दिनाँक 13 मई 2012 को सांय पाँच बजे सदाकत आश्रम कुरूक्षेत्र में अदबी संगम साहित्य संस्था की मासिक काव्य गोष्ठी का आयोजन सूबे सिंह सुजान की अगुवाई में और इन्द्रजीत इस्सर की अध्यक्षता में सफल आयोजन किया गया। गोष्ठी का संचालन डा. राकेश भास्कर जी ने किया जो स्वयं हास्य कवि के रूप में अपनी पहचान बना चुके हैं। सर्वप्रथम डा. संजीव कुमार ने अपनी ग़ज़ल से यूँ आगाज किया-वो फूल हाथों में कभी पत्थर लिये हुये,आता है मेरे दर पर मुकद्दर लिये हुये।संजीव के बाद कवियत्री शकुंतला शर्मा ने अपनी कविता में कहा –माँ एक शब्द नहीं समंदर है माँ की दुनिया में ही बच्चों की दुनिया है।,डा. सत्या प्रकाश “तफ्ता” जी ने एक नई विधा को विकसित किया है जो बहुत ही खूबसूरत और कठिन भी है जिसका विकास ग़ज़लों के छन्दों से ही हुआ है यह बहुत ही संक्षिप्त है और इसमें एक बात को ही रखा जाता है तान पंक्तियों में पूरी बात को लयात्मक व छन्दात्मक रूप से कही जाती है। इसका नाम है “माहिया” उनके तीन माहिये देखिये 1. सचमुच था बडा आकिल, कन्धा भी दिया मुझको, रोया भी मेरा कातिल । 2.क्या खूब उजाले हैं, हिन्द की किस्मत में , रिश्वत है घोटाले हैं । 3.उपवन भी नहीं होगा, जो पेड नहीं होगा , जीवन भी नहीं होगा।। सुजान ने कहा- गर्दन तो घूमती है घुमाना भी चाहिये,अकडो न इतने सर को झुकाना भी चाहिये,जब काम प्यार से भी बनाये नहीं बने, फिर आसमान सर पे उठाना भी चाहिये…विनोद कुमार धवन ने घर नामक कविता मे मार्मिक चित्रण प्रस्तुत किया—लोगों ने जब बार-बार कहा कि आपका छोटा सा घर है,तो मुझे भी लगने लगा कि मेरा घर छोटा है। गोष्ठी में अन्य कवि—डा. बलवान सिहं,सुधीर डांडा,रमेश कुमार शर्मा,दोस्त भारद्वाज, ने अपनी रचनायें पेश की। यह सारा कार्यक्रम सदाकत आश्रम के संचालक स्वामी सत्य प्रेमी के सान्धिय में सम्पन हुआ।
रिपोर्ट—सूबे सिंह सुजान
Dr. Tafta ke Mahiya ke prayog bahut sundar aur saarthak hain. Is report ke liye shukriya. Sab kaviyon ko badhai.
जवाब देंहटाएंसर जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कार, आपके न आने का,आपकी रचना न सुन पाने का मलाल तो रहा ही है। परन्तु आपकी टिपप्णी पाकर मन हर्ष से लबालब है।