गुरुवार, 16 नवंबर 2023

Darkness and Light both are good

 Darkness is good and light is good.

If you are conscious, there is no difference between darkness and light. If you have attained to knowledge, if you have attained to excellence, if you are virtuous, if you know how to listen, if you have become calm, if you have become fearless, if your fear is gone, then you can see the light beyond darkness and that is what is called knowledge.

Maharshi or saints are said to be those people who have become fearless, who have recognized water and fire, who can see night and day with the same vision, who do not see the difference between life and death, who cannot differentiate between themselves and others, who can see every place with the same vision.


Man expresses his thoughts from time to time, as long as he is unconscious, he adopts different subjects, ideas and what he is influenced by, he adopts it with alacrity, but the next moment another thought influences him, he adopts it. This sequence reveals our unconsciousness i.e. we are acting like an unconscious child We are doing the same activities of life as a child till the age of fifty or eighty We don't have knowledge. We have not seen the activities of life carefully, we have not made the slightest effort to understand the purpose of life.

On the contrary, some saintly people acquire knowledge, and it does not matter to a man imbued with modern material comforts even to call his knowledge hypocrisy, because he understands more of his foolish behaviour and does not react to it.

To acquire knowledge, one does not need others, but knowledge requires oneself and one has to be self - struggling. Being self-motivated is very important. Many books, teachers, intellectuals can facilitate your path for that path but cannot give you knowledge for that you have to be dynamic, struggling. Man's self-possessed ego is his enemy, that enemy is self-possessed, but man does not understand this and keeps blaming others.Modern science can give us the most material comforts, but it cannot give us spiritual beauty, spiritual peace, knowledge, behavior, proper conduct, for this we have to do meditation, spiritual practice ourselves. This is part of the cycle of life.

At one time we consider the ideas as appropriate knowledge but at another time we also discard that idea when we find it better than that, so this is also science. It's not sustainable The process of learning is temporary but what is learned is permanent. That is spiritual beauty which is learned.

A child starts learning as soon as he comes into the world and continues to learn till the end, but the constant change in the materiality of his body is only material, but the Brahma jnana, the spiritual knowledge that he has acquired through this body is in fact true knowledge.


शुक्रवार, 10 नवंबर 2023

जीवन सत्य ज्ञान, आत्मिक सौंदर्य के लिए आपको ही स्वयं गतिशील, संघर्षशील होना होता है

 प्रकाश भी अच्छा है और अंधकार भी अच्छा है।

यदि आप जागरूक हैं तो अंधकार और प्रकाश में कोई अन्तर नहीं है। यदि आप ज्ञान को प्राप्त कर चुके हैं यदि आप श्रेष्ठता को प्राप्त कर चुके हैं यदि आप गुणग्राही हैं आप सुनना जानते हैं आप शांत हो चुके हैं तो आप निर्भय हो चुके हैं आपका भय समाप्त हो गया है तो आप अंधकार से पार प्रकाश देख सकते हैं और यही ज्ञान कहा गया है।

महर्षि या सन्त वही लोग कहे गए हैं जो निर्भय हो चुके थे जो जल व अग्नि को पहचान गए थे जो रात दिन को एक ही दृष्टि से देख पाते थे वह जीवन व मृत्यु में भेद नहीं देखते वह अपने व दूसरे में भेद नहीं कर सकते हैं जो हर जगह को एक समान दृष्टि से देख पाते हैं।


मनुष्य समय समय पर अपने विचार व्यक्त करता है जब तक वह अबोध है वह तब तक अलग-अलग विषयों, विचारों को अपनाता है और जिससे प्रभावित होता है उसको तत्परता से अपनाता है परन्तु अगले क्षण दूसरा विचार प्रभावित करता है तो उसको अपनाता है यह क्रम हमारी अबोधता को प्रकट करता है अर्थात हम अबोध बालक की तरह क्रिया कर रहे हैं हम पचास या अस्सी वर्ष की आयु तक भी एक बच्चे की तरह ही जीवन क्रियाएं कर रहे हैं हमें ज्ञान की आभास नहीं हुआ है हमने जीवन क्रियाओं को ध्यान से नहीं देखा है हमने जीवन उद्देश्य को समझने का तनिक प्रयास नहीं किया है।

इसके विपरित कुछ सन्त लोग ज्ञान को प्राप्त होते हैं और आधुनिक भौतिक सुख विज्ञान से लथपथ मनुष्य उसके ज्ञान को पाखंडता भी कहता है तो उसको कोई अंतर नहीं पड़ता क्योंकि वह उसके मूर्ख व्यवहार को अधिक समझता है और उस पर कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं करता।

ज्ञान प्राप्त करने के लिए किसी अन्य की आवश्यकता ही नहीं पड़ती बल्कि ज्ञान के लिए स्वयं की आवश्यकता होती है और वह स्वयं ही संघर्षशील होना होता है स्वयं ही गतिशील होना अति आवश्यक है। अनेकों पुस्तकें, आचार्य, बुद्धिजीवी उस मार्ग के लिए आपके रास्ते को सुगम तो बना सकते हैं लेकिन आपको ज्ञान नहीं दे सकते उसके लिए आपको ही गतिशील,संघर्षशील होना होता है। मनुष्य के स्वयं पाले गए दंभ, अहम् ही उसके शत्रु हैं वह शत्रु स्वयं पाले गए हैं लेकिन मनुष्य यह नहीं समझ पाता और दूसरों को दोष देता रहता है।आधुनिक विज्ञान हमें अत्यंत भौतिक सुख सुविधाएं दे सकता है लेकिन आत्मिक सौंदर्य, आत्मिक शांति, ज्ञान, व्यवहार, उपयुक्त आचरण नहीं दे सकता इसके लिए हमें मनन, आत्मिक अभ्यास स्वयं ही करना होता है यही जीवन चक्र में समाहित है।

हम एक समय में जिन विचारों को उपयुक्त ज्ञान मान लेते हैं लेकिन दूसरे समय में ही उस विचार को उससे बेहतर मिलने पर त्याग भी देते हैं तो विज्ञान भी यही है यह स्थाई नहीं है सीखने की प्रक्रिया ही अस्थायी है लेकिन सीखा हुआ स्थाई होता है वह आत्मिक सौंदर्य होता है जो सीखा हुआ है।

एक बच्चा दुनिया में आने पर ही सीखना प्रारंभ करता है और अंतिम समय तक सीखता ही रहता है लेकिन उसके शरीर की भौतिकता में जो बदलाव निरंतर होता आया है वह भौतिक मात्र है परन्तु जो ब्रह्म ज्ञान,आत्मिक ज्ञान इस शरीर के माध्यम से उसने प्राप्त किया है वह वस्तुत सत्य ज्ञान है वह ही इस शरीर का उद्देश्य है उसी ज्ञान के लिए ही इस शरीर को धारण किया गया है उस आत्मिक ज्ञान सौंदर्य का आनन्द परम आनन्द है।


सूबे सिंह सुजान






मंगलवार, 19 सितंबर 2023

नज़्म - यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।


 नज़्म- यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।


तुमसे मिलने के सब बहानों को,

मैंने सड़कों पे रख दिया तन्हा।

हर मुलाकात उस सड़क से है,

देखा था, जिसपे तुमको चलते हुए,

जबकि यह बन गई अनेकों बार,

कितने ढाबे, दुकानें और शोरूम,

खुल गए हैं किनारे बेतरतीब,

और साईन बोर्ड रख दिए हैं

लोगों ने इस सड़क के बीचों-बीच,

पेड़ काटे, दुकानों की खातिर,

बिछ गए जाल,तारों खंभों से,

आज जब मैं गुजरता हूँ यहां से,

मैंने बस स्टॉप की तरफ देखा,

जिसके नीचे मैं देखता था तुम्हें,

कितना जर्जर,दबा हुआ सा है

तुम नहीं आते अब इधर शायद!

हाँ मगर बावजूद इसके भी,

यह सड़क इतनी खूबसूरत है

जो मुझे देख मुस्कुराती है

और फ़िदा हूँ मैं,आज तक इस पर,

यह सड़क भी, सड़क नहीं तुम हो।

!

सूबे सिंह सुजान




शुक्रवार, 1 सितंबर 2023

आ गई गालियां मेरे हिस्से

 क्योंकि ईमान दोस्त है मेरा,

आ गई गालियां मेरे हिस्से।

शेर अच्छे रक़ीब कहते हैं,

आती हैं तालियां मेरे हिस्से।


सूबे सिंह सुजान

कुरूक्षेत्र

बुधवार, 30 अगस्त 2023

रक्षाबंधन प्रतिज्ञा

 डोर रेशम की नहीं, भाई बहन का प्यार है 

सत्य पथ का साथ दो,कहता यही त्योहार है।

स्वार्थों को छोड़कर, भाई बहन ये सोच लो,

आपसे जुड़कर बनेगा,देश का विस्तार है।

धर्म ही कर्तव्य है,इस अर्थ को पहचान लो,

यह सनातन संस्कृति, संस्कार का आधार है।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 17 अगस्त 2023

शागिर्दों के किस्से किस्त 1


 उर्दू अरूज़ के उस्ताद शायर के तीन शागिर्द उनसे अपनी लिखी ग़ज़ल दिखाने,समझने जाते रहते थे।

एक बार का क़िस्सा बना कि एक पहले से जाने वाले शागिर्द की किसी ग़ज़ल में कुछ कमियां थी, जो कि लगभग हर शायर की ग़ज़ल में किसी न किसी सूरत अरूज़ के नियमानुसार आ ही जाती हैं दूसरे और तीसरे शागिर्द जब भी उस्ताद के पास जाते तो अपना तो कुछ ख़ास लिखा हुआ न होता तो उस्ताद के दिमाग़ को डाइवर्ट करते हुए उनके पहले शागिर्द पर नुक़ता उठाते हुए कहते यह क्या ग़ज़ल हुई जनाब इसमें रदीफ दोष है और फलां फलां कमियां गिनाते और चले जाते।

अपना लिखा कुछ ख़ास होता नहीं था।

जब पहले शागिर्द साहब अपनी धुन में मगन रहते तो उनको फिर तकलीफ़ होती और फिर से कोई नुक्ताचीनी निकालते और अपनी आदतों का विकास कर लेते।

जब उनकी इस आदत के सब्र का बांध टूट गया तो वो दोनों उस्ताद से बोले जनाब उनकी ग़ज़लों में बेइंतहा नुक़्स हैं आप उनको अपनी उस्तादी से खारिज़ करें, हमसे देखा नहीं जाता। उस्ताद बहुत बोले थे कम बोलते थे और उनकी बातों में आ जाते थे लेकिन उसके बाद भी उस्ताद ने अपने शागिर्द को कुछ नहीं कहा तो वे दोनों पहले शागिर्द से मिलकर अपनी साज़िशों की पड़ताल करने लगे बोले - पता चला है कि आपको उस्ताद ने आपको अपनी उस्तादी लिखने से मना कर दिया? यह सुनकर उसको अचंभा हुआ वह भी अपने उस्ताद की तरह भोला भाला था और दांव पेंच समझता नहीं था और सीधा यही सवाल उस्ताद से किया, उस्ताद बोले वह लोग यह ज़िक्र कईं बार कर चुके हैं अब आप देखो क्या करें?

उसने कहा जो हुक्म आपका आदरणीय मेरे सर माथे।

उस्ताद साहब एकदम विचलित से हुए बोले नहीं नहीं ऐसी बात नहीं है यह उनकी बात है। शागिर्द बोले आदरणीय आज एक बात मैं भी कहने की गुस्ताख़ी कर सकता हूं?

बोले - कहिए कहिए -वह जो फलां क़िताब है जिसमें एक हम शागिर्द ने आपकी हू ब हू कुछ ग़ज़लें उठा कर प्रकाशित कर रखी हैं और दूसरे ने पाकिस्तान के शायरों के मिसरे उठा कर आपको ग़ज़ल सुना रखी हैं तो मेरी अपने ख्याल की ग़ज़ल में कुछ कमियां आई हैं जो सीखने के सही मापदंड हैं तो क्या मुझे सज़ा जायज़ है तो जरूर दीजियेगा।

यह सुनकर उस्ताद सदमे में आए बोले उनकी पुस्तक में मेरी ग़ज़ल?

उसने कहा जी हजूर कुछ में आपके मिसरे हूबहू दर्ज हैं तो कुछ तो पूरी की पूरी ग़ज़ल कॉपी पेस्ट है वह बोले ऐसा कैसे हो सकता है? उसने कहा अभी देखें और उन्होंने पुस्तक उठाई और शागिर्द ने दिखाया तो उस्ताद सदमे में आए!!!

हद है ऐसा भी हो सकता है!!!

ओह ओह!

और बोले आपसे मुआफ़ी चाहता हूं कि उनके कहने में आकर आपके बारे में मैंने ऐसा सोचा।


सूबे सिंह सुजान

कुरूक्षेत्र हरियाणा 



सोमवार, 7 अगस्त 2023

गंदे चुटकले सुनाने वाले कवि नहीं नंगे व गंदे लोग होते हैं इनसे बचिए


 कवि सम्मेलन में जो लोग चुटकुले सुनाते हैं वह स्वयं ताली बजाने के लिए भी कहते हैं और जो लोग उनकी बात मान लेते हैं अर्थात अपनी बुद्धि का प्रयोग नहीं किया और सुनकर हँसते हैं एक तो जो व्यक्ति चुटकुले सुना रहा है वह स्वयं को कवि बता रहा है जबकि वह कवि नहीं है और हम सब जो वह कह रहा है वह मान लेते हैं इससे बड़ी मूर्खता क्या हो सकती है कि वह व्यक्ति चुटकुले ऐसे सुनाता है कि उनमें कहीं भी कोई बात,तथ्य, विचार,तर्क,संभावना नहीं है सिर्फ वह फुहड़ता,गाली, लड़कियों व लड़कों के जननांगों पर गाली द्विअर्थी संवाद में देते हैं और लड़कियां वहां बैठी हुई बहुत हंसती हैं वह ख़ासतौर पर औरतों पर नंगेपन के चुटकुले सुनाते हैं और हम बिना समझे हंस रहे हैं।

हास्य-व्यंग्य बहुत सकारात्मक और सटीक विधा है आप हास्य व्यंग को कबीरदास,दुष्यंत कुमार,धूमिल और न जाने कितने असंख्य शायरों की शायरी में देख सकते हैं लेकिन उनमें कहीं भी फुहड़ता,नंगापन नहीं है लेकिन अत्यधिक चिंतित करने वाली बात यह है कि हम वही लोग वहां बैठकर कैसे हंस लेते हैं जो हमारे ऊपर, हमारी संस्कृति, संस्कार, विश्वसनीयता पर हमला होता है हमें उसको सहन ही नहीं करना था लेकिन हम हंस रहे हैं?


कवि वह होता है जो काव्य के माध्यम से आपकी बुद्धि का योग करवाता है जो आपकी बुद्धिमत्ता को प्रखर करता है आपकी बुद्धि को खेल खिलाता है ताकि वह स्वस्थ रहे

और इसके लिए नये विचार या पुनः विचारों को अभ्यास में लाना या बौद्धिक क्षमता को बढ़ाना होता है सामाजिक,देशकाल, व्यवहार, प्रेम, मनोरंजन, श्रृंगार,सदाचार, भक्ति,जीवनशैली,जीवन तत्वों के बारे सटीक बौद्धिकता को जागरूक करता है। 

यदि हम कुछ समय के लिए उच्च विचार विमर्श को सुनना शुरू करेंगे तो हमें उसमें आनंद भी आएगा और ज्ञान अर्जित भी होगा। उच्चता, श्रेष्ठता को समझने में आनंद है जो उच्च बुद्धिजीवी होते हैं वह गहरी अर्थपूर्ण कविता, ग़ज़ल, कहानी को सुनना व कहना पसंद करते हैं जो लोग केवल गंदे चुटकले पर हंसते हैं या सुनाते हैं वह दोनों प्रवृति के लोग निम्न चरित्र को अपनाना और प्रस्तुत करना पसंद करते हैं।


सूबे सिंह सुजान 


सोमवार, 3 जुलाई 2023

किसान खेती और पशुपालक दूध उत्पादन करना छोड़ देंगे

 बकरी, भेड़,गाय, भैंस पालकों को दूध उत्पादन करने पर, उसके उत्पादन का सही मूल्य नहीं मिलता है और किसान को अनाज पैदा करने पर उसका उपयुक्त मूल्य नहीं मिलता है या कहें कि उत्पादन में लागत ज्यादा आ रही है।

यह दोनों लोग हमारे जीवन की मूलभूत आवश्यकता पूरी करते हैं और इसके लिए समाज को सबसे पहले उपयुक्त खर्च करना चाहिए।

लेकिन सब कुछ इसके ही विपरीत होता आ रहा है।

समाज का बुद्धिजीवी वर्ग जिसे हम पढ़ा लिखा मानते हैं वह इस तथ्य को या तो समझता नहीं है या जानबूझकर नाटक करता है और इन दोनों लोगों का शोषण करता है।


दूध उत्पादक और अनाज उत्पादक जो अपनी मेहनत शुद्ध वस्तु को तैयार करने में लगाता है हमारा समाज उसको सही मूल्य कभी नहीं देता लेकिन जो इनसे दोनों वस्तु लेकर बीच में मिलावट करता है,उसे अशुद्ध करता है उसको मूंहमांगी कीमत सहजता से दे देता है।

इस कारण कुछ सदियों से यह दोनों उत्पादक अपनी पीढ़ियों से यही काम करवाते करवाते वर्तमान तकनीकी युग में अत्यधिक अनुपयोगी खर्च से अपनी क़मर तोड़ चुका है और समाज इस तरफ बिल्कुल ध्यान नहीं देता या जानबूझकर शोषण करता है।

इसके परिणामस्वरूप भविष्य में पूरे विश्व में संभव है कि यह दोनों वर्ग खेती करना व दूध उत्पादन करना छोड़ रहे हैं वर्तमान समाजिक परिस्थितियों से अवगत होता है कि इन वर्गों की युवा पीढ़ी विदेश गमन बहुत तेजी से कर रही है और जो यहां पर हैं वह अपने पुस्तैनी काम छोड़ रहे हैं इससे प्रतीत होता है कि कुछ समय पश्चात खेत ख़ाली रहेंगे और पशु उस ज़मीन में चरा करेंगे यह प्रकृति की प्रतिध्वनि प्रक्रिया है और अब धरती वापिस लौटना चाह रही है और यह बहुत आवश्यक भी है सृष्टि को सामंजस्य स्थापित करने के लिए यह करना पड़ता है यह स्वाभाविक व स्वचालित प्रक्रिया है

इस मंथन में हमें यह पता चलता है कि जो वर्ग पढ़ा लिखा माना जाता है या कहें कि वही यह स्वयं घोषित करता है वह प्राक्रतिक प्रक्रिया में मूर्ख ज्यादा प्रतीत होता है क्योंकि वह अत्यधिक स्वार्थी है।

बुधवार, 21 जून 2023

सनातन ही जीवन की उत्पत्ति है

 जीवन की उत्पत्ति में अलग अलग तत्वों का समावेश है इसलिए सनातन संस्कृति में प्रारंभ से पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश को देवता और देवी के रूप में पूजा जाता है यहां पर पूजने के अर्थ यही हैं जो इतना श्रेष्ठ या उत्तम है कि उसका कोई दूसरा विकल्प हमारे पास नहीं है इसलिए वह सर्वश्रेष्ठ, सर्वोत्तम है।उसका वरण करना जीवन को अपनाकर उसको नमस्कार करके धन्यवाद ज्ञापित किया जाना चाहिए यह कृतज्ञ होना है।

इसके अर्थ अपने आप में एकदम स्पष्ट व सटीक हैं वह अलग बात है कि हम कालांतर में यह विस्मृत कर गए या हमें किसी स्वार्थ वश किसी ने किसी नदी की तरह बांध बना बना कर अलग-अलग दिशाओं में नहर बना कर मोड़ दिया गया था और हम सटीक तथ्य को ही विस्मृत कर गए।

लेकिन दूसरी जगह यदि आप दृष्टिपात करें तो पाएंगे कि एक व्यक्ति, विचार को ही प्रमुखता दी जाती रही है और एक को ही श्रेष्ठ माना गया है और एक का जहां भी विस्तार होगा वह अहम, अहंकार, घमंड और अत्याचार से भरा होगा।

सत्य है कि जीवन एक तत्व से नहीं चल सकता है सभी तत्वों का समावेश ही जीवन है। लेकिन हैरत है कि जब हम सभी तत्वों के समिश्रण से जी रहे हैं तो भी एक को श्रेष्ठ मानते रहते हैं यह वास्तव में घोर मूर्खता के अतिरिक्त कुछ नहीं है।

सोमवार, 19 जून 2023

संघर्ष बनाम पेंशन

 पुरानी पेंशन बहाली संघर्ष समिति साइकिल यात्रा हरियाणा में निकाल रही है जब एक दिन हम भी उसमें भाग लेने गए तो आँखों देखा हाल बयां करने से न रहा गया। संगठन के तमाम पदाधिकारियों ने कहा था कि हम तीन से चार हज़ार लोग स्वागत में खड़े होंगे लेकिन सामने जाकर देखने पर पता चला कि वहां पेंशन की मांग को लेकर अत्याधुनिक तकनीक से लैस वाहन ज़्यादा संख्या में खड़े थे इसके विपरीत लोग बहुत कम थे ऐसा लगा कि जैसे पुरानी पेंशन इन वाहनों, कार, मोटरसाइकिल,एक्टिवा व बड़े बड़े बंगले व कोठियों को चाहिए और इसलिए ये वाहन अपनी मांग करने के लिए जुटे थे। लोगों में एक प्रतिशत महिलाएं थी और नियानवें प्रतिशत घर पर उन एक प्रतिशत का मज़ाक़ उड़ाने में मशगूल रही। पुरुष की संख्या भी 8 प्रतिशत के आसपास रही और सभी सम्मानित पदाधिकारी अपने अपने मन में राजनेता होने का भ्रम और अहम दोनों पालकर सीने को फुला कर चल रहे थे तो वहीं जितने लोग स्वागत में खड़े थे वह केवल अपनी अपनी फोटो उतारने के लिए जद्दोजहद में ज्यादा मशगूल थे जैसे ही फोटो उतरी तो उनका पता नहीं चलता था कि किस रास्ते से गए हैं कुछ फोटो सोशल मीडिया पर ऐसी भी दिखाई दी जो अपने घर के आसपास ही ली गईं थीं और स्टेटस पर जगह पा रही थी लेकिन इसके बावजूद जितने भी लोग पहुंचे सब पेंशन योजना लागू होने से आस्वस्त दिखाई दे रहे थे। इस क्रम में विपक्षी दलों के एम एल ए व नेता आकर बहुत प्रसन्न दिखाई दे रहे थे उनको जैसे घर बैठे सर्वोत्कृष्ट व्यंजन मिल गया था और हम सब पेंशन योजना लागू होने की खुशी में देर रात तक घर लौटते हुए अपनी भूमिका पर बहुत खुश हो रहे थे।

शुक्रवार, 26 मई 2023

ग़ज़ल - मंच पर चुटकुले सुना देना

 मंच पर,चुटकुले, सुना देना,

चुटकुलों को, ग़ज़ल बता देना।


मेरी यादों को तुम,जला देना,

और फिर ख़ाक को उड़ा देना।


कितना मुश्किल है,याद करना भी,

दर्द की आग को हवा देना।


कीजिए कुछ इलाज़, मेरे हकीम,

मैंने, ग़म खा लिया,दवा देना।


तेरा ग़म, एक गीला कचरा है,

कुछ, सुखाकर,इसे जला देना।


चापलूसी में, कितना मुश्किल है,

ग़ल्तियों पर कोई सज़ा देना।


इस तरक्की में, लोग भूल गए,

दूसरों को भी रास्ता देना।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 18 मई 2023

हज़ारों पेड़

 हज़ारों पेड़ परेशान आँधियों को देख,

ग़रीब चूल्हा मगर इस खुशी में झूम उठा।


सूबे सिंह सुजान 

गुरुवार, 13 अप्रैल 2023

कैक्टस और टेसू ने कठोरता और गर्मी को चुना है

 कैक्टस के फूल की अपनी ही तरह की, अपनी ही मर्जी की ख़ूबसूरती है उन्होंने खिलने का मौसम भी ऐसा चुना है जिसमें मौसम परिवर्तन होता है और फ़सल पक कर कटती है लेकिन इस दुनिया में बैसाखी पर्व पर इस फूल से बेहतरीन ख़ूबसूरती भी देखी जा सकती है और इस मौसम अनुसार कपड़े पहनना और रंगों का चयन करना यह क्या कम खूबसूरत होगा। यह देखकर कईं बार हम आह भरकर रह जाते हैं और खूबसूरती को मुखरित नहीं करते लेकिन पहचान लेते हैं।


दूसरे टेसू, अर्थात पलाश ने भी यही मौसम चयन किया है वह ढाक के पेड़ पर खिलता है ढाक का पेड़ देखने में अन्य पेड़ के सामने उतना सुन्दर नहीं है लेकिन उसके टेसू देखते ही बनते हैं उसका रंग कितना चटक, कितना तीखा होता है ढाक की कणी अर्थात गोंद भी लगभग इसी रंग में होती है और उसका आयुर्वैदिक गुण और भी लाभदायक होता है। 

लेकिन दूसरी ओर कैक्टस भी कांटे लिए होता है उसको हाथ लगाना बहुत मुश्किल है अर्थात बेहद खूबसूरत फूल की रक्षा में पहरेदार कांटे ही होते हैं प्रकृति ने हर जगह ऐसा ही बनाया है क्योंकि कठोरता ही सुंदरता की बेहतर सुरक्षा कर सकती है शायद मंदिरों में पत्थरों को सुरक्षा के लिए लगाया गया है यह भी प्रकृति का निर्णय होगा।


सूबे सिंह सुजान 

गुरुवार, 6 अप्रैल 2023

फितरत

 *फितरत*


लोगों को काम करवाने के लिए जो व्यक्ति अच्छा लगता है लेकिन पुरस्कार देने के लिए वो नहीं चाहिए क्योंकि पुरस्कार तो ख़ुद के लिए चाहिए।

लेकिन उनकी तो फितरत है जिनको अपने कसीदे पढ़ते हुए शर्म नहीं आती कि काम कुछ किया नहीं होता और अपनी बढ़ाई अपने मुंह कर रहे होते हैं परन्तु उनकी क्या मज़बूरी है जिनको पुरस्कार देना है और जबकि काम जिनको कहा उन्होंने किया नहीं और जिसने किया है उससे बात तक करने में परहेज़ रहता है?


आदमी इस तरह स्वार्थी होता है और इस स्वार्थ में लिप्त रहते उसको सही व ग़लत में फ़र्क नज़र नहीं आता।

और प्रकृति अपना काम करती रहती है हम प्रकृति में कमियां ढूंढते रहते हैं जबकि कमियां पाती नहीं हैं परन्तु आदतन अपने आपको बेहतरीन कहने के आदी होते हैं।

गुरुवार, 23 मार्च 2023

सवाल भी हमीं हैं जवाब भी हमीं हैं।

 सारे सवाल हमें स्वयं से करने थे लेकिन हम सारे सवाल दूसरों से करने में समय नष्ट करते रहते हैं।

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सारे जवाब भी हमें ही देने थे

लेकिन हम दूसरों से मांगने में समय नष्ट करते रहते हैं।


वे लोग असली अपराधी हैं

जो ग़लत मानसिकता को तैयार करके मानव से मानवता,

समाज से सामाजिकता,

वातावरण से स्वच्छता,

राष्ट्र से राष्ट्रीयता,

प्रेमी, प्रेमिका से प्रेम,

व्यवहार से व्यवहारिकता,

हृदय से सहृदयता,

आग से उष्णता,

जल, वायु से निर्मलता,

ऐसी अनेक वस्तुओं से उनके होने का विशेष गुण अपने स्वार्थ के लिए विशेष रूप से छीन रहे हैं।


विज्ञान हमने नहीं बनाया है अपितु प्रकृति की प्रक्रिया में मौजूद है हम उसे जानने के प्रयासों में रत हैं और वर्तमान में हम शीघ्रता से जान पा रहे हैं।


©सूबे सिंह सुजान

रविवार, 12 मार्च 2023

लघुकथा - आशीर्वाद

 स्कूल का एक शिक्षक अपनी प्रधानाचार्या डॉ ममता को उनके द्वारा कक्षाओं में भेजे गए हिन्दी भाषा में लिखे नोट में आशीर्वाद शब्द की वर्तनी में मात्रा की त्रुटि बता रहा था और प्रधानाचार्या महोदया उस त्रुटि को यह कहकर सही बता रही है कि मैं हिन्दी साहित्य में पी एच डी हूँ। मुझसे गलती हो ही नहीं सकती लेकिन उस शिक्षक ने उक्त मात्रा को सही करके लिख दिया और अपनी कक्षा में पढ़ाने लगा।


सूबे सिंह सुजान


मंगलवार, 21 फ़रवरी 2023

बहुत मसरूफ़ होकर याद उसकी भूल जाता हूं

 लगाना हाज़िरी हर रोज़ अपनी भूल जाता हूं।

बहुत मसरूफ़ होकर याद उसकी भूल जाता हूं।


समझ बैठा, महब्बत में तुम्हारी, कुछ महब्बत है,

ज़माने ने,मगर कर ली तरक्की भूल जाता हूं।


सूबे सिंह सुजान


शुक्रवार, 17 फ़रवरी 2023

जो अज्ञानी है वह सवाल करता है

 जिस बात को, गुत्थी को जब आदमी जान लेता है या समझ लेता है तो फिर उसके बारे किसी से सवाल नहीं करता।

जिस प्रकार बच्चा जब तक जिस चीज़ को नहीं जान लेता तब तक वह बार बार पूछता रहता है और जान लेने के बाद दुबारा पूछता नहीं।

हर ज्ञान की बात इसी प्रकार हैं।


इसी प्रकार भगवान है जब तक मनुष्य उनको जान नहीं लेते तब तक लगातार प्रश्न करेंगे और जो जान लेते हैं वह प्रश्न करना बंद कर देते हैं।

इस प्रक्रिया में हमारे ज्ञान, बुद्धि का भी पता चलता है कि हम कितना समझ सकते हैं और कितना नहीं क्योंकि प्रकृति सबके लिए समान रूप से व्यवहार करती है

सूरज कभी अपनी धूप अलग अलग नहीं देता, फूल खुश्बू सबको बराबर देते हैं यह लेने वाले पर निर्भर है वह किस प्रकार ग्रहण करता है किसी को खुश्बू आते ही आत्मविभोरता प्राप्त होती है तो कोई उसमें मीन मेख़ निकालता रह जाता है वह खुश्बू को उसकी सार्थकता में ग्रहण नहीं कर पाते और आलोचना में समय नष्ट करने लगते हैं।

अर्थात अज्ञानी ही हमेशा सवाल करते हैं और ज्ञानी उनके जवाब देते हैं।


बेसबब दिल में दर्द भर आया

 बेसबब दिल में दर्द भर आया

मुझको कोई नहीं नज़र आया


बेवजह लाद ली थी चेहरे पर,

मुस्कुराहट उतार कर आया।


शुक्रिया आपने दिए धोखे,

मुझको गुस्सा न आप पर आया


दिल लगाना बहुत जरूरी है,

होश भी दिल लगाने पर आया।


ए ख़ुदा इसकी भी ख़बर ले ले,

तेरे दर एक बेख़बर आया।


मेरा बिगड़ैल दिल भटकता था,

ठोकरें खा के राह पर आया।


है शुरुआत मुश्किलों भरी,

आगे आगे सहल सफ़र आया।


सूबे सिंह सुजान

गुरुवार, 2 फ़रवरी 2023

प्रकृति करती है

 सब काम प्रकृति करती है। मनुष्य जितने भी काम करता है वह सब प्रकृति की प्रक्रिया पर करता है वह सब काम प्रकृति का हिस्सा है।

मनुष्य जितने काम करता है जैसे काम करता है प्रकृति उसको वैसा ही परिणाम देती है।

बुधवार, 11 जनवरी 2023

पूर्ण ही अपूर्ण है और अपूर्ण ही पूर्ण है।

 मैं यह सोच कर कविता लिखता हूं कि कुछ नया कह पाया, फिर अगले दिन, फिर कोई और कविता लिखता हूं लेकिन हर बार यह सोचकर लिखा कि जो मेरे अंदर लिखने की, कहने की प्यास, भावना है वह लिख सकूं,कह सकूं परंतु यह क्रम चलता रहता है जो अधूरापन है वह पाटने की कोशिश लगातार चली है लेकिन क्या वह कभी पूरी हुई? कभी नहीं।

यदि मैंने कुछ अच्छा सा कह लिया और कुछ समय यह अहसास होता है कि बस यही सबसे बेहतर है इससे आगे कुछ नहीं कह सकता, लेकिन फिर कुछ समय बाद वही कहने की प्यास, उतावलापन उभर आता है।

दुनिया में जाने कितने ऋषि,संत, कवि, लेखक अपनी अपनी बात कहते हुए चले गए सब इसी क्रम में कहते रहे और वह प्यास,भूख आज भी कायम है और रहेगी।

यही जीवन है यह जीवन जीने का, चलने का, क्रम निरंतर जारी है और रहेगा।

हम सब प्यासे हैं और प्यासे ही रहेंगे जब लोग कहते हैं कि प्रेम में तुम्हें पाकर मैं सब कुछ पा लूंगा, मुझे तू चाहिए और कुछ नहीं वह पागलपन एक प्यास है वह व्यक्ति कुछ समय बाद फिर उससे ऊब जाता है और हर जगह देखता है और तो और उससे छुटकारा चाहते हैं और फिर कुछ और चाहता है फिर वही प्यास है।

यही क्रम जन्म लेने और मरने का है हम सब जन्म लेते हैं और उसके बाद सब चाहते हैं कि हम कभी न मरें,कभी न बीमार हों सारी तरह की विधि,योग,विज्ञान,औषधी अपनाते हैं लेकिन आखिर मर जाते हैं हमारा जन्म कुछ पाने की लालसा है एक प्यास है लेकिन यह कभी पूरी नहीं होती लेकिन जो बीच का क्रम रहा वह हमें पता है वह पता भी तभी तक है जब तक हैं आगे क्या होगा नहीं पता।

हम सब अधूरे हैं हम सब प्यासे हैं हम सबने जन्म लिया है,हम सब मरेंगे हम सब पूर्ण हैं मगर हम सब अधूरे हैं।

हम आकाश हैं जो न शुरू का पता न अंत का पता,हम सब गिनती हैं जहां से मान लिया कि एक से शुरू हुई बस वहीं से शुरू हो गई ख़त्म कहां होगी हमें नहीं पता 

हम सब खिलने वाला फूल हैं जो खिलेगा,जो खिल चुका है,जो बिखर चुका है,जो विलीन हो गया है।

सब साहित्य अधूरा है सब विज्ञान अधूरा है भूख अधूरी है रास्ते अधूरे हैं,सब भगवान पूरे हैं और सब भगवान अधूरे हैं।


मैंने हल्दी की गांठ को लगाया और उससे अनेक हल्दी की गांठ बन गई यह हल्दी की गांठ कहां से आई थी क्या यह गांठ कभी ख़त्म हो गई तो क्या फिर हल्दी नहीं उग सकेगी? 

यह हल्दी अधूरी है यह बार बार लगाई जायेगी और काटी जाएगी मगर यह फिर भी उगेगी।

अनंत ही पूर्ण है अनंत ही अपूर्ण है।


सूबे सिंह सुजान