शुक्रवार, 17 जुलाई 2020

स्वागतम

वह घर के आंगन को साफ़ कर रहा है।  आसपास खडी़ घास के पौधों को क़रीने से साफ़ कर रहा है । कुछ फूल के पौधे लगा रहा है उनको किस जगह लगाना है यह बार बार सोचकर,समझकर निश्चित करता है। सोचता है यहां यह ग़ुलाब ठीक है, वहां पर चमेली और कहीं कुछ तो कहीं कुछ, उसके मन में उदेड़बुन चल रही है वह यहां से गुजरने पर शायद इस बात की तारीफ करे  या इस बात की, वह पौधों को लगाने से पहले सोचता है कि कौन सा पौधा कहां उसको अच्छा लगेगा,वो आएगी तो उसे मेरे घर आने के रास्ते में कोई तक़लीफ न आए दुनिया के क्या हाल हैं कौन क्या कर है सूरज कब आया,कब गया, रास्ते से कौन कौन गुज़रा, हवा कब चल रही है,कब नहीं चल रही है,कितनी गर्मी है या सर्दी है उसे अन्य कोई अहसास नहीं केवल एक उसके आने के अहसास के अलावा।

वह आए या न आए लेकिन वह उसके आने की तैयारी कर रहा है अपने अंदाज से, अपना समय गुजार रहा है वह अपने मन में उसके लिए  पूरी ुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुुदुनिया बसाए हुए
 है । 

शुक्रवार, 10 जुलाई 2020

#अनकही 1 यथार्थ कहानी। #अपना धोखा

पिता जी अनपढ़ व बहुत भोले भाले थे वे दूसरे व्यक्ति की चालबाजी को नहीं समझते थे और इस वज़ह से ज़िन्दगी में अनेक बार धोखा खाया, या यूं कहें कि धोखा खाते खाते अपनी भूख मिटाते थे।

  • भारत में जिस समय कृषि परांपरागत तरीके से की जाती थी और सबसे प्रथम समय में बिजली के ट्यूवैल से खेती की जाने लगी तो हमारे गांव में शायद केवल पहला बिजली से संचालित ट्यूबवेल लगा था और उसके सं
को ठीक प्रकार शिक्षित लोग कर पाते थे। लेकिन पिता जी यह सीखाने के बाद तो कर सकते थे लेकिन उनके बड़े भाई के तो बेटे शिक्षित थे जो अपना खेती का कार्य तकनीक को समझ कर कर लेते थे परन्तु छोटे भाई जो गांव में केवल पहले स्नातक व्यक्ति थे, वे कोई भी जानकारी न देकर हर बात में मज़ाक उड़ाते थे व धूर्तता पूर्वक व्यवहार करते थे।

जब पहले वर्ष धान के खेत में बिजली के ट्यूवैल से पानी दिया जाता था तो सबके खेत में पानी लगाने की बारी आती थी चार भाईयों के खेत में पानी देने की बारी निश्चित कर दी गई थी सब अपने समय पर पानी देने लगे व धान रोपाई हो गई थी।
जब पिता जी के खेत में सबसे बेहतर धान की फ़सल लहराने लगी तो खेत सबके आकर्षण का केन्द्र बन गया और उनकी मेहनत की तारीफ होने लगी।
अब धान की फ़सल दाना लेने की तैयारी में थी और बरसात का मौसम जा चुका था तो खेत में पानी केवल ट्यूबवेल से ही संभव था तो सब अपनी अपनी बारी पर पानी दे थे। अब जिस दिन पिता जी की पानी की बारी थी तो चाचा जी ने बिजली के फ्यूज को हटा दिया जिससे मोटर बिजली होने पर भी नहीं चली, पिता जी ने अपने भाई को कहा कि भाई देखना पानी की मोटर नहीं चल रही है जबकि बिजली है तो चाचा ने कहा कि मुझे क्या मालूम,तू खुद पता कर तेरी बारी है पिताजी ने दरख्वास्त भी कई,हाथ जोड़कर विनती की लेकिन वे अनपढ़ गंवार कहते हुए चले गए।
उसके बाद पिता जी ने अपने बड़े भाई के बेटों से निवेदन किया, लेकिन उन्होंने कहा कि तू और तेरा भाई जाने हमें क्या लेना? 
इस तरह एक बारी निकली, फिर चार दिन बाद बारी आई वह भी उसी तरह चाचा जी की मेहरबानी से निकल गई और ऐसा करते करते फ़सल उस समय सूख गई जब उसमें दाने पड़ने वाले थे।
पिताजी और मां दोनों सबकी ओर आस भरी निगाहों से देखते लेकिन कोई मदद नहीं करता मां पिताजी के बड़े भाई के बेटों का खाना बनाती थी क्योंकि ताई बहुत ज्यादा बीमार थी और उन चारों बड़े भाइयों की उद्दंडता को भी झेलती थी लेकिन जब फ़सल सूखने की बात करती तो वे खूब हंसते।
इस तरह फ़सल सूख गई और मां व पिता को रोते रोते  गांवके लोगों से खाने के लिए भी मांगना पड़ा और हम चार छोटे छोटे भाइयों का पेट भरना पड़ा था यह सब देखकर चाचा बहुत खुश था जैसे उनकी मुराद पूरी हो गई थी।

सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 9 जुलाई 2020

गद्य काव्य एक जटिलता पैदा करना है।

पिछले दिनों एक परिचर्चा हो रही थी, जिसमें गद्य काव्य को परिभाषित करने पर चर्चा थी। 
जब हमारे पास अनेक काव्य विधा उपलब्ध हैं तो उसके बाद भी हम ऐसी काव्य विधा को अपनाने की कोशिश कर रहे हैं जो अपने नामकरण से ही यह स्पष्ट करती है कि वह कोई एक स्पष्ट विधा नहीं है किसी विषय या विधा का स्पष्ट होना बहुत आवश्यक है यदि वह स्वयं ही स्पष्ट नहीं है तो हम उसके साथ जबरदस्ती या बलात्कार कर रहे हैं यह स्वयं स्पष्ट हो जाता है।

यह एक उदाहरण से और स्पष्ट हो जाता है यह इस प्रकार है कि जैसे कोई शराबी एक या दो पैग पीने के बाद अपने आनंद के योग्य हो जाता है (जिसे वह आनंद कहता है) अर्थात उसे आवश्यक नशा हो जाता है परन्तु वह उसके बाद भी अनेक प्याले पीता है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं थी बस वह और परेशानी को बढ़ाने की कोशिश करता है,वह समस्याग्रस्त हो रहा होता है,उसे यहां तक चैन नहीं है वह अपने लिए व अन्यों के लिए जटिलता पैदा कर रहा होता है।
इसी प्रकार हम गद्य काव्य कहने के साथ कर रहे हैं हम अनावश्यक प्रयोग कर रहे होते हैं हम लेखन में जटिलता पैदा कर रहे होते हैं जब हमारे पास अपनी बात कहने के लिए अनेक गद्य विधा उपलब्ध हैं व अनेकों काव्य विधा उपलब्ध हैं तो उसके पश्चात भी हम काव्य विधा से छेड़छाड़ क्यों कर रहे हैं?
इसके उत्तर में हम कह सकते हैं कि यह नव प्रयोग है हां नव प्रयोग होने चाहिए लेकिन प्रयोग ऐसा भी न होना चाहिए जो स्पष्ट ही न हो और वह अनावश्यक जटिलता पैदा न करता हो।
हम मनुष्य जीवन के विकास पर एक नज़र डालें तो पाएंगे कि मनुष्य में पुरुष, पुरुष ही है और स्त्री, स्त्री ही है। दोनों का मिश्रण नहीं हुआ है हां कुछ अपवादों को छोड़कर, लेकिन अपवाद जो हुआ है वह फलित नहीं हो सकता उसका कोई उद्देश्य नहीं हो पाया वह प्राकृतिक नहीं हो पाया।
मनुष्य के कर्मिक विकास प्रक्रिया के प्रमाण हजारों वर्षों तक के उपलक्ष्य हैं हमारे पास रामायण, महाभारत व वैदिक संस्कृति का साहित्य उपलब्ध है जिससे हजारों वर्षों का मनुष्य का जीवन व विकास का पता चलता है जिससे हम यह अनायास जान सकते हैं कि मनुष्य मौलिक रूप से आज भी वही है। लेकिन मनुष्य ने जीवन के साथ अनेक प्रयोग किए हैं जिनमें कुछ प्रयोग सफल हैं और मनुष्य के लिए बहुत कार्यों को सुगम बनाया है परन्तु कुछ प्रयोग मनुष्य जीवन को जटिल भी बनाते हैं जो उसके अस्तित्व पर ख़तरा पैदा करते हैं जैसे पुरुष को स्त्री व स्त्री को पुरुष में परिवर्तित करना या परमाणु जैसे घातक हथियारों का निर्माण करना आदि।
तो कुल मिलाकर यह एक जटिलता पैदा करना है। बहुत चीजें आवश्यक होती हैं लेकिन कुछ चीजें अनावश्यक भी होती हैं लेकिन प्रकृति ने हर चीज आवश्यक बनाई है सभी वस्तुएं, सभी के लिए आवश्यक नहीं हैं।