स्कूल में बच्चों ने एक बिल्ली का बच्चा पकड कर मुझे दिया। और कहने लगे कि आप इस बच्चे को पाल लें। बच्चा बहुत प्यारा था मैं भी मोहित हो गया। और उसे घर ले आया। घर पर बच्चों ने उससे पहले दिन तो दूरी बना कर रखी उन्हें उससे थोडा डर लग रहा था। लेकिन दो-चार दिन बाद उससे इतने घुल-मिल गये कि उसके बिना खाना तक नहीं खाते थे। बच्चों को अपना प्यारा मित्र मिल चुका था। नीति फिर भी उससे दूरी बनाये रखती थी लेकिन आरूष हर पल उसके साथ ही रहता था। वह खाना भी उसके साथ ही खाता था। अगर उसकी माता उसे कहती कि खाना तो अलग बैठ कर ख लिया कर तो वह खाना खाने से ही मना कर देता था। इस पर उसकी मम्मी के लिये और आफ़त खडी हो जाती फिर वह बेटे को गले लगा कर,प्यार से मनाती और कुछ देर बाद उसका गुस्सा ठंडा होता और फिर वह खाना बिल्ली के साथ ही खाता। बच्चों में बिल्ली के प्रति प्यार को देखकर मेरा मन खुश हो जाता था। मुझे अपने बचपन की यादें ताजा हो जाती थी। हालांकि मैं अपने बचपन में पालतु जानवरों के साथ खेलने को तो आतुर रहता था लेकिन खेल नहीं पाता था।क्योंकि पिता जी का इतना दबाव हमारे ऊपर रहता था कि हमें कभी खेलने का ठीक से अवसर ही नहीं मिल पाता था। हमारा बचपन का दौर केवल काम करने के लिये था। माता-पिता की आज्ञा मानना हमारे लिये ऐसा था जैसे कि भगवान की आज्ञा है कि जिसके आगे कोई चारा नहीं होता आदमी का,हमें जीवन के संघर्ष को अपने बचपन में ही सीख लिया होता था। आज हमारे बच्चों का बचपन ऐसा नहीं है। यह कितनी सुखदायक बात है हमारे लिये कि हम अपने बचपन को कष्टदायक जीते रहे और अपने बच्चों को वह कठिन बचपन नहीं दे रहे हैं। यही सोच, यही बात हमारे लिये मानवता का संदेश दे रही है।
आज बिल्ली का बच्चा बडा हो गया है। आरूष के खेल का वह अभिन्न अंग है। उसकी दिनचर्या कैटी के साथ शुरू होती है और रात को सोने तक वह उसको बार-बार देखता है खिलाता है और तो और रात को सोते समय सपने में भी बिल्ली के बच्चे से बात करता पाता है। मैं बच्चों की मानसिकता को पढने का प्रयास कर रहा हूँ कि क्या अब बच्चे अपनी पढाई पर ठीक से ध्यान दे पायेंगे। कंही बच्चों की पढाई पर बुरा असर तो नहीं पडेगा। आज के माता-पिता की चिंता अलग प्रकार की है। वह बच्चे पर विभिन्न कोर्सों के पढने पर दबाव के प्रयास में रहता है।और यह प्रयास ही नहीं उनके स्टेटस सिंबल का बहुत बडा हिस्सा है। जो बच्चों के मन पर गहरा सदमा डालता है।जिस कारण बच्चे कईं बार आत्महत्या का कदम उठा लेते हैं।जीवन को जीना ज्यादा जरूरी है। क्योंकि जीवन जीने के लिये ही मिला है उस जीवन में वो क्या करेगा क्या नहीं यह भविष्य का प्रश्न है। इस बारे में कोई ठीक से नहीं कह सकता कि हमारे दबाव से ही बच्चा सही पढाई कर पाएगा।यह बात समय के गर्भ में ही रहती है। हालांकि प्रयास जरूरी तो होते हैं लेकिन डोर इतनी कभी न खींचो कि टूट जाये। इसी बात का ध्यान रखते हुये आरूष आज अपनी मित्र कैटी के साथ प्रसन्न है और पढाई भी ठीक कर रहा है।
लेखक- सूबे सिंह सुजान
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