शुक्रवार, 21 जून 2013

पानी ही पानी देखते हैं हम ख़्वाब में..

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पानी ही पानी देखते हैं हम ख़वाब में

ये ज़िन्दगी तो फंस गई है अज़ाब में।।

 

जिसके लिये तरसते थे,उससे ही डरते हैं,

ये ज़िन्दगी गुजारते हैं हम नक़ाब में।।

 

इस बात का ज़वाब नहीं है किसी के पास,

हर रोज़ कौन भरता है खुश्बू गुलाब में।।

 

आपस में भाई जब कोई भी काम करते हैं,

दोनो कहेंगे उसने की गडबड हिसाब में।।

 

हम आज उनको याद नहीं करते ठीक से,

जो जिन्दगी गुजार गये इन्कलाब में।।

……………………………………………………….सूबे सिंह सुजान

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