मंगलवार, 17 दिसंबर 2024

बच्चों के साथ शिक्षक का अनैतिक आचरण

 एक समय में एक शिक्षक प्रार्थना सभा में छोटे छोटे बच्चों के सामने किसी अन्य शिक्षक की कक्षा के बच्चों से जानबूझकर कभी जातीय,कक्षीय,मेरी बात नहीं मानी,समय पर नहीं आए, नाखून नहीं कटे हैं(जबकि उसकी अपनी कक्षा में सब कमियां होती थी और उनमें न होकर भी निकाल दी जाती थी) ऐसे अनेकों भेदभाव करता था और अन्य शिक्षक जो उसकी बातों को, भेदभाव को देखकर हंसने लगते थे,यह जानते हुए भी कि इन बच्चों का कोई कसूर नहीं है वह जो यह अनैतिक आचरण कर रहा था वह तो दोषी था ही लेकिन जो यह सुनकर हंस कर उसका समर्थन करते थे वह ज्यादा मूर्खतापूर्ण और अपराध कर रहे थे।

हालांकि उसके इस दुर्व्यवहार, अनैतिकता पर वहां उपस्थित शिक्षकों से ज्यादा गहराई से वह बच्चे समझ रहे होते हैं जिनके साथ वह दुर्व्यवहार हो रहा था समय अपने आप में परिवर्तन लाता है और वह उन बच्चों के माध्यम से ही आता है।

एक शिक्षक से ऐसे आचरण की अपेक्षा नहीं की जानी चाहिए थी लेकिन तंत्र इस प्रकार का है ऐसे ही शिक्षकों को अधिकारी वर्ग समर्थन करते हैं उन्हें हर प्रकार के भेदभाव करने की स्वतंत्रता प्रदान करते हैं इस प्रकार समाज का ढांचा बिगड़ जाता है और झूठ, अनैतिकता, अव्यवहारिकता को बल मिलता है


ग़ज़ल - लोग अच्छे,बुरे निकलते हैं।

 हर तरफ रास्ते निकलते हैं 

पूछ कर आपसे निकलते हैं।


हम जहां भी गये जमाने में,

आपके ही पते निकलते है।


प्यार की टहनियां हरी रहती,

रोज़ पत्ते नये निकलते हैं।


सब ज़रूरत में काम आयेंगे,

लोग अच्छे,बुरे निकलते हैं।


जिनको छोटे समझ के बातें की,

वो ही हमसे बड़े निकलते हैं।


वो तमाशा या हो लड़ाई भी,

हर कोई, देखने निकलते हैं।


🤭


सूबे सिंह सुजान

बुधवार, 11 दिसंबर 2024

कपल केस बनाम सिंगल कर्मचारियों की पत्नियाँ


 सरकारी कर्मचारियों के विभाग में कार्यरत कुछ कर्मचारियों की पत्नियां भी उसी या अन्य विभागों में जब कार्यरत थी और उनके साथ कुछ कर्मचारी ऐसे थे जिनकी पत्नी घरेलू महिला हैं अर्थात वह सरकारी कर्मचारी नहीं थी।

एक दिन उनमें से एक कर्मचारी के बेटे की शादी का माहौल कुछ इस प्रकार देखने को मिला। जिन कर्मचारियों की पत्नियां भी सरकारी कर्मचारी थी वह दूसरे कर्मचारी की वह पत्नियां आपस में गले लग कर व अत्यधिक गर्मजोशी से मिलती हैं और उन कर्मचारियों की पत्नियां जो घरेलू हैं उनसे केवल औपचारिकता नमस्कार करते ही आगे निकल लेती हैं जैसे कुछ देर पास खड़े होने से कोई बीमारी न चिपट जाए और फिर वह आपस में एक दूसरे के पतियों हल्की सी बात करके फिर अपना विषय उन कर्मचारियों पर कस लेती हैं जो उनके विभाग में सिंगल होते हैं और उनकी पत्नियों पर हेय दृष्टि डालते हुए कहती हैं यह तो जानवरों जैसी है इसको कुछ नहीं पता, दूसरी कहती है इन्हें क्या पता समाज में कैसे मिलते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, तीसरी कहती है छोड़ो यार मूर्ख हैं यह तो आओ मज़े लेते हैं और फिर वह अपने विभाग के सिंगल कर्मचारियों की कमियां आपस में गिनाना शुरू करती हैं अमुक बिल्कुल मूर्ख है कुछ काम नहीं करता और रोज़ किसी न किसी काम के बहाने बाहर जाता रहता है पता नहीं रोज़ दफ्तरों में इतने काम होते हैं या नहीं दूसरी बोलते हुए कहती है हमारे पास तो एक अकेला पुरुष कर्मचारी है बाकी हम सारी महिलाएं हैं वह बुद्धू है हम तो उसके मज़े लेते हैं हर काम उससे करवाते हैं और खूब मज़े करते हैं उसको पता भी नहीं चलता हम कितने बहाने बनाते हैं और वह पागल सारे काम करता रहता है तभी तीसरी बोलते हुए कहने लगी अरे कुछ नहीं आता इनको मैं तो अपने हैसबै्ड को कह देती हूं कभी किसी महिला की बातों में न आया करो यह पुरुष को पागल बना कर काम करवाती हैं आप इनके झांसे में मत आना और वह हंसते हुए अपने बहुत कम कपड़ों को प्रदर्शित करते हुए शादी में सबसे आधुनिक होने का दंभ भरते हुए जानबूझकर कूल्हे मटकाती हुई सबसे आगे चलते हुए नाचने को कहती है।

मंगलवार, 10 दिसंबर 2024

घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध। अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती महोत्सव कुरूक्षेत्र

 हरियाणा भर से कुरूक्षेत्र में पधारे सभी सम्मानित साहित्यकारों को मैं हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।

जहां कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र अनेकों कार्यक्रम बाहरी कलाकारों, कवियों को लाखों, करोड़ देकर करता है वहीं कुरूक्षेत्र की साठ वर्ष पुरानी साहित्य संस्था को दरकिनार करता है अर्थात घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध।

यह कहावत सिद्ध होती है चाहे समाज में कोई कितना समझदार, पढ़ा लिखा हो लेकिन यह कहावत सटीक बैठती है।

एक तरफ धरती पर काम करने वाले साहित्यकारों का गीता काव्य पाठ कार्यक्रम कैंसिल करवा कर दंभ भरने वाला कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र प्रसन्न होता है वहीं दूसरी ओर जिन कलाकारों या कवियों का कुरूक्षेत्र भूमि से कोई नाता नहीं उनको लाखों पूजता है यहां तक तो ठीक था कि आप किसी को कुछ दें,किसी को बुलायें लेकिन कुरूक्षेत्र के साहित्यिक संस्था, साहित्यकारों का अपमान करने का अधिकार आपको किस आधार पर मिला???

आप स्वयं हरियाणा साहित्य अकादमी।

हरियाणा संस्कृति अकादमी के संचालक हैं और आप स्वयं उनका अपमान भी करें?

आप किस समझ के व्यक्तित्व हैं?

क्या भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यही कहा है?

उर्दू प्रकोष्ठ का मुशायरा कैंसिल करवा कर सत्य या गीता का मान किया है?



हमारे जो नाम के बड़े साहित्यकार हैं वह केवल रूपए लेकर कार्यक्रम करने तक सीमित हैं वह कभी समाज से वास्ता नहीं रखते?

वह न कभी किसी कार्यक्रम को करने की पहल तक करते हैं वह केवल अपने पैसे,जेब,और समय का ध्यान रखते हैं।

समाज, साहित्य व साहित्यकार के पक्ष में खड़े होने से उन्हें को मतलब नहीं होता



हमारे साहित्य के बड़े-बड़े नाम जितने साहित्य में पूजे जाते हैं वह कभी समाज, साहित्य के पक्ष में बोल नहीं सकते वह बहुत ज्यादा डरपोक श्रेणी में जीवन यापन करते हैं और वह केवल स्वार्थवश करते हैं।


वास्तविक स्थिति

मंगलवार, 26 नवंबर 2024

दर्द के पत्थर

 दर्द के बारीक टुकड़े टुकड़े कर देना,

वरना ये पत्थर उठाये ही नहीं जाते।


सूबे सिंह सुजान


गुरुवार, 21 नवंबर 2024

बांटते बांटते हुए लोगो।

 दफ़्तरों में दबे हुए लोगो।

कब उठोगे,मरे हुए लोगो।


एक दीवार तो खड़ी है अभी,

कुछ करो,कुछ बचे हुए लोगो।


चापलूसी को काटो, बढ़ती है,

बोलिए,देखते हुए लोगो।


तुम कहीं जा के सो न पाओगे,

भागते भागते हुए लोगो।


कैसे खामोश हो गए सारे?

बोलते बोलते हुए लोगो ।


अब तुम्हें वक्त ख़त्म कर देगा,

बांटते बांटते हुए लोगो।


सूबे सिं



ह सुजान

मंगलवार, 5 नवंबर 2024

नमामि गंगे नमामि गंगे। गंगा नदी पर गीत।

 नमामि गंगे नमामि गंगे, नमामि गंगे नमामि गंगे।

तुम्हारी कृपा से जी रहे हैं ,

हर एक तन में तुम्हारा जल है।

तुम्हीं तो जीवन बना रही हो,

तुम्हीं से कल था, तुम्हीं से कल है।


कहीं पे मछली कहीं मगरमच्छ ,

कहीं पे मेंढक उछल रहे हैं।

हजारों लाखों करोड़ों जीवन,

तुम्हारी गोदी में पल रहे हैं।


जटा से शिव की हुई प्रवाहित 

लहर लहर सी लहर गई हैं 

असंख्य नाले असंख्य नहरें,

इधर गई हैं उधर गई हैं।



सूबे सिंह सुजान 


राजकीय मॉडल संस्कृति प्राथमिक विद्यालय हथीरा, कुरूक्षेत्र, हरियाणा 


E mail - subesujan21@gmail.com 


Mo



bile number 9416334841

सोमवार, 14 अक्टूबर 2024

ग़ज़ल - मंज़िले पा ली गई तो रास्ता बाकी रहे। सूबे सिंह सुजान


 मंज़िलें पा ली गई, तो रास्ता बाकी रहे 

आप बेशक जाइये लेकिन पता बाकी रहे।


उम्र भर जिसके बहाने आप हमको याद आएं,

ज़िन्दगी में प्यार की ऐसी ख़ता बाकी रहे।


दोस्त हमने भी बनाए सैंकड़ों थे, कुछ मगर,

मेरे दिल से हो न पाये, लापता, बाकी रहे।


आप चाहें मुझसे करना दुश्मनी तो कीजिए,

सिर्फ़ दिल में प्रेम का इक देवता बाकी रहे।


दोस्ती ख़ामोशियों से कीजिए बेशक "सुजान"

पेड़-पौधों, रास्तों से वास्ता बाकी रहे।


सूबे सिंह सुजान 


शुक्रवार, 4 अक्टूबर 2024

माता के नवरात्रों में शक्ति मंत्र मां सरस्वती, भद्रकाली,भवानी, वैष्णो ने लिखवाया।

 नवरात्र में मां देवी शक्ति की अराधना करते हुए यह काव्य पाठ माता ने लिखवाया है।

आप सब पढें,पूजा करें।



कलम तुम्हीं हो,कला तुम्हीं हो।

हे प्रेयसी, प्रेरणा तुम्हीं हो।


प्रसन्नता,नव्यता तुम्हीं हो,

सदा तुम्हीं हो,सुधा तुम्हीं हो।


गगन तुम्हीं हो,धरा तुम्हीं हो,

हरी भरी वाटिका तुम्हीं हो।


ह्रदय हरण हृदयिका तुम्हीं हो,

कमल नयन नयनिका तुम्हीं हो।


उठी हैं मन में,मृदुल हिलोरें,

प्रकट हुई भावना तुम्हीं हो।


तुम्हीं हो दुर्गा,शिवा तुम्हीं हो।

कपालिनी क्षमा तुम्हीं हो।


त्रिदेव की शक्ति आपमें है,

अनूप हो दश भुजा तुम्हीं हो।


रचित,रचा,आदिशक्ति माता,

प्रभात चारों दिशा तुम्हीं हो।


व्यथा तुम्हीं वेदना तुम्हीं हो,

मनुष्य की चेतना तुम्हीं हो।


हो अर्थ तुम,काम क्रोध तुमसे,

विज्ञान तुमसे,जया तुम्हीं हो।


हे धात्री हे कात्यायनी माँ,

है रूप तुमसे,छठा तुम्हीं हो।


हे बुद्धि दायक,अज्ञान नाशक,

सरस्वती हंसिका तुम्हीं हो।


सूबे सिंह सुजान 

कुरूक्षेत्र, हरियाणा 

9416334841



गुरुवार, 3 अक्टूबर 2024

हिन्दी भाषा में ई व यी,ए व ये तथा एँ व यें में कौन सा सही है इसके बारे सटीक जानकारी

 #आइए #हिन्दी #सुधारें

---------------------------------

हिन्दी लिखने वाले अक़्सर 'ई' और 'यी' में, 'ए' और 'ये' में और 'एँ' और 'यें' में जाने-अनजाने गड़बड़ करते हैं...।

 कहाँ क्या इस्तेमाल होगा, इसका ठीक-ठीक ज्ञान होना चाहिए...।

जिन शब्दों के अन्त में 'ई' आता है वे संज्ञाएँ होती हैं क्रियाएँ नहीं... 

जैसे: मिठाई, मलाई, सिंचाई, ढिठाई, बुनाई, सिलाई, कढ़ाई, निराई, गुणाई, लुगाई, लगाई-बुझाई...।

इसलिए 'तुमने मुझे पिक्चर दिखाई' में 'दिखाई' ग़लत है... 

इसकी जगह 'दिखायी' का प्रयोग किया जाना चाहिए...। 

इसी तरह कई लोग 'नयी' को 'नई' लिखते हैं...। 

'नई' ग़लत है , सही शब्द 'नयी' है... 

मूल शब्द 'नया' है , उससे 'नयी' बनेगा...।

क्या तुमने क्वेश्चन-पेपर से आंसरशीट मिलायी...?

( 'मिलाई' ग़लत है...।)

आज उसने मेरी मम्मी से मिलने की इच्छा जतायी...।

( 'जताई' ग़लत है...।)

 उसने बर्थडे-गिफ़्ट के रूप में नयी साड़ी पायी...।

('पाई' ग़लत है...।)

अब आइए 'ए' और 'ये' के प्रयोग पर...। 

बच्चों ने प्रतियोगिता के दौरान सुन्दर चित्र बनाये...।

( 'बनाए' नहीं...। ) 

लोगों ने नेताओं के सामने अपने-अपने दुखड़े गाये...।

( 'गाए' नहीं...। )

 दीवाली के दिन लखनऊ में लोगों ने अपने-अपने घर सजाये...।

( 'सजाए' नहीं...। )

तो फिर प्रश्न उठता है कि 'ए' का प्रयोग कहाँ होगा..?

`ए' वहाँ आएगा जहाँ अनुरोध या रिक्वेस्ट की बात होगी...।

अब आप काम देखिए, मैं चलता हूँ...।

( 'देखिये' नहीं...। )

आप लोग अपनी-अपनी ज़िम्मेदारी के विषय में सोचिए...।

( 'सोचिये' नहीं...। ) नवेद! ऐसा विचार मन में न लाइए...।

( 'लाइये' ग़लत है...। )

अब आख़िर (अन्त) में 'यें' और 'एँ' की बात...

यहाँ भी अनुरोध का नियम ही लागू होगा...

 रिक्वेस्ट की जाएगी तो 'एँ' लगेगा , 'यें' नहीं...।

 आप लोग कृपया यहाँ आएँ...।

( 'आयें' नहीं...। )

जी बताएँ , मैं आपके लिए क्या करूँ ?

( 'बतायें' नहीं...। )

मम्मी , आप डैडी को समझाएँ..।

( 'समझायें' नहीं..। )


अन्त में सही-ग़लत का एक लिटमस टेस्ट...

एकदम आसान सा...


जहाँ आपने 'एँ' या 'ए' लगाया है , वहाँ 'या' लगाकर देखें...।

क्या कोई शब्द बनता है ?

यदि नहीं , तो आप ग़लत लिख रहे हैं...।

आजकल लोग 'शुभकामनायें' लिखते हैं...

इसे 'शुभकामनाया' कर दीजिए...।

'शुभकामनाया' तो कुछ होता नहीं ,

इसलिए 'शुभकामनायें' भी नहीं होगा...। 

सही शब्द शुभकामनाएं होगा ।

'दुआयें' भी इसलिए ग़लत हैं और 'सदायें' भी...

 'देखिये' , 'बोलिये' , 'सोचिये' इसीलिए ग़लत हैं क्योंकि 'देखिया' , 'बोलिया' , 'सोचिया' कुछ नहीं होते...।


राज नवादवी 

रविवार, 29 सितंबर 2024

कविता - लड़कों की कविताएं

 कविता - लड़कों की कविताएं 


लड़कों का दर्द है कि लड़के लड़कियों की कविता ,उनका दर्द देखकर पसंद न करके उनकी फोटो देखकर पसंद करते हैं। और लड़के, लड़कों की कविता पसंद नहीं करते।

जबकि लड़कों की कविता में ज्यादा दर्द होता है।

लड़कियां लड़कों की कविता पसंद इसलिए नहीं कर पाती क्योंकि वो समाज से डरती हैं और इस तरह लड़कों की लिखी कविता चुपचाप पढ़ी जाती हैं।

लेकिन उन पर सार्वजनिक टिप्पणियां नहीं आती।


सूबे सिंह "सुजान" 

 कुरूक्षेत्र,


 हरियाणा

गुरुवार, 12 सितंबर 2024

चुनावों से पहले डराने लगे हैं।


 हमें अपनी ताक़त दिखाने लगे हैं 

चुनावों से पहले डराने लगे हैं।


बुरों को सही, जो बताने लगे हैं 

ये माहौल कैसा बनाने लगे हैं?


चुनावों के पीछे वो क्या क्या करेंगे,

अभी से जो लड़ने लड़ाने लगे हैं।


वो जनता को कल कैसा आराम देंगे 

सड़क बंद करके दिखाने लगे हैं।


अरे आम लोगों ज़रा ध्यान रखना,

इधर कौन बदमाश आने लगे हैं।


कलम के सिपाही भी अब भेष बदले,

हमें इस समय आज़माने लगे हैं।


सूबे सिंह सुजान

कवि गोष्ठी 

शुक्रवार, 6 सितंबर 2024

मेरी आलोचना जरूरी है।

मेरी आलोचना जरूरी है 

कुछ नया सीखना जरूरी है।


शब्द दर शब्द सीखना होगा,

शब्द की साधना जरूरी है।


अब रचो मानवीय तकनीकें,

क्योंकि संवेदना जरूरी है।


मूंग,अरहर,उड़द तो हैं लेकिन,

दाल में कुछ चना जरूरी है।


नल खुला छोड़ दे अगर टीचर,

बच्चों को देखना जरूरी है।


मेरे अंदर कमी हजारों हैं,

इस तरह सोचना ज़रूरी है।


मैं ग़ज़ल में गिलोय रस भर दूं,

अब नयी योजना जरूरी है।


सूबे सिंह सुजान


शुक्रवार, 23 अगस्त 2024

हिंसक होते मनुष्य।

आजकल गाय शहरों की सड़कों पर शाम ढलते समय बहुत मात्रा में मिलती हैं और कुछ लोग उनसे टकरा भी जाते हैं लेकिन मूर्खतापूर्ण यह बात है कि कुछ लोग पिछले दिनों गाय को हिंसक कहते पाए गए । उन लोगों में बुद्धि कम है इसलिए ऐसा कह गए। सभी पशुओं में गाय सबसे अधिक शांतिपूर्ण व सहनशील पशु है गाय की अपेक्षा कुत्ता हिंसक है लेकिन ऐसे कम ख्याल लोग कुत्ते के बारे ऐसा नहीं कह पाते? सड़क पर गाय का आना,गाय का दोष नहीं है यह आदमी का दोष है इसलिए यह वही लोग हैं जो केवल अपने स्वार्थ में गाय से लाभ लिया और फिर उसे छोड़ दिया। दूसरी बात यह है कि गाय क्या सब प्राणी सृष्टि में बराबर के हकदार हैं मनुष्य ने उनके जंगल उनकी रिहायशी इलाकों को काट दिया, ख़त्म कर दिया और मार दिया ऊपर से दोष भी उन्हीं को दे रहे हैं। गाय के दूध में सबसे अधिक पौष्टिक तत्व मौजूद होते हैं। शेर सबसे हिंसक पशु है लेकिन वह उक्त सोच के लोग शेर को हिंसक नहीं कहते लेकिन गाय को कह रहे हैं दरअसल वह अपनी बुद्धि से काम नहीं ले रहे हैं इससे पहले उन्होंने भी गाय को हिंसक नहीं कहा था लेकिन अब कह रहे हैं इसके पीछे उनके ब्रेन को हैक किया गया है। अब उनको अच्छे -बुरे की समझ नहीं रही है मुझे हैरत उन पर कम है लेकिन ज्यादा हैरत ऐसे लोगों पर होती है जो अपनी राजनीति के चलते सब कुछ सटीक जानते हुए भी उनकी मूर्खतापूर्ण बात,कार्य पर उनसे कुछ नहीं कहते? जबकि सारा दिन उनके साथ, रहने व समर्थन करने में होते हैं अन्य सब बातें कहेंगे लेकिन इस सच्चाई के विषय पर चुप हो जाते हैं इससे स्पष्ट होता है कि वह केवल अपनी राजनीति की मांसाहारी लालसा के चलते चुप हो जाते हैं।

रविवार, 4 अगस्त 2024

अदबी संगम कुरूक्षेत्र

 दिनांक 9 जनवरी 2022 को अदबी संगम कुरूक्षेत्र की चुनाव प्रक्रिया के पश्चात होने वाली काव्य गोष्ठियों का विवरण -


मेजबानी 

1 सूबे सिंह सुजान की मेजबानी में 27 फरवरी 2022 को संपन्न।


2 डॉ संजीव अंजुम की मेजबानी 27/3/2022 को।



3 डॉ हरीश कुमार रंगा की। 24/04/2022 की मेजबानी।


4 श्रीमती गंगा मलिक जी की 22/05/2022 की मेजबानी।


5 श्रीमती शकुंतला शर्मा जी 26/06/2022 की मेजबानी।


6 प्रकाश कुरूक्षेत्री की मेजबानी में 24/07/2022 कवि सम्मेलन आयोजित।


7  सुधीर ढांडा की 21/08/2022 की मेजबानी में।


8  डॉ राकेश भास्कर जी 25/09/2022 की मेजबानी में।


9 डॉ सुभाष गर्ग जी 16/10/2022 की मेजबानी में।


10 हरियाणा ग्रंथ अकादमी के सहयोग से 26/11/2022 को 


11 गीता जयंती अवसर पर अदबी संगम कुरूक्षेत्र व विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में 05/12/2022को 


12 मेहर चंद धीमान जी को श्रद्धांजलि व काव्य गोष्ठी 01/01/2023 को अदबी संगम कुरूक्षेत्र व सार्थक साहित्य मंच के संयुक्त तत्वावधान में ।


13  डॉ बलवान सिंह बादल की मेजबानी में उनके घर गांव सुनेहडी खालसा में 19/02/2023 को ।


14 श्रीमती सीमा बिरला 05/03/2023 की मेजबानी में।


15  श्री सतीश गर्ग ग़ैर 23/04/2023 की मेजबानी में 


16  श्री रत्नचंद सरदाना 20/05/2023 की मेजबानी में 


17  डॉ शकुंतला शर्मा 18/06/2023। की मेजबानी में 


18  श्री विनोद कुमार धवन 23/07/2023 की मेजबानी में 


19  रोटरी क्लब के सहयोग से कवि सम्मेलन 14/08/2023 आयोजित 


20  श्री संजय मित्तल 24/09/2023। की मेजबानी में 


21  श्री मोती राम तुर्क  22/10/2023 की मेजबानी में 


22  श्रीमती गंगा मलिक  26/11/2023  की मेजबानी में 


23  अदबी संगम कुरूक्षेत्र व कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड के संयुक्त तत्वावधान में 18/12/2023 आयोजित कवि सम्मेलन 


24  श्री राम गोपाल राही 28/01/2024 की मेजबानी 


25  हरियाणा साहित्य एवं संस्कृति अकादमी उर्दू प्रकोष्ठ एवं सांस्कृतिक विभाग कुरूक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र के सहयोग से सीनेट हॉल कुविकु में 15/02/2024 में राष्ट्रीय स्तरीय कवि सम्मेलन एवं विचार गोष्ठी 


26  अदबी संगम कुरूक्षेत्र अध्यक्ष सूबे सिंह सुजान के पोयट्री हाऊस पर 25/02/2024 की मेजबानी 


27  श्री आर के शर्मा जी 24/03/2024 की मेजबानी 


28  श्री प्रकाश कुरूक्षेत्री 21/04/2024  की मेजबानी में कवि सम्मेलन आयोजित 



29  श्री कस्तूरी लाल शाद    

जी 26/05/2024 की मेजबानी में 


30  श्री ज्ञान सागर आहूजा जी 23/06/2024 की मेजबानी 


31  श्री सूबे सिंह सुजान अदबी संगम कुरूक्षेत्र अध्यक्ष 21/07/2024 की मेजबानी में।


उपरोक्त सभी सम्मानित सदस्यों द्वारा काव्य गोष्ठी आयोजित करने के लिए अदबी संगम कुरूक्षेत्र हार्दिक धन्यवाद करता है।

आप सबके सहयोग को साधुवाद।


आप सबसे अदबी संगम कुरूक्षेत्र को सदैव और बेहतर सहयोग की अपेक्षा रहेगी।


धन्यवाद।


सूबे सिंह सुजान 

*अदबी संगम कुरूक्षेत्र*

हम तो शायर हैं


 हम तो शायर हैं तरीके से कहेंगे हर बात,

हमने अठखेलियों का नाम, अदा रक्खा है।

सूबे सिंह सुजान 

#shayari

#poetry





गुरुवार, 4 जुलाई 2024

जामुन और शुगर और हमारे बुजुर्ग

 जामुन को आजकल शुगर के मरीज़ बहुत ढूंढते हैं ख़ैर डॉक्टर बताते हैं लेकिन हमारे बुजुर्गों के समय में डॉक्टर लोग अर्थात वर्तमान साइंस वाले नहीं थे तो भी जामुन के पेड़ लगाए व जामुन खाए जाते थे जानकारी के अभाव के बावजूद?

तो कैसे कह सकते हैं कि उनको जानकारी नहीं थी???


ख़ैर अपने घर पर जामुन का पेड़ है जिसको पिताजी ने लगाया था लगभग 2007-08 में और जामुन पिताजी ने भी कुछ समय खाए और पिताजी 2013 में चले गए थे और आज तक हम और हमारे बच्चे हर साल जामुन खाते हैं और पड़ोसी व अन्य को भी ख़ुद पेड़ से तोड़ कर खिलानी पड़ती हैं पिछले कुछ वर्षों से मैं फेसबुक या व्हाट्सएप पर जामुन की फ़ोटो लगाता हूं तो कमेंट्स मिलते हैं कि कभी खिलाएं भी खाली फोटो क्यों लगाते हैं लेकिन हद की बात यह है लोग कैसे कह लेते हैं जब उनको कहो कि भाई आप घर आएं जी भर खाएं,ले जाएं लेकिन नहीं उनको उनके घर ख़ुद तोड़ कर,जाकर, मुफ़्त में दे कर आएं तो हम मानवता के, बंधुत्व के हकदार होंगे लेकिन वह पहले ही मानवतावादी दृष्टिकोण हैं।


इन कुछ वर्षों का जामुन के साथ अनुभव यही है और इस बार चार दिन पहले जामुन तोड़ रहा था कि तैतएय ने काट लिया फिर जिस टहने (शाखा) पर चढ़ कर जामुन तोड़ कर कुछ सहकर्मियों को खिलाए थे अगले दिन दोपहर में वह टहना अपने आप वहीं से टूट गया जहां मैं खड़ा था।

ख़ैर यह बात तो ज्यादातर ग्रामीण जानते हैं कि जामुन की टहनियां कच्ची होती हैं जो जल्दी टूट जाती हैं ऐसी जानकारियां तभी तो हैं कि हम इन पेड़ पौधों के साथ घनिष्ठता के साथ रहें हैं और जामुन की दांतुन बहुत बेहतरीन है,उसकी लकड़ी से बने नीमचक पानी के कुओं में नीचे लगाए जाते थे जबकि पता था कि वह लकड़ी कच्ची होती है फिर भी उसको पानी के कुओं की दीवार में सबसे नीचे नींव में रखते थे इसका कारण दूसरा था वह यह है कि जामुन की लकड़ी में ऑयरन, कैल्शियम आदि पोषक तत्व मौजूद रहते हैं और वह पानी को साफ रखती हैं।


सूबे सिंह सुजान 


शनिवार, 15 जून 2024

और बगीचा उजड़ गया। सूबे सिंह सुजान

 एक बगीचे की देखभाल चार माली करते थे वह हर पौधे को समय पर पानी देते,खरपतवार निकाल कर बाहर करते,खाद देते और पौधे बहुत प्रसन्न थे लेकिन कुछ नये उगे पौधे उन मालियों का मज़ाक़ करने लगे और बोले कि हम आपके बग़ैर भी मज़े में रह सकते हैं आपके अहसान की जरूरत नहीं है और धीरे-धीरे उन मालियों को बाहर निकालने लगे और कुछ भेष बदले हुए शिकारियों से दोस्ती कर ली वह शिकारी बहुत से झूठे प्रलोभन देते थे।

माली अपनी इज़्ज़त को देखते हुए बगीचे से बाहर बैठ गए और कभी कभी बुजुर्ग पेड़ों को सलाह देते थे परन्तु उनकी सलाह नहीं मान कर भेष बदले शिकारियों को इज़्ज़त से बैठाया गया।

उन शिकारियों ने नये पौधों को पैसे, सड़कों को बनाने की सलाह देकर कुछ बुजुर्ग पेड़ों को काटने की सलाह दी और लालच दिया नये पौधे मान गए।एक दिन मौका देख कर उन शिकारियों ने कुछ पेड़ काट दिए और बुजुर्ग पेड़ों की बात नहीं सुनी गई अब बुजुर्ग पेड़ चिल्लाते और उनके बच्चे नये पौधे उनका मज़ाक करते थे लेकिन शिकारियों ने धीरे धीरे बहुत पेड़ काट कर बेच दिए अब कुछेक नये पौधों का नंबर आने लगा कुछ पौधे बोलने लगे तो शिकारियों के चमचे पौधे उन पर टूट कर पड़े। इस तरह अब वह बगीचा उजड़  रहा है और माली दूर बैठे रो रहे हैं और नये पौधे अपनी जान की भीख मांग रहे हैं और कुछ कर नहीं सकते क्योंकि उनमें एकता और समझ नहीं रही और शिकारी बड़े आराम से शिकार करते हैं और पौधों का ही मज़ाक करते हैं।


सोमवार, 3 जून 2024

पेड़ों के प्रति मनुष्य का दोहरा चरित्र।



 आजकल भयंकर गर्मी को देखते हुए लोग पेड़ लगाने की सलाह सोशल मीडिया पर देते हैं सोचनीय व चिंतनीय है कि यह सलाह सब दूसरों को देते हैं स्वयं को कोई नहीं देता है। लेकिन हम लोग स्वयं क्या करते हैं वह इन चित्रों में मैं आपके सामने रख रहा हूं 

हम स्वयं जो करते हैं वह है जो पेड़ वन विभाग ने सड़कों किनारे, नहरों किनारे लगाए हैं उनको इस गर्मी के मौसम में जला देते हैं इस समय उनको पानी मिलने की संभावना नहीं है क्योंकि बरसात नहीं होती और ऊपर से उनको जला देते हैं यह बेहद सोच समझकर निर्णय लिया जाता है अपने वातावरण को शुद्ध करने की जगह हम ऑक्सीजन देने वाले पेड़ पौधों को पनपने से पहले जला देते हैं यह हम वास्तविकता में करते हैं।

हर मनुष्य ही नहीं हर प्राणी की जीने की पहली जरूरत ऑक्सीजन है हम उसको दूषित तो करते ही हैं ऊपर से उसके स्रोत, पेड़ों को ही नष्ट करते हैं यह हमारी समझ प्रदर्शित हो रही है 

हमारे किसान अपने खेतों के पास सड़क किनारे, नहरों,रजबाहों के इर्द गिर्द लगाए गए पेड़ों को आग में जला रहे हैं पहले तो हमने सार्वजनिक जंगल,वन को काटा है और अब जो पेड़ लगाए जाते हैं उनको जलाया, कीटनाशक से,आग से, नष्ट भी करते हैं। 


अनेकों संस्थाएं बनी हैं जो पेड़ लगाए जाने के रिकॉर्ड दर्ज करती हैं हर साल हमने इतने पेड़ लगाए और सरकार से इस काम के एवज में धन उपार्जन करती हैं लेकिन उनके द्वारा लगाए गए कोई पेड़ पौधे वास्तविक स्थिति में उपस्थित नहीं रहते यह ढोंग केवल पैसा इकट्ठा करने का करते हैं जो ऐसी एनजीओ के मालिक हैं वह चार दिन बमुश्किल पेड़ लगाने के चित्र लेंगे और समाचारपत्र में समाचार दर्ज़ करेंगे और सरकार को वह चित्र देकर पैसा लेंगे और धरातल पर शून्य काम दिखाई देता है कितना अभद्र, अशोभनीय, अव्यवहारिक कार्य हम प्रकृति के साथ करते हैं और सोशल मीडिया व समाचार पत्रों में हम व्यवहारिक ज्ञानी स्वयं को सर्वगुण संपन्न प्रस्तुत करते हैं।


सूबे सिंह सुजान 

कुरूक्षेत्र, हरियाणा 


https://youtu.be/MxuHfupYa9Y?si=GVnn3ZhoWjrqfssZ


#पर्यावरण 

#वातावरण 

#savenature

बुधवार, 29 मई 2024

ढोंगी प्रगतिशीलता

 वे स्वयं को प्रगतिशील व मानवता का प्रहरी कहते नहीं थकते थे।

मैंने बचपन से अब तक साहित्य लेखन व साहित्यिक कार्यक्रमों में भागीदारी की है और साहित्यिक आयोजन स्वयं करवाता रहा हूं और साहित्य संस्था को अग्रणी बनाने में अपनी हर संभव से आगे बढ़ कर कोशिश करता रहा हूं।

कईं दफा वह प्रगतिशील विचारधारा के मित्र मेरे साहित्य कार्य पर भूरि भूरि प्रशंसा करते थे लेकिन 

एक बार जब उनके विचारों के प्रतिकूल विचार सामने रखे तो वह आपा खो बैठे और गालियां देने लगे मैंने उनको याद दिलाया कि आप मानवाधिकारों के प्रहरी हैं लेकिन थोड़ा सा दूसरे को कहने का अधिकार नहीं देते यह कैसा प्रगतिशील व मानवता है?

और उन्होंने गुस्से में अपनी लिखित प्रशंसा वापिस मांगी और पुनः लिखित में आलोचना कर डाली।

अर्थात उनके विचारों के साथ जो बात मेल खाती है वही कहें अन्य कुछ न कहें और यदि कोई कहे तो वह थूक कर चाट लेते हैं।


शुक्रवार, 17 मई 2024

जैसे को तैसा या ऐसे को ऐसा कहिए। दुनिया का कारोबार इनसे ही चलता है


 जैसे को ऐसा। दुनिया का कारोबार जैसे को ऐसा से चलता है। 

जो व्यक्ति जिन गुणों से युक्त होता है उसको वैसा ही पसंद आता है और तभी उनकी ठीक निभाई हो जाती है।

एक चोर को चोरी करते समय यह ध्यान रखना पड़ता है कि इस समय कौन कौन व्यक्ति उसको देख सकते हैं या रास्ते में मिल सकते हैं वह इस बात का पहले से ध्यान रखता है और यदि मिल भी जाएं तो उस समय में उसके जैसे ही मिलेंगे और यदि मिल गए तो उनके दोनों का लाभ इसी बात पर तय होगा कि हमारे काम एक जैसे हैं तो उनका समझौता हो जाता है और इस तरह वे दोनों साझेदार बन कर अपने काम करते हैं और झगड़े से बच जाते हैं।


इसी प्रकार अन्य काम करने वाले सभी लोग अपने अपने गुणों से भरपूर व्यक्ति को ढूंढ लेते हैं और अपना जीवन यापन करते हैं और सच में इस व्यवस्था से ही दुनिया का कारोबार चलता है यदि एक गुणों के विपरीत प्रभाव वाला व्यक्ति मिल जाता है तो वह उम्र भर लड़ते रहते हैं और मालूम नहीं कब ज़्यादा हानि कर बैठते हैं।


शादी के बाद जितने संबंध विच्छेद होते हैं वह भी एक दूसरे के विपरीत गुणों के प्रभाव के  कारण होते हैं ।

हमें हर समय एकात्मकता की ख़ोज रहती है और हम एकात्मकता की दिशा में चलते हैं शिक्षा यदि एकात्मिक है तो वह मानव के लिए लाभकारी है यदि उसमें विपरीत प्रभाव है तो वह मनुष्य में दुर्भावना पैदा करेगी।

बहुत पुरानी एक कहावत है ।

जैसे को तैसा।

या हरियाणा में कहावत है कि "लंगड़े को खूंडा सौ कौस से टकरा जाता है।"

जिसका अर्थ है कि एक भाव या गुणों वाले व्यक्ति चाहे सौ कौस दूर रहते हैं लेकिन वह आपस में एक दिन मिल जाते हैं क्योंकि उनकी उनसे ही ठीक निभाई हो सकती है अन्य से नहीं हो पाती।

प्रकृति द्वारा प्रदत्त गुण ही प्रकृति के संचालन में सबसे ज्यादा सहयोगी हैं।

विज्ञान और डॉक्टर कहते हैं कि जिस वातावरण में आप रहते हैं उसी वातावरण में पैदा अनाज, सब्जी,फल आदि उसके लिए ज्यादा महत्वपूर्ण हैं, लाभकारी हैं।

क्योंकि वह समावेशी हैं वह वातावरण अनुकूल हैं इसी प्रकार मनुष्य के भाव,गुण, आदतें भी समावेशी, अनुकूल ही काम करते हैं। सृष्टि में हर वस्तु, व्यक्ति अलग अलग गुणों से सुसज्जित होकर भी अपने लिए एकात्मकता की ख़ोज में रहती हैं इससे पता चलता है कि परम आत्मा है जो सभी को सम भाव की ओर अग्रसर करती है और सबकी चाह उसी ओर अग्रसर है।


शनिवार, 20 अप्रैल 2024

ग़ज़ल - अपना अहंकार मारना होगा।

 ग़ज़ल -


अपना अहंकार मारना होगा।

हमको हमसे भी हारना होगा।।


हम जुदा किसलिए हुए यारो,

ये भी हमको विचारना होगा।


हम पुरस्कार मेहनतों को दें,

झूठा परदा उतारना होगा।


कुछ न कहना है दूसरों से हमें,

ख़ुद ब ख़ुद को सुधारना होगा।


दूर मत बैठो,पास आ जाओ,

काम बिगड़ा संवारना होगा।


सूबे सिंह सुजान


बुधवार, 17 अप्रैल 2024

सत्य सनातन

 आपको सत्य भी, फिर झूठ दिखाई देगा,

आप जो सत्य को स्वीकार नहीं कर सकते।।

सूबे सिंह "सुजान"


शुक्रवार, 12 अप्रैल 2024

आधुनिक होना मानवता के गुणों के साथ डकोसला मात्र है।


 प्रकृति द्वारा हर चीज़ व हर जीव, निर्जीव, जन्तु, तन्तु सब एक विशेष उपार्जन हेतु निर्मित किए गए हैं।

महिलाओं में विशेष अपने तरह के गुण हैं वह अपने जीवन में सदैव उनका अपने भले या स्वार्थ के लिए प्रयोग करती हैं उसी प्रकार पुरुष भी अपने विशेष गुणों का प्रयोग करते हैं।


ईमान क्या है?

स्वाभिमान क्या है?

बहुत अधिक व्यक्ति अपने स्वार्थ के लिए नीच गुणों का प्रयोग करते हैं लेकिन बहुत कम व्यक्ति बचे हैं जो अपने स्वाभिमान के लिए अपनी आत्मा,ग़ैरत कभी नहीं बेचते वरना गैरत बेचने वालों की मंडी में भीड़ लगी है।

जागरूकता क्या है?

मनुष्य अपने जीवन में जितना यथार्थ ज्ञान अर्जित करता है वह उतना जागरूक होता है मनुष्य का जन्म के पश्चात निरंतर जागरूक होने का क्रम जारी रहता है और यह जागरूकता ही हमारे जीवन का लक्ष्य होता है कौन व्यक्ति जितनी जागरूकता प्राप्त करता है वह उतना इस सृष्टि को जान पाता है।


यदि वर्तमान समय में स्वयं को सर्वगुण संपन्न,शिक्षित मानने वाली महिलाएं भी अपने स्वार्थ के लिए अपने महिला होने के कार्ड को कहीं भी खेल पाती हैं तो कोई अतिशयोक्ति नहीं है क्योंकि यह प्रकृति की देन है वह सर्वगुण संपन्न होने का डकोसला मात्र है जबकि वह स्वाभिमान,ईमान नहीं है वह तो वह छोटे से स्वार्थ के लिए बेच देती हैं। रिश्ते नाते उनके लिए अपने स्वार्थ सिद्ध करने के साधन मात्र होते हैं। इस प्रक्रिया में स्वयं को सर्वगुण संपन्न,शिक्षित, आधुनिक कहना यह स्वयं व समाज के साथ छल कपट ही है। सर्वगुण संपन्न कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता लेकिन यह जो आधुनिकता और माडर्न होने का डकोसला है यह मानवता के गुणों के साथ घिनौना व्यवहार है।


शनिवार, 30 मार्च 2024

विज्ञान केवल जागरूकता का दूसरा नाम है।

 विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी में हम जो कुछ भी हासिल करते हैं वह हम ख़ोज करते हैं ख़ोज शब्द से अर्थ स्पष्ट होता है कि उक्त वस्तु, विचार, तकनीक की हमने पहचान कर ली है,जान ली है, ख़ोज ली है। लेकिन वह मौजूद तो वातावरण में पहले से ही थी यह ख़ोज हमारी जागरूकता है।

जो लोग, व्यक्ति आम आदमी से हटकर अपनी जागरूकता को बढ़ावा देते हैं वह प्रकृति को ओर ज़्यादा पहचान लेते हैं और यह पहचान लेना ही विज्ञान का दूसरा नाम है।



शुक्रवार, 29 मार्च 2024

आज तक जो हुआ, वही होगा। सूबे सिंह सुजान

 आज तक, जो हुआ,वही होगा।

नाम इसका ही ज़िन्दगी होगा।

हाथ ख़ाली इमानदारी के,

साथ कोई न आदमी होगा।

लूटने वाला,हंस भी लेता है,

सच्चा इंसान ही दुखी होगा।

झूठ से काम कर लिया उसने,

सबको लगने लगा,सही होगा।

इसके आकार पर न जाईये,

आज नाला है कल नदी होगा।


सूबे सिंह सुजान


सोमवार, 11 मार्च 2024

आपसे दोस्ती असाधारण

 आदमी, आदमी असाधारण

हर किसी की खुशी असाधारण।


आपसे दोस्ती असाधारण 

फिर हुई दुश्मनी असाधारण।


सूबे सिंह सु


जान

बुधवार, 21 फ़रवरी 2024

जन्मदिन मनाना है। ग़ज़ल -सूबे सिंह सुजान

 तेरी खुशी के लिए जन्मदिन मनाना है

तेरी खुशी ही मेरे जीने का बहाना है।


पता नहीं मुझे तारीख़, क्या महीना था,

खुशी की बात है दुनिया में आना जाना है।


तो मास्टर ने ही इक्कीस फ़रवरी लिख दी,

अब उम्र भर इसी दिन को ही आज़माना है।


जो लोग मिलके,बिछड़ने के बाद याद आये,

जरूर उनसे ही रिश्ता कोई पुराना है।


पसंद कर मुझे या नापसंद भी करना ,

मगर यहां किसी का कुछ नहीं ठिकाना है।


ये उम्र भर के लिए बात याद रखना "सुजान"

चला जहां से, वहीं के लिए रवाना है।




सूबे सिंह सुजान

सोमवार, 19 फ़रवरी 2024

सब अपनी ओर रवाना हैं।

 सब जीवों की दिन रात की दौड़ सिर्फ़ अपनी ओर आकर्षित करने की है और इसका वास्तविक रूप परमात्मा है।अर्थात हम सब जीवों की दौड़ परमात्मा की ओर है हमारे रोज़मर्रा के काम, हमारी संस्कृति है वह संस्कृति परमात्मा है हमारे काम क्या हैं? क्यों हैं? हम ही अक्सर इनसे भी अज्ञात रहते हैं हम अपनी संस्कृति को पहचान नहीं पाते अर्थात अपने आप को सटीक जानते नहीं हैं और लगातार बेतरतीब तरीके से दौड़ते रहते हैं।

हम सब जीवन के रेगिस्तान में हैं और पानी के तालाब की ओर प्यासे होकर दौड़ रहे हैं। परमात्मा वह सागर है जिसमें जाकर सब नदियां मिलती हैं हर नदी सागर की ओर बहती है बहना उसकी संस्कृति है यह उसका कर्तव्य है यही उसका जीवन है और यह जीवन  सागर को समर्पित है वह सागर परमात्मा है जीना भी सब जीवों की संस्कृति है, कर्तव्य है और सब जीव अपनी संस्कृति को समर्पित हैं अपने परमात्मा को समर्पित हैं। हम सबको उसी अथाह सागर में मिलना है हमारी उससे मिलने की दौड़ ही हमारा जीवन है।


शुक्रवार, 16 फ़रवरी 2024

वैचारिक और बौद्धिक गुंडागर्दी।

 कवि अभ्यास से नहीं हो सकते हैं कवि प्राकृतिक रूप से होता है।

प्रोफेसर होना अलग बात है और कवि होना अलग बात है।

मैंने बहुत से प्रोफेसर को कविता कहते सुना,पढ़ा है उनकी कविता में आत्मीयता, संवेदना मरी हुई होती है ऐसा लगता है शब्दों की बनावट कर रखी है। शब्दों को इधर से उठा कर उधर रख दिया है बहुत कम प्रोफेसर ऐसे होते हैं जिनमें कवित्व होता है लेकिन वर्तमान में जो प्रोफेसर हो गया वह अपने आपको सबसे बड़ा कवि स्वयं घोषित करने का अधिकार समझता है और उनके इस पाखंड में असली कवि दब जाते हैं उनके अधिकार इनकी डिग्रियों की आड़ में दब जाते हैं।

अधिकतर प्रोफेसर लोग लिखना केवल अपना अधिकार समझते हैं यह एक तरह की वैचारिक और बौद्धिक गुंडागर्दी होती है और कभी भी प्राकृतिक लेखन उनसे नहीं हो पाता।

असल में तो प्रोफेसर लोग कबीरदास, तुलसीदास,सूरदास,रसखान,खुसरो,जायसी, रामधारी सिंह दिनकर, निराला, महादेवी वर्मा, सुमित्रानंदन पंत, ग़ालिब व दुष्यंत कुमार को पढ़ा सकते हैं और सभी संत और जन कवि कभी अपनी डिग्री या दंभ नहीं भरते थे इसलिए वही वास्तविक रूप में जन कवि होते हैं लेकिन प्रोफेसर लोगों के लिए उनको पढ़ाना ही सही काम है लेकिन वह इनको पढ़ाते पढ़ाते स्वंय को प्रचारित करने के लिए लालायित होने लगते हैं और आत्ममुग्धता के शिकार हो जाते


हैं

कवि प्राक्रतिक होता है।

 कुछ कवि ऐसे होते हैं जो कवि सम्मेलन आयोजित करवाते रहते हैं उनके स्वयं को और अन्य कवियों की प्रतिभा को निखारना आता है वह सबको अवसर देते हैं वह कार्यक्रम के लिए अनेकों प्रयास करते रहते हैं और जब तक कार्यक्रम होता है तब तक वह चिंतित रहते हैं हर प्रकार की देखरेख करने में व्यस्त रहते हैं और स्वयं की रचना को संतुलित रूप से व्यक्त करने में सक्षम इसलिए नहीं हो पाते क्योंकि वह कार्यक्रम की तैयारियां व सुचारू करने को ज्यादा महत्व देते हैं और कार्यक्रम होने के पश्चात उन लोगों से अपनी कमियां सुनने का अवसर मिलता है जिनको उन्होंने कविता कहने का उपयुक्त अवसर प्रदान किया था।यह अपनी खिल्ली स्वयं उड़ाने का काम अति साहसिक लोग ही कर पाते हैं।वह सकारात्मक ऊर्जा का संचार करते रहते हैं उनको नकारात्मक लोगों के बीच रहना ही चाहिए ताकि नकारात्मक प्रभाव कम किया जा सके। नकारात्मक लोग अपने नकारा गुण को प्रकट करते रहते हैं वह कभी कुछ ऐसा काम कर नहीं पाते जो किसी अन्य के काम आ सके वह केवल सकारात्मकता में कमियां ढूंढने में व्यस्त रहते हैं और सकारात्मक लोग अपनी सकारात्मकता को लेकर बिना थके चलते रहते हैं और यही क्रम जीवन में सदैव चलता रहता है जो कि प्राकृतिक गुण है।


सोमवार, 15 जनवरी 2024

जन्म से हर कोई सवाली है।

 जन्म से हर कोई सवाली है

बुद्धि से कोई भी न ख़ाली है।

उसने पगड़ी अगर उछा


ली है,

फिर तो वो आदमी मवाली है।


सूबे सिंह सुजान

रविवार, 14 जनवरी 2024

वीर सैनिक

 ये

कौन

किसके

लिए लड़े

वीर सैनिक

हर नागरिक

को समझना होगा।


सूबे सिंह सुजान,

कुरुक्षेत्र, हरियाणा।


साहित्य विचार का रथ है


 विचार की आत्मा नव उत्कर्ष, युग चेतन , परिवर्तन है और विचार बुद्धि से निकलते हैं विचार के लिए किसी भाषा का चयन महत्वपूर्ण नहीं है उसके लिए उसका जन्म महत्वपूर्ण है वह किस जगह,किस प्रकार,किस समय व किसके माध्यम से उत्पन्न होगा यह हम तय नहीं कर पाते। लेकिन विचार का जन्म हुआ है उसका हर भाषा में स्वागत होना चाहिए यदि भाषा के आधार पर विचार को छोड़ दिया जाए तो उस विचार को त्यागने वाला ही लाभ से वंचित रहेगा। साहित्य किसी भी विचार का वहन करता है और उसको प्रसारित करता है

साहित्य विस्तृत है वह अनेकों विद्याओं का वाहक है जिसका उद्देश्य विचार को वैश्विक स्तर पर वास्तविक रूप में प्रसारित करना है ताकि जन जन को सत्य जानने का अवसर मिले।