सोमवार, 23 जुलाई 2018

अदबी संगम कुरूक्षेत्र ने गोपालदास नीरज को दी श्रद्धांजलि

कुरूक्षेत्र - आज दिनांक 22 जुलाई को अदबी संगम कुरूक्षेत्र की मासिक काव्य गोष्ठी श्री दीदार सिंह कीरती जी की अध्यक्षता में अखंड गीता धाम सेक्टर आठ, कुरूक्षेत्र में हुई जिसमें सर्वप्रथम साहित्य जगत के चितेरे गीतकार गोपालदास नीरज को भावभीनी श्रद्धांजलि दी गई श्री गुलशन कुमार ग्रोवर जी ने यह पंक्तियाँ गायी ।

 "अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाये,
जिसमें इनसान को इनसान बनाया जाये ।"

श्री आर के शर्मा ने गोपालदास नीरज की कविताओं व गीतों को सुनाकर महफ़िल को मदमस्त करते हुए गीतों में श्रद्धांजलि दी ।

 आज की काव्य गोष्ठी में डॉ बलवान सिंह ने वर्तमान परिदृश्य पर कविता में कहा -
 "वो बोले मगर संसद में भूचाल नहीं आया ।
गुनगुनाने की कोशिश की पर सुरताल नहीं आया।।

 इधर गले पड़े और आंख मारी उधर जाकर ।
तनिक भी संसद की गरिमा का ख्याल नहीं आया।।"
                       डॉ बलवान सिंह

"सारी दुनिया की दौलत कम है मां के हाथों की रोटी के सामने ।
सारी दुनिया की खुशियां मिली उसे जिसने भी मां के हाथों की खाई रोटी"

  गुलशन कुमार ग्रोवर जी ने हिंदी के महान कवि गीतकार ग़ज़लकार पदम विभूषण दिवंगत श्री गोपालदास नीरज को श्रद्धांजलि देते हुए उनका यह शेर ही गोष्ठी में पढ़ा 
"अब तो मज़हब कोई ऐसा भी चलाया जाए ।
 जिसमें इंसान को इंसान बनाया जाए ।। "

मोती राम तुर्क ने दोहे पढ़े
 पानी आंखो में मरा , मरी शर्म और लाज ।
कहे बहू अब सास से,घर में मेरा राज ।।
भाई भी भाई भी करता नहीं,भाई पर विश्वास ।
बहन पराई हो गई , साली खासमखास ।।
मोती राम तुर्क

मैं मजबूर हूं तभी तो मजदूर हूं दिल मेरा भी है दिल में धड़कती ख्वाहिशें हैं 
   संजय मित्तल   

सुमन प्रजापत युवा कवियित्री ने अपनी कविता इस तरह पढ़ी ।
हकीकत है सच्चाई है खुद पर बीती औरों ने भी बताई है अपने हाथों हमने खुद आग लगाई है ।

सुमन प्रजापत   

प्रकाश कुमार कश्यप ने अपनी रचना पेश करते हुए कहा
      "सुना है इरादे क़त्ल में तलवार जरूरी नहीं 
वो नज़र भी किसी खंज़र से कम नहीं रखते ।
  प्रकाश 
 अन्नपूर्णा शर्मा ने भी गीतकार गोपालदास नीरज को श्रद्धांजलि के रूप में अपनी कविता कही

चला गया है वह गीतों का चितेरा
 दुखा गया वह दिल तेरा
  वह सूरज सा दीप्तिमान था ।
चमकता उसमें आसमान था ।
प्यार के गीतों को जिसने टेरा ।
चला गया है वह गीतों का चितेरा ।।

और गंगा मलिक जी ने गीत तरन्नुम में पेश करते हुए कहा  -
अब तो होने लगी बरसात केहि विधि आन मिलो आज बस में नहीं जज्बात केहि विधि आन मिलो नींद नैनों की गलियों में आती नहीं
बूंद बरखा कि तुम बिन सुहाती नहीं
मोहे बैरन लगे है बरसात केहि विधि आन मिलो ।

छूट गए सब संगी-साथी सागर साकी और शराब कालचक्र सा बदल रही है अपना भी दस्तूर गजल ।
   कस्तूरी लाल शाद

कोई अर्ज़ी कोई दरख्वास्त अब मंजूर नहीं होती
क्यों कहीं पूरी अब कोई फरियाद नहीं होती 
   करनैल खेड़ी साहब 

 ओम प्रकाश राही ने कवि सम्मेलन का संचालन करते हुए अपनी राष्ट्र के नाम कविता में कहा राही क़फन तिरंगे वाला चूम चूम कर गाती माँ 
और अगर एक बेटा हो तो वतन पे उसे लुटाती माँ । 

दीदार सिंह कीरती जी जिन्होंने आज की गोष्ठी की अध्यक्षता की उनका अंदाज पंजाबी कविता में देखिए -
 "रिश्वत मेरे देश दे अन्दर, लाउंदी हर काम नूं पहिये ।
  अनहोनी नूं होणी करदे, रखो तली दे जदों रुपिये ।।

डॉ राकेश भास्कर जी ने काव्य गोष्ठी की मेजबानी भी की और उनकी हास्य व्यंग्य कविता की कुछ पंक्तियाँ देखिए -

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आज की काव्य गोष्ठी में कविता व ग़ज़ल सुनाने वाले कवियों व शायरों में श्रीमती शकुंतला शर्मा, श्री दीदार सिंह कीरती, डॉ राकेश भास्कर ,श्री कस्तूरी लाल शाद, श्री ओमप्रकाश राही, श्री आर के शर्मा, श्रीमती गंगा मलिक, श्रीमती अन्नपूर्णा शर्मा, गुलशन कुमार ग्रोवर, सूबे सिंह सुजान, सुमन प्रजापत, डॉ बलवान सिंह, संजय मित्तल, सुधीर ढांढा,करनैल खेड़ी, प्रकाश कुमार, मोती राम तुर्क, नीलम,अमित,राजेश आदि नये कवियों ने भी कविताएँ सुनाई ।

सूबे सिंह सुजान
सचिव -अदबी संगम कुरूक्षेत


शनिवार, 7 जुलाई 2018

शोध लेख *कवितालयों की आवश्यकता*


*कवितालयों की तीव्र आवश्यकता है*
जिस तरह अस्पताल व पुलिस स्टेशनो की जरूरत है
उसी तरह से समाज को कवि व कविताओं की की जरूरत है। 
कविता समाज की जुबान होती है कविता के माध्यम से समाज अपनी बात कह पाता है अपनी भावनाओं को मासूमियत व नाजुकी से  कह व सुन पाता है ।
अपनी बात कहने को तो हम सारा दिन आपस में न जाने कितना बोलते हैं और किसी समय बोलने के कारण ही आपस में प्यार करते हैं या लड़ाई कर बैठते हैं हर प्रकार के व्यक्ति होते हैं कुछ व्यक्ति बहुत कम बोलना पसंद करते हैं तो कुछ बोलने से रोके नहीं रुकते, अर्थात मनुष्य बिना बोले या बातें किये रह नहीं सकता हर काम करने के लिए मनुष्यों को एक दूसरे पर निर्भर होना पड़ता है यही प्रक्रिया समाज का निर्माण करती है ।
*अब बात करते हैं समाज व कविता का संबंध पर और उसकी आवश्यकता पर*
मनुष्यों को जितनी जरूरत स्वास्थ्य के लिए डॉक्टर,अस्पतालों की पड़ती है उसके पीछे बीमारियाँ कारण होती हैं लेकिन बीमारियाँ होती ही क्यों हैं इनके होने के कारण को पता तो करना चाहिए कुछ बीमारियाँ वायरस आदि से होती हैं लेकिन वर्तमान टेक्नोलॉजी के युग में मनुष्य का भी मशीनीकरण हो गया है जिसकी वजह से अधिकतर बीमारियाँ मनुष्य द्वारा अपने शारीरिक अंगों का समुचित प्रयोग न करना या विपरीत दिशाओं में प्रयोग करना जो प्राकृतिक नहीं होता जिससे अनेकानेक बीमारियाँ पैदा होती हैं  इन बीमारियों से निजात पाने के लिए हमें बहुत सी क्रियाओं को करना पड़ता है जो हमारे मन मस्तिष्क पर असर डालती हैं कविता भी उन्हीं क्रियाओं में से सबसे मुख्य होती है  तो क्यों नहीं हम इन कारणों के लिये कविता,कहानी जैसी सार्थक क्रियाओं को प्रभावी बनायें और जिस प्रकार सरकार अस्पताल,पुलिस स्टेशन पर बजट खर्च करती है उसी प्रकार "कवितालय" बनाये जायें जहाँ पर लोगों को कविता सुनाकर उनके तनाव,मानसिकता रोगों को,काम के बोझ से पैदा हुए रोगों से निराकरण किया जा सके तथा साथ ही साथ मोबाइल वैन की तरह कवि उपलब्ध करवाये जायें जो समाज की आवश्यकता को वहीं जाकर पूरी करें ।
कविता मानव मन मस्तिष्क पर प्राकृतिक रूप से प्रभाव डालती है और मनुष्य की गलत आदतों में सुधार लाती है तथा अप्राकृतिक कार्य करने से रोकती है और मनुष्य को प्राकृतिक बनाती है प्राकृतिक रूप से बहने वाली हर वस्तु,मनुष्य,समाज स्वयं स्वस्थ हो जाता है कविता मनुष्य को परिभाषित करती है जिससे वह रूकता नहीं,समाज में बाधा नहीं आती और मनुष्य सकारात्मक होता जाता है ।
कवितालयों का निर्माण करके उनमें सार्थक व सकारात्मक कवियों को उपलब्ध करवाया जाना चाहिए यह कवि,शायर कविता,ग़ज़ल स्वयं कहेंगे व इतना ही नहीं समाज के लोगों को कविता कहने के लिए प्रोत्साहित करेंगे जैसे मानसिक डॉक्टर इलाज करता है उसी प्रकार बिना प्रयोगशाला के मानसिक रूप से कमजोर व्यक्तियों का इलाज तो होगा ।
जिस मनुष्य को परिभाषित किया जायेगा वह स्वस्थ हो जाएगा हमें कविता के माध्यम से मनुष्यों को और समाज को परिभाषित करना होगा ।
"*कवितालयों का निर्माण करने की बात बेशक आपको प्रारंभ में अटपटी लगे लेकिन यह वर्तमान समाज की के लिए बेहद जरूरी है*"
*सूबे सिंह सुजान*
*कुरूक्षेत्र हरियाणा*
@यह शोध लेख सर्वाधिकार सुरक्षित है सूबे सिंह सुजान के ब्लॉग पर ।

गुरुवार, 5 जुलाई 2018

एक शेर - मुझे बर्बाद करना है

मुझे बर्बाद करना है तो फिर बर्बाद कर दो ना
मुझे तुम याद आओ, और तुम भी याद कर दो ना ।।

कभी पानी पिलाते हो,कभी तुम घास रखते हो,
तुम्हें प्यारी हैं इतनी बकरियाँ,आजाद कर दो ना ।।

 सूबे सिंह सुजान