सोमवार, 29 दिसंबर 2014

नई कहानी- कछुआ व खरगोश की दौड।

सोच में सकरात्मक बदलाव के लिये आप नई कहानी को प्रयोग करके देखें, ख़ास तौर पर छोटे बच्चों पर विशेष प्रभाव होगा।।—कथा--   एक बार कछुआ और खरगोश की दौड होती है।पहली बार दौड में कछुआ धीरे धीरे चलता है अपनी चाल से तो खरगोश सोचता है कि मैं आराम से जीत जाऊँगा,कछुआ बहुत देर से आएगा तब तक मैं सो लेता हूँ । और कछुआ धीरे-धीरे चलकर दौड के निर्धारित स्थान पर पहुंच जाता है और खरगोश हार जाता है। लेकिन कछुआ कहता है कि नहीं यह तो मेरे साथ धोखा हुआ है मैं सो गया था वरना कछुआ तो मुझसे कभी जीत ही नहीं सकता। मुझे एक मौका और दिया जाए। कछुआ तैयार हो जाता है और फिर से दौड होती है इस बार खरगोश जीत जाता है कछुआ हार जाता है, तो इस बार कछुआ कहता है नहीं –नहीं मेरे साथ धोखा हुआ है दौड दुबारा से होनी चाहिये, और इस तरह फिर से दौड होती है और कछुआ दौड के स्थान में बदलाव करने को कहता है जो मान लिया जाता है। दौड शुरू होती है तो रास्ते में नदी आती है जिसे कछुआ तैर कर पार कर लेता है लेकिन खरगोश नहीं कर पाता तो खरगोश  हार जाता है। इस बार  खरगोश फिर से कहता है नहीं-नहीं मेरे साथ धोखा हुआ है दौड दुबारा की जाये।

                 और इस तरह फिर से तीसरी बार दौड होती है लेकिन इस बार बडी अजीब घटना होती है जब नदी आती है और खरगोश पानी में नहीं तैर पाता तो मायूस हो जाता है उसे मायूस देखकर कछुआ कहता है आओ खरगोश भाई मेरी पीठ पर बैठ जाओ मैं आपको नदी पार करवाता हूँ और खरगोश उसकी पीठ पर बैठ जाता है और दोनों नदी पार कर लेते हैं नदी पार करके जब खरगोश दौडने लगा तो कछुआ मायूस हो जाता है तो उसकी मायूसी पर खरगोश कहता है आ मेरे प्यारे मित्र मेरी पीठ पर बैठ जा और दोनों एक साथ दौड जीत लेते हैं  इस बार उन्होने एक नई बात सीखी कि हम तो दोनों के काम आ सकते हैं अर्थात जो काम खरगोश को नहीं आता वो कछुआ कर लेता है और जो काम कछुवे को नहीं आता वो खरगोश कर लेता है इस तरह हम आपस में अपने सारे काम ठीक प्रकार से कर सकते हैं।  और उन्होने कसम खाई कि वे अब कभी भी हार जीत की दौड नहीं खेलेंगे बल्कि एक दूसरे के काम आने वाली दौड ही खेलेंगे।

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