आज हम सावन के आने पर भी खुश नहीं हैं क्योंकि वह देर से आया है लेकिन इसमें सावन का क्या दोष है। वह तो हमें फोलो कर रहा है। देर से आने का तो हमारा लम्बा इतिहास है। जो हमारे नेताओं की देन है। हमें इस मामले में नेताओं का शुक्रगुज़ार होना चाहिये। जिन्हें हमें यह सुदृढ परम्परा दी है। हमें नेताओं की कुर्बानियों को यूँ ही नहीं भुलाना चाहिये। अब हम थोडा सा इस परम्मरा के इतिहास के बैकग्राऊंड पर नज़र डालते हैं। अक्सर नेता लोग ही लेट आते थे फिर धीरे-धीरे पता चला कि हमारे देश के कर्मचारियों को भी नेताओं की रीस हो गई और वो भी नेता के पदचिन्हों पर चलने लगे। नेताओं का देखिये आज कहां तक असर हुआ। अब इस देश में हर आदमी लेट आने को बडा हुनर मानने लगा है। सबमें होड लगी है लेट आने की। नेता से लेकर हर कर्मचारी अब लेट आने की तैयारी करता है। वह पूरी प्लान के साथ लेट होने के फायदे ढूंढता है। नेता का लेट होना तो ठीक था। और सबकी आसानी से समझ में भी आता था कि जब तक लोग अधिक से अधिक इक्कठ्ठे नहीं हो जाते तो नेता का सभा में आने का क्या फायदा । क्योंकि नेता को तो हमेशा जनता की फिक्र रहती है ना भला। उसे जनता के सिवा कुछ सूझता ही नहीं। जनता ही उसकी अन्दाता है,जनता ही उसकी विधाता है। अब गरीब बेचारे भगवान को पूजते रहते हैं। और नेता गरीब को पूजता है। है न चमत्कारी देश। नेता का पेट फूलता है,गरीब का पेट पतला होता है।
नेता ने सबको सिखाया कि देर से आना बहुत फायदेमंद है। और लगभग हर विभाग के कर्मचारियों ने इस तथ्य को परखा और फोलो करना शुरू कर दिया। फिर इन्हें देखा-देखी स्कूल में अध्यापक लेट आते, तो बच्चों ने भी लेट आना शुरू किया। बच्चों को खूब मज़ा आने लगा। और हालात मज़े के अब यह हैं कि बच्चों ने लेट आना सीखने के बाद बताया कि जो पढा-पढाया ही खरीद ले वो ज्यादा समझदार कहलाता है तो हर तरफ यही फिकरा हवा में गूंजने लगा। कि पढने वाला बेवकूफ और जो पढा-पढाया प्रमाणपत्र ले आये वह ही असली समझदार होता है। क्योंकि काम तो आदमी की योग्यता ने करना है। तो जो योग्य होगा भला उसे पढने की क्या जरूरत, पढने की जरूरत तो उसे है जो योग्य नहीं। और सिलसिला यूँ चला कि हर स्कूल के विद्धयार्थी पढना छोड कर जुगाड तकनीक का प्रयोग करने लगे। और नये-नये कीर्तिमानों की झडी लगा दी। खिलाडियों ने भी नेताओं की राह पर चल कर खेलों में नशीली दवाओं का प्रयोग करके खूब नाम और पैसा दोनों कमाये।
इस तरह मौसम ने भी आदमी से ही सीखा कि देर से आने के अपने फायदे हैं। अब देखिये ना कि पिछले कईं सालों से किसानों ने बेहद अनाज पैदा किया जिसे रखने के लिये सरकार के पास जगह नहीं रही और उसे समुद्र में फेंकना पडा। अब अगर जगह नहीं है तो समुद्र में ही फेंकेंगे ना। और कहां रखेंगे भला। जब अनाज ज्यादा होगा तो अब उसे कम करने के लिये आदमी तो सोचता नहीं तो मौसम को ही सोचना पडेगा। और मौसम ने सोचा। और इस बार देर से आया ताकि जो फ़सल किसान ने मर-मर कर खडी कर ली है। वह तो बम्पर होने वाली है। तो नेताओं ने सोचा कि इस बार हम इतने सारे अनाज को कहां रखेंगे। और मौसम विभाग को कहा देखो अगर आप लोगों को तन्ख्वाह लेनी है तो सावन को लेट कर दो। ताकि जो फ़सल किसानों ने उगा ली है। उसे बिना किसी लाग-लपेट के नष्ट किया जा सके।सांप भी मरे और लाठी भी न टूटे। मौसम विभाग ने सावन से कहा देखो भई सावन अगर हमारे देश में हमारी इजाजत के बैगर आये तो आपकी खैर नहीं । इसलिये जब हम कहें तभी आना । और सावन आदमी से डर गया। सावन ने सुन रखा था कि आजकल आदमी खुद ही कृत्रिम बरसात कर लेता है। तो कंही कल मेरे ऊपर ही बैन ना लगा दे और वह चुपचाप मौसम विभाग की बात मान गया । और देर से आया और खूब आया ताकि सरकार को खूब मज़ा आये और कल हो सकता है सरकार मुझे ‘भारत रत्न’ से ही पुरस्कृत कर दे।
सूबे सिंह सुजान
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