शुक्रवार, 27 अप्रैल 2012

तरही ग़ज़ल 27.04.2012

दिल के अन्दर है अन्धेरा और बाहर चाँदनी

क्यों नही दोनो जगह होती बराबर चाँदनी

सुख अकेला जिन्दगी में मिल नही सकता हमें,

जिन्दगी में हर जगह है संगमरमर चाँदनी

ख्वाहिशें ही ख्वाहिशें, ताकत बहुत कम है, मगर,

आदमी हावी रहा औरत के ऊपर चाँदनी

कल यहाँ झगडा हुआ दो जातियों के बीच में,

मेरे घर पर बैठ जा चुपचाप आकर चाँदनी

किस पिता के माथे पे गम की लकीरें हैं नहीं,

“शमअ् लेकर ढूँढती फिरती है घर-घर चाँदनी”

मदमदाती वो जमीं पर,जब उतरती है सुजान

प्यार करती है मेरे गालों को छूकर चाँदनी

                            सूबे सिहं “सुजान”

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें