रविवार, 27 मई 2012

जो है शायद उसे ऐसा ही होना था।

पत्थर अभाव में पलता है या यही उसका सही जीवन है अर्थात पत्थर को पत्थर बनने का उपयुक्त वातावरण जरूरी है,अगर यह वातावरण उसे नहीं मिला तो फिर वह पत्थर नही बनेगा। यह विचारों का क्रम ही नये विचार प्रस्तुत कर देता है हम हमेशा किसी न किसी को दोष देते हैं अभावों के लिये, लेकिन गम्भीरता से सोचने पर ज्ञात होता है कि जो स्थिति हमारी है हम उसे दोष देते रहते हैं, दूसरी स्थिति  को प्राप्त करने के लिये, लेकिन सत्य यह है कि जब हम किसी नयी स्थिति को प्राप्त होते हैं समस्याऐं उस समय भी अपने नव रूप में हमारे सामने होती हैं यह क्रम सदियों से अनवरत जारी है।
                                                                   सूबे सिहं सुजान

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