सरकारी कर्मचारियों के विभाग में कार्यरत कुछ कर्मचारियों की पत्नियां भी उसी या अन्य विभागों में जब कार्यरत थी और उनके साथ कुछ कर्मचारी ऐसे थे जिनकी पत्नी घरेलू महिला हैं अर्थात वह सरकारी कर्मचारी नहीं थी।
एक दिन उनमें से एक कर्मचारी के बेटे की शादी का माहौल कुछ इस प्रकार देखने को मिला। जिन कर्मचारियों की पत्नियां भी सरकारी कर्मचारी थी वह दूसरे कर्मचारी की वह पत्नियां आपस में गले लग कर व अत्यधिक गर्मजोशी से मिलती हैं और उन कर्मचारियों की पत्नियां जो घरेलू हैं उनसे केवल औपचारिकता नमस्कार करते ही आगे निकल लेती हैं जैसे कुछ देर पास खड़े होने से कोई बीमारी न चिपट जाए और फिर वह आपस में एक दूसरे के पतियों हल्की सी बात करके फिर अपना विषय उन कर्मचारियों पर कस लेती हैं जो उनके विभाग में सिंगल होते हैं और उनकी पत्नियों पर हेय दृष्टि डालते हुए कहती हैं यह तो जानवरों जैसी है इसको कुछ नहीं पता, दूसरी कहती है इन्हें क्या पता समाज में कैसे मिलते हैं, कैसे कपड़े पहनते हैं, तीसरी कहती है छोड़ो यार मूर्ख हैं यह तो आओ मज़े लेते हैं और फिर वह अपने विभाग के सिंगल कर्मचारियों की कमियां आपस में गिनाना शुरू करती हैं अमुक बिल्कुल मूर्ख है कुछ काम नहीं करता और रोज़ किसी न किसी काम के बहाने बाहर जाता रहता है पता नहीं रोज़ दफ्तरों में इतने काम होते हैं या नहीं दूसरी बोलते हुए कहती है हमारे पास तो एक अकेला पुरुष कर्मचारी है बाकी हम सारी महिलाएं हैं वह बुद्धू है हम तो उसके मज़े लेते हैं हर काम उससे करवाते हैं और खूब मज़े करते हैं उसको पता भी नहीं चलता हम कितने बहाने बनाते हैं और वह पागल सारे काम करता रहता है तभी तीसरी बोलते हुए कहने लगी अरे कुछ नहीं आता इनको मैं तो अपने हैसबै्ड को कह देती हूं कभी किसी महिला की बातों में न आया करो यह पुरुष को पागल बना कर काम करवाती हैं आप इनके झांसे में मत आना और वह हंसते हुए अपने बहुत कम कपड़ों को प्रदर्शित करते हुए शादी में सबसे आधुनिक होने का दंभ भरते हुए जानबूझकर कूल्हे मटकाती हुई सबसे आगे चलते हुए नाचने को कहती है।
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