं तो ....
कैसे बिन बोले वो रह पाते हैं
कैसे सहन करते हैं
अपने आपको...................
अपनी खामोशी को.........
क्या आदमी को सिखाते हैं
कैसे सहनशील बन सकते हो,
तुम भी.........
बरसात के इन्तजार में
जमीन के अन्दर
ज्यादा दिन काटना
मुझे आता है क्या
आपको आता है...............

शुक्रवार, 5 अगस्त 2011

गजल


गजल-
मैंने स्वीकारा उसका गुलदस्ता
फूल नकली था कैसे मुरझाता
उसको अपनी ही बात अच्छी लगे
मैं भला उसको कैसे समझाता
...जबसे मंहगाई गीत गाने लगी
तबसे हर आदमी है घबराता
घोंसले ने ही लूटा चिडिया को
जुर्म हर डाल-डाल इतराता
धर्म को जानते नहीं हम सब
वरना हमको कोई न बहकाता

जुर्म को देखता रहा चुपचाप
इससे अच्छा सुजान मर जाता

सूबे सिहं सुजान

नासमझ समझता है

नासमझ कुछ समझता है कभी-कभी
बादल क्यूँ बरसता है कहीं-कहीं
चाँद क्यूँ निकलता है कभी-कभी
ये बात मेरी समझ में तो आ जाएगी
वो क्यूँ नही समझता है कभी-कभी
रात मस्त हो क्यूँ चांदनी को बुलाती है
...दिन क्यों बदगुमाँ हो जाता है कभी-कभी
मैं समझाता ही नहीं उसको कुछ भी,
उस वक्त वो कुछ समझता है कभी-कभी
चाँद, चाँदनी की जगह पर बैठा है सदियों से,
सूरज ना चल कर भी, चलता है सदियों से

सूबे सिहं सुजान

गजल-कुत्ते

कुत्ते ज्यादा नजर आते हैं गाय कम
जैसे अन्याय ज्यादा हुआ न्याय कम
छोडिये अब बडी बातें छोटी भी कर,
काम करके दिखा और दे राय कम
पैसे ना देख सेहत को भी देखिये ,
पीजिये दूध ज्यादा मगर चाय कम
ये तरक्की में कैसा मजा आ रहा,
बढ गये खर्चे और हो गई आय कम
हमने अन्याय का सामना कब किया?
चाहते हम तो हो जाते अन्याय कम
                         सूबे सिहं सुजान

गुरुवार, 4 अगस्त 2011

किशोर की याद में गीत

कितनी बातें दबा रक्खी हैं दिल में
जिनके कारण हूँ आज मुश्किल में

तुमको जब भी मैंने सोचा
फिर अपने दिल को खोजा
...तुम थी, दिल गुम था.
ये क्या रोडा अटका मेरी मंजिल में.........तुमको..

धरती पर हूँ चाँद को देखने के लिये

बता चाँद पर जाऊं मैं किसलिये
धरती भी है चाँद भी है तुम भी हो
ताकि तुम रहो हर पल साहिल में......तुमको...........

सूबे सिहं सुजान

किशोर जी की याद में उनकी तर्ज में ये गीत भी गुनगुनओ.....

मंगलवार, 2 अगस्त 2011

गजल

उसकी आँखों ने मेरी आँखों को धोखा दे दिया
मुझसे लेकर प्यार सच्चा, मुझको झूठ दे दिया
दिल के रिश्ते तोडता है, जोड जो सकता नहीं
कम नहीं होता कभी, क्यूं दर्द ऐसा दे दिया
उसकी मीठी मुस्कुराहट पर फिदा हो मैंने तो,
इस जवानी का निगौडा प्यार पहला दे दिया

                                        सूबे सिहं सुजान

मेघ

मेघ तुम जिद छोडो
गरमी का दिल तोडो
तडफाना छोडो
बरस जोओ-बरस जाओ..

खेत में धान है सूखा
घर में परिवार भूखा
हवाओं का रूख मोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ...

सावन क्यूं है तन्हा
बादल क्यूं है बेवफा
घोटालों की सरकार तोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ

मेरे दिल में आस भरी है
सदियों की प्यास भरी है
लोगो मेघ से दिल को जोडो..
बरस जाओ-बरस जाओ.....
सुजान.................

रविवार, 31 जुलाई 2011

शुक्रवार, 29 जुलाई 2011

मानसून

जिन दिनों मानसून चलती है
हर कली कपडों को बदलती है
मैं उसे देखकर उछलता हूँ,
वो मुझे देखकर मचलती है
जिंदगी बारिशों बिना क्या है,
जिंदगी बारिशों में खिलती है
बारिशें दोस्त एक उत्सव हैं,
इनसे घर-घर में शम्अ जलती है
मिट्टी के रोम-रोम में बसकर,
बूँद फिर आत्मा से मिलती है

          सूबे सिहं सुजान

शनिवार, 16 जुलाई 2011

प्राइमरी का मास्टर: अशोक की कहानी – 1

good प्राइमरी का मास्टर: अशोक की कहानी – 1: "यह कहानी प्रोफ़ेसर कृष्ण कुमार द्वारा लिखी गयी है प्राथमिक शिक्षा के दृष्टिकोण को समझने के लिए यह कहानी एक माध्यम है एनसीईआरटी के नि..."

छह मई2001

झूठ की योजना विस्तार नही ले सकती
झूठ कोई भी पुरस्कार नही ले सकती
मर नही सकती जमाने से कभी सच्चाई,
झूठ सच का कभी अधिकार नही ले सकती
तुम अगर कोई कदम आगे बढाओगे नही,
कल्पना कोई भी आकार नही ले सकती
प्यार कायम है जमाने में हमेशा के लिये,
प्यार की जगह को तलवार नही ले सकती
प्यार के बदले तुझे प्यार मिलेगा मुझसे,
दिल दुखाकर मेरा तू प्यार नही ले सकती...
...............................सूबे.....सिहं...........सुजान................

शुक्रवार, 15 जुलाई 2011

एक

टहनियाँ जब निकट गई देखो
ये लतायें लिपट गई  देखो
तू हवा जोर-जोर से ना चल,
बेल की बाँह कट गई देखो
तुम पवन मस्ती में बहकती हो,
बेल से छाँव हट गई  देखो
जब बरसने लगी घटा छम-छम,
भीगते ही चिपट गई देखो
आबरू आपकी ऐ हिन्दुस्तान,
सैंकडों बार लुट गई देखो
मोड कर मुंह चली गई तुम तो,
मेरी तकदीर मिट गई देखो..

   दिनांक- 20 जनवरी 2000
                                                         

गुरुवार, 14 जुलाई 2011

दिल के करीब गजल

क्या हुआ देख भावनाओं का
हो गया खून कल्पनाओं का
जड बने अब विचार लोगों के,
युग गया बीत चेतनाओं का
हाय आँसू नही बहा सकता,
दुख यहाँ देख वेदनाओं का
हो गया हूँ शिकार फिर देखो,
जिन्दगी में विडम्भनाओं का
कातिलों की शरन बने मन्दिर,
कुछ नहीं लाभ वन्दनाओं का
आदमी भी सदा रहा कैदी,
ईश्वर की उपासनाओं का
गरम लोहा उठा ले हाथों में,
मत मना रोष यातनाओं का
प्यार का देवता सिहरता है,
हो रहा मान वासनाओं का
प्रेम गायक सुजान ही होगा,
नवसृजनशील योजनाओं का
                                       सूबे सिहं सुजान

शुरूआती गजल

अब जिन्दगी के नियम जब बहुमुखी हो गये
तो आदमी प्यार पाकर भी  दुखी  हो  गये
धर त्रासदायक हवा से झुलसते जा रहे,
सम्बंध परिवारों में अब तो तलखी हो गये
मजबूरियों से सहन करते हुये  दर्द को
देखो सभी लोग अब अन्तर्मुखी हो गये

गजल

हौंसले जब बुलंद होते हैं
काम मुठ्ठी में बंद होते हैं
लोग डरपोक तो हजारों हैं,
साहसी लोग चंद होते हैं
आदमी सोच भी नहीं सकता,
मन में कितने द्वंद होते हैं
लोग उनको पसंद करते हैं,
जो सभी को पसंद होते हैं
जिस तरह धूप और हवा महकें,
गीत में ऐसे छंद होते हैं
                                       सूबे सिहं सुजान

दोहा

मानवता की मौत के, छप रहे समाचार
मरती भावनाओं का, कौन करे उपचार

शनिवार, 9 जुलाई 2011

sujanसुजान: गजल

sujanसुजान: गजल: "गगन में कोहरा छाया हुआ है के सूरज फिर से घबराया हुआ है समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर, मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है बनाकर सूली अपने वादों ..."

गजल

गगन में कोहरा छाया हुआ है
के सूरज फिर से घबराया हुआ है
समाकर इन दुखों ने मेरे अन्दर,
मुझे पत्थर सा चमकाया हुआ है
बनाकर सूली अपने  वादों की,
सभी को उसने लटकाया हुआ है
खुशी से भोगकर ये आधुनिक सुख,
हर इक इन्सान पछताया हुआ है
सुनो ये चीखना वातावरण का,
ये मौसम आज उकताया हुआ है
मेरे नजदीक आकर देखना तुम,
सरल व्यवहार अपनाया हुआ है
क्यों ना दीवाने होंगे सब तुम्हारे,
बदन जो तेरा गदराया हुआ है
दिया है दर्द जो भी जिन्दगी ने,
सुनो इस गीत में गाया हुआ है

दिनांक- 2 अक्तूबर 2000                 सूबे सिहं सुजान

शुक्रवार, 8 जुलाई 2011

बरसात

दिल की भारी उमस के बाद
जब सब हो जाता है असहनीय
तुम बरस पडती हो तड-तड
यह अहसान होता है तुम्हारा
सारी पुरानी यादें करें गड-गड
और फिर बदल जाता है मौसम
मौसम में घुल जातें हैं हम
फिर हर कोई लगने लगता है अपना
और जन्म लेने लगता है नया सपना
तुम्हारा बरसना,हमारा तरसना
कितना मेल है, दो किनारों के बीच............
                                                   सूबे सिहं सुजान

मंगलवार, 5 जुलाई 2011