पहले पहल तो देखिये बादल है गुमशुदा
बादल अगर कंही मिला भी तो जल है ग़ुमशुदा।
जंगल न खेत, अब नहीं मिलते ज़मीन पर,
आमों से भोर, और वो कोयल है ग़ुमशुदा
अठखेलियों भरी वो मुहब्बत नहीं रही,
अब गौरियों के पावों से पायल है ग़ुमशुदा
आँखों की सारी शर्मो-हया खत्म हो गई,
पानी भी सूख़ा और वो काजल है ग़ुमशुदा।।
सूबे सिंह सुजान
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें