गेहूँ की बालियाँ पकते हुये आवाज करती हैं जब सुबह धूप बढने लगती है तो खेत के बीच में बैठ कर आप शांत वातावरण में गेहँ की बालियों की किट-किट को सुन सकते हैंआज सुबह मैंने ऐसा सुना तो ऐसा लगा जैसे गेहूँ पकते हुये बोल रही है जैसे दर्द में कराह रही हो । क्योंकि फसल पक रही है गेहूँ के पौधे कितने हरे भरे थे अब वो सूखने लगे हैं विचारों की श्रृंखला बढने लगी तो यह एहसास हुआ कि जैसे कोई स्त्री बच्चे को जन्म दे रही हो ऐर उसे जन्म देते हुये असहाय कष्ट हो रहा हो गेहूँ की किट-किट की आवाज मुझे उस औरत के रूदन की तरह प्रतीत होने लगी ।
जैसे जब स्त्री बच्चे को जन्म देती है तो हमें दो तरह का आभास होता है एक तो नव शिशु के आने का हर्ष और दूसरा स्त्री की पीडा को देखकर दर्द होता है बिल्कुल इसी समय नव जन्म होता है यह दो तरह का आभास अर्थात प्लस और माइनिस है दुनिया का जन्म भी इसी तरह हुआ है प्रकृति में जन्म की यही प्रक्रिया है। जो एक असीम सुख से प्रारम्भ होती है जिसे सैक्स भी कहा जाता है।
सूबे सिहं सुजान
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