गुरुवार, 4 जुलाई 2024

जामुन और शुगर और हमारे बुजुर्ग

 जामुन को आजकल शुगर के मरीज़ बहुत ढूंढते हैं ख़ैर डॉक्टर बताते हैं लेकिन हमारे बुजुर्गों के समय में डॉक्टर लोग अर्थात वर्तमान साइंस वाले नहीं थे तो भी जामुन के पेड़ लगाए व जामुन खाए जाते थे जानकारी के अभाव के बावजूद?

तो कैसे कह सकते हैं कि उनको जानकारी नहीं थी???


ख़ैर अपने घर पर जामुन का पेड़ है जिसको पिताजी ने लगाया था लगभग 2007-08 में और जामुन पिताजी ने भी कुछ समय खाए और पिताजी 2013 में चले गए थे और आज तक हम और हमारे बच्चे हर साल जामुन खाते हैं और पड़ोसी व अन्य को भी ख़ुद पेड़ से तोड़ कर खिलानी पड़ती हैं पिछले कुछ वर्षों से मैं फेसबुक या व्हाट्सएप पर जामुन की फ़ोटो लगाता हूं तो कमेंट्स मिलते हैं कि कभी खिलाएं भी खाली फोटो क्यों लगाते हैं लेकिन हद की बात यह है लोग कैसे कह लेते हैं जब उनको कहो कि भाई आप घर आएं जी भर खाएं,ले जाएं लेकिन नहीं उनको उनके घर ख़ुद तोड़ कर,जाकर, मुफ़्त में दे कर आएं तो हम मानवता के, बंधुत्व के हकदार होंगे लेकिन वह पहले ही मानवतावादी दृष्टिकोण हैं।


इन कुछ वर्षों का जामुन के साथ अनुभव यही है और इस बार चार दिन पहले जामुन तोड़ रहा था कि तैतएय ने काट लिया फिर जिस टहने (शाखा) पर चढ़ कर जामुन तोड़ कर कुछ सहकर्मियों को खिलाए थे अगले दिन दोपहर में वह टहना अपने आप वहीं से टूट गया जहां मैं खड़ा था।

ख़ैर यह बात तो ज्यादातर ग्रामीण जानते हैं कि जामुन की टहनियां कच्ची होती हैं जो जल्दी टूट जाती हैं ऐसी जानकारियां तभी तो हैं कि हम इन पेड़ पौधों के साथ घनिष्ठता के साथ रहें हैं और जामुन की दांतुन बहुत बेहतरीन है,उसकी लकड़ी से बने नीमचक पानी के कुओं में नीचे लगाए जाते थे जबकि पता था कि वह लकड़ी कच्ची होती है फिर भी उसको पानी के कुओं की दीवार में सबसे नीचे नींव में रखते थे इसका कारण दूसरा था वह यह है कि जामुन की लकड़ी में ऑयरन, कैल्शियम आदि पोषक तत्व मौजूद रहते हैं और वह पानी को साफ रखती हैं।


सूबे सिंह सुजान 


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