हरियाणा भर से कुरूक्षेत्र में पधारे सभी सम्मानित साहित्यकारों को मैं हार्दिक धन्यवाद ज्ञापित करता हूं।
जहां कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र अनेकों कार्यक्रम बाहरी कलाकारों, कवियों को लाखों, करोड़ देकर करता है वहीं कुरूक्षेत्र की साठ वर्ष पुरानी साहित्य संस्था को दरकिनार करता है अर्थात घर का जोगी जोगना बाहर का जोगी सिद्ध।
यह कहावत सिद्ध होती है चाहे समाज में कोई कितना समझदार, पढ़ा लिखा हो लेकिन यह कहावत सटीक बैठती है।
एक तरफ धरती पर काम करने वाले साहित्यकारों का गीता काव्य पाठ कार्यक्रम कैंसिल करवा कर दंभ भरने वाला कुरूक्षेत्र विकास बोर्ड कुरूक्षेत्र प्रसन्न होता है वहीं दूसरी ओर जिन कलाकारों या कवियों का कुरूक्षेत्र भूमि से कोई नाता नहीं उनको लाखों पूजता है यहां तक तो ठीक था कि आप किसी को कुछ दें,किसी को बुलायें लेकिन कुरूक्षेत्र के साहित्यिक संस्था, साहित्यकारों का अपमान करने का अधिकार आपको किस आधार पर मिला???
आप स्वयं हरियाणा साहित्य अकादमी।
हरियाणा संस्कृति अकादमी के संचालक हैं और आप स्वयं उनका अपमान भी करें?
आप किस समझ के व्यक्तित्व हैं?
क्या भगवान श्री कृष्ण ने गीता में यही कहा है?
उर्दू प्रकोष्ठ का मुशायरा कैंसिल करवा कर सत्य या गीता का मान किया है?
हमारे जो नाम के बड़े साहित्यकार हैं वह केवल रूपए लेकर कार्यक्रम करने तक सीमित हैं वह कभी समाज से वास्ता नहीं रखते?
वह न कभी किसी कार्यक्रम को करने की पहल तक करते हैं वह केवल अपने पैसे,जेब,और समय का ध्यान रखते हैं।
समाज, साहित्य व साहित्यकार के पक्ष में खड़े होने से उन्हें को मतलब नहीं होता
हमारे साहित्य के बड़े-बड़े नाम जितने साहित्य में पूजे जाते हैं वह कभी समाज, साहित्य के पक्ष में बोल नहीं सकते वह बहुत ज्यादा डरपोक श्रेणी में जीवन यापन करते हैं और वह केवल स्वार्थवश करते हैं।
वास्तविक स्थिति
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