दिल के अन्दर है अन्धेरा और बाहर चाँदनी
क्यों नही दोनो जगह होती बराबर चाँदनी
सुख अकेला जिन्दगी में मिल नही सकता हमें,
जिन्दगी में हर जगह है संगमरमर चाँदनी
ख्वाहिशें ही ख्वाहिशें, ताकत बहुत कम है, मगर,
आदमी हावी रहा औरत के ऊपर चाँदनी
कल यहाँ झगडा हुआ दो जातियों के बीच में,
मेरे घर पर बैठ जा चुपचाप आकर चाँदनी
किस पिता के माथे पे गम की लकीरें हैं नहीं,
“शमअ् लेकर ढूँढती फिरती है घर-घर चाँदनी”
मदमदाती वो जमीं पर,जब उतरती है सुजान
प्यार करती है मेरे गालों को छूकर चाँदनी
सूबे सिहं “सुजान”
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