शुक्रवार, 18 अगस्त 2017

आलेख - नाम की भूख

नाम की भूख
   यूँ तो हर व्यक्ति में नाम की भूख होती है लेकिन कुछ अपरिपक्व साहित्यकारों में यह भूख चरम सीमा पर मिलती है पिछले दिनों का किस्सा यूँ घटित हुआ कि कवि सम्मेलन में शामिल कवि जब देश भक्ति पर अपनी वही पुरानी घिसीपिटी या कहिए किसी किसी की पंक्तियों को जोड़कर देश भक्ति कविता कहने लगे तो सुनने वालों को आयोजन तो बहुत अच्छा लगा लेकिन कविताएँ ज़ज्बा नहीं जगा पा रही थी श्रोताओं को मज़ा नहीं आ रहा था तो कवि चिल्ला चिल्ला कर तालियाँ माँग रहे थे और श्रोता कंजूसी करते जा रहे थे ।

खैर इसी कवियों और श्रोताओं की कमकस में कवि सम्मेलन पूर्ण हुआ तो एक पागल कवि ने जिम्मेदारी न होते हुए जब कोई जिम्मेदार अपना काम नहीं कर पा रहा था काफी समय से तो उसने कवि सम्मेलन की रिपोर्ट समाचार पत्र में जारी करने के लिए लिखने लगा
एक तो कवि सम्मेलन निर्धारित समय से देर से समाप्त हो रहा था दूसरा समाचार पत्रों में समाचार लिखने का समय लगभग जा रहा था तो उस पागल ने कवियों के नाम लिखते लिखते एक महान कवि का नाम न लिखने की भूल करते हुए विज्ञप्ति लिख डाली और अपने नाम का क्लेश कर डाला । जब समाचार पत्रों में समाचार आया तो महान कवि को बहुत गुस्सा आया और गुस्से का इजहार बहुत नाटकीय ढंग से जाहिर किया जो क़ाबिले गौर है उन्होंने सभी को कहा कि समाचार बनाने वाले ने साहित्य की बेइज्जती की है अर्थात उनका नाम न आने से साहित्य की बेइज्जती हो गई यदि उनका नाम आ गया होता तो वे फिर कुछ न देखते हुए पागल कवि को महान कहते हुए साहित्य का पुरोधा की उपाधि दे देते ।
साहित्यकारों में नाम की भूख चरम सीमा पर मिलती है इस वाक्या से पता चलता है कि सब भूखों में सबसे बड़ी भूख नाम की भूख है । 

शेर - जो पीछे से वार करता है

जो भी पीछे से वार करता है।
दुश्मनी बेशुमार करता है।।।

जिसकी अपनी नहीं कोई इज्जत,
औरों की तार-तार करता है।।  सुजान

बुधवार, 2 अगस्त 2017

एक शेर

वो मुझे पागल कहेंगें और खुश हो जाएंगें
और हम पागल बनेंगें और खुश हो जाएंगें

कोशिशें मैं भी करूँगा खुद बदलने की मगर
लोग कम से कम हंसेंगें और खुश हो जाएंगें

उनके खातिर मसख़रा बनकर गली में जाउंगा
फिर मुझे बच्चे पढ़ेंगें और खुश हो जाएंगें



सुजान

शेर

हम समझ जायें जहाँ को, ये जरूरी तो नहीं
आज तक हम पास बैठों को समझ पाये नहीं ।

सुजान