शुक्रवार, 27 जुलाई 2012

1.ग़ज़ल- गुमशुदा…ग़ुमशुदा

पहले पहल तो देखिये बादल है गुमशुदा

बादल अगर कंही मिला भी तो जल है ग़ुमशुदा।

जंगल न खेत, अब नहीं मिलते ज़मीन पर,

आमों से भोर, और वो कोयल है ग़ुमशुदा

अठखेलियों भरी वो मुहब्बत नहीं रही,

अब गौरियों के पावों से पायल है ग़ुमशुदा

आँखों  की सारी शर्मो-हया खत्म हो गई,

पानी भी सूख़ा और वो काजल है ग़ुमशुदा।।

                                                     सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 11 जुलाई 2012

फ़न्नी और अ़रूज़ी ऐतबार से इम्तियाज़ी ग़ज़ल

आ़रिज़ हैं दो खुश्बू के बन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

इक मोतिया,इक यासमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।

 

मशरिक़ में सूरज ज़ौ-फ़िशा, मग़रिब में ज़ोहरा ज़ौ-फ़िगन

गोया हैं दो लाले-यमन, एक इस तरफ,एक उस तरफ।

 

इक से खुसूमत,दूसरे से भरती है उल्फ़त का दम

दुनिया के दो-दो हैं दहन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

दिल की कभी भरती है हामी,तो कभी इदराक की

चालाक हैं, आंखें हैं पुर-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

इदराक कहता है संभल, दिल है कि कहता है मचल

ये राहबर वो राहज़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

अ़ल्लाम दिल्ली में तो हरियाणा में अ़ल्लामी रहे

दोनों थे उस्तादाने-फ़न, एक इस तरफ,एक उस तरफ

 

“तफ़्ता”। हमें चुनना पडेगा, एक को,सिर्फ एक को

कुर्सी-व-ज़र,हुब्बे-वतन, एक इस तरफ,एक उस तरफ

                          डॅा. सत्य प्रकाश “तफ़्ता”

                        तफ़्ता ज़ारी

                      जानशीन डॅा. ज़ार अ़ल्लामी

            mobile. 09896850699

       written by_ sube singh sujan

     09416334841

बुधवार, 4 जुलाई 2012

दो -पध बंध

पुराने सब हो गये धरोहर
किले, हवेली, नदी, सरोवर
घटा-बढा तापमान ऐसे,
कि रात दिन अब हुये बराबर।

 

जहाँ भी रस्ता सही नहीं था,

वहीं पे तोडे,बिछाये पत्थर

हवाओं में जहर किलने घोला,

हुआ यहाँ साँस लेना दूबर…।

सोमवार, 2 जुलाई 2012

neeti paint

 

 neeti

a painting made by neeti

गरमी से लोग बेहाल हुये

आज की गर्मी ने हरियाणा राज्य में जीना मुश्किल कर दिया है। गरमी से आम आदमी की जिन्दगी बेहद प्रभावित हुई। लोग सडकों पर नहीं दिखाई दिये। पानी की बहुत ज्यादा किल्लत पैदा हो गई है। बिजली का बेहद संकट पैदा हो गया है पानीपत रिफाइनरी से बिजली बनना लगभग बंद हो गया है  पानी के लिये हिमाचल और उतराखण्ड से बिजली की सप्लाई की गई है। बिजली के संकट से लोग और ज्यादा प्रभावित हुये। इस मौसम में आज का दिन सबसे खतरनाक हालत में गुजरा है।बजुर्ग और बच्चों को दिन भर हांफते देखा गया। लोगों के पास पहले की तरह पानी के मटके नहीं रहे क्योंकि फ्रिज ने लोगों के रहन सहन पर गहरा असर डाला है। लेकिन ऐसी दम घोटती गर्मी में हमें पानी की जरूरत व प्राचीन परम्परा के मटकों की याद आ रही है। जो हमें प्रकृति के नजदीक रखते थे। आज आदमी प्रकृति से दूर हो गया है। जिसका परिणाम हमें भुगतना पड रहा है। हमें पानी की जरूरत को समझना होगा।प्रकृति का उपहास नहीं, उसके पास जाना होगा। हमारे मनों में प्रकृति का वास होना हमारे लिये बेहद जरूरी है।

                                                                                                                                                                                     सूबे सिहं सुजान

                                                                                                                                                                                         कुरूक्षेत्र,हरियाणा,09416334841