मंगलवार, 15 जनवरी 2013

आज आदमी जब भी आदमी से मिलता है।

आज आदमी जब भी आदमी से मिलता है

दिल्लगी छुपाता है बेबसी से मिलता है।।

वो सुकूँ मुझे दुनिया में कंही नहीं मिलता,

जो सुकूँ मुझे तेरी दोस्ती से मिलता है।।

खुद नहीं कभी हिलता, जैसे पेड ग़म का है,

जब मिलता है मुझसे ख़ामशी से मिलता है।

क्या बताऊँ मैं कुछ भी तो बता नहीं सकता,

बेवफ़ाई से या वो दोस्ती से मिलता है।।

बेवकूफ़ हूँ मैं, जो उसपे शक किया मैंने,

वो तो रस भरा है जो हर किसी से मिलता है।

………..सूबे सिंह सुजान……………….

रविवार, 6 जनवरी 2013

GHAZAL LIKHNE KA PRYAS-------आओ ग़ज़ल सीखें।

गज़ल विधा बहुत ही संगीतात्मक व लयात्मक है। इसमें बहर का खास तौर पर ध्यान खा जाता है और यह बहुर ही संगीत की पहली सीढी होती है। हम नवलेखकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिये।. आजाद लिखने,आजाद विचार प्रकट करने आदि विधि या तरीके हमें ग़लत करने को प्रेरित  करते हैं।  ताजा घटनाक्रम से भी आप यह समझ सकते हैं कि रेप के मामले उतने ही ज्याद इसलिये बढे हैं क्योंकि हमारे बंद वातावरण में अचानक टी.वी. व फिल्मस आदि का बेतहाशा गालियाँ बकना जैसा माहौल पैदा करना रहा है।। ाप इस बात को सही ऐसे समझ सते हैं कि- वा का मंद बहना सबको आन्नद प्रदान करता है। अगर हवा तूफान बन जाये तो नुकसानदायक होगी। उसी प्रकार काव्य में छन्द हैं अगर हम बेबहर,बिना छन्द लिखेंगे तो वह बेरोकटोक आँधी का रूप धारण कर लेती हैं। और फलस्वरूप समाज को नुकसान पहुँचाती हैं।

 

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दोस्तो आप जो ऊपर देख रहे हैं वह इस ग़ज़ल का छन्द है। अर्थात बहर....मित्रों ग़जल केवल बहर में ही लिकी जाती रही है। और लिखी जानी चाहिये। क्योंकि बहर या छन्द भाषा को लयात्मक बनाते हुये। मात्राओं का एक समान, या एक नाप है। जो संगीत को संगठित करते हुये सुशोभित करता है। आप कह सकते हैं कि छन्द एक तरह की संगीत की धुन को पहले से ही तैयार करता है।

अब आप ऊपर की मात्राओं को देख कर लघु, गुरू का द्यान रखते हुये पढिये। एक खास ध्यान इस बात का भी रखिये कि किसी भी शब्द की आखिरी को लघु पढा जा सकता है। यह कवि  के लिये छूट दी गई है। जानकार इन बातों को अच्छी तरह जानते हैं लेकिन नये लोग बहुत हैं जो फेसबुक पर ग़ज़ल लिखने का प्रयास करते रहते हैं लेकिन वह ग़ज़ल छन्द से बिल्कुल अनजान हैं । मेरा प्रयास है उन सब नवलेखकों को थोडा बहुत छन्द का ज्ञान कराया जाये। ताकि वे भविष्य में किसी गुरू की तलाश कर उनसे भलि-भांति सीख सकें।।

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जिंदगी हम भी समर तक आ गये।

गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते - मुस्कुराते वो सभी …,

रास्ते के पेड घर तक आ गये।

सामने आते ही उनके यूँ हुआ,

ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,

बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,

काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,

दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

…………………………………सूबे सिंह सुजान

इस ग़ज़ल में मेरा प्रयास रहा ही कि कम से कम मात्रायें गिरायी गई हैं।

मात्रा गिराना---किसी भी शब्द के अन्त में आई दी्र्घ मात्रा को लघु मानना। कहलाता है।

शुक्रवार, 4 जनवरी 2013

ग़ज़ल—जिंदगी हम भी समर तक आ गये।।

जिंदगी हम भी समर तक आ गये।

गाँव से चलकर नगर तक आ गये।।

मुस्कुराते  -  मुस्कुराते  वो   सभी …,

रास्ते के पेड  घर तक आ  गये।

सामने  आते  ही  उनके  यूँ  हुआ,

ज़ख़्म सब दिल के नज़र तक आ गये।

खूबसूरत सी बला लगती है वो,

बाल जब सर के कमर तक आ गये।

एक जंगल में पुराना पेड हूँ,

काटने को वो इधर तक आ गये।

प्यार एहसासों से निकला इस तरह,

दिल के रिश्ते अब खबर तक आ गये।।

…………………………………सूबे सिंह सुजान