मंगलवार, 1 फ़रवरी 2022

चोर (कहानी)

कहानी का शीर्षक है। - चोर। 

 एक बार एक चोर खेत से आलू चोरी करने गया। जब वह खेत से आलू चुरा रहा था।

 तो उसे मन में बार-बार किसी के आ जाने या पकड़े जाने का डर सता रहा था। वह अपनी मानसिकता को स्थिर नहीं कर पा रहा था। उसे हर पल भय था। उसे यह अहसास हो रहा था कि यह भयातुर भावना है जिसमें वह जो काम ठीक से कर सकता था वह काम भी हड़बड़ी में गलत कर रहा है।


दूसरी बार वह चोर एक नहर से सरकारी लकड़ी चुराने गया ।जहां उसको डर का एहसास कम हो रहा था और जिस समय वह लकड़ी चुरा रहा था। उस समय उसके पास दो चार आदमी भी आए लेकिन वह उतना नहीं डरा, उन लोगों से उसने ठीक से बात की और उन्होंने भी उसे कोई ज्यादा नहीं डराया, न अपराधी माना ।क्योंकि इस बार चोरी सरकारी संपत्ति की थी। उस सरकारी संपत्ति की चोरी को वो लोग भी जायज समझते थे । कि क्या फर्क पड़ता है यह हमारी संपत्ति थोड़ी है यह तो सरकारी है यह मानसिकता का अंतर था। 

इन दोनों चोरी करने के बाद जब वह चोर दोनों चोरियों के समय की मानसिकता पर घोर करने लगा तो उसे अहसास हुआ कि यह सामाजिक मानसिकता है जो केवल मेरे अन्दर नहीं है बल्कि सारे समाज के अंदर व्याप्त है और इससे हम देश की संपत्ति को कितना नुकसान पहुंचा रहे हैं जबकि इसी संपत्ति से हमारे समाज के सार्वजनिक कार्य ठीक होते हैं और इसके प्रति सारा समाज लूटने की भावना रखता है इस प्रकार ही तो हमारे काम अधूरे हैं और लोग आपस में स्वयं को ही लूट रहे हैं।

6 टिप्‍पणियां:

  1. एक आम आदमी से लेकर उच्च स्थान पर बैठे व्यक्ति की सोच का बिल्कुल सही खाका खींचती है ये लघुकथा..बहुत बधाई आपको 🙏

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  2. आपने कहानी को पढ़कर। अपनी उपयुक्त टिप्पणी प्रस्तुत की है इसके लिए बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीय

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  3. आपने पढ़ा और अपनी टिप्पणी प्रकाशित की है आपका हार्दिक आभार आदरणीय

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  4. आप सभी सम्मानित दोस्तों को बहुत बहुत धन्यवाद जी

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  5. आपको सपरिवार वसन्त पंचमी की हार्दिक शुभकामनाएँ
    - सूबे सिंह सुजान, कुरूक्षेत्र
    😊🙏

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