रविवार, 15 अप्रैल 2012

कविता--धूप छेडती है मुझे

धूप छेडती है मुझे
मसखरी करते हुए
मुझे तपाती है
मेरी कमियाँ बताती है
और माँ से शिकायत करती है
कि मैं नकारा कोई काम नहीं करता
.......................
धूप सिखाती है मुझे
कैसे काम किया जाता है
किस से कैसे बात की जाती है
माता-पिता को नमस्ते करना
बहन से कैसे पेश आना चाहिये
अपनी जुबान को संयम देना
.........................................
धूप कहती है मुझसे...
कि पेड लगाओ
सुबह उठो
शाम को घर आओ
बच्चों से बातें करो
खूब हंसो,हंसाओ
रोने के लिये
तैयार रहा करो
रोना बुरी बात नहीं होता
..................................
मैं खुश हूँ धूप के साथ से
धूप की मित्रता वफादार है
तुम मानो या न मानो
लेकिन तुम्हारी भी सखा है धूप..........सूबे सिहं सुजान

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