फिर से तारीखें लौट जायेंगी
दर्द दीवारों में दरार हुआ
घर हमारा नहीं,घरों जैसा
इक कबूतर अभी फ़रार हुआ
फिर से तारीखें लौट जायेंगी
दर्द दीवारों में दरार हुआ
घर हमारा नहीं,घरों जैसा
इक कबूतर अभी फ़रार हुआ
सोच में सकरात्मक बदलाव के लिये आप नई कहानी को प्रयोग करके देखें, ख़ास तौर पर छोटे बच्चों पर विशेष प्रभाव होगा।।—कथा-- एक बार कछुआ और खरगोश की दौड होती है।पहली बार दौड में कछुआ धीरे धीरे चलता है अपनी चाल से तो खरगोश सोचता है कि मैं आराम से जीत जाऊँगा,कछुआ बहुत देर से आएगा तब तक मैं सो लेता हूँ । और कछुआ धीरे-धीरे चलकर दौड के निर्धारित स्थान पर पहुंच जाता है और खरगोश हार जाता है। लेकिन कछुआ कहता है कि नहीं यह तो मेरे साथ धोखा हुआ है मैं सो गया था वरना कछुआ तो मुझसे कभी जीत ही नहीं सकता। मुझे एक मौका और दिया जाए। कछुआ तैयार हो जाता है और फिर से दौड होती है इस बार खरगोश जीत जाता है कछुआ हार जाता है, तो इस बार कछुआ कहता है नहीं –नहीं मेरे साथ धोखा हुआ है दौड दुबारा से होनी चाहिये, और इस तरह फिर से दौड होती है और कछुआ दौड के स्थान में बदलाव करने को कहता है जो मान लिया जाता है। दौड शुरू होती है तो रास्ते में नदी आती है जिसे कछुआ तैर कर पार कर लेता है लेकिन खरगोश नहीं कर पाता तो खरगोश हार जाता है। इस बार खरगोश फिर से कहता है नहीं-नहीं मेरे साथ धोखा हुआ है दौड दुबारा की जाये।
और इस तरह फिर से तीसरी बार दौड होती है लेकिन इस बार बडी अजीब घटना होती है जब नदी आती है और खरगोश पानी में नहीं तैर पाता तो मायूस हो जाता है उसे मायूस देखकर कछुआ कहता है आओ खरगोश भाई मेरी पीठ पर बैठ जाओ मैं आपको नदी पार करवाता हूँ और खरगोश उसकी पीठ पर बैठ जाता है और दोनों नदी पार कर लेते हैं नदी पार करके जब खरगोश दौडने लगा तो कछुआ मायूस हो जाता है तो उसकी मायूसी पर खरगोश कहता है आ मेरे प्यारे मित्र मेरी पीठ पर बैठ जा और दोनों एक साथ दौड जीत लेते हैं इस बार उन्होने एक नई बात सीखी कि हम तो दोनों के काम आ सकते हैं अर्थात जो काम खरगोश को नहीं आता वो कछुआ कर लेता है और जो काम कछुवे को नहीं आता वो खरगोश कर लेता है इस तरह हम आपस में अपने सारे काम ठीक प्रकार से कर सकते हैं। और उन्होने कसम खाई कि वे अब कभी भी हार जीत की दौड नहीं खेलेंगे बल्कि एक दूसरे के काम आने वाली दौड ही खेलेंगे।
………तरही ग़ज़ल…………..
बूढा ही कहता है बेटा हमको
बेटी ही कहती है पापा हमको
मत उछलने दो बडों की इज्जत
ठीक समझाती है बुढिया हमको
वक़्त ने आज बताया हमको
बेवफ़ाओं ने सताया हमको
जिसने भी प्यार से देखा हमको
एक दिन उसने ही लूटा हमको
एक उम्मीद हमारी भी थी
आई लव यू कोई कहता हमको
हम समन्दर में चले जायेंगे
मिल गया है कोई दरिया हमको
आपको हमने महब्बत समझा
आपने बेवफ़ा समझा हमको
आग अन्दर की भडकती जाये
“अपने शोलों ने जलाया हमको”
………..सूबे सिंह सुजान…………..
2 1 2 2 1 1 2 2 2 2
अब खतरनाक हो गया बादल
या कहें बेलगाम है पागल
कोई तो इन्द्र को ये समझाये,
कर रहा है किसान को घायल
आसमाँ ने कहा शराबी है,
मेघ नाचे है बाँध कर पायल
ओ रे मूर्ख खडी फ़सल को देख,
बालियों में है धूधिया चावल
गडगडाहट करे, डराये है,
बिजलियाँ हो रही तेरी कायल
मौलिक व अप्रकाशित
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम....
जैसा लिखते हैं वैसा उच्चारण,
इसलिये हिन्दी को करें धारण
विश्व को आओ सच बतायें हम..
मिलके हिन्दी के गीत गायें हम.....
सभ्यता लिप्त हिन्दी भाषा में
एक इतिहास जिसकी गाथा में
अपनी गाथायें मत भुलायें हम...
आओ हिन्दी पढें-पढायें हम.....
संस्कृत रक्त में समायी है
देव भाषा वही बनायी है
अपने सम्मान को बढायें हम..
आओ हिन्दी पढें पढायें हम....
मौलिक व अप्रकाशित
चाँद की आँख में नमी होगी
लोगों को ईद पर खुशी होगी
चाँद हर रोज देखता है तुम्हें,
आपकी आज बेबसी होगी
जिंदगी रोज खून से लथपथ,
आज कैसे ये जिंदगी होगी
गर्दनें काट कर दिखाते हो,
क्या खुशी फिर भी ईद की होगी
अन्ध-विश्वास से लडाई है,
अब लडाई ये रोकनी होगी
छोड दो अपना-अपना कहना उसे,
इस तरह खत्म दुश्मनी होगी
आज इनसानियत है खतरे में,
क्या वजह है ये सोचनी होगी
इस तरफ ओट करके बैठे हो,
इस तरफ कैसे रोशनी होगी
छोड दो अपना कहना दुनिया को,
सारी दुनिया फिर आपकी होगी ।
………….सूबे सिंह सुजान………….
जुबां दबा कर चले न जाना
कंही समन्दर उबल न जाये,
मेरे हृदय में बसेक डर है,
ह़दय तुम्हारा बदल न जाये।।
……………….सुजान…………..
कभी कभी मेरे सीने में दर्द उठता है
किसी की यादों का अहसास जिंदा रहता है।
किसी की याद ग़ज़ल बनके लफ़्ज़ों में ढली है
बसा हो दिल में जो,शायर वही तो कहता है।
मैं आज अपने किसी ख़्वाब को कुचल आया,
कि अब नहीं मुझे वो ख़्वाब तंग करता है।
तुम्हारा ख़्वाब नहीं देखता मरूथलों को,
वो बार बार समन्दर में ही बरसता है।
बहुत दिनों से शिकायत है इस जमाने से,
मेरी खुशी को जमाना कंहा समझता है।
हमेंशा याद रखो जिन्दगी की सच्चाई,
जो फूल खिल गया वो एक दिन बिखरता है।
जो बेसबब तेरे चेहरे पे मुस्कुराहट हो,
खिला –खिला सा तेरा चेहरा अच्छा लगता है।
वे दोनों शादीशुदा थे और गवर्न्मेंट सर्विस में काम करते थे उनमें किसी तरह का कोई अफेयर्स जैसा कुछ नहीं था तथा दोनों नये विचारों के थे औरत खुद को ज्यादा खुले विचारों वाली मानती थी। और अन्य पुरूष मित्र से बात करने में परहेज नहीं करती थी इसलिये दोनों फोन पर मैसेज करके भी कंई बार बात करते थे। और फेसबुक भी यूज करते थे लेकिन आपस में फेसबुक पर मित्र नहीं थे। लेकिन मयूच्वल मित्रों के माध्यम से कंई पोस्ट पढ लेते थे। पुरूष मित्र बहुत ही खुले विचारों का था लेकिन वह कभी किसी से यह नहीं कहता था कि मैं खुले विचारों का हूँ। तथा अक्सर अपने में खोया रहता था हालांकि यह घमण्ड की श्रेणी में नही आता। वह कभी औरतों की बातें ठीक से नहीं समझ पाता था, उसकी अपनीअलग दुनियां थी। एक दिन उसने स्त्री मित्र के किसी अच्छे मैसेज को पढने के बाद धन्यवाद स्वरूप थैन्क्स डियर लिख दिया। तभी पलट के मैसेज आया कि आपको बात करने की तमीज नहीं है। वह सकपका गया और कुछ नहीं कह सका सिर्फ ओह……..।के सिवा।
उसके बाद उसने मैसेज करने की हिम्मत छोड दी। हालांकि उधर से भी कोई जवाब नहीं आया। लगभग महीने भर बाद उन दोनों के मयूच्वल मित्र की किसी पोस्ट पर सामान्य बात पर पुरूष मित्र ने अपने दार्शनिक अन्दाज में लिखा कि – जो नाम के मीठे होते हैं वे सच में भी मीठे व प्यारे हों ये जरूरी तो नहीं। और उनकी उसी मित्र ने वह पोस्ट पढने के बाद फिर वही गुस्सा जाहिर किया और बीच के मित्र को कहा कि उनसे कहिये कि माफी मांगे। अब वह यह नहीं समझ पाया कि किस बात की माफी, खैर बीच के मित्र के अनुरोध पर वह माने और मैसेज के जरिये माफी की अपील की जो कि खारिज़ कर दी गई पलट के मैसेज आया कि यह माफी नही है क्योंकि यह किसी के कहने पर मांगी गई है। उसने पुनः लिखा कि मैं निपट मूर्ख हूँ दिगभ्रमित हूँ,मुझे ये भी नहीं मालूम कि मैं किन शब्दों का प्रयोग करके माफी मांगू, समझ नहीं पा रहा हूं मेरे शब्दकोश में डियर का अर्थ प्यारा ही था। मैं नहीं समझ सका था कि इसके कुछ अलग-अलग व्यक्ति के लिये अलग-अलग अर्थ होते हैं। कृपया करके मुझे निशब्द होने की इजाजत दें अन्यथा मुझे मेरी सजा बतायें मैं सजा कबूल करता हूँ ।
लेखक- सूबे सिंह सुजान
जीवन में मुस्कुराहट बहुत जरूरी है। मुस्कुराते हुये को देखकर ,सब अनायास ही मुस्कुरा देते हैं। मानव अपनी सब परेशानियों से बचना चाहता है जब कोई परेशान हो और समस्या का हल न मिल रहा हो तो सामने उस समय कोई मुस्कुरा भर दे तो उसकी चिंता गायब हो जाती है। और सारा तनाव रफूचक्कर हो जाता है। इसलिये मनुष्य को मुस्कराते रहना चाहिये। मुस्कुराहट गमों का इलाज तो है ही साथ ही रोगों से दूर भी रखती है। लेकिन मुस्कुराहट को पाने के लिये हमें अपनी सोच को सकारात्मक रखना पडता है। सोच में सकारात्मकता ही हमें चिंताओं से दूर रखती है। यदि उच्च विचारों के सानिंदय में रहेंगे तो हमें सकारात्मकता की प्रेरणा मिलती है।सदैव से ऋषियों मुनियों ने सत्य का साथ देने,सद्गुरूओं के साथ आचार-विचार करने की शिक्षा दी है। इसलिये मुस्कुराहट एक सकारात्मक शक्ति है जो मनुष्य को जीवन जीने की शक्ति प्रदान करती है।और कठिनाईयों को कम करती है।
जब राजनीति हाथ पसारे दिखाई दे।
जब अपना भी किनारे-किनारे दिखाई दे।।
उस वक़्त राजनीति में नेता को छान लो,
बेदाग,साफ जो हो उसे नेता मान लो ।।
प्रोफेसर सत्य प्रकाश “तफ़्ता” ज़ारी ऊर्दू अ़रूज़ के, ऊर्दू अदब में जाने माने (हस्ताक्षर) शाइर हैं। वे स्वर्गीय क़िब्ला डा.ओम प्रकाश अग्रवाल (“ज़ार” अल्लामी) की ज़ानशीनी है । उम्र अब जाने लगी है। वे अकेले बिन पुत्र के व बिना पेंशन के जीवन यापन कर रहे हैं जो आज के मंहगाई के युग में बहुत ही कठिन काम है।वे कुरूक्षेत्र विश्वविधालय कुरूक्षेत्र में प्राणी विज्ञान विभाग में प्रोफेसर,विभागाध्यक्ष एंव डीन सांईस फ़ैकल्टी के पद से 30 नवम्बर 1993 को सेवानिवृत हुये हैं सरकार ने ऐसे वरिष्ठ साहित्यकारों की तरफ कोई ध्यान नहीं दिया है। मुझे उनसे थोडा बहुत सीखने का मौका मिला है। वे जीवन भर ऊर्दू अदब की सेवा करते रहे। ऊर्दू के कद्रदाँ लोगों नें भी इस महान आत्मा की ओर एक हल्की सी नज़र उठा कर देखने की ज़हमत नहीं उठाई । आज तक हरियाणा की ऊर्दू अकादमी ने ऊर्दू के लोगों को जो हरियाणा के निवासी भी हैं,और जिन्होने वास्तव में ऊर्दू के लिये काम किया है उनको अकादमी के महत्वपूर्ण पद पर स्थान नहीं दिया। जो सही मायनों में ऊर्दू का प्रचार- प्रसार कर सकते थे। जो ऊर्दू को भलि-भांति जानते भी हैं जिन्होंने ऊर्दू को जीया भी है।लेकिन सियासत की अंधी गलियों में अदब की जगह भी अंधेरा है। यहाँ भी खूब सियासत होती है।
तफ़्ता साहब ने कभी किसी चीज की मांग ही नहीं की, वे तंगहाल को पसंद करने वाले लोगों में से एक हैं उनकी शख़्शियत किसी के आगे हाथ फैलाने वालों में से नहीं है। वे जिन्दगी भर अपने ऊसूलों को निभाते रहे हैं। आजकल बीमारी व गरीबी में जी रहे हैं लेकिन किसी से कोई सहायता मांगने तक नहीं जाते। यहाँ तक कि जब अदबी संगम कुरूक्षेत्र की निश्शत होती है तो जब मैंने कंई बार कहा कि गुरू जी मेहर चंद धीमान जो कि उनके पास में ही रहते हैं जब वे आते हैं तो आप उनके साथ ही आ जाया करो। लेकिन कभी उनसे इतना कहना नहीं चाहते कि आप मुझे लेते चलना। अगर किसी को लगता है कि मुझे ले जाएंगे या स्वंय ले जाने की हिम्मत है तो ठीक वरना वे किसी को नहीं कहते यह खुद्दारी वे कभी नहीं छोड पाये।
ऊर्दू में प्रकाशित पुस्तकें-1.नुकूशे-नातमाम ( ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 2. हिना की तहरीर- ( ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह ) 3. एहसास- (देवनागरी)- (ऊर्दू ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर का संग्रह) तथा “फ़ैज़” अहमद “फ़ैज़” की नज़्मों का अंग्रेजी भाषा में अनुवाद किया है। वे डा. आर.पी.शर्मा “महर्षि” के गुरू भाई हैं। डा. आर.पी. शर्मा “महर्षि” स्व. डा. हरिवंश राय बच्चन के समकालीन कवियों,शायरों में से हैं जो कि आजकल भी ए-1, वरदा,कीर्ति काँलेज के निकट,वीर सावरकर मार्ग,दादर (प.) मुम्बई ( महाराष्ट्र ) में साहित्य की सेवा कर रहे हैं।
आप सब साहित्यअनुरागियों से निवेदन व अपील मैं अपने बूते से कर रहा हूँ कि आप उनके 12- से 15 ऊर्दू की ग़ज़लों,क़ितआ़त,रूबाईयात,तज़ामीन एंव तशातीर को, जो कि अप्रकाशित हैं आर्थिक अभाव के कारण, को प्रकाशन के लिये आर्थिक दान करके प्रकाशित करवाने में भूमिका निभा कर साहित्य व समाज की सेवा कर सकते हैं। तथा ईशवरीय,मानवीय तथा समाजिक रूप से दुआऐं प्राप्त कर सकते हैं। डा. “तफ़्ता” जी का मोबाइल न.09896850699 है तथा मेरा 09416334841 है। आप सब जागरूक समाजिक लोगों की प्रतीक्षा में।।।। नाचीज़--- सूबे सिंह “सुजान”
भारत संघ के केन्द्रीय चुनावों की घोषणा हो चुकी है। सभी दलों ने पूरजोर कोशिशें शुरू कर दी हैं। लेकिन हरियाणा की राजनीति की अपनी ही पहचान होती है। यहां के लोग जिस अक्खड व मौजी स्वभाव के होते हैं वैसी ही स्वभाव की इनकी राजनीति भी होती है। हालांकि इस बार चुनाव आयोग की सक्रियता काफी उत्साहजनक यहां भी नज़र आ रही है। सभी दलों के नेताओं को अपने अन्धाधुंध खर्चों से मरहूम रहना पड रहा है, साथ ही वे सोच सकते हैं कि यह उनके लिये भी अच्छा है और देश व जनता के लिये भी बहुत मददगार होगा। यह तथ्य नेताओं को समझना ही चाहिये।
इधर हरियाणा में कांग्रेस को बहुत कम लोग पसंद करते आये हैं लेकिन कांग्रेस फिर भी अपना शासन 10 साल से चला पाई है क्योंकि कांग्रेस बहुत चालबाजी करने व जनता को बाँटने में अंग्रेजों के समय से माहिर है। वास्तविकता में कांग्रेस का बहुमत नही है। यंहा पर इनेलो को ही देशी दल के रूप में देखा जाता रहा है। यह देशी दल अपनी पैठ गाँवों के घरों में बनाये रखता है और बहुत ही उबली हल्दी का पक्का रंग चढाये रखता है। लेकिन इस बार यहाँ भी मोदी की लहर है राष्ट्रीयता के लिये, क्योंकि हरियाणा के लोग हमेशा देशहित में भाजपा को ही प्रमुखता से रखते हैं और इसका भी कारण इनेलो ही है। क्योंकि इनेलो अधिकतर भजपा के साथ गठबंधन के साथ आती रही है और दूसरा पक्ष देखें तो कह सकते हैं कि इनेलो , भाजपा से अपना फायदा उठाने में हमेशा सक्षम भी रही है इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुये इस बार भाजपा की शीर्ष टीम ने हरियाणा के भाजपा के क्षेत्रीय कार्यकर्ता की सुनी और इनेलो से हमेशा आशातीत समझौता वास्तविकता का रूप नहीं ले सका।
आजकल हर गाँव के नुक्कड,गली,घर में चुनावों की चर्चा जोरों पर है। कि ये टिकट सही है,ये गलत,ये उम्मीदवार जायज,ये नाजायज, ये बाहरी, ये घोटालेबाज,ये साफ छवि का आदि-आदि। इसके साथ ही अंत में एक बात सभी कहते हैं कि इस बार एक मौका तो मोदी को ही देना चाहिये। और इस तरह भजपा का पलडा बिन वोट मांगे ही भारी हो जाता है ।दूसरा पक्ष इस बार के चुनावों में साफ तौर पर सोशल मीडिया का भी साफ झलकता है। नये वोटर सोशल मीडिया के प्रभाव में ही वोट करेंगे। मेरे अनुमान में ये नये वोटर अपने विवेक से ही वोट देंगे और राष्ट्रीयता को प्रमुखता से देखेंगे। यह लेख भी अनुमानों के आधार पर समीक्षा परख है लेकिन जो चर्चायें होती हैं वही वास्तविकता का रूप लेकर सामने आती हैं वही भविष्यवाणियों का आधार बनती है।
सूबे सिंह सुजान
छोड के पूजा खुदा की,पूजने तुमको लगी....
मैं खुदा की शक्ल में अब देखने तुमको लगी.....सुजान
रसिया
आज होली मनाओ रे रसिया
रंग में भीग जाओ रे रसिया
दिल से दिल को मिलाओ रे रसिया
दुश्मनी भूल जाओ रे रसिया.
आज होली मनाओ रे रसिया........
मस्तों की रंग - भंग है टोली
नैनों से मारे रंगों की गोली
छोड शर्मो हया मेरे हमजोली
आओ खेलेंगे मिल के हम होली...
दोस्तों को मिलाओ रे रसिया ..
प्यार दिल से जगाओ रे रसिया..
आज होली मनाओ रे रसिया..
रंग में भीग जाओ रे रसिया.......
डांस करके दिखाओ रे रसिया
लटके-झटके दिखाओ रे रसिया
नैंनों के तीरों से जो पकडा है,
दूर हटके दिखाओ रे रसिया....
आज होली मनाओ रे रसिया..
रंग में भीग जाओ रे रसिया....
एक पल साथ आओ रे रसिया
दूरियों को मिटाओ रे रसिया
दुनियां को भूल जाओ रे रसिया
रंग ऐसा उडाओ रे रसिया
आज होली मनाओ रे रसिया
रंग में भीग जाओ रे रसिया.....
कोई छोटा - बडा नहीं होता
हम सही होते कोई न रोता
हमसफ़र मुफ़्लिसों के बन जाओ,
सबसे पहले खुद को समझाओ
मुफ़्लिसों को उठाओ रे रसिया..
आ गले से लगाओ रे रसिया...
आज होली मनाओ रे रसिया....
रंग से अंग जो बनाये हैं।
आज सब लोग देखने आये हैं।।
पाँव में घुँघरू बजाये हैं,
लोग पागल बडे बनाये हैं।
रंग, पिचकारी, कोरडा मारे,
आज गलियों में हम भगाये हैं।।
जीवन एक प्रक्रिया है जिस प्रकार सौर परिवार अपनी निश्चित प्रक्रिया में चलता है और उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया मानव जीवन पर प्रभाव डालती है। उसी प्रकार मानव जीवन, परिवार, समाज, रिश्ते-नाते,मधुर सम्बन्ध,क्रोध, प्रसन्नता आदि भाव मानव के आस-पास आते व जाते रहते हैं। जो सम्बन्ध एक समय में अपरिचित होते हैं वही गूढ बन जाते हैं हमें पता भी नहीं चलता कि कब हम किसी के भाव,विचार,या प्रेम में समाहित हो जाते हैं।
मानव का जीवन सदैव सुख व दुख को महसूस करने में ही बीतता है वह सुख के पीछे ही दौडता रहता है और जिस समय उसे दुख मिलता है तो वह उसी समय ठीक से अपने सुख को पहचानता है। जब हम अपने जीवन के अभिन्न अंग से जरा सा भी दूर होते हैं तो पता चलता है कि हम उन लोगों या रिश्तों को कितने हल्के से ले रहे थे फिर हमें असलीयत का पता चलता है। जिस प्रकार आदमी संसार में आता है। उसी प्रकार विभाग में आता है। जिस विभाग में हम जिस समय काम करने आये थे, उसी समय यह भी निश्चित हो गया था कि हमें निश्चित समय पर चले भी जाना है। इस जाने की तिथि का हमें उसी समय पता चल जाता है। और हम धीरे-धीरे जीवन यापन करते हुये सांसारिक कार्यों में व्यस्त रहते हुये समझ ही नहीं पाते कि कब इतना लम्बा समय गुजर गया। और एकदम से ये एहसास होता है हमें अरे हमने तो अभी कुछ भी नहीं किया है। अभी तो हमें और भी जीना है। मनुष्य की यही लालसा रहती है जीते दम तक। और कंही न कंही यही जीने की लालसा रहनी भी चाहिये। क्योंकि जीने की लालसा हमें जीवन में ठहराव महसूस नहीं होने देती। और हम अबाध गति से जीवन को जीते हुये चले जाते हैं । बस हमें जीवन रूपी गाडी में चलते समय हर स्टेशन पर रूकना जरूर चाहिये, कि कंही कोई यात्री छूट न जाये। किसी का सामान छूट न जाये। हमारी वजह से कोई दुखी न रह जाये। नौकरी और जीवन एक दूसरे के परस्पर बराबर हैं जैसे व्यक्ति जीवन जीता है उसमें सब कुछ सुख व दुख को महसूस करते हुये जीता है, ठीक उसी प्रकार नौकरी भी है व्यक्ति को नौकरी में वही सारी परेशानियाँ,खुशियाँ, दोस्तों का साथ व दुशमनों का सामना करना पडता है। और पुरूष की अपेक्षा एक महिला को भारतीय समाज में और भी ज्यादा परेशानियों का सामना करके निडरता के साथ नौकरी करनी पडती है।
( विदाई गीत ) ( संगीत धुन व बहर--- तुम्हीं मेरी पूजा तुम्हीं देवता हो……)
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विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो
हमारे लिये तुम सजृा हो रहे हो……..
नियम जिन्दगी के अनोखे बडे हैं
वफ़ा भी बहुत और धोखे बडे हैं
वफ़ा करके तुम बेवफ़ा हो रहे हो
विदा हो रहे हो,विदा हो रहे हो………..
बहुत सीख पाये, बहुत लालसा है
मगर क्या करें जिन्दगी हादसा है
हमारे लिये आइना हो रहे हो
विदा हो रहे हो, विदा हो रहे हो………
ये जीवन की रस्में निभानी पडेंगी
ये तकलीफ़ें हमको उठनी पडेंगी
खुशी से चलो हम जुदा हो रहे हैं
विदा हो रहे हैं, विदा हो रहे हो………..
………………………………………………सूबे सिंह सुजान…………………….
सम्बन्ध आपके थे मधुरता लिये हुये ।
जीवन में आये आप सरलता लिये हुये।।
जीवन के साथ आँख मिचौली न कीजिये,
जीवन सफल बनाओ निकटता लिये हुये।। सूबे सिंह सुजान
जीवन एक प्रक्रिया है जिस प्रकार सौर परिवार अपनी निश्चित प्रक्रिया में चलता है और उसकी सम्पूर्ण प्रक्रिया मानव जीवन पर प्रभाव डालती है। उसी प्रकार मानव जीवन, परिवार, समाज, रिश्ते-नाते,मधुर सम्बन्ध,क्रोध, प्रसन्नता आदि भाव मानव के आस-पास आते व जाते रहते हैं।