आज तक, जो हुआ,वही होगा।
नाम इसका ही ज़िन्दगी होगा।
हाथ ख़ाली इमानदारी के,
साथ कोई न आदमी होगा।
लूटने वाला,हंस भी लेता है,
सच्चा इंसान ही दुखी होगा।
झूठ से काम कर लिया उसने,
सबको लगने लगा,सही होगा।
इसके आकार पर न जाईये,
आज नाला है कल नदी होगा।
सूबे सिंह सुजान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें