रविवार, 10 जून 2012

मेरे आज के मित्र

आज मुझे ऐसा एहसास हो रहा है कि जैसे इस भरी दुनिया में कोई मेरा मित्र ही नहीं है। कारण यह है कि एक मित्र ने परसों मुझ किसी ट्रिप के लिये इनवाइट किया था लेकिन आज अन्य मित्रों के साथ मौज मस्ती करने चला गया मुझे खबर भी नहीं किया । जब मैंने फोन किया तो पता चला मुझे अफसोस हुआ। वैसे तो लोग अच्छे मित्रों की बहुत मिसाल देते हैं लेकिन आज के हालात में ऐसा लगता है उन मित्रों का अब अभाव हो चला है क्या अब मित्रता की बातें कहानियों में ही मिलेंगीं  हकीकत में ऐसा नहीं दिखाई देगा जैसे आजकल के बच्चे पाँच पैसे को देख नहीं पाते और उन्हें लगता है कि पाँच पैसे का इस दुनिया में अस्तित्व ही नहीं हुआ।

                                                                                                         क्या मुमकिन नहीं है कि ऐसा ही नये बच्चे मित्र के बारे में भी सोचें। यह कम से कम वर्तामन मानस के लिये तो सोचनीय है ही, अगर ऐसे हालात चलते रहे तो अगलों को तो सुदामा पर यकीन ही नहीं होगा। हमें तो फिलवक्त सुदामा पर यकीन है।                                                सुजान

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